भुवाली

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भुवाली नैनीताल में स्थित एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। ज्योलिकोट से जैसे ही गेठिया पहुँचते हैं तो चीड़ के घने वनों के दर्शन हो जाते हैं। गेठिया से टी. बी. सेनिटोरियम का अस्पताल है। मुख्य अस्पताल गेठिया से आगे पहाड़ी की ओर चोटी पर स्थित है। सन् 1912 में भुवाली के टी. बी. सेनिटोरियम कहलाता है। गेठिया सेनिटोरियम इसी अस्पताल की शाखा है। चीड़ के पेड़ों की हवा टी. बी. के रोगियों के लिए लाभदायक बताई जाती है। इसीलिए यह अस्पताल चीड़ के घने वन के मध्य में स्थित किया गया। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू का भी इसी अस्पताल में इलाज हुआ था।

कैसे पहुँचें

नैनीताल से भुवाली की दूरी केवल 11 किनोमीटर है। नैनीताल आये हुए सैलानी भुवाली की ओर अवश्य आते हैं। कुछ पर्यटक कैंची के मन्दिर तक जाते हैं तो कुछ 'गगार्ंचल' पहाड़ की चोटी तक पहुँचते हैं। कुछ पर्यटक 'लली क़ब्र' या लल्ली की छतरी को देखने जाते हैं। कुछ पदारोही रामगढ़ के फलों के बाग देखने पहुँचते हैं। कुछ जिज्ञासु लोग 'काफल' के मौसम में यहाँ 'काफल' नामक फल खाने पहुँचते हैं। भुवाली सेनिटोरियम के फाटक से जैसे ही आगे बढ़ना होता है, वैसे ही मार्ग ढलान की ओर अग्रसर होने लगता है। कुछ देर बाद एक सुन्दर नगरी के दर्शन होते हैं। यह भुवाली है। भुवाली चीड़ और वाँस के वृक्षों के मध्य और पहाड़ों की तलहटी में 1680 मीटर की ऊँचाई में बसा हुआ एक छोटा सा नगर है। भुवाली की जलवायु अत्यन्त स्वास्थ्यवर्द्धक है। शान्त वातावरण और खुली जगह होने के कारण 'भुवाली' कुमाऊँ की एक शानदार नगरी है। यहाँ पर फलों की एक मण्डी है। यह एक ऐसा केन्द्र बिन्दु है जहाँ से काठगोदाम हल्द्वानी और नैनीताल, अल्मोड़ा - रानीखेत, भीमताल - सातताल और रामगढ़ - मुक्तेश्वर आदि स्थानों को अलग-अलग मोटर मार्ग जाते हैं।

विशेषता

भुवाली में ऊँचे-ऊँचे पहाड़ हैं। सीढ़ीनिमा खेत है। सर्फीले आकार की सड़कें हैं। चारों ओर हरियाली ही हरियाली है। घने बांस - बुरांश के पेड़ हैं। चीड़ वृक्षों का यह तो घर ही है। और पर्वतीय अंचल में मिलने वाले फलों की मण्डी है। 'भुवाली' नगर भले ही छोटा हो परन्तु उसका महत्व बहुत अधिक हैं। भुवाली के नजदीक कई ऐसे ऐतिहासिक स्थल हैं, जिनका अपना महत्व है। यहाँ पर कुमाऊँ के प्रसिद्ध गोल्ड देवता का प्राचीन मन्दिर है, तो यहीं पर घोड़ाखाल नामक एक सैनिक स्कूल भी है। 'शेर का डाण्डा' और 'रेहड़ का डाण्डा' भी भुवानी से ही मिला हुआ है। पर्वतारोहियों को भुवाली आना ही पड़ता है। भीमताल, नौकुचियाताल, मुक्तेश्वर, रामगढ़, अल्मोड़ा और रानीखेत आदि स्थानों में जाने के लिए भी काठगोदाम से आने वाले पर्यटकों, सैलानियों एवं पहारोहियों के 'भुवाली' की भूमि के दर्शन करने ही पड़ते हैं। अतः 'भुवाली' का महत्व जहाँ भौगोलिक है वहाँ प्राकृतिक सुषमा भी है। इसीलिए इस शान्त और प्रकृति की सुन्दर नगरी को देखने के लिए सैकड़ों - हज़ारों प्रकृति - प्रेमी प्रतिवर्ष आते रहते हैं। 'भुवाली' 1680 मीटर पर स्थित एक ऐसा नगर है जहाँ मैदानी लोग आडू; सेब, पूलम (आलूबुखारा) और खुमानी के फलों को ख़रीदने के लिए दूर - दूर से आते हैं।

'भुवाली' नगर के बस अड्डे से एक मार्ग चढ़ाई पर नैनीताल, काठगोदाम और हल्द्वानी की ओर जाता है। दूसरा मार्ग ढ़लान पर घाटी की ओर कैंची होकर अल्मोड़ा, रानीखेत और कर्णप्रयाग की ओर बढ़ जाता है। तीसरा मार्ग भुवाली के बाज़ार के बीच में होकर दूसरी ओर के पहाड़ी पर चढ़ने लगता है। यह मार्ग भी आगे चलकर दो भागों में विभाजित हो जाता है। दायीं ओर का मार्ग घोड़ाखाल, भीमताल और नौकुचियाताल की ओर चला जाता है और बायीं ओर को मुड़ने वाला मार्ग रामगढ़ मुक्तेश्वर अंचल की ओर बढ़ जाता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भुवाली (हिन्दी) www.ignca.nic.in। अभिगमन तिथि: 20 नवम्बर, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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