छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 खण्ड-6 से 10
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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 खण्ड-6 से 10
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विवरण | 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है। |
अध्याय | तीसरा |
कुल खण्ड | 19 (उन्नीस) |
सम्बंधित वेद | सामवेद |
संबंधित लेख | उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य |
अन्य जानकारी | सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं। |
छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय तीसरे का यह छठे से दसवाँ खण्ड है।
- इन खण्डों में सूर्य के उन्हीं भागों से अमृत-प्रवाहों के प्रकट होने तथा उसके प्रवाह का वर्णन किया गया है।
- ऋषि का कहना है कि वसुओं द्वारा प्रवाहित अमृत-तत्त्व को साधकों के मन में स्थित वसु ही जान पाते हैं।
- उपनिषदों के मत में विराट चेतना में स्थित देवों के अंश मनुष्य के भीतर भी स्थित हैं। अत: वे अपने समानधर्मी प्रवाहों से साधना द्वारा सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं और अमृत का पान करते हैं।
- देवगण न तो खाते हैं, न पीते हैं। वे केवल इस अमृत को देखकर ही तृप्त हो जाते हैं।
- छठे से दसवें खण्ड तक सूर्य के उदय एवं अस्त होने की प्रक्रिया में विभिन्न दिशाओं का उल्लेख किया गया है। यहाँ उन विभिन्न दिशाओं से विशिष्ट अमृत-प्रवाहों के प्रकट होने की बात कही गयी है। यह अमृत-प्रवाह सूर्य की रश्मियों द्वारा साधक के अन्तर्मन तक प्रवाहित होता है और साधक उस परम सत्ता के ज्योतिर्मय स्वरूप को आत्मसात करता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2 |
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