एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "१"।

पी. सी. महालनोबिस

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
पी. सी. महालनोबिस
प्रशान्त चन्द्र महालनोबिस
पूरा नाम प्रशान्त चन्द्र महालनोबिस
जन्म 29 जून, 1893
जन्म भूमि कलकत्ता, बंगाल
मृत्यु 28 जून, 1972
मृत्यु स्थान कोलकाता, पश्चिम बंगाल
अभिभावक श्री प्रबोध चंद्र महालनोबिस और श्रीमती निरोदबसिनी
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र गणित, सांख्यिकी
विद्यालय प्रेसीडेंसी कालेज, कोलकाता; कैंब्रिज यूनिवर्सिटी, लंदन
पुरस्कार-उपाधि पद्म विभूषण
प्रसिद्धि महालनोबिस की प्रसिद्धि "महालनोबिस दूरी" के कारण है जो उनके द्वारा सुझाया गयी एक सांख्यिकीय माप है।
विशेष योगदान भारतीय सांख्यिकी संस्थान’ की स्थापना
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के दौरान इन्होंने कृषि व बाढ़ नियंत्रण के क्षेत्र में कई अभिनव प्रयोग किए। उनके द्वारा सुझाए गए बाढ़ नियंत्रण के उपायों पर अमल करते हुए भारत सरकार को इस दिशा में अप्रत्याशित सफलता मिली।

प्रशान्त चन्द्र महालनोबिस (अंग्रेज़ी: Prasanta Chandra Mahalanobis, जन्म: 29 जून, 1893; मृत्यु: 28 जून, 1972) प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक एवं सांख्यिकीविद थे। उन्हें दूसरी पंचवर्षीय योजना के अपने मसौदे के कारण जाना जाता है। वे भारत की आज़ादी के पश्चात् नवगठित मंत्रिमंडल के सांख्यिकी सलाहकार बने थे। औद्योगिक उत्पादन की तीव्र बढ़ोतरी के जरिए बेरोज़गारी समाप्त करने के सरकार के प्रमुख उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने योजनाएँ बनाई।

जीवन परिचय

प्रशांत चंद्र महालनोबिस का जन्म कोलकाता के 210 कार्नवालिस स्ट्रीट स्थित उनके पैतृक आवास में 29 जून, 1893 को हुआ था। उनके पिता का नाम प्रबोध चंद्र महालनोबिस था जो साधारण ब्रह्मो समाज के सक्रिय सदस्य थे। उनकी माता निरोदबसिनी का संबंध बंगाल के पढ़े-लिखे कुल से था। महालनोबिस की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा उनके दादा, गुरु चरन महालनोबिस द्वारा स्थापित ब्रह्मो ब्वायज स्कूल में हुई। उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा इसी स्कूल से 1908 ई में पास की। प्रेसीडेंसी कालेज से भौैतिकी विषय में आनर्स करने के बाद उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए ये लंदन चले गए। वहां इन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से भौतिकी और गणित दोनों विषयों से डिग्री हासिल की। ये एकमात्र छात्र थे, जिसने भौतिकी में पहला स्थान प्राप्त किया था। उसके बाद ये कोलकाता लौट आए।

सांख्‍यि‍की में रुचि

कैंब्रिज छोड़ने से ठीक पहले प्रोफेसर प्रशांत चंद्र महालनोबिस ने अपने शिक्षक डब्ल्यू एच मैकाले के कहने पर ‘बायोमेट्रिका’ नामक किताब पढ़ी। इस किताब को पढ़ने के बाद ही इनका रुझान सांख्यिकी की ओर होने लगा। बाद में आचार्य ब्रजेन्द्रनाथ सील के निर्देशन में इन्होंने सांख्यिकी पर काम करना शुरु किया। प्रोफेसर महालनोबिस ने इस दिशा में जो सबसे पहला काम किया, वह था कालेज के परीक्षा परिणामों का साख्यिकीय माध्यम से विश्लेषण। इस काम में उन्हें काफ़ी सफलता मिली। इसके बाद महालनोबिस की मुलाकात नेल्सन अन्नाडेल से हुई, जो उस वक्त ‘जुलोजिकल एंड एंथ्रोपोलोजिकल सर्वे आफ इंडिया’ के निदेशक थे। उन्होंने श्री महालनोबिस से संस्थान द्वारा कोलकाता के ऐंग्लो इंडियंस के बारे में एकत्र किए गए आंकड़ों का विश्लेषण करने को कहा। इस विश्लेषण का जो परिणाम आया वह भारत में सांख्यिकी का पहला शोध-पत्र कहा जा सकता है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर का साथ

वैज्ञानिक होने के अलावा श्री महालनोबिस की रुचि साहित्य में भी थी। उनके गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर के साथ काफ़ी अच्छे संबंध थे। बचपन में वे अपने दादा, गुरु चंद्र महालनोबिस के साथ गुरुदेव के पिता देवेन्द्रनाथ टैगोर के पास आते-जाते थे। प्रोफेसर महालनोबिस के संबंध गुरुदेव के साथ 1910 से ज्यादा प्रगाढ़ होने लगे जब वे पहली बार शांति-निकेतन पहुंचे। यहां महालनोबिस ने टैगोर के साथ दो महीने का समय बिताया। इस दरम्यान टैगोर ने उन्हें आश्रमिका संघ का सदस्य बना दिया। बाद में जब टैगोर ने ‘विश्व भारती’ की स्थापना की तो प्रोफेसर महालनोबिस को संस्थान का सचिव नियुक्त किया। इतना ही नहीं प्रोफेसर ने गुरुदेव के साथ कई देशों की यात्रा भी की और कई महत्वपूर्ण दस्तावेज भी लिखे। इस दौरान प्रोफेसर महालनोबिस की ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगी। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उनकी मदद लेनी शुरु कर दी और उन्होंने कृषि व बाढ़ नियंत्रण के क्षेत्र में कई अभिनव प्रयोग किए। उनके द्वारा सुझाए गए बाढ़ नियंत्रण के उपायों पर अमल करते हुए सरकार को इस दिशा में अप्रत्याशित सफलता मिली।[1]

उपलब्धि एवं योगदान

इन उपलब्धियों के अलावा प्रोफेसर प्रशान्त चन्द्र महालनोबिस का सबसे बड़ा योगदान उनके द्वारा शुरु किया गया ‘सैंपल सर्वे’ है, जिसके आधार पर आज बड़ी-बड़ी नीतियां और योजनाएं बनाई जा रही हैं। उन्होंने इसकी शुरुआत एक निश्चित भूभाग पर होने वाली जूट की फसल के आंकड़ों से की और यह बताया कि कैसे उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। हालांकि उनके काम के तरीक़े पर शुरुआत में सवालिया निशान लगाए गए पर उन्होंने बार-बार खुद को सिद्ध किया और अंततः उनके द्वारा किए गए कार्यों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता मिली। उन्हें आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा 1944 में ‘वेलडन मेडल’ पुरस्कार दिया गया जबकि 1945 में रायल सोसायटी ने उन्हें अपना फेलो नियुक्त किया। प्रोफेसर महालनोबिस चाहते थे कि सांख्यिकी का उपयोग देशहित में भी हो। यही वजह है कि उन्होंने पंचवर्षीय योजनाओं के निर्माण में अहम भूमिका निभाई।[1]

'भारतीय सांख्यिकी संस्थान’ की स्थापना

17 दिसंबर 1931 का दिन भारत के इतिहास में काफ़ी महत्वपूर्ण है। इस दिन प्रोफेसर प्रशान्त चन्द्र महालनोबिस का सपना साकार हुआ और कोलकाता में ‘भारतीय सांख्यिकी संस्थान’ की स्थापना हुई। आज कोलकाता के अलावा इस संस्थान की शाखाएं दिल्ली, बैंगलोर, हैदराबाद, पुणे, कोयंबटूर, चेन्नई, गिरिडीह सहित देश के दस स्थानों में हैं। संस्थान का मुख्यालय कोलकाता है जहाँ मुख्य रूप से सांख्यिकी की पढ़ाई होती है। सन 1959 में भारतीय सांख्यिकी संस्थान को ‘राष्ट्रीय महत्व का संस्थान’ घोषित किया गया। प्रोफेसर महालनोबिस को 1957 में अंतर्राष्ट्रीय सांख्यिकी संस्थान का सम्मानित अध्यक्ष बनाया गया।[1]

सम्मान एवं पुरस्कार

  1. सन 1944 में प्रशान्त चन्द्र महालनोबिस को ‘वेलडन मेडल’ पुरस्कार दिया गया।
  2. सन 1945 में लन्दन की रॉयल सोसायटी ने उन्हें अपना फेलो नियुक्त किया।
  3. सन 1950 में उन्हें ‘इंडियन साइंस कांग्रेस’ का अध्यक्ष चुना गया।
  4. अमेरिका के ‘एकोनोमेट्रिक सोसाइटी’ का फेलो नियुक्त किया गया।
  5. सन 1952 में पाकिस्तान सांख्यिकी संस्थान का फेलो बनाया गया।
  6. प्रशान्त चन्द्र महालनोबिस को रॉयल स्टैटिस्टिकल सोसाइटी का मानद फेलो 1954 में नियुक्त किया गया।
  7. सन 1957 में उन्हें देवी प्रसाद सर्वाधिकार स्वर्ण पदक दिया गया।
  8. सन 1959 में उन्हें किंग्स कॉलेज का मानद फेलो नियुक्त किया गया।
  9. 1957 में अंतर्राष्ट्रीय सांख्यिकी संस्थान का ऑनररी अध्यक्ष बनाया गया।
  10. प्रशान्त चन्द्र महालनोबिस का जन्‍मदिन 29 जून, हर वर्ष भारत में ‘सांख्यिकी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
  11. भारत सरकार ने 1968 में प्रोफेसर प्रशान्त चन्द्र महालनोबिस को देश के दूसरे सर्वोच्च सम्मान ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया।
  12. 1968 में उन्हें श्रीनिवास रामानुजम स्वर्ण पदक दिया गया।
पी. सी. महालनोबिस पर गूगल का डूडल

गूगल डूडल

29 जून, 2018 को मशहूर सांख्यिकीविद और वैज्ञानिक प्रशांत चंद्र महालनोबिस का 125वां जन्मदिन है और इस अवसर पर गूगल ने उन्हें डूडल बनाकर सलाम किया है। प्रशांत चंद्र महालनोबिस को सांख्यिकी में उल्लेखनीय काम करने के लिए जाना जाता है। इस डूडल को निशांत चौकसी ने बनाया है। महालनोबिस ने पॉप्युलेशन स्टडीज में माप के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ‘महालनोबिस डिस्टेंस’ का आविष्कार किया था। वे पहले योजना आयोग के सदस्य थे और उन्होंने 'भारतीय सांख्यिकी संस्थान' (इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट) स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके साथ ही उन्होंने 'नैशनल सैंपल सर्वे ऑफिस' (NSSO) और 'सेंट्रल स्टैटिस्टिकल ऑर्गनाइजेशन' (CSO) का भी गठन किया था।

125 रुपये का सिक्का

125 रुपये का सिक्का

भारत में जल्द ही 1, 2, 5 और 10 के सिक्कों के अलावा अब 125 रुपये के सिक्के की भी खनक सुनी जा सकेगी। भारत सरकार 29 जून, 2018 को 125 रुपये का सिक्का जारी करेगी। सिक्के को 29 जून को ही इसलिए जारी किया जा रहा है, क्योंकि वर्ष 2007 में सरकार ने सांख्य‍िकी विशेषज्ञ प्रशांत चंद्र महालनोबिस की जयंती को 'सांख्‍यिकी दिवस' के तौर पर मनाने की घोषणा की थी और 29 जून, 2018 को उनकी 125वीं जयंती है। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू प्रशांत चंद्र महालनोबिस के सम्मान में 125 रुपये का स्मृति सिक्का और 5 रुपये का नया सिक्का जारी करेंगे।

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय व भारतीय सांख्‍यिकी संस्‍थान ने जानकारी देते हुए कहा कि- "इस साल (2018) के सांख्‍यिकी दिवस का थीम ‘Quality Assurance in Official Statistics‘ है। भारतीय सांख्‍यिकी संस्‍थान की स्‍थापना प्रशांत चंद्र महालनोबिस ने 1931 में की थी। आर्थिक योजना और सांख्‍यि‍की विकास के क्षेत्र में महालनोबिस के उल्‍लेखनीय योगदान के सम्‍मान में भारत सरकार उनके जन्‍मदिन 29 जून को हर वर्ष ‘सांख्यिकी दिवस’ के रूप में मनाती है।[2]

निधन

प्रोफेसर प्रशांत चंद्र महालनोबिस एक दूरद्रष्टा भी थे। उन्होंने दुनिया को यह बताया कि कैसे सांख्यिकी का प्रयोग आम लोगों की भलाई के लिए किया जा सकता है। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के काफ़ी नजदीक रहने के बावजूद उन्होंने कभी कोई पद आधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया। उन्हें विज्ञान में ब्यूरोक्रेसी पसंद नहीं थी। उन्हें अपने संस्थान से काफ़ी लगाव था और वे इसे हमेशा एक स्वतंत्र संस्था के रूप में देखना चाहते थे। शायद यही वजह है कि जब 1971 में इस संस्थान से जुड़े अधिकांश लोगों ने सरकार के साथ जाने का फैसला किया तो उन्हें आंतरिक तकलीफ पहुंची। वे इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर सके और 28 जून, 1972 को उनकी मृत्यु हो गई।[1]

सांख्‍यि‍की दिवस

महालनोबिस की प्रसिद्धि महालनोबिस दूरी के कारण है, जो उनके द्वारा सुझाया गयी एक सांख्यिकीय माप है। उन्होंने भारतीय सांख्यिकीय संस्थान की स्थापना की। आर्थिक योजना और सांख्‍यि‍की विकास के क्षेत्र में प्रशांत चन्‍द्र महालनोबिस के उल्‍लेखनीय योगदान के सम्‍मान में भारत सरकार उनके जन्‍मदिन, 29 जून को हर वर्ष 'सांख्यिकी दिवस' के रूप में मनाती है। इस दिन को मनाने का उद्देश्‍य सामाजिक-आर्थिक नियोजन और नीति निर्धारण में प्रो. महालनोबिस की भूमिका के बारे में जनता में, विशेषकर युवा पीढ़ी में जागरूकता जगाना तथा उन्‍हें प्रेरित करना है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 रंजन, आलोक। भारतीय सांख्यिकी के जनक, ‘प्रो महालनोबिस’ (हिन्दी) 24 jet news। अभिगमन तिथि: 23 दिसम्बर, 2014।
  2. पी सी महालनोबिस की 125वीं जयंती, सरकार जारी करेगी 125 रुपये का सिक्‍का (हिन्दी) punjabkesari.com। अभिगमन तिथि: 29 जून, 2018।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख