उरुग्वे

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उरुग्वे दक्षिण अमरीका का सबसे छोटा सार्वभौम सत्तावान्‌ स्वंतत्र देश है। इसका वास्तविक (सरकारी) नाम 'उरुग्वे का पूर्वी गणराज्य' (रिपब्लिका ओरिएंटल देल उरुग्वे) है और स्थानीय रूप से इसे 'बांडा ओरिएंटल' या उरुग्वे नदी का पूर्वी क्षेत्र कहते हैं। 1,77,508 वर्ग कि.मी. भूक्षेत्र पर फैला यह देश है और प्रति वर्ग कि.मी. घनत्व केवल 15 व्यक्ति है। इसके उत्तर एवं उत्तर पूर्व में विशाल ब्राज़ील और दक्षिण में उरुग्वे नदी से लेकर अटलांटिक महासागर तक 378 कि.मी. लंबी रिओ द ला प्लाटा की इस्चुअरी है। पश्चिम में आर्जेंटाइना की सीमा उरुग्वे नदी द्वारा अलग होती है और पूर्व में 193 कि.मी. लंबा समुद्रतट है।

लगभग संपूर्ण उरुग्वे का धरातल 600 मीटर से नीचा है। पूर्वी और दक्षिणी अर्धभाग अपेक्षाकृत नीचा पहाड़ी है जिसके नीचे प्राचीन सिस्ट तथा ग्रेनाइट जैसी कठोर चट्टानें हैं। इनमें पठारों, घाटियों और पहाड़ियों के क्रमिक सिलसिले मिलते हैं। मध्य एवं मध्योत्तरी भाग पठारी और नीचा है जिसके नीचे प्राचीन सिस्ट चट्टानें हैं और ऊपर परमीकालीन चट्टानें बिछी हैं। ये भाग ब्राज़ील पठार के अंश हैं। प्रातिनूतन (प्लीस्टोसीन) कालीन बालू और चीका आदि शेष भाग मैदानी हैं जो जलोढ़ पदार्थों से बने हैं और वस्तुत: पंपाज़ घास के मैदान के ही अंश हैं। समुद्रतटीय क्षेत्र ज्वारीय झीलों तथा बालू के ढूहों या स्तूपों से भरे पड़े हैं। रियो नेग्रो सबसे लंबी नदी है जिसका निचला भाग नौगम्य है। सांता लुसिया, क्वेग्वे आदि अन्य प्रमुख नदियाँ हैं।

उरुग्वे दक्षिणी गोलार्ध में शीतोष्णकटिबंध में स्थित है और इसकी जलवायु पूर्णतया शीतोष्णकटिबंधीय और सुखत है। जनवरी, फरवरी गर्मी के महीने हैं और औसत तापमान 71° फा. रहता है। जुलाई सर्दी का महीना है जिसमें तापमान 50° फा. होता है। दक्षिण पश्चिम से आनेवाली ठंडी हवाओं को पैंपेरो कहते हैं जिनके बहने पर तापमान एकाएक बहुत कम हो जाता है। वस्तुत: हवाओं की दिशा में यहाँ एकाएक परिवर्तन हो जाता है और ठंडी हवा बहने लगती है। समुद्रतटीय क्षेत्रों के समीप सामुद्रिक प्रभाव होने से परिवर्तन का कम प्रभाव पड़ता है। मई से अक्टूबर तक के मौसम में सुबह शाम तथा रात में कुहासा छाया रहता है। देश में औसत वार्षिक वर्षा लगभग 89 सें. होती है और इसकी मात्रा समुद्र से दूरी के साथ कम होती जाती है।

अपेक्षाकृत कम वर्षा होने के कारण अधिकांश क्षेत्रों की प्राकृतिक वनस्पति लंबी प्रेयरी घासें हैं। सान जोस की घाटी जैसे क्षेत्रों में देसी ताड़ उगते हैं।

आर्थिक तंत्र-पशुपालन प्रमुख आर्थिक धंघा है यद्यपि कृषिकार्य में भी प्रचुर प्रगति हुई है। ऊन तथा मांस प्रमुख उत्पादन हैं किंतु इधर इनके उत्पादन में बड़ी धीमी वृद्धि हुई है और राष्ट्रीय माँग उत्पादन की अपेक्षा बराबर अधिक रही है। इसीलिए कृषि एवं पशुओं से प्राप्त उत्पादनों के कुल निर्यात के इनके प्रतिशत अनुपात में ्ह्रास हुआ है। 1930 के दशक में इन पदार्थों का भाग 46% के लगभग था जो अब मात्र 30% रह गया है। इधर कृषि में भी प्रसार हुआ है और सरकार ने गेहूँ में आत्मनिर्भर होने के लिए विभिन्न कदम उठाए हैं। गेहूँ, मक्का, अलसी, सूर्यमुखी के बीज, जई, जौ, चावल तथा अंगूर प्रमुख उत्पादन हैं। अल्फ़ाफा घासें भी पशुओं के चारे के लिए बोई जाती हैं।

1828 में जब उरुग्वे को स्वतंत्रता प्राप्त हुई, उस समय यहाँ अधिकांश भूमि खुले रूप में पशुओं के चराने के लिए उपयोग की जाती थी और खेती का खास विकास नहीं हुआ था। स्वतंत्रताप्राप्ति के बाद प्रमुखतया इटली और स्पेन से कुछ आ्व्राजक यहाँ आकर बसे और दक्षिणी भागों के कई क्षेत्रों में खेती प्रारंभ हुई। 1852 के बाद ला प्लाटा प्रदेश में आनेवाले अधिकांश यूरोपीय आ्व्राजकों को आर्जेंटाइना का अधिक आकर्षण था। अत: उरुग्वे में बसनेवालों की संख्या बहुत कम हो गई। फलत: दक्षिणी भाग की खेती में अधिक प्रसार न हो सकता जबकि उसपर आर्जेंटाइना में तीव्र प्रगति हुई। इधर 1940 के बाद सरकारी प्ररेणा तथा सहायता से खेती का प्रचुर प्रसार हुआ है। अब चरागाही प्रदेशों में भी खुली चरागाही भूमि नहीं हैं। पशुओं को विस्तृत बाड़ों में रखा और चराया तथा पाला जाता है। रियो निग़्ाो के दक्षिणी क्षेत्रों में पशुपालन अधिक महत्वपूर्ण है जबकि खेतीवाले क्षेत्रों में बहुत कम भूमि चरागाही के लिए उपलब्ध है।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य-उत्तरी एवं मध्य अमरीकी क्षेत्रों की तरह ही दक्षिण अमरीका में भी अमरीकी इंडियन जातियाँ फैली थीं लेकिन उनकी जनसंख्या बहुत कम भी और मेक्सिको या पेरू आदि क्षेत्रों को छोड़कर उनका आर्थिक ढाँचा भी बहुत पिछड़ा तथा कबायली स्तर का था। ला प्लाटा क्षेत्र की खोज सर्वप्रथम यूरोपीय जुआन डियाज़ द सोलीस ने 1516 ई. में की। परंतु क्षेत्र में कोई विशेष घटना नहीं घटी। 1680 में ब्राज़ील क्षेत्र से पुर्तगाली लोगों ने यहाँ आकर उपनिवेश स्थापित किया और रियो द ला प्लाटा पर ब्यूनस आयर्स (आर्जेंटाइना) के उत्तरी पार नोवो कोलोनिया द सैक्रोमेंटो की स्थापना की। ब्यूनस आयर्स में 1810 ई. में स्वतंत्रता की घोषणा के बाद इस क्षेत्र में कई राजनीतिक एवं सैनिक उथल-पुथल हुई। उरुग्वेई (बांडा ओरिएंटल), पुर्तगाली, ब्राज़ीली तथा आर्जेंटाइनी सेनाओं ने भी स्वतंत्रता के लिए विद्रोह और प्रयत्न किए। 1825 ई. में जुआन ऐंटोनिओ लावालिज़ा ने क्रांति सेना गठित करके मुक्तिसंग्राम का विस्तार किया। फलत: 27 अगस्त, 1828 ई. को रियो द ज़नेरो में ब्राज़ील एवं आर्जेंटाइना के मध्य एक संधि हुई और तदनुसार उरुग्वे को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया गया। लेकिन क्रांति सेना ने राष्ट्रीय विकास की ओर ध्यान न देकर और लाखों पशुओें को बिना उनकी वृद्धि का ध्यान किए उदरस्थ करके, आर्थिक धुरी को 1860 ई. तक काफी नष्ट कर दिया। राष्ट्रीय कर्ज भी बढ़ता गया। यद्यपि कोलोरैडो तथा ब्लैको राजनीतिक दलों का समुचित विकास हो रहा था तथापि आर्थिक एवं राजनीतिक अराजकता में वृद्धि होती गई। 1865 में कोलोरैडो राजनीतिक दल की सरकार बनी। किंतु विशेष आर्थिक सुधार संभव न हो सका। 1916 ई. से लेकर लगातार राजनीतिक दल का प्रभाव काफी बढ़ा और 1946-58 ई. के मध्य जितने भी चुनाव हुए, सबमें इसी दल को विजयश्री मिलती गई। नवंबर, 1958 में कोलोरैडी दल के 93 वर्षीय शासन का अंत हुआ और राष्ट्रवादियों को प्रचुर बहुमत प्राप्त हुआ। देखा जाए तो मार्च, 1959 से राजनीतिक दलीय प्रशासनिक परिवर्तनचक्र का ऐतिहासिक शुभारंभ हुआ।

वस्तुत: आर्जेंटाइना और ब्राज़ील जैसे विशाल और सशक्त पड़ोसी राष्ट्रों के मध्य छोटे राष्ट्र उरुग्वे की भूराजनीतिक स्थिति ने इसे संयुक्त सुरक्षा की ओर प्रेरित किया है और यहाँ की जनतंत्र की जड़ें भी अपेक्षाकृत अधिक गहरी हो गई हैं। जनमानस का झुकाव भी जनतांत्रिक है। अत: उरुग्वे ने लीग ऑव नेशन्स, राष्ट्रसंघ या अन्य विश्वस्तरीय अथवा अमरीकी महाद्वीपीय स्तरीय राजनीतिक, सुरक्षात्मक या आर्थिक संघटनों में सदैव संघीय या संयुक्त सुरक्षा की आवाज बुलंद की है। पुंता देल ईस्ट नामक समुद्रतटीय मनोरंजन केंद्र में 'प्रगति के लिए सहयोग' का गठन हुआ। वस्तुत: मांटवीडियो लेफ़्टा (लैटिन अमरीकी फ्ऱी ट्रेड ऐसोसियेशन) अर्थात्‌ लैटिन अमरीकी स्वतंत्र व्यापार संघ का, जो यूरोपीय साझा बाजार के ढाँचे पर गठित हुआ है, मुख्य केंद्र है।

उद्योग धंधे एवं यातायात-उरुग्वे में उद्योग धंधों का अधिक विकास नहीं हो पाया है। वस्तुत: औद्योगिक धुरी के विकास के लिए आवश्यक खनिज तथा ऊर्जा के संसाधनों का यहाँ नितांत अभाव है; केवल कुछ सोना, चाँदी, सीसा, ताँबा और कुछ लिग्नाइट कोयला मिलता है। पर्याप्त ऊबड़-खाबड़ भूमि के अभाव में जलविद्युत्‌ का अधिक विकास नहीं हो पाया है। अधिकांश विद्युत्‌ उत्पादन केंद्र आयातित कोयले तथा पेट्रोलियम पर निर्भर थे। इधर रियो निग्रो पर दो बड़े जलविद्युत्‌ केंद्र स्थापित किए गए हैं। अधिकांश उद्योग धंधे खेती और पशुपालन से प्राप्त कच्चे माल, भोज्य पदार्थों एवं अन्य उपभोक्ता पदार्थों के निर्माण से संबद्ध हैं। वस्त्रोद्योग, रबर के टायर तथा अन्य सामान, जूते एवं घरेलू उपभोग के पदार्थ तैयार करनेवाले धंधे इनमें प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त डिब्बों में मांस एवं सत्व बंद करने के कारखाने स्थापित हैं जहाँ से यूरोप, ब्राज़ील एवं अन्य लैटिन अमरीकी देशों को उक्त वस्तुएँ भेजी जाती हैं।

1970 ई. तक उरुग्वे में 4,071 कि.मी. लंबे रेलमार्ग और 8,000 कि.मी. से अधिक पक्के राजमार्ग थे। अटलांटिक महासागरतट पर स्थित मांटीवीडियो केवल राजधानी और बृहत्तम नगर ही नहीं, उरुग्वे का बृहत्तम आर्थिक, औद्योगिक, व्यापारिक एवं यातायात केंद्र है। इधर ट्रकों द्वारा राजमार्गीय यातायात में तीव्र प्रगति हुई है। फलत: अंतरराष्ट्रीय सहायता से राजमार्गों को बढ़ाने तथा अधिक समुपयुक्त बनाने के लिए प्रयत्न हो रहे हैं। ब्राज़ील से राजमार्गों द्वारा अधिक व्यापार और यातायात होता है, अत: ब्राज़ील की ओर जानेवाले मार्ग अधिक सुधरे हैं। कुल विदेशी व्यापारकार्य में उरुग्वे के अपने जहाजी बेड़े का महत्व बहुत कम है और इसे विदेशी कंपनियों पर आश्रित रहना पड़ता है। प्लूना नामक देशी वायु-यातायात-संगठन द्वारा देश तथा पड़ोसी देशों का संबंध है। मांटीवीडियों से 21 कि.मी. दूर कैर्रास्को में प्रमुख वायुयान अड्डा है।

देश में रेडियो, टेलीफोन (1,90,000 संबंध इकाइयाँ), दूरवीक्षण (टेलीविज़न) आदि संचार संसाधन हैं और 1964 ई. से अंतरराष्ट्रीय टेलेक्स सेवाएँ भी प्राप्त हो गई हैं। 1877 ई. में कई सुधार हुए जिनके फलस्वरूप शिक्षण तथा प्रशिक्षण के क्षेत्र में उरुग्वे का स्थान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऊँचा हुआ है। लगभग 90 प्रतिशत लोग साक्षर हैं। 1849 ई. में मांटीवाडियो में विश्वविद्यालय स्थापित किया गया था।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 139 |