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'''डॉ. ब्रह्म प्रकाश''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Dr. Brahm Prakash'', जन्म- [[21 अगस्त]], [[1912]]; मृत्यु- [[3 जनवरी]], [[1984]]) भारतीय वैज्ञानिक थे। उन्हें विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में योगदान के लिये [[भारत सरकार]] द्वारा सन [[1961]] में [[पद्म श्री]] और [[1968]] में [[पद्म भूषण]] से सम्मानित किया गया था। [[सतीश धवन]] और ब्रह्म प्रकाश उस समय से एक-दूसरे को करीब से जानते थे, जब वे [[1944]]-[[1945]] के दौरान विदेशों में प्रायोजित छात्र थे। यह प्रो. सतीश धवन ही थे जिन्होंने प्रो. ब्रह्म प्रकाश को वीएसएससी का निदेशक बनने के लिए राजी किया था।
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डॉ. ब्रह्म प्रकाश
डॉ. ब्रह्म प्रकाश
पूरा नाम डॉ. ब्रह्म प्रकाश
जन्म 21 अगस्त, 1912
जन्म भूमि लाहौर, आज़ादी पूर्व भारत
मृत्यु 3 जनवरी, 1984
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र विज्ञान एवं अभियांत्रिकी
शिक्षा डॉक्टरेट, रसायन विज्ञान
विद्यालय पंजाब विश्वविद्यालय
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री, 1961

पद्म भूषण, 1968

प्रसिद्धि वैज्ञानिक
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी सन 1957 से 1972 तक प्रो. ब्रह्म प्रकाश देश के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों से निकटता से जुड़े थे। प्रोफेसर ब्रह्म प्रकाश और उनकी टीम ने 1959 में कनाडा-भारत रिएक्टर, साइरस के लिए ईंधन निर्माण सुविधा की शुरुआत की।

डॉ. ब्रह्म प्रकाश (अंग्रेज़ी: Dr. Brahm Prakash, जन्म- 21 अगस्त, 1912; मृत्यु- 3 जनवरी, 1984) भारतीय वैज्ञानिक थे। उन्हें विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में योगदान के लिये भारत सरकार द्वारा सन 1961 में पद्म श्री और 1968 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। सतीश धवन और ब्रह्म प्रकाश उस समय से एक-दूसरे को करीब से जानते थे, जब वे 1944-1945 के दौरान विदेशों में प्रायोजित छात्र थे। यह प्रो. सतीश धवन ही थे जिन्होंने प्रो. ब्रह्म प्रकाश को वीएसएससी का निदेशक बनने के लिए राजी किया था।

परिचय

डॉ. ब्रह्म प्रकाश को धातु विज्ञान में उनके योगदान के लिए देश और विदेश में बड़े पैमाने पर याद किया जाता है। इसरो के लिए वह 'विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र' के पहले निदेशक थे, जिन्होंने केंद्र में एक जीवंत संस्कृति को शामिल किया।[1]

शिक्षा

प्रोफेसर ब्रह्म प्रकाश का जन्म 21 अगस्त, 1912 को लाहौर (आजादी पूर्व) में हुआ था। उन्होंने अपनी कॉलेज की शिक्षा रसायन विज्ञान में की और पंजाब विश्वविद्यालय में डॉक्टरेट की पढ़ाई की। डॉक्टरेट के बाद वह अपने काम के लिए भारतीय वैज्ञानिक शांतिस्वरूप भटनागर के साथ जुड़े रहे। उनके शानदार शैक्षिक रिकॉर्ड ने उन्हें मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी), यूएसए से उन्नत शैक्षणिक प्रशिक्षण का अवसर दिया। एमआईटी में, प्रोफेसर ब्रह्म प्रकाश ने मिनरल इंजीनियरिंग और मेटलर्जिकल थर्मोडायनामिक्स के विषयों में डॉक्टरेट की दूसरी डिग्री हासिल की।

संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में वैज्ञानिक सचिव

सन 1949 में भारत लौटने पर डॉ. ब्रह्म प्रकाश को होमी भाभा द्वारा परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान (एईई) में धातुकर्मी के रूप में शामिल होने के लिए चुना गया था। 1951 में उन्हें आईआईएससी, बैंगलोर में धातुकर्म विभाग का नेतृत्व करने वाले पहले भारतीय बनने के लिए प्रतिनियुक्त किया गया। आईआईएससी (1951-1957) में उनके कार्यकाल ने भारत में धातुकर्म शिक्षा और अनुसंधान के विस्तार का मार्ग प्रशस्त किया और शायद उनके भाग्य का फैसला खुद किया। इस कार्यकाल के दौरान प्रोफेसर ब्रह्म प्रकाश को परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र के पहले सम्मेलन के लिए वैज्ञानिक सचिवों में से एक के रूप में चुना गया था।

विभिन्न योगदान

सन 1957 से 1972 तक प्रो. ब्रह्म प्रकाश देश के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों से निकटता से जुड़े थे। प्रोफेसर ब्रह्म प्रकाश और उनकी टीम ने 1959 में कनाडा-भारत रिएक्टर, साइरस के लिए ईंधन निर्माण सुविधा की शुरुआत की। उन्होंने परियोजना निदेशक, एनएफ़सी, हैदराबाद और यूरेनियम कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष के रूप में परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों में बड़े और विविध योगदान दिए। 1980 से 1984 की अवधि के लिए भारत के और रक्षा उत्पादन के अध्यक्ष, मिश्रधातु निगम लिमिटेड या मिधानी के रूप में भी प्रो. ब्रह्म प्रकाश देश के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों से निकटता से जुड़े थे।[1]

वीएसएससी के पहले निदेशक

सतीश धवन और ब्रह्म प्रकाश उस समय से एक-दूसरे को करीब से जानते थे, जब वे 1944-1945 के दौरान विदेशों में प्रायोजित छात्र थे। यह प्रो. सतीश धवन ही थे जिन्होंने प्रो. ब्रह्म प्रकाश को वीएसएससी का निदेशक बनने के लिए राजी किया था, जब उन्होंने 1972 में बीएआरसी में अपना प्रवास समाप्त किया था, शायद ऐसे समय में जब महान किंवदंती डॉ. साराभाई की असामयिक मृत्यु ने इसरो में एक बड़ा शून्य छोड़ दिया था। प्रो. ब्रह्म प्रकाश ने मई 1972 में केंद्र की बागडोर संभाली और नवंबर 1979 तक इसके श्रद्धेय निदेशक के रूप में बने रहे। जब उन्होंने निदेशक का पद ग्रहण किया, तो 'भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम' विकास के प्रारंभिक चरण में था।

ब्रह्म प्रकाश जी इसरो की कई छोटी इकाइयाँ, जैसे- टीईआरएलएस, आरपीपी, आरएफ़एफ़, पीएफसी और पूर्ववर्ती एसएसटीसी (अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी केंद्र), तिरुवनंतपुरम में कार्य कर रहे थे। उनकी वैज्ञानिक कुशाग्रता, शानदार प्रशासनिक और संगठनात्मक क्षमताएं और इससे भी अधिक उनके निरंतर अस्थिर स्वभाव और संपूर्ण संयम के मानवीय गुणों ने वीएसएससी को आज की तरह एक गतिशील संरचना बनाने के लिए इन सभी अनाकार संस्थाओं को एक साथ जोड़ने में मदद की। वह अपने निधन के दिन तक अंतरिक्ष आयोग के सदस्य बने रहे।

सम्मान

राष्ट्र ने ब्रह्म प्रकाश जी को 1961 में पद्म श्री और 1968 में पद्म भूषण से सम्मानित किया।

मृत्यु

3 जनवरी, 1984 को 72 वर्ष की आयु में ब्रह्म प्रकाश का निधन हो गया। उनकी वैज्ञानिक कुशाग्रता, शानदार प्रशासनिक और संगठनात्मक क्षमताएं और इससे भी अधिक उनके निरंतर अस्थिर स्वभाव और संपूर्ण संयम के मानवीय गुणों ने वीएसएससी को आज की तरह एक गतिशील संरचना बनाने के लिए इन सभी अनाकार संस्थाओं को एक साथ जोड़ने में मदद की। वह अपने निधन के दिन तक अंतरिक्ष आयोग के सदस्य बने रहे थे।[1] == 3 जनवरी 1984 को 72 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 डॉ. ब्रह्म प्रकाश (हिंदी) vssc.gov.in। अभिगमन तिथि: 18 दिसम्बर, 2021।

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