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"छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-7 खण्ड-1 से 15" के अवतरणों में अंतर

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*[[छान्दोग्य उपनिषद]] के [[छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-7|अध्याय सातवाँ]] का यह प्रथम से पन्द्रहवें खण्ड तक है।
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इन खण्डों में ऋषि सनत्कुमार [[नारद]] जी को 'प्राण' के सत्य स्वरूप का ज्ञान कराते हैं। नारद जी चारों वेदों, इतिहास, [[पुराण]], नृत्य, संगीत आदि विद्याओं के ज्ञाता थे। उन्हें अपने ज्ञान पर गर्व था। एक बार उन्होंने सनत्कुमारजी से 'ब्रह्म' के बारे में प्रश्न किया, तो उन्होंने नारदजी से यही कहा कि अब तक आपने जो ज्ञान प्राप्त किया है, वह सब तो ब्रह्म का नाम-भर है।<br />
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उन्होंने कहा-'नाम के ऊपर वाणी है; क्योंकि वाणी द्वारा ही नाम का उच्चारण होता है। इसे ब्रह्म का एक रूप माना जा सकता है। वाणी के ऊपर संकल्प है; क्योंकि संकल्प ही मन को प्रेरित करता है। संकल्प के ऊपर चित्त है; क्योंकि चित्त ही संकल्प करने की प्रेरणा देता है। चित्त से भी ऊपर ध्यान है; क्योंकि ध्यान लगाने पर ही चित्त संकल्प की प्रेरणा देता है। ध्यान से ऊपर विज्ञान है; क्योंकि विज्ञान का ज्ञान होने पर ही हम सत्य-असत्य का पता लगाकर लाभदायक वस्तु पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। विज्ञान से श्रेष्ठ बल है और बल से भी श्रेष्ठ अन्न है; क्योंकि भूखे रहकर न बल होगा, न विज्ञान होगा, न ध्यान लगाया जा सकेगा। कहा भी है-'भूखे भजन न होय गोपाला।'<br />
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उन्होंने आगे कहा-'अन्न से भी श्रेष्ठ जल है। जल के बिना जीव का जीवित रहना असम्भव है। जल से भी श्रेष्ठ तेज है; क्योंकि तेज के बिना जीव में सक्रियता ही नहीं आती है। इसी क्रम में तेज से श्रेष्ठ आकाश है, आकाश से श्रेष्ठ स्मरण, स्मरण से श्रेष्ठ आशा और आशा से श्रेष्ठ प्राण है; क्योंकि यदि प्राण ही नहीं है, तो जीवन भी नहीं है। अत: यह प्राण ही सर्वश्रेष्ठ ब्रह्म है।'
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उन्होंने कहा- "नाम के ऊपर वाणी है; क्योंकि वाणी द्वारा ही नाम का उच्चारण होता है। इसे ब्रह्म का एक रूप माना जा सकता है। वाणी के ऊपर संकल्प है; क्योंकि संकल्प ही मन को प्रेरित करता है। संकल्प के ऊपर चित्त है; क्योंकि चित्त ही संकल्प करने की प्रेरणा देता है। चित्त से भी ऊपर [[ध्यान]] है; क्योंकि ध्यान लगाने पर ही चित्त संकल्प की प्रेरणा देता है। ध्यान से ऊपर विज्ञान है; क्योंकि विज्ञान का ज्ञान होने पर ही हम सत्य-असत्य का पता लगाकर लाभदायक वस्तु पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। विज्ञान से श्रेष्ठ बल है और बल से भी श्रेष्ठ अन्न है; क्योंकि भूखे रहकर न बल होगा, न विज्ञान होगा, न ध्यान लगाया जा सकेगा। कहा भी है- 'भूखे भजन न होय गोपाला।'"
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उन्होंने आगे कहा- "अन्न से भी श्रेष्ठ [[जल]] है। जल के बिना जीव का जीवित रहना असम्भव है। जल से भी श्रेष्ठ तेज है; क्योंकि तेज के बिना जीव में सक्रियता ही नहीं आती है। इसी क्रम में तेज से श्रेष्ठ [[आकाश]] है, आकाश से श्रेष्ठ स्मरण, स्मरण से श्रेष्ठ आशा और आशा से श्रेष्ठ प्राण है; क्योंकि यदि प्राण ही नहीं है, तो जीवन भी नहीं है। अत: यह प्राण ही सर्वश्रेष्ठ ब्रह्म है।"
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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-7 खण्ड-1 से 15
छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ
विवरण 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है।
अध्याय सातवाँ
कुल खण्ड 26 (छब्बीस)
सम्बंधित वेद सामवेद
संबंधित लेख उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य
अन्य जानकारी सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं।

छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय सातवें का यह प्रथम से पन्द्रहवें तक का खण्ड है। इन खण्डों में ऋषि सनत्कुमार नारद को 'प्राण' के सत्य स्वरूप का ज्ञान कराते हैं।

ब्रह्म का यथार्थ रस क्या है?

नारद जी चारों वेदों, इतिहास, पुराण, नृत्य, संगीत आदि विद्याओं के ज्ञाता थे। उन्हें अपने ज्ञान पर गर्व था। एक बार उन्होंने सनत्कुमार जी से 'ब्रह्म' के बारे में प्रश्न किया, तो उन्होंने नारद जी से यही कहा कि "अब तक आपने जो ज्ञान प्राप्त किया है, वह सब तो ब्रह्म का नाम-भर है।"

उन्होंने कहा- "नाम के ऊपर वाणी है; क्योंकि वाणी द्वारा ही नाम का उच्चारण होता है। इसे ब्रह्म का एक रूप माना जा सकता है। वाणी के ऊपर संकल्प है; क्योंकि संकल्प ही मन को प्रेरित करता है। संकल्प के ऊपर चित्त है; क्योंकि चित्त ही संकल्प करने की प्रेरणा देता है। चित्त से भी ऊपर ध्यान है; क्योंकि ध्यान लगाने पर ही चित्त संकल्प की प्रेरणा देता है। ध्यान से ऊपर विज्ञान है; क्योंकि विज्ञान का ज्ञान होने पर ही हम सत्य-असत्य का पता लगाकर लाभदायक वस्तु पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। विज्ञान से श्रेष्ठ बल है और बल से भी श्रेष्ठ अन्न है; क्योंकि भूखे रहकर न बल होगा, न विज्ञान होगा, न ध्यान लगाया जा सकेगा। कहा भी है- 'भूखे भजन न होय गोपाला।'"

उन्होंने आगे कहा- "अन्न से भी श्रेष्ठ जल है। जल के बिना जीव का जीवित रहना असम्भव है। जल से भी श्रेष्ठ तेज है; क्योंकि तेज के बिना जीव में सक्रियता ही नहीं आती है। इसी क्रम में तेज से श्रेष्ठ आकाश है, आकाश से श्रेष्ठ स्मरण, स्मरण से श्रेष्ठ आशा और आशा से श्रेष्ठ प्राण है; क्योंकि यदि प्राण ही नहीं है, तो जीवन भी नहीं है। अत: यह प्राण ही सर्वश्रेष्ठ ब्रह्म है।"


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1

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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3

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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6

खण्ड-1 से 2 | खण्ड-3 से 4 | खण्ड-5 से 6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 से 13 | खण्ड-14 से 16

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-7

खण्ड-1 से 15 | खण्ड-16 से 26

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-8

खण्ड-1 से 6 | खण्ड-7 से 15