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[[चित्र:Hindi-Alphabhet.jpg|thumb|हिंदी वर्णमाला]]
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{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय
'''हिंदी''' भारतीय [[प्रांगण:मुखपृष्ठ/भारत गणराज्य|गणराज]] की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्य भाषा है। सन् [[2001]] की जनगणना के अनुसार, लगभग 25.79 करोड़ भारतीय हिंदी का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं। सन् 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था। सन् [[1997]] में भारत की जनगणना का भारतीय भाषाओं के विश्लेषण का ग्रन्थ प्रकाशित होने तथा संसार की भाषाओं की रिपोर्ट तैयार करने के लिए [[यूनेस्को]] द्वारा सन् [[1998]] में भेजी गई यूनेस्को प्रश्नावली के आधार पर उन्हें भारत सरकार के केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के तत्कालीन निदेशक प्रोफेसर महावीर सरन जैन द्वारा भेजी गई विस्तृत रिपोर्ट के बाद अब विश्व स्तर पर यह स्वीकृत है कि मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से संसार की भाषाओं में चीनी भाषा के बाद हिन्दी का दूसरा स्थान है। चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या हिन्दी भाषा से अधिक है किन्तु चीनी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा सीमित है। अँगरेज़ी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा अधिक है किन्तु मातृभाषियों की संख्या अँगरेज़ी भाषियों से अधिक है। इसकी कुछ बोलियाँ, [[मैथिली भाषा|मैथिली]] और [[राजस्थानी भाषा|राजस्थानी]] अलग भाषा होने का दावा करती हैं। हिंदी की प्रमुख बोलियों में [[अवधी भाषा|अवधी]], [[भोजपुरी भाषा|भोजपुरी]], [[ब्रजभाषा]], [[छत्तीसगढ़ी]], [[गढ़वाली]], [[हरियाणवी]], [[कुमायूँनी बोली|कुमांऊनी]], [[मागधी]] और [[मारवाड़ी भाषा]] शामिल हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.censusindia.gov.in/Census_Data_2001/Census_Data_Online/Language/Statement1.htm |title=ABSTRACT OF SPEAKERS' STRENGTH OF LANGUAGES AND MOTHER TONGUES - 2001  |accessmonthday=15 सितम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=census of india |language=अंग्रेज़ी }}</ref>
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|चित्र=Hindi-Alphabhet.jpg
==हिंदी भाषा का विकास==
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|चित्र का नाम=हिंदी वर्णमाला
'''वर्गीकरण'''<br />
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|विवरण='हिंदी' [[प्रांगण:मुखपृष्ठ/भारत गणराज्य|भारतीय गणराज]] की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्य भाषा है।
*हिंदी विश्व की लगभग 3,000 भाषाओं में से एक है।
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|शीर्षक 1=लिपी
*आकृति या रूप के आधार पर हिंदी वियोगात्मक या विश्लिष्ट भाषा है।
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|पाठ 1=[[देवनागरी लिपि|देवनागरी]]
*भाषा–परिवार के आधार पर हिंदी भारोपीय परिवार की भाषा है।
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|शीर्षक 2=आधिकारिक भाषा
*[[भारत]] में 4 भाषा–परिवार— भारोपीय, द्रविड़, आस्ट्रिक व चीनी–तिब्बती मिलते हैं। [[भारत]] में बोलने वालों के प्रतिशत के आधार पर भारोपीय परिवार सबसे बड़ा भाषा परिवार है।
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|पाठ 2=[[भारत]]
*हिंदी भारोपीय/ भारत [[यूरोप|यूरोपीय]] के भारतीय– [[ईरान|ईरानी]] शाखा के भारतीय आर्य (Indo–Aryan) उपशाखा से विकसित एक भाषा है।
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|शीर्षक 3=नियामक
*भारतीय आर्यभाषा को तीन कालों में विभक्त किया जाता है।
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|पाठ 3=केंद्रीय हिंदी निदेशालय
{{भारत के भाषा परिवार सूची1}}
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|शीर्षक 4=भाषा–परिवार
हिंदी की आदि जननी संस्कृत है। संस्कृत [[पालि भाषा|पालि]], [[प्राकृत भाषा]] से होती हुई अपभ्रंश तक पहुँचती है। फिर अपभ्रंश, अवहट्ट से गुजरती हुई प्राचीन/प्रारम्भिक हिंदी का रूप लेती है। विशुद्धतः, हिंदी भाषा के इतिहास का आरम्भ अपभ्रंश से माना जाता है।
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|पाठ 4=[[भारोपीय भाषा परिवार]]
*हिंदी का विकास क्रम- '''[[संस्कृत भाषा|संस्कृत]]→ [[पालि भाषा|पालि]]→ [[प्राकृत भाषा|प्राकृत]]→ [[अपभ्रंश भाषा|अपभ्रंश]]→ अवहट्ट→ प्राचीन / प्रारम्भिक हिंदी'''
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|शीर्षक 5=व्युत्पत्ति
==अपभ्रंश==
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|पाठ 5=हिंदी शब्द की व्युत्पत्ति [[संस्कृत]] शब्द सिन्धु से मानी जाती है।
{{main|अपभ्रंश भाषा}}
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|शीर्षक 6=
*[[अपभ्रंश भाषा]] का विकास 500 ई. से लेकर 1000 ई. के मध्य हुआ और इसमें [[साहित्य]] का आरम्भ 8वीं [[सदी]] ई. (स्वयंभू [[कवि]]) से हुआ, जो 13वीं सदी तक जारी रहा।
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|पाठ 6=
*अपभ्रंश (अप+भ्रंश+घञ्) शब्द का यों तो शाब्दिक अर्थ है 'पतन', किन्तु अपभ्रंश साहित्य से अभीष्ट है— प्राकृत भाषा से विकसित भाषा विशेष का साहित्य।
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|शीर्षक 7=
*प्रमुख रचनाकार- [[स्वयंभुव मनु|स्वयंभू]]— अपभ्रंश का [[वाल्मीकि]] ('[[पउम चरिउ]]' अर्थात् राम काव्य), धनपाल ('भविस्सयत कहा'–अपभ्रंश का पहला प्रबन्ध काव्य), पुष्पदंत ('महापुराण', '[[जसहर चरिउ]]'), सरहपा, कण्हपा आदि सिद्धों की रचनाएँ ('चरिया पद', 'दोहाकोशी') आदि।
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|पाठ 7=
==अवहट्ट==
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|शीर्षक 8=
*अवहट्ट 'अपभ्रंष्ट' शब्द का विकृत रूप है। इसे 'अपभ्रंश का अपभ्रंश' या 'परवर्ती अपभ्रंश' कह सकते हैं। अवहट्ट अपभ्रंश और आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के बीच की संक्रमणकालीन/संक्रांतिकालीन भाषा है। इसका कालखंड 900 ई. से 1100 ई. तक निर्धारित किया जाता है। वैसे साहित्य में इसका प्रयोग 14वीं सदी तक होता रहा है।
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|पाठ 8=
*अब्दुर रहमान, दामोदर पंडित, ज्योतिरीश्वर ठाकुर, [[विद्यापति]] आदि रचनाकारों ने अपनी भाषा को 'अवहट्ट' या 'अवहट्ठ' कहा है। विद्यापति प्राकृत की तुलना में अपनी भाषा को मधुरतर बताते हैं। देश की भाषा सब लोगों के लिए मीठी है। इसे अवहट्ठा कहा जाता है।<ref>'देसिल बयना सब जन मिट्ठा/ते तैसन जम्पञो अवहट्ठा'</ref>
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|शीर्षक 9=
*प्रमुख रचनाकारः अद्दहमाण/अब्दुर रहमान ('संनेह रासय'/'संदेश रासक'), दामोदर पंडित ('उक्ति–व्यक्ति–प्रकरण'), ज्योतिरीश्वर ठाकुर ('वर्ण रत्नाकर'), विद्यापति ('कीर्तिलता') आदि।
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|पाठ 9=
 
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|शीर्षक 10=
==प्राचीन हिंदी==
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|पाठ 10=
{| class="bharattable-purple" border="1" width="25%" style="float:right; margin:10px"
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|संबंधित लेख=[[हिन्दी की उपभाषाएँ एवं बोलियाँ]], [[आठवीं अनुसूची]], [[हिन्दी दिवस]], [[विश्व हिन्दी दिवस]], [[हिंदी पत्रकारिता दिवस]]
|+ अपभ्रंश से आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं का विकास
+
|अन्य जानकारी=सन् [[2001]] की जनगणना के अनुसार, लगभग 25.79 करोड़ भारतीय हिंदी का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं।
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|बाहरी कड़ियाँ=
| rowspan="3" style="background:#dfe8e9"| '''शौरसेनी'''
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|अद्यतन=
| पश्चिमी हिंदी
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}}
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'''हिंदी''' भारतीय [[प्रांगण:मुखपृष्ठ/भारत गणराज्य|गणराज]] की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्य भाषा है। सन् [[2001]] की जनगणना के अनुसार, लगभग 25.79 करोड़ भारतीय हिंदी का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं। सन् 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था। सन् [[1997]] में भारत की जनगणना का भारतीय भाषाओं के विश्लेषण का ग्रन्थ प्रकाशित होने तथा संसार की भाषाओं की रिपोर्ट तैयार करने के लिए [[यूनेस्को]] द्वारा सन् [[1998]] में भेजी गई यूनेस्को प्रश्नावली के आधार पर उन्हें भारत सरकार के [[केन्द्रीय हिन्दी संस्थान]] के तत्कालीन निदेशक प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन द्वारा भेजी गई विस्तृत रिपोर्ट के बाद अब विश्व स्तर पर यह स्वीकृत है कि मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से संसार की भाषाओं में चीनी भाषा के बाद हिन्दी का दूसरा स्थान है। चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या हिन्दी भाषा से अधिक है किन्तु चीनी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा सीमित है। अँगरेज़ी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा अधिक है किन्तु मातृभाषियों की संख्या अँगरेज़ी भाषियों से अधिक है। इसकी कुछ बोलियाँ, [[मैथिली भाषा|मैथिली]] और [[राजस्थानी भाषा|राजस्थानी]] अलग भाषा होने का दावा करती हैं। हिंदी की प्रमुख बोलियों में [[अवधी भाषा|अवधी]], [[भोजपुरी भाषा|भोजपुरी]], [[ब्रजभाषा]], [[छत्तीसगढ़ी]], [[गढ़वाली]], [[हरियाणवी]], [[कुमायूँनी बोली|कुमांऊनी]], [[मागधी]] और [[मारवाड़ी भाषा]] शामिल हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.censusindia.gov.in/Census_Data_2001/Census_Data_Online/Language/Statement1.htm |title=ABSTRACT OF SPEAKERS' STRENGTH OF LANGUAGES AND MOTHER TONGUES - 2001  |accessmonthday=15 सितम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=census of india |language=अंग्रेज़ी }}</ref>
| [[राजस्थानी भाषा|राजस्थानी]]
 
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| [[गुजराती भाषा|गुजराती]]
 
|-
 
| style="background:#dfe8e9"| '''अर्द्धमागधी'''
 
| पूर्वी हिंदी
 
|-
 
| rowspan="4" style="background:#dfe8e9" | '''मागधी'''
 
| [[बिहारी भाषाएँ|बिहारी]]
 
|-
 
| [[उड़िया भाषा|उड़िया]]
 
|-
 
| [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]]
 
|-
 
| [[असमिया भाषा|असमिया]]
 
|-
 
| style="background:#dfe8e9"|'''खस'''
 
| [[पहाड़ी बोली|पहाड़ी]] (शौरसेनी से प्रभावित)
 
|-
 
| rowspan="2" style="background:#dfe8e9" | '''ब्राचड़'''
 
| [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]](शौरसेनी से प्रभावित)
 
|-
 
| [[सिंधी भाषा|सिंधी]]
 
|-
 
| style="background:#dfe8e9"| '''महाराष्ट्री'''
 
| [[मराठी भाषा|मराठी]]
 
|}
 
*मध्यदेशीय भाषा परम्परा की विशिष्ट उत्तराधिकारिणी होने के कारण हिंदी का स्थान आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं में सर्वोपरी है।
 
*प्राचीन हिंदी से अभिप्राय है— अपभ्रंश– अवहट्ट के बाद की भाषा।
 
*हिंदी का आदिकाल हिंदी भाषा का शिशुकाल है। यह वह काल था, जब अपभ्रंश–अवहट्ट का प्रभाव हिंदी भाषा पर मौजूद था और हिंदी की बोलियों के निश्चित व स्पष्ट स्वरूप विकसित नहीं हुए थे।
 
==हिंदी शब्द की व्युत्पत्ति==
 
हिंदी शब्द की व्युपत्ति भारत के उत्तर–पश्चिम में प्रवाहमान [[सिंधु नदी]] से सम्बन्धित है। अधिकांश [[विदेशी यात्री]] और आक्रान्ता उत्तर–पश्चिम सिंहद्वार से ही भारत आए। भारत में आने वाले इन विदेशियों ने जिस देश के दर्शन किए, वह '[[सिंधु]]' का देश था। [[ईरान]] ([[फ़ारस]]) के साथ भारत के बहुत प्राचीन काल से ही सम्बन्ध थे और ईरानी 'सिंधु' को 'हिन्दु' कहते थे। (सिंधु - हिन्दु, स का ह में तथा ध का द में परिवर्तन - [[पहलवी भाषा]] प्रवृत्ति के अनुसार ध्वनि परिवर्तन)। '''हिन्दू शब्द [[संस्कृत]] से प्रचलित है परंतु यह संस्कृत के 'सिन्धु' शब्द से विकसित है।''' हिन्दू से 'हिन्द' बना और फिर 'हिन्द' में [[फ़ारसी भाषा]] के सम्बन्ध कारक प्रत्यय 'ई' लगने से 'हिंदी' बन गया। 'हिंदी' का अर्थ है—'हिन्द का'। इस प्रकार हिंदी शब्द की उत्पत्ति हिन्द देश के निवासियों के अर्थ में हुई। आगे चलकर यह शब्द 'हिंदी की भाषा' के अर्थ में प्रयुक्त होने लगा।
 
उपर्युक्त बातों से तीन बातें सामने आती हैं—
 
#'हिंदी' शब्द का विकास कई चरणों में हुआ- '''सिंधु'''→ '''हिन्दु'''→ '''हिन्द+ई'''→ '''हिंदी'''।
 
#'हिंदी' शब्द मूलतः फ़ारसी का है न कि 'हिंदी' भाषा का। यह ऐसे ही है जैसे बच्चा हमारे घर जनमे और उसका नामकरण हमारा पड़ोसी करे। हालाँकि कुछ कट्टर हिंदी प्रेमी 'हिंदी' शब्द की व्युत्पत्ति हिंदी भाषा में ही दिखाने की कोशिश करते हैं, जैसे - हिन (हनन करने वाला) + दु (दुष्ट)= हिन्दू अर्थात् दुष्टों का हनन करने वाला हिन्दू और उन लोगों की भाषा 'हिंदी'; हीन (हीनों)+दु (दलन)= हिन्दू अर्थात् हीनों का दलन करने वाला हिन्दू और उनकी भाषा 'हिंदी'। चूँकि इन व्युत्पत्तियों में प्रमाण कम, अनुमान अधिक है, इसलिए सामान्यतः इन्हें स्वीकार नहीं किया जाता।
 
#'हिंदी' शब्द के दो अर्थ हैं— 'हिन्द देश के निवासी' (यथा— '''हिंदी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा'''— इक़बाल) और 'हिंदी की भाषा'। हाँ, यह बात अलग है कि अब यह शब्द दो आरम्भिक अर्थों से पृथक हो गया है। इस देश के निवासियों को अब कोई हिंदी नहीं कहता, बल्कि भारतवासी, हिन्दुस्तानी आदि कहते हैं। दूसरे, इस देश की व्यापक भाषा के अर्थ में भी अब 'हिंदी' शब्द का प्रयोग नहीं होता, क्योंकि भारत में अनेक भाषाएँ हैं, जो सब 'हिंदी' नहीं कहलाती हैं। बेशक ये सभी 'हिन्द' की भाषाएँ हैं, लेकिन केवल 'हिंदी' नहीं हैं। उन्हें हम [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]], [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]], [[असमिया भाषा|असमिया]], [[उड़िया भाषा|उड़िया]], [[मराठी भाषा|मराठी]] आदि नामों से पुकारते हैं। इसलिए 'हिंदी' की इन सब भाषाओं के लिए 'हिंदी' शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता। हिंदी' शब्द भाषा विशेष का वाचक नहीं है, बल्कि यह भाषा समूह का नाम है। हिंदी जिस भाषा समूह का नाम है, उसमें आज के हिंदी प्रदेश/क्षेत्र की 5 उपभाषाएँ तथा 17 बोलियाँ शामिल हैं। बोलियों में [[ब्रजभाषा]], [[अवधी भाषा|अवधी]] एवं [[खड़ी बोली]] को आगे चलकर [[मध्यकाल]] में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है।
 
*'''ब्रजभाषा'''- प्राचीन हिंदी काल में ब्रजभाषा अपभ्रंश–अवहट्ट से ही जीवन रस लेती रही। अपभ्रंश–अवहट्ट की रचनाओं में ब्रजभाषा के फूटते हुए अंकुर को देखा जा सकता है। ब्रजभाषा [[साहित्य]] का प्राचीनतम उपलब्ध ग्रंथ सुधीर अग्रवाल का 'प्रद्युम्न चरित' (1354 ई.) है।
 
*'''अवधी'''- अवधी की पहली कृति मुल्ला दाउद की 'चंद्रायन' या 'लोरकहा' (1370 ई.) मानी जाती है। इसके उपरान्त [[अवधी भाषा]] के साहित्य का उत्तरोत्तर विकास होता गया।
 
*'''खड़ी बोली'''- प्राचीन हिंदी काल में रचित खड़ी बोली साहित्य में खड़ी बोली के आरम्भिक प्रयोगों से उसके आदि रूप या बीज रूप का आभास मिलता है। खड़ी बोली का आदिकालीन रूप सरहपा आदि सिद्धों, [[गोरखनाथ]] आदि नाथों, [[अमीर ख़ुसरो]] जैसे सूफ़ियों, [[जयदेव]], [[संत नामदेव|नामदेव]], [[रामानंद]] आदि संतों की रचनाओं में उपलब्ध है। इन रचनाकारों में हमें अपभ्रंश–अवहट्ट से निकलती हुई खड़ी बोली स्पष्टतः दिखाई देती है।
 
 
 
==मध्यकालीन हिंदी==
 
मध्यकाल में हिंदी का स्वरूप स्पष्ट हो गया तथा उसकी प्रमुख बोलियाँ विकसित हो गईं। इस काल में भाषा के तीन रूप निखरकर सामने आए— ब्रजभाषा, अवधी व खड़ी बोली। ब्रजभाषा और अवधी का अत्यधिक साहित्यिक विकास हुआ तथा तत्कालीन ब्रजभाषा साहित्य को कुछ देशी राज्यों का संरक्षण भी प्राप्त हुआ। इनके अतिरिक्त मध्यकाल में खड़ी बोली के मिश्रित रूप का साहित्य में प्रयोग होता रहा। इसी खड़ी बोली का 14वीं सदी में दक्षिण में प्रवेश हुआ, अतः वहाँ पर इसका साहित्य में अधिक प्रयोग हुआ। 18वीं सदी में खड़ी बोली को मुसलमान शासकों का संरक्षण मिला तथा इसके विकास को नई दिशा मिली।
 
[[चित्र:Hindi-Area.jpg|thumb|250px|[[भारत]] में हिंदी भाषी क्षेत्र]]
 
====ब्रजभाषा====
 
{{main|ब्रजभाषा}}
 
हिंदी के मध्यकाल में मध्य देश की महान भाषा परम्परा के उत्तरादायित्व का पूरा निर्वाह ब्रजभाषा ने किया। यह अपने समय की परिनिष्ठित व उच्च कोटि की साहित्यिक भाषा थी, जिसको गौरवान्वित करने का सर्वाधिक श्रेय हिंदी के कृष्णभक्त कवियों को है। पूर्व मध्यकाल (अर्थात् भक्तिकाल) में कृष्णभक्त कवियों ने अपने साहित्य में ब्रजभाषा का चरम विकास किया। पुष्टि मार्ग/शुद्धाद्वैत सम्प्रदाय के [[सूरदास]] (सूरसागर), [[नंददास]], [[निम्बार्क संप्रदाय]] के श्री भट्ट, [[चैतन्य सम्प्रदाय]] के गदाधर भट्ट, [[राधावल्लभ सम्प्रदाय]] के [[हित हरिवंश]] ([[श्रीकृष्ण]] की [[बाँसुरी]] के अवतार) एवं सम्प्रदाय–निरपेक्ष कवियों में [[रसखान]], [[मीराबाई]] आदि प्रमुख कृष्णभक्त कवियों ने ब्रजभाषा के साहित्यिक विकास में अमूल्य योगदान दिया। इनमें सर्वप्रमुख स्थान सूरदास का है, जिन्हें 'अष्टछाप का जहाज़' कहा जाता है। उत्तर मध्यकाल (अर्थात् रीतिकाल) में अनेक आचार्यों एवं कवियों ने ब्रजभाषा में लाक्षणिक एवं रीति ग्रंथ लिखकर ब्रजभाषा के साहित्य को समृद्ध किया। रीतिबद्ध कवियों में [[केशवदास]], [[मतिराम]], [[बिहारी लाल|बिहारी]], देव, [[पद्माकर]], भिखारी दास, सेनापति, आदि तथा रीतिमुक्त कवियों में [[घनानंद]], आलम, बोधा आदि प्रमुख हैं। (ब्रजबुलि—[[बंगाल]] में कृष्णभक्त कवियों के द्वारा प्रचारित भाषा का नाम।)
 
====अवधी====
 
{{main|अवधी भाषा}}
 
अवधी को साहित्यिक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने का श्रेय सूफ़ी/प्रेममार्गी कवियों को है। कुत्बन ('मृगावती'), [[मलिक मुहम्मद जायसी|जायसी]] ('पद्मावत'), मंझन ('मधुमालती'), आलम ('माधवानल कामकंदला'), उसमान ('चित्रावली'), नूर मुहम्मद ('इन्द्रावती'), कासिमशाह ('हंस जवाहिर'), शेख निसार ('यूसुफ़ जुलेखा'), अलीशाह ('प्रेम चिंगारी') आदि सूफ़ी कवियों ने अवधी को साहित्यिक गरिमा प्रदान की। इनमें सर्वप्रमुख जायसी थे। अवधी को रामभक्त कवियों ने अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया, विशेषकर [[तुलसीदास]] ने '[[रामचरितमानस]]' की रचना बैसवाड़ी अवधी में कर अवधी भाषा को जिस साहित्यिक ऊँचाई पर पहुँचाया, वह अतुलनीय है। मध्यकाल में साहित्यिक अवधी का चरमोत्कर्ष दो कवियों में मिलता है, जायसी और तुलसीदास। जायसी के यहाँ जहाँ अवधी का ठेठ ग्रामीण रूप मिलता है, वहाँ तुलसी के यहाँ अवधी का तत्सममुखी रूप है। (गोहारी/गोयारी— [[बंगाल]] में सूफ़ियों द्वारा प्रचारित अवधी भाषा का नाम।)
 
====खड़ी बोली====
 
मध्यकाल में खड़ी बोली का मुख्य केन्द्र उत्तर से बदलकर दक्कन में हो गया। इस प्रकार, मध्यकाल में खड़ी बोली के दो रूप हो गए— उत्तरी हिंदी व दक्कनी हिंदी। खड़ी बोली मध्यकाल रूप [[कबीर]], [[नानक]], [[दादू दयाल|दादू]], मलूकदास, रज्जब आदि संतों; गंग की 'चन्द छन्द वर्णन की महिमा', [[रहीम]] के 'मदनाष्टक', आलम के 'सुदामा चरित', जटमल की 'गोरा बादल की कथा', वली, सौदा, इन्शा, नज़ीर आदि दक्कनी एवं उर्दू के कवियों, 'कुतुबशतम' (17वीं सदी), 'भोगलू पुराण' (18वीं सदी), संत प्राणनाथ के 'कुलजमस्वरूप' आदि में मिलता है।
 
 
==आधुनिक हिंदी==
 
==आधुनिक हिंदी==
 
*हिंदी के आधुनिक काल तक आते–आते ब्रजभाषा जनभाषा से काफ़ी दूर हट चुकी थी और अवधी ने तो बहुत पहले से ही साहित्य से मुँह मोड़ लिया था। 19वीं सदी के मध्य तक अंग्रेज़ी सत्ता का महत्तम विस्तार भारत में हो चुका था। इस राजनीतिक परिवर्तन का प्रभाव मध्य देश की भाषा हिंदी पर भी पड़ा। नवीन राजनीतिक परिस्थितियों ने खड़ी बोली को प्रोत्साहन प्रदान किया। जब ब्रजभाषा और अवधी का साहित्यिक रूप जनभाषा से दूर हो गया तब उनका स्थान खड़ी बोली धीरे–धीरे लेने लगी। अंग्रेज़ी सरकार ने भी इसका प्रयोग आरम्भ कर दिया।  
 
*हिंदी के आधुनिक काल तक आते–आते ब्रजभाषा जनभाषा से काफ़ी दूर हट चुकी थी और अवधी ने तो बहुत पहले से ही साहित्य से मुँह मोड़ लिया था। 19वीं सदी के मध्य तक अंग्रेज़ी सत्ता का महत्तम विस्तार भारत में हो चुका था। इस राजनीतिक परिवर्तन का प्रभाव मध्य देश की भाषा हिंदी पर भी पड़ा। नवीन राजनीतिक परिस्थितियों ने खड़ी बोली को प्रोत्साहन प्रदान किया। जब ब्रजभाषा और अवधी का साहित्यिक रूप जनभाषा से दूर हो गया तब उनका स्थान खड़ी बोली धीरे–धीरे लेने लगी। अंग्रेज़ी सरकार ने भी इसका प्रयोग आरम्भ कर दिया।  
 
*हिंदी के आधुनिक काल में प्रारम्भ में एक ओर उर्दू का प्रचार होने और दूसरी ओर काव्य की भाषा ब्रजभाषा होने के कारण खड़ी बोली को अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ा। 19वीं सदी तक कविता की भाषा ब्रजभाषा और गद्य की भाषा खड़ी बोली रही। 20वीं सदी के आते–आते खड़ी बोली गद्य–पद्य दोनों की ही साहित्यिक भाषा बन गई।  
 
*हिंदी के आधुनिक काल में प्रारम्भ में एक ओर उर्दू का प्रचार होने और दूसरी ओर काव्य की भाषा ब्रजभाषा होने के कारण खड़ी बोली को अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ा। 19वीं सदी तक कविता की भाषा ब्रजभाषा और गद्य की भाषा खड़ी बोली रही। 20वीं सदी के आते–आते खड़ी बोली गद्य–पद्य दोनों की ही साहित्यिक भाषा बन गई।  
 
*इस युग में खड़ी बोली को प्रतिष्ठित करने में विभिन्न धार्मिक सामाजिक एवं राजनीतिक आंदोलनों ने बड़ी सहायता की। फलतः खड़ी बोली साहित्य की सर्वप्रमुख भाषा बन गयी।
 
*इस युग में खड़ी बोली को प्रतिष्ठित करने में विभिन्न धार्मिक सामाजिक एवं राजनीतिक आंदोलनों ने बड़ी सहायता की। फलतः खड़ी बोली साहित्य की सर्वप्रमुख भाषा बन गयी।
==खड़ी बोली==
 
====भारतेन्दु पूर्व युग====
 
खड़ी बोली गद्य के आरम्भिक रचनाकारों में फ़ोर्ट विलियम कॉलेज के बाहर दो रचनाकारों— सदासुख लाल 'नियाज' (सुखसागर) व [[इंशा अल्ला ख़ाँ]] (रानी केतकी की कहानी) तथा फ़ोर्ट विलियम कॉलेज, [[कलकत्ता]] के दो भाषा मुंशियों— [[लल्लू लालजी]] (प्रेम सागर) व सदल मिश्र (नासिकेतोपाख्यान) के नाम उल्लेखनीय हैं। भारतेन्दु पूर्व युग में मुख्य संघर्ष हिंदी की स्वीकृति और प्रतिष्ठा को लेकर था। इस युग के दो प्रसिद्ध लेखकों— राजा शिव प्रसाद 'सितारे हिन्द' व राजा लक्ष्मण सिंह ने हिंदी के स्वरूप निर्धारण के सवाल पर दो सीमान्तों का अनुगमन किया। राजा शिव प्रसाद ने हिंदी का गँवारुपन दूर कर उसे उर्दू–ए–मुअल्ला बना दिया तो राजा लक्ष्मण सिंह ने विशुद्ध संस्कृतनिष्ठ हिंदी का समर्थन किया।
 
====भारतेन्दु युग====
 
(1850 ई.–[[1900]] ई.)
 
इन दोनों के बीच सर्वमान्य हिंदी गद्य की प्रतिष्ठा कर गद्य साहित्य की विविध विधाओं का ऐतिहासिक कार्य भारतेन्दु युग में हुआ। हिंदी सही मायने में [[भारतेन्दु हरिश्चंद्र|भारतेन्दु]] के काल में 'नई चाल में ढली' और उनके समय में ही हिंदी के गद्य के बहुमुखी रूप का सूत्रपात हुआ। उन्होंने न केवल स्वयं रचना की बल्कि अपना एक लेखक मंडल भी तैयार किया, जिसे 'भारतेन्दु मंडल' कहा गया। भारतेन्दु युग की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि यह रही कि गद्य रचना के लिए खड़ी बोली को माध्यम के रूप में अपनाकर युगानुरूप स्वस्थ दृष्टिकोण का परिचय दिया। लेकिन पद्य रचना के मसले में ब्रजभाषा या खड़ी बोली को अपनाने के सवाल पर विवाद बना रहा, जिसका अन्त द्विवेदी के युग में जाकर हुआ।
 
====द्विवेदी युग====
 
([[1900]] ई.–[[1920]] ई.)
 
खड़ी बोली और [[हिंदी साहित्य]] के सौभाग्य से [[1903]] ई. में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने 'सरस्वती' पत्रिका के सम्पादन का भार सम्भाला। वे सरल और शुद्ध भाषा के प्रयोग के हिमायती थे। वे लेखकों की [[वर्तनी (हिंदी)|वर्तनी]] अथवा त्रुटियों का संशोधन स्वयं करते चलते थे। उन्होंने हिंदी के परिष्कार का बीड़ा उठाया और उसे बख़ूबी अन्जाम दिया। गद्य तो भारतेन्दु युग से ही सफलतापूर्वक खड़ी बोली में लिखा जा रहा था, अब पद्य की व्यावहारिक भाषा भी एकमात्र खड़ी बोली प्रतिष्ठित होनी लगी। इस प्रकार ब्रजभाषा, जिसके साथ में 'भाषा' शब्द जुड़ा हुआ है, अपने क्षेत्र में सीमित हो गई अर्थात् 'बोली' बन गई। इसके मुक़ाबले में खड़ी बोली, जिसके साथ 'बोली' शब्द लगा है, 'भाषा बन गई', और इसका सही नाम हिंदी हो गया। अब खड़ी बोली [[दिल्ली]] के आसपास की [[मेरठ]]–जनपदीय बोली नहीं रह गई, अपितु यह समस्त उत्तरी भारत के साहित्य का माध्यम बन गई। द्विवेदी युग में साहित्य रचना की विविध विधाएँ विकसित हुई।। महावीर प्रसाद द्विवेदी, श्याम सुन्दर दास, पद्म सिंह शर्मा, माधव प्रसाद मिश्र, पूर्णसिंह, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी  आदि के अवदान विशेषतः उल्लेखनीय हैं।
 
====छायावाद युग====
 
([[1920]] ई.–[[1936]] ई. एवं उसके बाद)
 
साहित्यिक खड़ी बोली के विकास में छायावाद युग का योगदान काफ़ी महत्त्वपूर्ण है। [[जयशंकर प्रसाद|प्रसाद]], [[सुमित्रानंदन पंत|पंत]], [[सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला|निराला]], [[महादेवी वर्मा]] और राम कुमार आदि ने महती योगदान किया। इनकी रचनाओं को देखते हुए यह कोई नहीं कह सकता कि खड़ी बोली सूक्ष्म भावों को अभिव्यक्त करने में ब्रजभाषा से कम समर्थ है। हिंदी में अनेक भाषायी गुणों का समावेश हुआ। अभिव्यजंना की विविधता, बिंबों की लाक्षणिकता, रसात्मक लालित्य छायावाद युग की भाषा की अन्यतम विशेषताएँ हैं। हिंदी काव्य में छायावाद युग के बाद प्रगतिवाद युग ([[1936]] ई.–[[1946]] ई.) प्रयोगवाद युग (1943) आदि आए। इस दौर में खड़ी बोली का काव्य भाषा के रूप में उत्तरोत्तर विकास होता गया।
 
 
पद्य के ही नहीं, गद्य के सन्दर्भ में भी छायावाद युग साहित्यिक खड़ी बोली के विकास का स्वर्ण युग था। कथा साहित्य (उपन्यास व कहानी) में [[प्रेमचंद]], नाटक में [[जयशंकर प्रसाद]], आलोचना में आचार्य [[रामचंद्र शुक्ल]] ने जो भाषा–शैलियाँ और मर्यादाएँ स्थापित कीं, उनका अनुसरण आज भी किया जा रहा है। गद्य साहित्य के क्षेत्र में इनके महत्त्व का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गद्य–साहित्य के विभिन्न विधाओं के इतिहास में कालों का नामकरण इनके नाम को केन्द्र में रखकर ही किया गया है। जैसे उपन्यास के इतिहास में प्रेमचंद– पूर्व युग, प्रेमचंद युग, प्रेमचंदोत्तर युग; नाटक के इतिहास में प्रसाद– पूर्व युग, प्रसाद युग, प्रसादोत्तर युग; आलोचना के इतिहास में शुक्ल– पूर्व युग, शुक्ल युग, शुक्लोत्तर युग।
 
==हिंदी के विभिन्न नाम या रूप==
 
====हिन्दवी====
 
हिन्दवी को हिन्दुई, जबान–ए–हिन्द, देहलवी नामों से भी जाना जाता है। मध्यकाल में मध्यदेश के हिन्दुओं की भाषा, जिसमें अरबी–फ़ारसी शब्दों का अभाव है। (सर्वप्रथम [[अमीर ख़ुसरो]] (1253-1325) ने मध्य देश की भाषा के लिए हिन्दवी, हिंदी शब्द का प्रयोग किया। उन्होंने देशी भाषा हिन्दवी, हिंदी के प्रचार–प्रसार के लिए एक फ़ारसी–हिंदी कोश 'ख़ालिक बारी' की रचना की, जिसमें हिन्दवी शब्द 30 बार, हिंदी शब्द 5 बार देशी भाषा के लिए प्रयुक्त हुआ है।)
 
====भाषा====
 
भाषा को भाखा भी कहा जाता है। विद्यापति, [[कबीर]], [[तुलसी]], [[केशवदास]] आदि ने भाषा शब्द का प्रयोग हिंदी के लिए किया है। (19वीं सदी के प्रारम्भ तक इस शब्द का प्रयोग होता रहा। फ़ोर्ट विलियम कॉलेज में नियुक्त हिंदी अध्यापकों को 'भाषा मुंशी' के नाम से अभिहित करना इसी बात का सूचक है।)
 
====रेख्ता====
 
मध्यकाल में [[मुसलमान|मुसलमानों]] में प्रचलित अरबी–फ़ारसी शब्दों से मिश्रित कविता की भाषा। (जैसे– मीर, [[मिर्ज़ा ग़ालिब]] की रचनाएँ)
 
====दक्खिनी====
 
इसे दक्कनी नाम से भी जाना जाता है। मध्यकाल में दक्कन के मुसलमानों के द्वारा फ़ारसी लिपि में लिखी जाने वाली भाषा। (हिंदी में गद्य रचना परम्परा की शुरुआत करने का श्रेय दक्कनी हिंदी के रचनाकारों को ही है। दक्कनी हिंदी को उत्तर भारत में लाने का श्रेय प्रसिद्ध शायर वली दक्कनी (1688-1741) को है। वह मुग़ल शासक मुहम्मद शाह 'रंगीला' के शासन काल में [[दिल्ली]] पहुँचा और उत्तरी भारत में दक्कनी हिंदी को लोकप्रिय बनाया।)
 
====खड़ी बोली====
 
खड़ी बोली की तीन शैलियाँ हैं—
 
#हिंदी, शुद्ध हिंदी, उच्च हिंदी, नागरी हिंदी, आर्यभाषा– नागरी लिपि में लिखित संस्कृत बहुल खड़ी बोली (जैसे—जयशंकर प्रसाद की रचनाएँ)।
 
#उर्दू, जबान–ए–उर्दू, जबान–ए–उर्दू–मुअल्ला— फ़ारसी लिपि में लिखित अरबी—फ़ारसी बहुल खड़ी बोली।
 
#हिन्दुस्तानी— हिंदी और उर्दू का मिश्रित रूप व आमजन द्वारा प्रयुक्त (जैसे–[[प्रेमचंद]] की रचनाएँ)।<ref>13वीं सदी से 18वीं सदी तक हिंदी–उर्दू में कोई मौलिक भेद नहीं था।</ref>
 
 
==हिंदी के विभिन्न अर्थ==
 
==हिंदी के विभिन्न अर्थ==
 
====भाषा शास्त्रीय अर्थ====
 
====भाषा शास्त्रीय अर्थ====
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====व्यापक अर्थ====
 
====व्यापक अर्थ====
 
आधुनिक युग में हिंदी को केवल खड़ी बोली में ही सीमित नहीं किया जा सकता। हिंदी की सभी उपभाषाएँ और बोलियाँ हिंदी के व्यापक अर्थ में आ जाती हैं।  
 
आधुनिक युग में हिंदी को केवल खड़ी बोली में ही सीमित नहीं किया जा सकता। हिंदी की सभी उपभाषाएँ और बोलियाँ हिंदी के व्यापक अर्थ में आ जाती हैं।  
==हिंदी का राष्ट्रभाषा के रूप में विकास==
+
[[राजा राममोहन राय]], [[केशवचंद्र सेन]], नवीन चंद्र राय, [[ईश्वर चंद्र विद्यासागर]], तरुणी चरण मिश्र, राजेन्द्र लाल मित्र, राज नारायण बसु, भूदेव मुखर्जी, बंकिम चंद्र चैटर्जी ('हिंदी भाषा की सहायता से भारतवर्ष के विभिन्न प्रदेशों के मध्य में जो ऐक्यबंधन संस्थापन करने में समर्थ होंगे वही सच्चे भारतबंधु पुकारे जाने योग्य हैं।)', [[सुभाषचंद्र बोस]] ('अगर आज हिंदी भाषा मान ली गई है तो वह इसलिए नहीं कि वह किसी प्रान्त विशेष की भाषा है, बल्कि इसलिए कि वह अपनी सरलता, व्यापकता तथा क्षमता के कारण सारे देश की भाषा हो सकती है।')
====राष्ट्रभाषा क्या है====
 
*राष्ट्रभाषा का शाब्दिक अर्थ है—समस्त राष्ट्र में प्रयुक्त भाषा अर्थात् आमजन की भाषा (जनभाषा)। जो भाषा समस्त राष्ट्र में जन–जन के विचार–विनिमय का माध्यम हो, वह राष्ट्रभाषा कहलाती है।
 
*राष्ट्रभाषा राष्ट्रीय एकता एवं अंतर्राष्ट्रीय संवाद सम्पर्क की आवश्यकता की उपज होती है। वैसे तो सभी भाषाएँ राष्ट्रभाषाएँ होती हैं, किन्तु राष्ट्र की जनता जब स्थानीय एवं तत्कालिक हितों व पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर अपने राष्ट्र की कई भाषाओं में से किसी एक भाषा को चुनकर उसे राष्ट्रीय अस्मिता का एक आवश्यक उपादान समझने लगती है तो वही राष्ट्रभाषा है।
 
*स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रभाषा की आवश्यकता होती है। भारत के सन्दर्भ में इस आवश्यकता की पूर्ति हिंदी ने की। यही कारण है कि हिंदी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान<ref>विशेषतः 1900 ई.-1947 ई.</ref> राष्ट्रभाषा बनी।
 
* राष्ट्रभाषा शब्द कोई संवैधानिक शब्द नहीं है, बल्कि यह प्रयोगात्मक, व्यावहारिक व जनमान्यता प्राप्त शब्द है।
 
* राष्ट्रभाषा सामाजिक, सांस्कृतिक स्तर पर देश को जोड़ने का काम करती है अर्थात् राष्ट्रभाषा की प्राथमिक शर्त देश में विभिन्न समुदायों के बीच भावनात्मक एकता स्थापित करना है।
 
* राष्ट्रभाषा का प्रयोग क्षेत्र विस्तृत और देशव्यापी होता है। राष्ट्रभाषा सारे देश की सम्पर्क–भाषा होती है। इसका व्यापक जनाधार होता है।
 
* राष्ट्रभाषा हमेशा स्वभाषा ही हो सकती है क्योंकि उसी के साथ जनता का भावनात्मक लगाव होता है।
 
* राष्ट्रभाषा का स्वरूप लचीला होता है और इसे जनता के अनुरूप किसी रूप में ढाला जा सकता है।
 
====अंग्रेज़ों का योगदान====
 
*राष्ट्रभाषा सारे देश की सम्पर्क भाषा होती है। हिंदी दीर्घकाल से सारे देश में जन–जन के पारस्परिक सम्पर्क की भाषा रही है। यह केवल उत्तरी भारत की नहीं, बल्कि दक्षिण भारत के आचार्यों [[वल्लभाचार्य]], [[रामानुज]], [[रामानंद]] आदि ने भी इसी भाषा के माध्यम से अपने मतों का प्रचार किया था। अहिंदी भाषी राज्यों के भक्त–संत कवियों (जैसे—[[असम]] के शंकरदेव, [[महाराष्ट्र]] के [[ज्ञानेश्वर]] व नामदेव, [[गुजरात]] के [[नरसी मेहता]], बंगाल के [[चैतन्य महाप्रभु|चैतन्य]] आदि) ने इसी भाषा को अपने धर्म और साहित्य का माध्यम बनाया था।
 
*यही कारण था कि जनता और सरकार के बीच संवाद स्थापना के क्रम में फ़ारसी या अंग्रेज़ी के माध्यम से दिक्कतें पेश आईं तो कम्पनी सरकार ने फ़ोर्ट विलियम कॉलेज में हिन्दुस्तानी विभाग खोलकर अधिकारियों को हिंदी सिखाने की व्यवस्था की। यहाँ से हिंदी पढ़े हुए अधिकारियों ने भिन्न–भिन्न क्षेत्रों में उसका प्रत्यक्ष लाभ देकर मुक्त कंठ से हिंदी को सराहा।
 
*'''सी. टी. मेटकाफ़ ने 1806 ई. में अपने शिक्षा गुरु [[जॉन गिलक्राइस्ट]] को लिखा'''— 'भारत के जिस भाग में भी मुझे काम करना पड़ा है, [[कलकत्ता]] से लेकर [[लाहौर]] तक, कुमाऊँ के पहाड़ों से लेकर [[नर्मदा नदी]] तक मैंने उस भाषा का आम व्यावहार देखा है, जिसकी शिक्षा आपने मुझे दी है। मैं [[कन्याकुमारी]] से लेकर [[कश्मीर]] तक या जावा से सिंधु तक इस विश्वास से यात्रा करने की हिम्मत कर सकता हूँ कि मुझे हर जगह ऐसे लोग मिल जाएँगे जो हिन्दुस्तानी बोल लेते होंगे।'
 
*'''टॉमस रोबक ने 1807 ई. में लिखा'''— 'जैसे [[इंग्लैण्ड]] जाने वाले को लैटिन सेक्सन या फ़्रेंच के बदले अंग्रेज़ी सीखनी चाहिए, वैसे ही भारत आने वाले को अरबी–फ़ारसी या संस्कृत के बदले हिन्दुस्तानी सीखनी चाहिए।'
 
*'''विलियम केरी ने 1816 ई. में लिखा'''— 'हिंदी किसी एक प्रदेश की भाषा नहीं बल्कि देश में सर्वत्र बोली जाने वाली भाषा है।'
 
*'''एच. टी. कोलब्रुक ने लिखा'''— 'जिस भाषा का व्यवहार भारत के प्रत्येक प्रान्त के लोग करते हैं, जो पढ़े–लिखे तथा अनपढ़ दोनों की साधारण बोलचाल की भाषा है, जिसको प्रत्येक गाँव में थोड़े बहुत लोग अवश्य ही समझ लेते हैं, उसी का यथार्थ नाम हिंदी है।'
 
*'''[[जार्ज ग्रियर्सन]] ने हिंदी को 'आम बोलचाल की महाभाषा' कहा है।
 
*इन विद्वानों के मंतव्यों से स्पष्ट है कि हिंदी की व्यावहारिक उपयोगिता, देशव्यापी प्रसार एवं प्रयोगगत लचीलेपन के कारण [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने हिंदी को अपनाया। उस समय हिंदी और उर्दू को एक ही भाषा माना जाता था। अंग्रेज़ों ने हिंदी को प्रयोग में लाकर हिंदी की महती संभावनाओं की ओर राष्ट्रीय नेताओं एवं साहित्यकारों का ध्यान खींचा।
 
 
 
====धर्म/समाज सुधारकों का योगदान====
 
*धर्म/समाज सुधार की प्रायः सभी संस्थाओं ने हिंदी के महत्त्व को भाँपा और हिंदी की हिमायत की।
 
*ब्रह्मा समाज (1828 ई.) के संस्थापक राजा राममोहन राय ने कहा, '''इस समग्र देश की एकता के लिए हिंदी अनिवार्य है।''' ब्रह्मसमाजी केशव चंद्र सेन ने 1875 ई. में एक लेख लिखा, भारतीय एकता कैसे हो, 'जिसमें उन्होंने लिखा— '''उपाय है सारे भारत में एक ही भाषा का व्यवहार।''' अभी जितनी भाषाएँ भारत में प्रचलित हैं, उनमें हिंदी भाषा लगभग सभी जगह प्रचलित है। यह हिंदी अगर भारतवर्ष की एकमात्र भाषा बन जाए तो यह काम सहज ही और शीघ्र ही सम्पन्न हो सकता है। एक अन्य ब्रह्मसमाजी नवीन चंद्र राय ने [[पंजाब]] में हिंदी के विकास के लिए स्तुत्य योगदान दिया।
 
*[[आर्य समाज]] (1875 ई.) के संस्थापक [[स्वामी दयानंद सरस्वती]] गुजराती भाषी थे एवं गुजराती व संस्कृत के अच्छे जानकार थे। हिंदी का उन्हें सिर्फ़ कामचलाऊ ज्ञान था, पर अपनी बात अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने के लिए तथा देश की एकता को मज़बूत करने के लिए उन्होंने अपना सारा धार्मिक साहित्य हिंदी में ही लिखा। उनका कहना था कि '''हिंदी के द्वारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।''' वे इस 'आर्यभाषा' को सर्वात्मना देशोन्नति का मुख्य आधार मानते थे। उन्होंने हिंदी के प्रयोग को राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया। वे कहते थे, 'मेरी आँखें उस दिन को देखना चाहती हैं, जब कश्मीर से कन्याकुमारी तक सब भारतीय एक भाषा समझने और बोलने लग जाएँगे।
 
*अरविन्द दर्शन के प्रणेता अरविन्द घोष की सलाह थी कि 'लोग अपनी–अपनी मातृभाषा की रक्षा करते हुए सामान्य भाषा के रूप में हिंदी को ग्रहण करें।'
 
*थियोसोफिकल सोसायटी (1875 ई.) की संचालिका एनी बेसेंट ने कहा था, "भारतवर्ष के भिन्न–भिन्न भागों में जो अनेक देशी भाषाएँ बोली जाती हैं, उनमें एक भाषा ऐसी है जिसमें शेष सब भाषाओं की अपेक्षा एक भारी विशेषता है, वह यह कि उसका प्रचार सबसे अधिक है। वह भाषा हिंदी है। हिंदी जानने वाला आदमी सम्पूर्ण भारतवर्ष में यात्रा कर सकता है और उसे हर जगह हिंदी बोलने वाले मिल सकते हैं। भारत के सभी स्कूलों में हिंदी की शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए।"
 
*उपर्युक्त धार्मिक/सामाजिक संस्थाओं के अतिरिक्त [[प्रार्थना समाज]]<ref>स्थापना 1867 ई., संस्थापक—आत्मारंग पाण्डुरंग</ref>, सनातन धर्म सभा<ref>स्थापना 1895 ई., संस्थापक—पंडित दीनदयाल</ref>, रामकृष्ण मिशन<ref>स्थापना 1897 ई., संस्थापक—स्वामी विवेकानंद</ref> आदि ने हिंदी के प्रचार में योग दिया।
 
*इससे लगता है कि धर्म/समाज सुधारकों की यह सोच बन चुकी थी कि राष्ट्रीय स्तर पर संवाद स्थापित करने के लिए हिंदी आवश्यक है। वे जानते थे कि हिंदी बहुसंख्यक जन की भाषा है, एक प्रान्त के लोग दूसरे प्रान्त के लोगों से सिर्फ़ इस भाषा में ही विचारों का आदान–प्रदान कर सकते हैं। भावी राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को बढ़ाने का कार्य इन्हीं धर्म/समाज सुधारकों ने किया।
 
====कांग्रेस के नेताओं का योगदान====
 
*[[1885]] ई. में कांग्रेस की स्थापना हुई। जैसे–जैसे कांग्रेस का राष्ट्रीय आंदोलन ज़ोर पकड़ता गया, वैसे–वैसे राष्ट्रीयता, राष्ट्रीय झण्डा एवं राष्ट्रभाषा के प्रति आग्रह बढ़ता ही गया।
 
*[[1917]] ई. में [[लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक]] ने कहा, "यद्यपि मैं उन लोगों में से हूँ, जो चाहते हैं और जिनका विचार है कि हिंदी ही भारत की राष्ट्रभाषा हो सकती है।" तिलक ने भारतवासियों से आग्रह किया कि वे हिंदी सीखें।
 
*[[महात्मा गाँधी]] राष्ट्र के लिए राष्ट्रभाषा को नितांत आवश्यक मानते थे। उनका कहना था, "राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।" गाँधीजी हिंदी के प्रश्न को स्वराज का प्रश्न मानते थे— "हिंदी का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है।" उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में सामने रखकर भाषा–समस्या पर गम्भीरता से विचार किया। 1917 ई. में भड़ौंच में आयोजित गुजरात शिक्षा परिषद के अधिवेशन में सभापति पद से भाषण देते हुए गाँधीजी ने कहा,
 
'''राष्ट्रभाषा के लिए 5 लक्षण या शर्तें होनी चाहिए'''—
 
#अमलदारों के लिए वह भाषा सरल होनी चाहिए।
 
#यह ज़रूरी है कि भारतवर्ष के बहुत से लोग उस भाषा को बोलते हों।
 
#उस भाषा के द्वारा भारतवर्ष का अपनी धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवहार होना चाहिए।
 
#राष्ट्र के लिए वह भाषा आसान होनी चाहिए।
 
#उस भाषा का विचार करते समय किसी क्षणिक या अल्पस्थायी स्थिति पर ज़ोर नहीं देना चाहिए।"
 
वर्ष 1918 ई. में हिंदी साहित्य सम्मेलन के [[इन्दौर]] अधिवेशन में सभापति पद से भाषण देते हुए गाँधी जी ने राष्ट्रभाषा हिंदी का समर्थन किया, "मेरा यह मत है कि हिंदी ही हिन्दुस्तान की राष्ट्रभाषा हो सकती है और होनी चाहिए।" इसी अधिवेशन में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि प्रतिवर्ष 6 दक्षिण भारतीय युवक हिंदी सीखने के लिए प्रयाग भेजें जाएँ और 6 उत्तर भारतीय युवक को दक्षिण भाषाएँ सीखने तथा हिंदी का प्रसार करने के लिए दक्षिण भारत में भेजा जाए। इन्दौर सम्मेलन के बाद उन्होंने हिंदी के कार्य को राष्ट्रीय व्रत बना दिया। दक्षिण में प्रथम हिंदी प्रचारक के रूप में गाँधीजी ने अपने सबसे छोटे पुत्र देवदास गाँधी को दक्षिण में [[चेन्नई]] भेजा। गाँधीजी की प्रेरणा से मद्रास (1927 ई.) एवं वर्धा (1936 ई.) में राष्ट्रभाषा प्रचार सभाएँ स्थापित की गईं।
 
*वर्ष 1925 ई. में कांग्रेस के [[कानपुर]] अधिवेशन में गाँधीजी की प्रेरणा से यह प्रस्ताव पारित हुआ कि 'कांग्रेस का, कांग्रेस की महासमिति का और कार्यकारिणी समिति का काम–काज आमतौर पर हिंदी में चलाया जाएगा।' इस प्रस्ताव में हिंदी–आंदोलन को बड़ा बल मिला।
 
*वर्ष 1927 ई. में गाँधीजी ने लिखा, "वास्तव में ये [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] में बोलने वाले नेता हैं, जो आम जनता में हमारा काम जल्दी आगे बढ़ने नहीं देते। वे हिंदी सीखने से इंकार करते हैं, जबकि हिंदी द्रविड़ प्रदेश में भी तीन महीने के अन्दर सीखी जा सकती है।
 
[[चित्र:Hindi.jpg|300px|right|thumb]]
 
*वर्ष 1927 ई. में सी. राजागोपालाचारी ने दक्षिण वालों को हिंदी सीखने की सलाह दी और कहा, "हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा तो है ही, यही जनतंत्रात्मक भारत में [[राजभाषा]] भी होगी।"
 
*वर्ष 1928 ई. में प्रस्तुत [[नेहरू रिपोर्ट]] में भाषा सम्बन्धी सिफ़ारिश में कहा गया था, "देवनागरी अथवा फ़ारसी में लिखी जाने वाली हिन्दुस्तानी भारत की राष्ट्रभाषा होगी, परन्तु कुछ समय के लिए अंग्रेज़ी का उपयोग ज़ारी रहेगा।" सिवाय 'देवनागरी या फ़ारसी' की जगह 'देवनागरी' तथा 'हिन्दुस्तानी' की जगह 'हिंदी' रख देने के अंततः स्वतंत्र भारत के संविधान में इसी मत को अपना लिया गया।
 
*वर्ष 1929 ई. में [[सुभाषचंद्र बोस]] ने कहा, "प्रान्तीय ईर्ष्या–द्वेष को दूर करने में जितनी सहायता इस हिंदी प्रचार से मिलेगी, उतनी दूसरी किसी चीज़ से नहीं मिल सकती। अपनी प्रान्तीय भाषाओं की भरपूर उन्नति कीजिए, उसमें कोई बाधा नहीं डालना चाहता और न हम किसी की बाधा को सहन ही कर सकते हैं। पर सारे प्रान्तों की सार्वजनिक भाषा का पद हिंदी या हिन्दुस्तानी को ही मिला है।"
 
*वर्ष 1931 ई. में गाँधीजी ने लिखा, "यदि स्वराज्य अंगेज़ी–पढ़े भारतवासियों का है और केवल उनके लिए है तो सम्पर्क भाषा अवश्य अंग्रेज़ी होगी। यदि वह करोड़ों भूखे लोगों, करोड़ों निरक्षर लोगों, निरक्षर स्त्रियों, सताए हुए अछूतों के लिए है तो सम्पर्क भाषा केवल हिंदी हो सकती है।" गाँधीजी जनता की बात जनता की भाषा में करने के पक्षधर थे।
 
*वर्ष 1936 ई. में गाँधीजी ने कहा, "अगर हिन्दुस्तान को सचमुच आगे बढ़ना है तो चाहे कोई माने या न माने राष्ट्रभाषा तो हिंदी ही बन सकती है, क्योंकि जो स्थान हिंदी को प्राप्त है, वह किसी और भाषा को नहीं मिल सकता है।"
 
*वर्ष 1937 ई. में देश के कुछ राज्यों में कांग्रेस मंत्रिमंडल गठित हुआ। इन राज्यों में हिंदी की पढ़ाई को प्रोत्साहित करने का संकल्प लिया गया।
 
*जैसे–जैसे स्वतंत्रता संग्राम तीव्रतम होता गया वैसे–वैसे हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का आंदोलन ज़ोर पकड़ता गया। 20वीं सदी के चौथे दशक तक हिंदी राष्ट्रभाषा के रूप में आम सहमति प्राप्त कर चुकी थी। वर्ष 1942 से 1945 का समय ऐसा था जब देश में स्वतंत्रता की लहर सबसे अधिक तीव्र थी, तब राष्ट्रभाषा से ओत–प्रोत जितनी रचनाएँ हिंदी में लिखी गईं उतनी शायद किसी और भाषा में इतने व्यापक रूप से कभी नहीं लिखी गई। राष्ट्रभाषा प्रचार के साथ राष्ट्रीयता के प्रबल हो जाने पर अंग्रेज़ों को भारत छोड़ना पड़ा।
 
{|
 
|- valign="top"
 
|
 
{| class="bharattable" border="1"
 
|+ राष्ट्रभाषा आंदोलन (हिंदी आंदोलन) से सम्बन्धित धार्मिक–सामाजिक संस्थाएँ
 
|-
 
! नाम
 
! मुख्यालय
 
! स्थापना
 
! संस्थापक
 
|-
 
| [[ब्रह्मसमाज|ब्रह्म समाज]]
 
| [[कलकत्ता]]
 
| 1828 ई.
 
| [[राजा राममोहन राय]]
 
|-
 
| [[प्रार्थना समाज]]
 
| [[मुम्बई|बंबई]]
 
| [[1867]] ई.
 
| आत्मारंग पाण्डुरंग
 
|-
 
| [[आर्य समाज]]
 
| [[मुम्बई|बंबई]]
 
| [[1875]] ई.
 
| [[दयानन्द सरस्वती]]
 
|-
 
| [[थियोसॉफिकल सोसायटी]]
 
| अडयार, [[चेन्नई]]
 
| [[1882]] ई.
 
| कर्नल एच.एस.आल्काट एवं मैडम एच.पी.ब्लैवेत्स्की
 
|-
 
| सनातन धर्म सभा
 
| [[वाराणसी]]
 
| [[1895]] ई.
 
| पं. दीनदयाल शर्मा
 
|-
 
| [[रामकृष्ण मिशन|(भारत धर्म महामंडल-1902 में नाम परिवर्तन) रामकृष्ण मिशन]]
 
| [[बेलूर]]
 
| [[1897]] ई.
 
| [[विवेकानंद]]
 
|}
 
|
 
{| class="bharattable" border="1"
 
|+ राष्ट्रभाषा आंदोलन से सम्बन्धित साहित्यिक संस्थाएँ
 
|-
 
! नाम
 
! मुख्यालय
 
! स्थापना
 
|-
 
| [[नागरी प्रचारिणी सभा]]
 
| [[वाराणसी]]
 
| [[1893]] ई. (संस्थापक-त्रयी—[[श्यामसुन्दर दास|श्यामसुंदर दास]], रामनारायण मिश्र व [[ठाकुर शिव कुमार सिंह|शिवकुमार सिंह)]]
 
|-
 
| हिंदी साहित्य सम्मेलन
 
| [[प्रयाग]]
 
| [[1910]] ई. (प्रथम सभापति– [[मदन मोहन मालवीय]])
 
|-
 
| गुजरात विद्यापीठ
 
| [[अहमदाबाद]]
 
| [[1920]] ई.
 
|-
 
| हिन्दुस्तानी एकेडमी
 
| [[इलाहाबाद]]
 
| [[1927]] ई.
 
|-
 
| दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा (पूर्व नाम- हिंदी साहित्य सम्मेलन)
 
| [[चेन्नई]]
 
| [[1927]] ई.
 
|-
 
| हिंदी विद्यापीठ
 
| [[देवघर]]
 
| [[1929]] ई.
 
|-
 
| राष्ट्रभाषा प्रचार समिति
 
| वर्धा
 
| [[1936]] ई.
 
|-
 
| महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा
 
| [[पुणे]]
 
| [[1937]] ई.
 
|-
 
| बंबई हिंदी विद्यापीठ
 
| [[बंबई]]
 
| [[1938]] ई.
 
|-
 
| असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति
 
| [[गुवाहाटी]]
 
| [[1938]] ई.
 
|-
 
| बिहार राष्ट्रभाषा परिषद पटना
 
| [[पटना]]
 
| [[1951]] ई.
 
|-
 
| अखिल भारतीय हिंदी संस्था संघ
 
|
 
| [[1964]] ई.
 
|-
 
| नागरी लिपि परिषद
 
| [[नई दिल्ली]]
 
| [[1975]] ई.
 
|}
 
|}
 
 
 
==राष्ट्रभाषा आंदोलन से सम्बन्धित व्यक्तित्व==
 
====बंगाल====
 
 
{| class="bharattable-pink" border="1" width="25%" style="margin:5px; float:right"  
 
{| class="bharattable-pink" border="1" width="25%" style="margin:5px; float:right"  
 
|+ हिंदी के लिए महापुरुष कथन
 
|+ हिंदी के लिए महापुरुष कथन
 
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| हिंदी किसी के मिटाने से मिट नहीं सकती।<br /> '''चन्द्रबली पांडेय'''  
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| हिंदी किसी के मिटाने से मिट नहीं सकती।<br /> '''[[चन्द्रबली पाण्डेय]]'''  
 
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पंक्ति 296: पंक्ति 63:
 
| हिंदी को [[संस्कृत]] से विच्छिन्न करके देखने वाले उसकी अधिकांश महिमा से अपरिचित हैं।  <br />'''[[हज़ारीप्रसाद द्विवेदी]]'''
 
| हिंदी को [[संस्कृत]] से विच्छिन्न करके देखने वाले उसकी अधिकांश महिमा से अपरिचित हैं।  <br />'''[[हज़ारीप्रसाद द्विवेदी]]'''
 
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[[राजा राममोहन राय]], केशवचंद्र सेन, नवीन चंद्र राय, [[ईश्वर चंद्र विद्यासागर]], तरुणी चरण मिश्र, राजेन्द्र लाल मित्र, राज नारायण बसु, भूदेव मुखर्जी, बंकिम चंद्र चैटर्जी ('हिंदी भाषा की सहायता से भारतवर्ष के विभिन्न प्रदेशों के मध्य में जो ऐक्यबंधन संस्थापन करने में समर्थ होंगे वही सच्चे भारतबंधु पुकारे जाने योग्य हैं।)',
 
[[सुभाषचंद्र बोस]] ('अगर आज हिंदी भाषा मान ली गई है तो वह इसलिए नहीं कि वह किसी प्रान्त विशेष की भाषा है, बल्कि इसलिए कि वह अपनी सरलता, व्यापकता तथा क्षमता के कारण सारे देश की भाषा हो सकती है।')
 
[[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] ('यदि हम प्रत्येक भारतीय के नैसर्गिक अधिकारों के सिद्धांत को स्वीकार करते हैं, तो हमें राष्ट्रभाषा के रूप में इस भाषा को स्वीकार करना चाहिए जो देश के सबसे बड़े भू–भाग में बोली जाती है और जिसे स्वीकार करने की सिफ़ारिश महात्मा गाँधीजी ने हम लोगों से की है।')
 
रामानंद चटर्जी, [[सरोजिनी नायडू]], शारदा चरण मित्र, आचार्य क्षिति मोहन सेन ('हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु जो अनुष्ठान हुए हैं, उनको मैं संस्कृति का राजसूय यज्ञ समझता हूँ।') आदि।
 
====महाराष्ट्र====
 
[[बाल गंगाधर तिलक]] ('यह आंदोलन उत्तर भारत में केवल एक सर्वमान्य लिपि के प्रचार के लिए नहीं है। यह तो उस आंदोलन का एक अंग है, जिसे मैं एक राष्ट्रीय आंदोलन कहूँगा और जिसका उद्देश्य समस्त भारतवर्ष के लिए एक राष्ट्रीय भाषा की स्थापना करना है, क्योंकि सबके लिए समान भाषा राष्ट्रीयता का महत्त्वपूर्ण अंग है। अतएव यदि आप किसी राष्ट्र के लोगों को एक–दूसरे के निकट लाना चाहें तो सबके लिए समान भाषा से बढ़कर सशक्त अन्य कोई बल नहीं है।'), एन. सी. केलकर, डॉ. भण्डारकर, वी. डी. सावरकर, गोपाल कृष्ण गोखले, गाडगिल, [[काका कालेलकर]] आदि।
 
 
====पंजाब====
 
[[लाला लाजपत राय]], श्रद्धाराम फिल्लौरी आदि।
 
====गुजरात====
 
[[दयानंद सरस्वती]], [[महात्मा गाँधी]], [[वल्लभभाई पटेल]], कन्हैयालाल माणिकलाल (के. एम.) मुंशी ('हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाना नहीं है, वह तो है ही।') आदि।
 
====दक्षिण भारत====
 
*[[सी. राजगोपालाचारी]], टी. विजयराघवाचार्य ('हिन्दुस्तान की सभी जीवित और प्रचलित भाषाओं में मुझे हिंदी ही राष्ट्रभाषा बनने के लिए सबसे अधिक योग्य दिखाई पड़ती है।'),
 
*सी. पी. रामास्वामी अय्यर ('देश के विभिन्न भागों के निवासियों के व्यवहार के लिए सर्वसुगम और व्यापक तथा एकता स्थापित करने के साधन के रूप में हिंदी का ज्ञान आवश्यक है।')
 
*अनन्त शयनम आयगर ('हिंदी ही उत्तर और दक्षिण को जोड़ने वाली समर्थ भाषा है।')
 
*[[एस. निजलिंगप्पा]] ('दक्षिण की भाषाओं ने संस्कृत से बहुत कुछ लेन–देन किया है, इसलिए उसी परम्परा में आई हुई हिंदी बड़ी सरलता से राष्ट्रभाषा होने के लायक़ है।')
 
*रंगनाथ रामचंद्र दिवाकर ('जो राष्ट्रप्रेमी है, उसे राष्ट्रभाषा प्रेमी होना चाहिए।')
 
*के. टी. भाष्यम, आर. वेंकटराम शास्त्री, एन. सुन्दरैया आदि।
 
अन्य—[[मदनमोहन मालवीय]], पुरुषोत्तम दास टंडन ('हिंदी का प्रहरी'), [[राजेन्द्र प्रसाद]], सेठ गोविन्द दास आदि।
 
 
====महात्मा गाँधी के विचार====
 
#'करोड़ों लोगों को अंग्रेज़ी की शिक्षा देना उन्हें ग़ुलामी में डालने जैसा है। मैकाले ने शिक्षा की जो बुनियाद डाली, वह सचमुच ग़ुलामी की बुनियाद थी'।<ref>हिन्द स्वराज, 1909</ref>
 
#"अंग्रेज़ी भाषा हमारे राष्ट्र के पाँव में बेड़ी बनकर पड़ी हुई है।" भारतीय विद्यार्थी को अंग्रेज़ी के मार्फत ज्ञान अर्जित करने पर कम से कम 6 वर्ष अधिक बर्बाद करने पड़ते हैं। यदि हमें एक विदेशी भाषा पर अधिकार पाने के लिए जीवन के अमूल्य वर्ष लगा देने पड़ें, तो फिर और क्या हो सकता है'। ([[1914]])
 
#'जिस भाषा में तुलसीदास जैसे कवि ने कविता की हो, वह अत्यन्त पवित्र है और उसके सामने कोई भाषा ठहर नहीं सकती'। ([[1916]])
 
#'हिंदी ही हिन्दुस्तान के शिक्षित समुदाय की सामान्य भाषा हो सकती है, यह बात निर्विवाद सिद्ध है। जिस स्थान को अंग्रेज़ी भाषा आजकल लेने का प्रयत्न कर रही है और जिसे लेना उसके लिए असम्भव है, वही स्थान हिंदी को मिलना चाहिए, क्योंकि हिंदी का उस पर पूर्ण अधिकार है। यह स्थान अंग्रेज़ी को नहीं मिल सकता, क्योंकि वह विदेशी भाषा है और हमारे लिए बड़ी कठिन है'। ([[1917]])
 
#'हिंदी भाषा वह भाषा है जिसको उत्तर में हिन्दू व मुसलमान बोलते हैं और जो नागरी और फ़ारसी लिपि में लिखी जाती है। यह हिंदी एकदम संस्कृतमयी नहीं है और न ही वह एकदम फ़ारसी शब्दों से लदी है'। ([[1918]])
 
#'हिंदी और उर्दू नदियाँ हैं और हिन्दुस्तानी सागर है। हिंदी और उर्दू दोनों को आपस में झगड़ना नहीं चाहिए। दोनों का मुक़ाबला तो अंग्रेज़ी से है'।
 
#'अंग्रेज़ों के व्यामोह से पिंड छुड़ाना स्वराज्य का एक अनिवार्य अंग है'।
 
#'मैं यदि तानाशाह होता (मेरा बस चलता तो) आज ही विदेशी भाषा में शिक्षा देना बंद कर देता, सारे अध्यापकों को स्वदेशी भाषाएँ अपनाने पर मजबूर कर देता। जो आनाकानी करते, उन्हें बर्ख़ास्त कर देता। मैं पाठ्य–पुस्तकों की तैयारी का इंतज़ार नहीं करूँगा, वे तो माध्यम के परिवर्तन के पीछे-पीछे अपने आप ही चली आएगी। यह एक ऐसी बुराई है, जिसका तुरन्त ही इलाज होना चाहिए'।
 
#'मेरी मातृभाषा में कितनी ही ख़ामियाँ क्यों न हों, मैं इससे इसी तरह से चिपटा रहूँगा, जिस तरह से बच्चा अपनी माँ की छाती से, जो मुझे जीवनदायी दूध दे सकती है। अगर अंग्रेज़ी उस जगह को हड़पना चाहती है, जिसकी वह हक़दार नहीं है, तो मैं उससे सख़्त नफ़रत करूँगा। वह कुछ लोगों के सीखने की वस्तु हो सकती है, लाखों–करोड़ों की नहीं'।
 
#'लिपियों में सबसे अव्वल दरजे की लिपि नागरी को ही मानता हूँ। मैं मानता हूँ कि नागरी और उर्दू लिपि के बीच अंत में जीत नागरी लिपि की ही होगी'।
 
 
==राजभाषा के रूप में विकास==
 
====राजभाषा क्या है====
 
{{Main|राजभाषा}}
 
#राजभाषा का शाब्दिक अर्थ है— राज–काज की भाषा। जो भाषा देश के राजकीय कार्यों के लिए प्रयुक्त होती है, वह 'राजभाषा' कहलाती हैं राजाओं–नवाबों के ज़माने में इसे 'दरबारी भाषा' कहा जाता था।
 
#राजभाषा सरकारी काम–काज चलाने की आवश्यकता की उपज होती है।
 
#स्वशासन आने के पश्चात् राजभाषा की आवश्कता होती है। प्रायः राष्ट्रभाषा ही स्वशासन आने के पश्चात् [[राजभाषा]] बन जाती है। भारत में भी राष्ट्रभाषा हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ।
 
#राजभाषा एक संवैधानिक शब्द है। हिंदी को 14 सितंबर 1949 ई. को संवैधानिक रूप से राजभाषा घोषित किया गया। इसीलिए प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को '[[हिंदी दिवस]]' के रूप में मनाया जाता है।
 
#राजभाषा देश को अपने प्रशासनिक लक्ष्यों के द्वारा राजनीतिक–आर्थिक इकाई में जोड़ने का काम करती है। अर्थात् राजभाषा की प्राथमिक शर्त राजनीतिक प्रशासनिक एकता क़ायम करना है।
 
#राजभाषा का प्रयोग क्षेत्र सीमित होता है, यथा—वर्तमान समय में भारत सरकार के कार्यालयों एवं कुछ राज्यों- हिंदी क्षेत्र के राज्यों में राज–काज हिंदी में होता है। अन्य राज्य सरकारें अपनी–अपनी भाषा में कार्य करती हैं, हिंदी में नहीं; महाराष्ट्र मराठी में, पंजाब पंजाबी में, गुजरात गुजराती में आदि।
 
#राजभाषा कोई भी भाषा हो सकती है, स्वभाषा या परभाषा। जैसे, मुग़ल शासक [[अकबर]] के समय से लेकर मैकाले के काल तक फ़ारसी राजभाषा तथा मैकाले के काल से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ती तक अंग्रेज़ी राजभाषा थी जो कि विदेशी भाषा थी। जबकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया जो कि स्वभाषा है।
 
#राजभाषा का एक निश्चित मानक स्वरूप होता है, जिसके साथ छेड़छाड़ या प्रयोग नहीं किया जा सकता।
 
 
==आठवीं अनुसूची==
 
{{Main|आठवीं अनुसूची}}
 
आठवीं अनुसूची में संविधान द्वारा मान्यताप्राप्त 22 प्रादेशिक भाषाओं का उल्लेख है। इस अनुसूची में आरम्भ में 14 भाषाएँ (असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलुगु, उर्दू) थीं। बाद में सिंधी को तत्पश्चात् कोंकणी, मणिपुरी<ref>21वाँ संशोधन, 1967 ई.</ref>, नेपाली को शामिल किया गया <ref>71वाँ संशोधन, 1992 ई.</ref>, जिससे इसकी संख्या 18 हो गई। तदुपरान्त बोडो, डोगरी, मैथिली, संथाली को शामिल किया गया<ref>92वाँ संशोधन, 2003</ref> और इस प्रकार इस अनुसूची में 22 भाषाएँ हो गईं।
 
==हिंदी की उपभाषाएँ एवं बोलियाँ==
 
{{Main|हिंदी की उपभाषाएँ एवं बोलियाँ}}
 
*'''हिंदी भाषी क्षेत्र/हिंदी क्षेत्र/हिंदी पट्टी'''— हिंदी पश्चिम में अम्बाला (हरियाणा) से लेकर पूर्व में पूर्णिया (बिहार) तक तथा उत्तर में [[बद्रीनाथ]]–[[केदारनाथ ज्योतिर्लिंग|केदारनाथ]] (उत्तराखंड) से लेकर दक्षिण में [[खंडवा]] ([[मध्य प्रदेश]]) तक बोली जाती है। इसे हिंदी भाषी क्षेत्र या हिंदी क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र के अंतर्गत 9 राज्य- [[उत्तर प्रदेश]], [[उत्तराखंड]], [[बिहार]], [[झारखंड]], [[मध्य प्रदेश]], [[छत्तीसगढ़]], [[राजस्थान]], [[हरियाणा]] व [[हिमाचल प्रदेश]] तथा 1 केन्द्र शासित प्रदेश ([[राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली]]) आते हैं। इस क्षेत्र में भारत की कुल जनसंख्या के 43% लोग रहते हैं।
 
====उपभाषाएँ व बोलियाँ====
 
*'''बोली'''— एक छोटे क्षेत्र में बोली जानेवाली भाषा बोली कहलाती है। बोली में साहित्य रचना नहीं होती है।
 
*'''उपभाषा'''— अगर किसी बोली में साहित्य रचना होने लगती है और क्षेत्र का विकास हो जाता है तो वह बोली न रहकर उपभाषा बन जाती है।
 
*'''भाषा'''— साहित्यकार जब उस भाषा को अपने साहित्य के द्वारा परिनिष्ठित सर्वमान्य रूप प्रदान कर देते हैं तथा उसका और क्षेत्र विस्तार हो जाता है तो वह भाषा कहलाने लगती है।
 
*एक भाषा के अंतर्गत कई उपभाषाएँ होती हैं तथा एक उपभाषा के अंतर्गत कई बोलियाँ होती हैं।
 
*सर्वप्रथम एक अंग्रेज़ प्रशासनिक अधिकारी जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने [[1927]] ई. में अपनी पुस्तक 'भारतीय भाषा सर्वेक्षण' में हिंदी का उपभाषाओं व बोलियों में वर्गीकरण प्रस्तुत किया। चटर्जी ने पहाड़ी भाषाओं को छोड़ दिया है। वह इन्हें भाषाएँ नहीं मानते।
 
*[[धीरेन्द्र वर्मा]] का वर्गीकरण मुख्यतः [[सुनीति कुमार चटर्जी]] के वर्गीकरण पर ही आधारित है। केवल उसमें कुछ ही संशोधन किए गए हैं। जैसे— उसमें पहाड़ी भाषाओं को शामिल किया गया है।
 
*इनके अलावा कई विद्वानों ने अपना वर्गीकरण प्रस्तुत किया है। आज इस बात को लेकर आम सहमति है कि हिंदी जिस भाषा–समूह का नाम है, उसमें 5 उपभाषाएँ और 17 बोलियाँ हैं।
 
हिंदी क्षेत्र की समस्त बोलियों को 5 वर्गों में बाँटा गया है। इन वर्गों को उपभाषा कहा जाता है। इन उपभाषाओं के अंतर्गत ही हिंदी की 17 बोलियाँ आती हैं।<ref>एक भाषा विद्वान के अनुसार, शुद्ध भाषा–वैज्ञानिक दृष्टि से हिंदी की दो मुख्य उपभाषाएँ हैं—पश्चिमी हिंदी व पूर्वी हिंदी।</ref>
 
 
==प्रमुख खड़ी बोलियों का संक्षिप्त परिचय==
 
====कौरवी या खड़ी बोली====
 
{{main|कौरवी बोली}}
 
*'''मूल नाम'''— कौरवी
 
*'''साहित्यिक भाषा बनने के बाद पड़ा नाम'''— खड़ी बोली
 
*'''अन्य नाम'''— बोलचाल की हिन्दुस्तानी, सरहिंदी, वर्नाक्यूलर खड़ी बोली आदि।
 
*'''केन्द्र'''— [[कुरु महाजनपद|कुरु जनपद]] अर्थात् [[मेरठ]]– [[दिल्ली]] के आसपास का क्षेत्र। खड़ी बोली एक बड़े भूभाग में बोली जाती है। अपने ठेठ रूप में यह मेरठ, [[बिजनौर]], [[मुरादाबाद]], रामपुर, [[सहारनपुर]], [[देहरादून]] और [[अम्बाला]] ज़िलों में बोली जाती है। इनमें मेरठ की खड़ी बोली आदर्श और मानक मानी जाती है।
 
*'''बोलने वालों की संख्या'''— 1.5 से 2 करोड़
 
*'''साहित्य'''— मूल कौरवी में लोक–साहित्य उपलब्ध है, जिसमें गीत, गीत–नाटक, लोक कथा, गप्प, पहेली आदि हैं।
 
*'''विशेषता'''— आज की हिंदी मूलतः कौरवी पर ही आधारित है।
 
*'''नमूना'''— कोई बादसा था। साब उसके दो राण्याँ थीं। वो एक रोज़ अपनी रान्नी से केने लगा मेरे समान ओर कोइ बादसा है बी? तो बड़ी बोल्ले के राजा तुम समान ओर कोन होगा। छोटी से पुच्छा तो किह्या कि एक बिजाण सहर हे उसके किल्ले में जितनी तुम्हारी सारी हैसियत है उतनी एक ईंट लगी है। ओ इसने मेरी कुच बात नई रक्खी इसको तग्मार्ती (निर्वासित) करना चाइए। उस्कू तग्मार्ती कर दिया। ओर बड़ी कू सब राज का मालक कर दिया।
 
====ब्रजभाषा====
 
{{main|ब्रजभाषा}}
 
*'''केन्द्र'''— [[मथुरा]]
 
*'''बोलने वालों की संख्या'''— 3 करोड़
 
*देश के बाहर ताज्जुबेकिस्तान में ब्रजभाषा बोली जाती है, जिसे 'ताज्जुबेकी ब्रजभाषा' कहा जाता है।
 
*'''साहित्य'''— कृष्ण भक्ति काव्य की एकमात्र भाषा, लगभग सारा रीतिकाल साहित्य। साहित्यिक दृष्टि से हिंदी भाषा की सबसे महत्त्वपूर्ण बोली। साहित्यिक महत्त्व के कारण ही इसे ब्रजबोली नहीं ब्रजभाषा की संज्ञा दी जाती है। मध्यकाल में इस भाषा ने अखिल भारतीय विस्तार पाया। बंगाल में इस भाषा से बनी भाषा का नाम 'ब्रज बुलि' पड़ा। आधुनिक काल तक इस भाषा में साहित्य सृजन होता रहा। पर परिस्थितियाँ ऐसी बनी कि ब्रजभाषा साहित्यिक सिंहासन से उतार दी गई और उसका स्थान खड़ी बोली ने ले लिया।
 
*'''रचनाकार'''— भक्तिकालीन– सूरदास, नन्ददास आदि।
 
'''रीतिकाल'''— बिहारी, मतिराम, भूषण, देव आदि।
 
'''आधुनिक कालीन'''— [[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र]], जगन्नाथ दास 'रत्नाकर' आदि।
 
*'''नमूना'''— एक मथुरा जी के चौबे हे (थे), जो डिल्ली सैहर कौ चलै। गाड़ी वारे बनिया से चौबेजी की भेंट है गई। तो वे चौबे बोले, अर भइया सेठ, कहाँ जायगो। वौ बोलो, महराजा डिल्ली जाऊँगो। तो चौबे बोले, भइया हमऊँ बैठाल्लेय। बनिया बोलो, चार रूपा चलिंगे भाड़े के। चौबे बोले, अच्छा भइया चारी दिंगे।
 
====अवधी====
 
{{main|अवधी भाषा}}
 
*'''केन्द्र'''— [[अयोध्या]]/अवध
 
*'''बोलने वालों की संख्या'''— 2 करोड़
 
*देश के बाहर फीजी में अवधी बोलने वाले लोग हैं।
 
*'''साहित्य'''— सूफ़ी काव्य, रामभक्ति काव्य। अवधी में प्रबन्ध काव्य परम्परा विशेषतः विकसित हुई।
 
*'''रचनाकार'''— सूफ़ी कवि— मुल्ला दाउद ('चंदायन'), जायसी ('पद्मावत'), क़ुत्बन ('मृगावती'), उसमान ('चित्रावली'), रामभक्त कवि— तुलसीदास ('रामचरित मानस')।
 
*'''नमूना'''— एक गाँव मा एक अहिर रहा। ऊ बड़ा भोंग रहा। सबेरे जब सोय के उठै तो पहले अपने महतारी का चार टन्नी धमकाय दिये तब कौनो काम करत रहा। बेचारी बहुत पुरनिया रही नाहीं तौ का मज़ाल रहा केऊ देहिं पै तिरिन छुआय देत।
 
====भोजपुरी====
 
{{main|भोजपुरी भाषा}}
 
*'''केन्द्र'''— [[भोजपुर मध्य प्रदेश|भोजपुर]]
 
*'''बोलने वालों की संख्या'''— 3.5 करोड़ (बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से हिंदी प्रदेश की बोलियों में सबसे अधिक बोली जाने वाली बोली)।
 
*इस बोली का प्रसार भारत के बाहर सूरीनाम, फिजी, मॉरिशस, गयाना, त्रिनिडाड में है। इस दृष्टि से भोजपुरी अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की बोली है।
 
*'''साहित्य'''— भोजपुरी में लिखित साहित्य नहीं के बराबर है। मूलतः भोजपुरी भाषी साहित्यकार मध्यकाल में ब्रजभाषा व अवधी में तथा आधुनिक काल में हिंदी में लेखन करते रहे हैं। लेकिन अब स्थिति में परिवर्तन आ रहा है।
 
*'''रचनाकार'''— [[भिखारी ठाकुर]] (उपनाम— 'भोजपुरी का शेक्सपीयर', 'भोजपुरी का भारतेन्दु')।
 
*'''सिनेमा'''— सिनेमा जगत में भोजपुरी ही हिंदी की वह बोली है, जिसमें सबसे अधिक फ़िल्में बनती हैं।
 
*'''नमूना'''— काहे दस–दस पनरह–पनरह हज़ार के भीड़ होला ई नाटक देखें ख़ातिर। मालूम होतआ कि एही नाटक में पबलिक के रस आवेला।
 
====मैथिली====
 
{{main|मैथिली भाषा}}
 
*'''लिपि'''— तिरहुता व देवनागरी
 
*'''केन्द्र'''— मिथिला या विदेह या तिरहुत
 
*'''बोलने वालों की संख्या'''— 1.5 करोड़
 
*'''साहित्य'''— साहित्य की दृष्टि से मैथिली बहुत सम्पन्न है।
 
*'''रचनाकार'''— विद्यापति (पदावली)— यदि ब्रजभाषा को सूरदास ने, अवधी को तुलसीदास ने चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया तो मैथिली को [[विद्यापति]] ने, हरिमोहन झा (उपन्यास— कन्यादान, द्विरागमन, कहानी संग्रह—एकादशी, 'खट्टर काकाक तरंग'), [[नागार्जुन]] (मैथिली में 'यात्री' नाम से लेखन; उपन्यास— पारो, कविता संग्रह— 'कविक स्वप्न', 'पत्रहीन नग्न गाछ'), राजकमल चौधरी ('स्वरगंघा') आदि।
 
*'''आठवीं अनुसूची में स्थान'''— 92वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, [[2003]] के द्वारा संविधान की 8वीं अनुसूची में 4 भाषाओं को स्थान दिया गया। मैथिली हिंदी क्षेत्र की बोलियों में से 8वीं अनुसूची में स्थान पाने वाली एकमात्र बोली है।
 
*'''नमूना'''— [[पटना]] किए एलऽह? पटना एलिअइ नोकरी करैले।
 
भेटलह नोकरी? नाकरी कत्तौ नइ भेटल।
 
गाँ में काज नइ भेटइ छलऽह? भेटै छलै, रूपैयाबला नइ, अऽनबला।
 
तखन एलऽ किऐ? रिनियाँ तङ केलकइ, तै।
 
कत्ते रीन छऽह? चाइर बीस।
 
सूद कत्ते लइ छऽह? दू पाइ महिनबारी।
 
==देवनागरी लिपि==
 
{{Main|देवनागरी लिपि}}
 
*[[भारत]] में सर्वाधिक प्रचलित लिपि जिसमें [[संस्कृत]], हिंदी और [[मराठी भाषा|मराठी]] भाषाएँ लिखी जाती हैं। इस शब्द का सबसे पहला उल्लेख 453 ई. में जैन ग्रंथों में मिलता है। 'नागरी' नाम के संबंध में मतैक्य नहीं है। कुछ लोग इसका कारण नगरों में प्रयोग को बताते हैं। यह अपने आरंभिक रूप में [[ब्राह्मी लिपि]] के नाम से जानी जाती थी। इसका वर्तमान रूप नवी-दसवीं शताब्दी से मिलने लगता है।
 
*भाषा विज्ञान की शब्दावली में यह 'अक्षरात्मक' लिपि कहलाती है। यह विश्व में प्रचलित सभी लिपियों की अपेक्षा अधिक पूर्णतर है। इसके लिखित और उच्चरित रूप में कोई अंतर नहीं पड़ता है। प्रत्येक ध्वनि संकेत यथावत लिखा जाता है।
 
*देवनागरी एक लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कुछ विदेशी भाषाएँ लिखीं जाती हैं। [[संस्कृत]], [[पालि भाषा|पालि]], हिंदी, [[मराठी भाषा|मराठी]], [[कोंकणी भाषा|कोंकणी]], [[सिन्धी भाषा|सिन्धी]], [[कश्मीरी भाषा|कश्मीरी]], [[नेपाली भाषा|नेपाली]], गढ़वाली, [[बोडो भाषा|बोडो]], अंगिका, मगही, [[भोजपुरी भाषा|भोजपुरी]], [[मैथिली भाषा|मैथिली]], [[संथाली भाषा|संथाली]] आदि भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसे नागरी लिपि भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में [[गुजराती भाषा|गुजराती]], [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]], बिष्णुपुरिया मणिपुरी, रोमानी और [[उर्दू]] भाषाएं भी देवनागरी में लिखी जाती हैं।
 
*इसमें कुल '''52 अक्षर हैं, जिसमें 14 [[स्वर (व्याकरण)|स्वर]] और 38 [[व्यंजन (व्याकरण)|व्यंजन]]''' हैं। अक्षरों की क्रम व्यवस्था (विन्यास) भी बहुत ही वैज्ञानिक है। स्वर-व्यंजन, कोमल-कठोर, अल्पप्राण-महाप्राण, अनुनासिक्य-अन्तस्थ-ऊष्म इत्यादि वर्गीकरण भी वैज्ञानिक हैं। एक मत के अनुसार देवनगर ([[काशी]]) में प्रचलन के कारण इसका नाम देवनागरी पड़ा।<ref name="dev">{{cite web |url=http://vimisahitya.wordpress.com/2008/09/02/dewanaagaree_parichay/ |title=हिंदी साहित्य |accessmonthday=28 सितंबर |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= |language=[[हिंदी]] }}</ref>
 
==नागरी लिपि==
 
{{main|नागरी लिपि}}
 
*'''पश्चिमी शाखा'''- देवनागरी, राजस्थानी, गुजराती, महाजनी, कैथी।
 
*'''पूर्वी शाखा'''- [[बांग्ला लिपि]], असमी, उड़िया।
 
==हिंदी व्याकरण==
 
{{मुख्य|व्याकरण (व्यावहारिक)}}
 
जिस विद्या से किसी [[भाषा]] के बोलने तथा लिखने के नियमों की व्यवस्थित पद्धति का ज्ञान होता है, उसे 'व्याकरण' कहते हैं।
 
====वर्णमाला====
 
{{मुख्य|वर्णमाला (व्याकरण)}}
 
[[हिंदी भाषा]] में जितने वर्णों का प्रयोग होता है, उन वर्णों के समूह को 'वर्णमाला' कहा जाता है।
 
====हिंदी वर्णमाला====
 
{{मुख्य|हिंदी वर्णमाला (व्याकरण)}}
 
हिंदी भाषा में जितने वर्ण प्रयुक्त होते हैं, उन वर्णों के समूह को 'हिंदी-वर्णमाला' कहा जाता है।
 
====शब्द====
 
{{मुख्य|शब्द (व्याकरण)}}
 
*वर्ण-समूह या ध्वनि-समूह को 'शब्द' कहते हैं।
 
*शब्द दो प्रकार के होते हैं- [[सार्थक शब्द (व्याकरण)|सार्थक]] और [[निरर्थक शब्द (व्याकरण)|निरर्थक]]।
 
====संज्ञा====
 
{{मुख्य|संज्ञा (व्याकरण)}}
 
*यह सार्थक वर्ण-समूह शब्द कहलाता है।
 
*जब इसका प्रयोग वाक्य में होता है तो वह व्याकरण के नियमों में बँध जाता है और इसका रूप भी बदल जाता है।
 
====सर्वनाम====
 
{{मुख्य|सर्वनाम}}
 
*संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द को सर्वनाम कहते हैं।
 
*संज्ञा की पुनरुक्ति न करने के लिए सर्वनाम का प्रयोग किया जाता है।
 
====विशेषण====
 
{{मुख्य|विशेषण}}
 
संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों की विशेषता (गुण, दोष, संख्या, परिमाण आदि) बताने वाले शब्द ‘विशेषण’ कहलाते हैं।
 
====क्रिया====
 
{{मुख्य|क्रिया}}
 
*जिन शब्दों से किसी कार्य या व्यापार के होने या किए जाने का बोध होता है उन्हें क्रिया कहते हैं।
 
*जैसे- उठना, बैठना, सोना जागना। 
 
====क्रियाविशेषण====
 
{{मुख्य|क्रियाविशेषण}}
 
जिन अविकारी शब्दों से क्रिया की विशेषता का बोध होता है वे क्रियाविशेषण कहलाते हैं।
 
====कारक====
 
{{मुख्य|कारक}}
 
कारक शब्द का अर्थ है क्रिया को करने वाला अर्थात क्रिया को पूरी करने में किसी न किसी भूमिका को निभाने वाला।
 
====काल====
 
{{मुख्य|काल}}
 
क्रिया के व्यापार का समय सूचित करने वाले क्रिया रूप को 'काल' कहते हैं।
 
====संधि====
 
{{मुख्य|संधि}}
 
*दो समीपवर्ती वर्णों के मेल से जो विकार होता है, वह संधि कहलाता है।
 
*जैसे- देव+ आलय= देवालय, मन:+ योग= मनोयोग
 
====उपवाक्य====
 
{{मुख्य|उपवाक्य}}
 
*यदि किसी एक वाक्य में एक से अधिक समापिका क्रियाएँ होती हैं तो वह वाक्य उपवाक्यों में बँट जाता है।
 
*उसमें जितनी भी समापिका क्रियाएँ होती हैं उतने ही उपवाक्य होते हैं।
 
====वचन====
 
{{मुख्य|वचन (हिंदी)}}
 
*विकारी शब्दों के जिस रूप से संख्या का बोध होता है, उसे वचन कहते हैं।
 
*वैसे तो शब्दों का संज्ञा भेद विविध प्रकार का होता है, परन्तु व्याकरण में उसके एक और अनेक भेद प्रचलित हैं।
 
====वर्तनी====
 
{{मुख्य|वर्तनी (हिंदी)}}
 
*लिखने की रीति को वर्तनी या अक्षरी कहते हैं।
 
*इसे हिज्जे भी कहा जाता है।
 
====उपसर्ग====
 
{{मुख्य|उपसर्ग}}
 
*वे शब्दांश जो यौगिक शब्द बनाते समय पहले लगते हैं, उपसर्ग कहलाते हैं।
 
*जैसे- प्रति= प्रतिनिधि, प्रतिकूल, प्रतिष्ठा, प्रत्यक्ष।
 
====रस====
 
{{मुख्य|रस}}
 
*रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनन्द'। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनन्द की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है।
 
*रस को 'काव्य की आत्मा' या 'प्राण [[तत्व]]' माना जाता है।
 
====अलंकार====
 
{{मुख्य|अलंकार}}
 
*अलंकार का शाब्दिक अर्थ है, 'आभूषण'। जिस प्रकार सुवर्ण आदि के आभूषणों से शरीर की शोभा बढ़ती है उसी प्रकार काव्य अलंकारों से काव्य की।
 
*[[हिंदी]] के कवि [[केशवदास]] एक अलंकारवादी हैं।
 
====छन्द====
 
{{मुख्य|छन्द}}
 
*वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं।
 
*छंद का सर्वप्रथम उल्लेख '[[ऋग्वेद]]' में मिलता है।
 
==हिंदी का मानकीकरण==
 
{{Main|हिंदी का मानकीकरण}}
 
====मानक भाषा====
 
*मानक का अभिप्राय है—आदर्श, श्रेष्ठ अथवा परिनिष्ठित। भाषा का जो रूप उस भाषा के प्रयोक्ताओं के अलावा अन्य भाषा–भाषियों के लिए आदर्श होता है, जिसके माध्यम से वे उस भाषा को सीखते हैं, जिस भाषा–रूप का व्यवहार पत्राचार, शिक्षा, सरकारी काम–काज एवं सामाजिक–सांस्कृतिक आदान–प्रदान में समान स्तर पर होता है, वह उस भाषा का मानक रूप कहलाता है।
 
*मानक भाषा किसी देश अथवा राज्य की वह प्रतिनिधि तथा आदर्श भाषा होती है, जिसका प्रयोग वहाँ के शिक्षित वर्ग के द्वारा अपने सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, व्यापारिक व वैज्ञानिक तथा प्रशासनिक कार्यों में किया जाता है।
 
*किसी भाषा का बोलचाल के स्तर से ऊपर उठकर मानक रूप ग्रहण कर लेना, उसका 'मानकीकरण' कहलाता है।
 
==अखिल भारतीयता का इतिहास==
 
{{मुख्य|हिंदी की अखिल भारतीयता का इतिहास}}
 
हिंदी 'शब्द' का प्रयोग [[हरियाणा]] से लेकर [[बिहार]] तक प्रचलित बाँगरु, कौरवी, [[ब्रजभाषा]], कनौजी, [[राजस्थानी भाषा|राजस्थानी]], [[अवधी भाषा|अवधी]], [[भोजपुरी भाषा|भोजपुरी]], [[मैथिली भाषा|मैथिली]] आदि कई भाषाओं के लिए किया जाता है, किंतु वर्तमान शताब्दी में व्यवहार की दृष्टि से इसका अर्थ खड़ीबोली हो गया है। हिंदी के रूप में यही खड़ीबोली भारतीय संविधान द्वारा स्वीकृत संपर्क भाषा है तथा हिंदी भाषी राज्यों में राजभाषा है। भौगोलिक दृष्टि से विचार करने पर यह [[दिल्ली]], हरियाणा तथा [[उत्तर प्रदेश]] के [[मुरादाबाद]], [[बिजनौर]], [[मेरठ]] आदि थोड़े से ज़िलों तक सीमित भाषा है, जो शताब्दियों तक ब्रजभाषा और अवधी की तुलना में उपेक्षितप्राय रही है और ऐतिहासिक कारणों के प्रसाद से ही यह न केवल आधुनिक युग में [[भारत]] से बाहर के कई देशों में फैल गई है, वरन सुदूर अतीत से ही अंतर्राष्ट्रीय यात्रा करती रही है।
 
==अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय==
 
{{Main|महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय}}
 
[[चित्र:Mahatma Gandhi International Hindi University.jpg|[[महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय]], वर्धा |thumb|250px]]
 
महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, [[महाराष्ट्र]] राज्य के '''वर्धा ज़िले''' में स्थित है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना भारत सरकार ने [[संसद]] द्वारा पारित एक अधिनियम द्वारा की है। इस अधिनियम को [[भारत]] के राजपत्र में [[8 जनवरी]] सन् [[1997]] को प्रकाशित किया गया। यह अधिनियम शिक्षा और अनुसंधान के माध्यम से [[हिंदी भाषा]] और [[साहित्य]] का संवर्धन एवं विकास करने हेतु एक शैक्षणिक विश्वविद्यालय की स्थापना करता है, जिससे हिंदी बेहतर कार्यदक्षता प्राप्त कर प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय भाषा बने। साथ ही विभिन्न ज्ञानानुशासनों में मौलिक सृजन हिंदी भाषा के माध्यम से हो सके तथा विश्व की अन्य भाषाओं में विद्यमान ज्ञान संपदा का अनुवाद हिंदी भाषा में किया जा सके।<ref>{{cite web |url=http://www.hindivishwa.org/index_s.php |title=महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय |accessmonthday=04 जनवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=ज्ञान शांति मैत्री |language=[[हिंदी]]}}</ref>
 
 
 
==समाचार==
 
==समाचार==
 
====हिंदी सुधारने के लिए अंग्रेज़ी शब्दों की छूट====
 
====हिंदी सुधारने के लिए अंग्रेज़ी शब्दों की छूट====
 
; 13 अक्टूबर, 2011 गुरुवार
 
; 13 अक्टूबर, 2011 गुरुवार
आज़ादी के 64 साल बाद भी सरकार हिंदी को [[राजभाषा]] से राष्ट्रभाषा नहीं बना पाई है, मगर अब उसने सरकारी दफ़्तरों में इस्तेमाल होने वाली हिंदी को बदलने के प्रयास अवश्य तेज कर दिए हैं। दफ़्तरों में इस्तेमाल होने वाले हिंदी के कठिन शब्दों की जगह [[उर्दू]], [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]], सामान्य हिंदी और [[अंग्रेज़ी]] के शब्दों का उपयोग करने के निर्देश दिए हैं। गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग की सचिव वीणा उपाध्याय ने इस सिलसिले में सभी मंत्रालयों और विभागों को दिशा-निर्देश जारी किए हैं। निर्देशों के मुताबिक, कामकाज के दौरान साहित्यिक हिंदी का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। किसी भी शब्द का हिंदी में उपयोग बतौर अनुवाद न हो। इससे आम लोगों को समस्या होती है। एक हद के बाद यही समस्या किसी भी व्यक्ति को मानसिक तौर पर भाषा के ख़िलाफ़ खड़ा करती है। गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग की सचिव वीणा उपाध्याय ने सभी मंत्रालयों और विभागों को जारी किए दिशा-निर्देश मंत्रालय के '''इस आदेश के बाद पुलिस, कोर्ट, ब्यूरो, रेलवे स्टेशन, बटन, कोट, पैंट, सिग्नल, लिफ़्ट, फीस, क़ानून, अदालत, मुक़दमा, दफ़्तर, एफ़आईआर जैसे अंग्रेज़ी, फ़ारसी और तुर्की भाषा के शब्दों का चलन जारी रहेगा।'''  
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आज़ादी के 64 साल बाद भी सरकार हिंदी को [[राजभाषा]] से राष्ट्रभाषा नहीं बना पाई है, मगर अब उसने सरकारी दफ़्तरों में इस्तेमाल होने वाली हिंदी को बदलने के प्रयास अवश्य तेज कर दिए हैं। दफ़्तरों में इस्तेमाल होने वाले हिंदी के कठिन शब्दों की जगह [[उर्दू]], [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]], सामान्य हिंदी और [[अंग्रेज़ी]] के शब्दों का उपयोग करने के निर्देश दिए हैं। गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग की सचिव वीणा उपाध्याय ने इस सिलसिले में सभी मंत्रालयों और विभागों को दिशा-निर्देश जारी किए हैं। निर्देशों के मुताबिक़, कामकाज के दौरान साहित्यिक हिंदी का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। किसी भी शब्द का हिंदी में उपयोग बतौर अनुवाद न हो। इससे आम लोगों को समस्या होती है। एक हद के बाद यही समस्या किसी भी व्यक्ति को मानसिक तौर पर भाषा के ख़िलाफ़ खड़ा करती है। गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग की सचिव वीणा उपाध्याय ने सभी मंत्रालयों और विभागों को जारी किए दिशा-निर्देश मंत्रालय के '''इस आदेश के बाद पुलिस, कोर्ट, ब्यूरो, रेलवे स्टेशन, बटन, कोट, पैंट, सिग्नल, लिफ़्ट, फीस, क़ानून, अदालत, मुक़दमा, दफ़्तर, एफ़आईआर जैसे अंग्रेज़ी, फ़ारसी और तुर्की भाषा के शब्दों का चलन जारी रहेगा।'''  
  
 
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====दुनिया के 80 करोड़ लोग जानते हैं हिंदी====
 
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[[भारत]] की राजभाषा हिंदी दुनिया में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। बहुभाषी भारत के हिंदी भाषी राज्यों की आबादी 46 करोड़ से अधिक है। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की 1.2 अरब आबादी में से 41.03 फीसदी की मातृभाषा हिंदी है। हिंदी को दूसरी भाषा के तौर पर इस्तेमाल करने वाले अन्य भारतीयों को मिला लिया जाए तो देश के लगभग 75 प्रतिशत लोग हिंदी बोल सकते हैं। भारत के इन 75 प्रतिशत हिंदी भाषियों सहित पूरी दुनिया में तकरीबन 80 करोड़ लोग ऐसे हैं जो इसे बोल या समझ सकते हैं। भारत के अलावा इसे [[नेपाल]], मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, यूगांडा, [[दक्षिण अफ्रीका]], कैरिबियन देशों, ट्रिनिडाड एवं टोबेगो और कनाडा आदि में बोलने वालों की अच्छी ख़ासी संख्या है। इसके आलावा [[इंग्लैंड]], [[अमेरिका]], मध्य एशिया में भी इसे बोलने और समझने वाले अच्छे ख़ासे लोग हैं।
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[[भारत]] की राजभाषा हिंदी दुनिया में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। बहुभाषी भारत के हिंदी भाषी राज्यों की आबादी 46 करोड़ से अधिक है। 2011 की जनगणना के मुताबिक़ भारत की 1.2 अरब आबादी में से 41.03 फीसदी की मातृभाषा हिंदी है। हिंदी को दूसरी भाषा के तौर पर इस्तेमाल करने वाले अन्य भारतीयों को मिला लिया जाए तो देश के लगभग 75 प्रतिशत लोग हिंदी बोल सकते हैं। भारत के इन 75 प्रतिशत हिंदी भाषियों सहित पूरी दुनिया में तकरीबन 80 करोड़ लोग ऐसे हैं जो इसे बोल या समझ सकते हैं। भारत के अलावा इसे [[नेपाल]], मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, यूगांडा, [[दक्षिण अफ्रीका]], कैरिबियन देशों, ट्रिनिडाड एवं टोबेगो और कनाडा आदि में बोलने वालों की अच्छी ख़ासी संख्या है। इसके अलावा [[इंग्लैंड]], [[अमेरिका]], मध्य एशिया में भी इसे बोलने और समझने वाले अच्छे ख़ासे लोग हैं।
 
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*[http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-story-39-39-264287.html लाइव हिन्दुस्तान]
 
*[http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-story-39-39-264287.html लाइव हिन्दुस्तान]
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*[http://dainiktribuneonline.com/2012/10/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A4%A2%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%8F-%E0%A4%91%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F-2/ दैनिक ट्रिब्यून]
 
*[http://dainiktribuneonline.com/2012/10/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A4%A2%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%8F-%E0%A4%91%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F-2/ दैनिक ट्रिब्यून]
 
*[http://www.dw.de/%E0%A4%91%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%88-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%82%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%82-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80/a-16338765 डी. डब्ल्यू.]
 
*[http://www.dw.de/%E0%A4%91%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%88-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%82%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%82-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80/a-16338765 डी. डब्ल्यू.]
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==बाहरी कड़ियाँ==
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*[http://www.pravakta.com/indian-aryan-languages-of-the-indo-european-family भारोपीय परिवार की भारतीय भाषाएँ]
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*[http://www.pravakta.com/reflections-in-relation-to-hindi-language हिन्दी भाषा के सम्बंध में कुछ विचार]
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*[http://www.rachanakar.org/2010/03/blog-post_3350.html हिन्दी भाषा-क्षेत्र एवं हिन्दी के क्षेत्रगत रूप]
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*[http://www.scribd.com/doc/22142436/Hindi-Urdu हिन्दी-उर्दू का अद्वैत]
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*[http://www.scribd.com/doc/22573933/Hindi-kee-antarraashtreeya-bhoomikaa हिन्दी की अन्तरराष्ट्रीय भूमिका]
  
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{हिन्दी भाषा}}{{भाषा और लिपि}}{{व्याकरण}}
 
{{हिन्दी भाषा}}{{भाषा और लिपि}}{{व्याकरण}}
[[Category:भाषा और लिपि]][[Category:भाषा कोश]][[Category:साहित्य_कोश]]
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[[Category:भाषा और लिपि]][[Category:भाषा कोश]][[Category:साहित्य कोश]]
 
[[Category:हिन्दी भाषा]]
 
[[Category:हिन्दी भाषा]]
 
[[Category:जनगणना अद्यतन]]
 
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09:51, 11 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

हिन्दी विषय सूची


हिंदी
हिंदी वर्णमाला
विवरण 'हिंदी' भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्य भाषा है।
लिपी देवनागरी
आधिकारिक भाषा भारत
नियामक केंद्रीय हिंदी निदेशालय
भाषा–परिवार भारोपीय भाषा परिवार
व्युत्पत्ति हिंदी शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत शब्द सिन्धु से मानी जाती है।
संबंधित लेख हिन्दी की उपभाषाएँ एवं बोलियाँ, आठवीं अनुसूची, हिन्दी दिवस, विश्व हिन्दी दिवस, हिंदी पत्रकारिता दिवस
अन्य जानकारी सन् 2001 की जनगणना के अनुसार, लगभग 25.79 करोड़ भारतीय हिंदी का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं।

हिंदी भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्य भाषा है। सन् 2001 की जनगणना के अनुसार, लगभग 25.79 करोड़ भारतीय हिंदी का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं। सन् 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था। सन् 1997 में भारत की जनगणना का भारतीय भाषाओं के विश्लेषण का ग्रन्थ प्रकाशित होने तथा संसार की भाषाओं की रिपोर्ट तैयार करने के लिए यूनेस्को द्वारा सन् 1998 में भेजी गई यूनेस्को प्रश्नावली के आधार पर उन्हें भारत सरकार के केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के तत्कालीन निदेशक प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन द्वारा भेजी गई विस्तृत रिपोर्ट के बाद अब विश्व स्तर पर यह स्वीकृत है कि मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से संसार की भाषाओं में चीनी भाषा के बाद हिन्दी का दूसरा स्थान है। चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या हिन्दी भाषा से अधिक है किन्तु चीनी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा सीमित है। अँगरेज़ी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा अधिक है किन्तु मातृभाषियों की संख्या अँगरेज़ी भाषियों से अधिक है। इसकी कुछ बोलियाँ, मैथिली और राजस्थानी अलग भाषा होने का दावा करती हैं। हिंदी की प्रमुख बोलियों में अवधी, भोजपुरी, ब्रजभाषा, छत्तीसगढ़ी, गढ़वाली, हरियाणवी, कुमांऊनी, मागधी और मारवाड़ी भाषा शामिल हैं।[1]

आधुनिक हिंदी

  • हिंदी के आधुनिक काल तक आते–आते ब्रजभाषा जनभाषा से काफ़ी दूर हट चुकी थी और अवधी ने तो बहुत पहले से ही साहित्य से मुँह मोड़ लिया था। 19वीं सदी के मध्य तक अंग्रेज़ी सत्ता का महत्तम विस्तार भारत में हो चुका था। इस राजनीतिक परिवर्तन का प्रभाव मध्य देश की भाषा हिंदी पर भी पड़ा। नवीन राजनीतिक परिस्थितियों ने खड़ी बोली को प्रोत्साहन प्रदान किया। जब ब्रजभाषा और अवधी का साहित्यिक रूप जनभाषा से दूर हो गया तब उनका स्थान खड़ी बोली धीरे–धीरे लेने लगी। अंग्रेज़ी सरकार ने भी इसका प्रयोग आरम्भ कर दिया।
  • हिंदी के आधुनिक काल में प्रारम्भ में एक ओर उर्दू का प्रचार होने और दूसरी ओर काव्य की भाषा ब्रजभाषा होने के कारण खड़ी बोली को अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ा। 19वीं सदी तक कविता की भाषा ब्रजभाषा और गद्य की भाषा खड़ी बोली रही। 20वीं सदी के आते–आते खड़ी बोली गद्य–पद्य दोनों की ही साहित्यिक भाषा बन गई।
  • इस युग में खड़ी बोली को प्रतिष्ठित करने में विभिन्न धार्मिक सामाजिक एवं राजनीतिक आंदोलनों ने बड़ी सहायता की। फलतः खड़ी बोली साहित्य की सर्वप्रमुख भाषा बन गयी।

हिंदी के विभिन्न अर्थ

भाषा शास्त्रीय अर्थ

नागरी लिपि में लिखित संस्कृत बहुल खड़ी बोली।

संवैधानिक/क़ानूनी अर्थ

संविधान के अनुसार हिंदी भारत संघ की राजभाषा या अधिकृत भाषा तथा अनेक राज्यों की राजभाषा है।

सामान्य अर्थ

समस्त हिंदी भाषी क्षेत्र की परिनिष्ठित भाषा अर्थात् शासन, शिक्षा, साहित्य, व्यापार आदि की भाषा।

व्यापक अर्थ

आधुनिक युग में हिंदी को केवल खड़ी बोली में ही सीमित नहीं किया जा सकता। हिंदी की सभी उपभाषाएँ और बोलियाँ हिंदी के व्यापक अर्थ में आ जाती हैं। राजा राममोहन राय, केशवचंद्र सेन, नवीन चंद्र राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, तरुणी चरण मिश्र, राजेन्द्र लाल मित्र, राज नारायण बसु, भूदेव मुखर्जी, बंकिम चंद्र चैटर्जी ('हिंदी भाषा की सहायता से भारतवर्ष के विभिन्न प्रदेशों के मध्य में जो ऐक्यबंधन संस्थापन करने में समर्थ होंगे वही सच्चे भारतबंधु पुकारे जाने योग्य हैं।)', सुभाषचंद्र बोस ('अगर आज हिंदी भाषा मान ली गई है तो वह इसलिए नहीं कि वह किसी प्रान्त विशेष की भाषा है, बल्कि इसलिए कि वह अपनी सरलता, व्यापकता तथा क्षमता के कारण सारे देश की भाषा हो सकती है।')।

हिंदी के लिए महापुरुष कथन
हिंदी किसी के मिटाने से मिट नहीं सकती।
चन्द्रबली पाण्डेय

है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी भरी।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी ॥
मैथिलीशरण गुप्त

जिस भाषा में तुलसीदास जैसे कवि ने कविता की हो वह अवश्य ही पवित्र है और उसके सामने कोई भाषा नहीं ठहर सकती।
महात्मा गाँधी
हिंदी भारतवर्ष के हृदय-देश स्थित करोड़ों नर-नारियों के हृदय और मस्तिष्क को खुराक देने वाली भाषा है।
हज़ारीप्रसाद द्विवेदी
हिंदी को गंगा नहीं बल्कि समुद्र बनना होगा।
विनोबा भावे
हिंदी के विरोध का कोई भी आन्दोलन राष्ट्र की प्रगति में बाधक है।
सुभाष चन्द्र बसु
हिंदी को संस्कृत से विच्छिन्न करके देखने वाले उसकी अधिकांश महिमा से अपरिचित हैं।
हज़ारीप्रसाद द्विवेदी

समाचार

हिंदी सुधारने के लिए अंग्रेज़ी शब्दों की छूट

13 अक्टूबर, 2011 गुरुवार

आज़ादी के 64 साल बाद भी सरकार हिंदी को राजभाषा से राष्ट्रभाषा नहीं बना पाई है, मगर अब उसने सरकारी दफ़्तरों में इस्तेमाल होने वाली हिंदी को बदलने के प्रयास अवश्य तेज कर दिए हैं। दफ़्तरों में इस्तेमाल होने वाले हिंदी के कठिन शब्दों की जगह उर्दू, फ़ारसी, सामान्य हिंदी और अंग्रेज़ी के शब्दों का उपयोग करने के निर्देश दिए हैं। गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग की सचिव वीणा उपाध्याय ने इस सिलसिले में सभी मंत्रालयों और विभागों को दिशा-निर्देश जारी किए हैं। निर्देशों के मुताबिक़, कामकाज के दौरान साहित्यिक हिंदी का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। किसी भी शब्द का हिंदी में उपयोग बतौर अनुवाद न हो। इससे आम लोगों को समस्या होती है। एक हद के बाद यही समस्या किसी भी व्यक्ति को मानसिक तौर पर भाषा के ख़िलाफ़ खड़ा करती है। गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग की सचिव वीणा उपाध्याय ने सभी मंत्रालयों और विभागों को जारी किए दिशा-निर्देश मंत्रालय के इस आदेश के बाद पुलिस, कोर्ट, ब्यूरो, रेलवे स्टेशन, बटन, कोट, पैंट, सिग्नल, लिफ़्ट, फीस, क़ानून, अदालत, मुक़दमा, दफ़्तर, एफ़आईआर जैसे अंग्रेज़ी, फ़ारसी और तुर्की भाषा के शब्दों का चलन जारी रहेगा।

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दुनिया के 80 करोड़ लोग जानते हैं हिंदी

20 सितम्बर, 2012 गुरुवार

भारत की राजभाषा हिंदी दुनिया में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। बहुभाषी भारत के हिंदी भाषी राज्यों की आबादी 46 करोड़ से अधिक है। 2011 की जनगणना के मुताबिक़ भारत की 1.2 अरब आबादी में से 41.03 फीसदी की मातृभाषा हिंदी है। हिंदी को दूसरी भाषा के तौर पर इस्तेमाल करने वाले अन्य भारतीयों को मिला लिया जाए तो देश के लगभग 75 प्रतिशत लोग हिंदी बोल सकते हैं। भारत के इन 75 प्रतिशत हिंदी भाषियों सहित पूरी दुनिया में तकरीबन 80 करोड़ लोग ऐसे हैं जो इसे बोल या समझ सकते हैं। भारत के अलावा इसे नेपाल, मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, यूगांडा, दक्षिण अफ्रीका, कैरिबियन देशों, ट्रिनिडाड एवं टोबेगो और कनाडा आदि में बोलने वालों की अच्छी ख़ासी संख्या है। इसके अलावा इंग्लैंड, अमेरिका, मध्य एशिया में भी इसे बोलने और समझने वाले अच्छे ख़ासे लोग हैं।

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ऑस्ट्रेलिया के स्कूलों में पढ़ाई जाएगी हिंदी

ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड
29 अक्टूबर, 2012 सोमवार

ऑस्ट्रेलिया के स्कूलों में हिंदी और अन्य प्रमुख एशियाई भाषाएं पढ़ाई जाएंगी। भारत और अन्य एशियाई देशों से संबंध मजबूत बनाने के लिए यह रणनीति तय की गई है। ऑस्ट्रेलिया की प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड ने नई नीति का पहला खाका रखते हुए कहा, "जिस समय ऑस्ट्रेलिया बदल रहा था उसी समय एशिया में भी बदलाव हो रहा था, इस सदी में चाहे जो मिले, यह निश्चित ही एशिया को नेतृत्व में फिर से लाएगा। एशिया के उत्थान को कोई नहीं रोक सकता। यह तेज हो रहा है।" प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड ने एशियन सेंचुरी व्हाइट पेपर जारी करते हुए इसकी घोषणा की। गिलार्ड ने कहा कि शुरुआत स्कूलों, प्रशिक्षण केंद्रों से करना होगी। हरेक स्कूल एशिया के किसी स्कूल के साथ जुड़ेगा और एक प्रमुख एशियाई भाषा हिंदी, मंदारिन, जापानी या इंडोनेशियन सीखने की पहल करेगा। उन्होंने कहा कि बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने की कोशिश करना होगी। अब पहले जैसा नहीं चलेगा। गिलार्ड ने कहा कि इस सदी में एशिया के बड़ी ताकत बनने की संभावना है। विश्व में यह क्षेत्र नेतृत्व की भूमिका में होगा।

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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ABSTRACT OF SPEAKERS' STRENGTH OF LANGUAGES AND MOTHER TONGUES - 2001 (अंग्रेज़ी) (एच.टी.एम.एल) census of india। अभिगमन तिथि: 15 सितम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख