मराठा शासन और सैन्य व्यवस्था

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हिन्दू तथा मुसलमान शासन एवं सैन्य व्यवस्था का मिश्रित रूप है। इसका सूत्रपात शिवाजी ने किया, इसमें समस्त राज्यशक्ति राजा के हाथ में रहती थी। वह अष्टप्रधानों की सहायता से शासन करता था, जिनकी नियुक्ति वह स्वयं करता था। अपनी इच्छानुसार वह जब चाहे उन्हें अपने पद से हटा सकता था। अष्टप्रधानों का नेता पेशवा कहलाता था। उसका पद प्रधानमंत्री के समान था। अन्य सात वित्त, लेखागार, पत्राचार, वैदेशिक मामले, सेना, धार्मिक कृत्य एवं दान तथा न्याय विभाग के प्रधान होते थे। धार्मिक तथा न्याय विभागों के प्रधानों को छोड़कर बाकी अष्टप्रधान सैन्य अधिकारी भी होते थे। जब वे सैन्य-सेवा में रहते थे, उनका प्रशासकीय कार्य उनके नायब करते थे।

अष्टप्रधानों के नायबों की नियुक्ति भी राजा करता था। मालगुजारी की वसूली का कार्य पटेलों के हाथों में था। भूमि की उपज का एक तिहाई भाग मालगुजारी के रूप में वसूल किया जाता था। भूमि का विस्तृत सर्वेक्षण किया जाता था और उर्वरता के अनुसार उसका चार श्रेणियों में वर्गीकरण किया जाता था। विदेशी अथवा मुग़ल नियंत्रण में जो भूमि होती थी, उस पर दो प्रकार के कर लिये जाते थे। एक को 'सरदेशमुखी' कहते थे। यह मालगुजारी एक-दसवें भाग के बराबर होता था। दूसरा 'चौथ' कहलाता था। यह मालगुजारी के एक-चौथाई भाग के बराबर होता था। चौथ देने वाले को लूटा नहीं जाता था। इसलिए महाराष्ट्र से बाहर के लोगों की दृष्टि में मराठा शासन व्यवस्था लूट-खसोट पर आधारित मानी जाती थी। मराठा साम्राज्य के विस्तार के साथ लूट-खसोट की यह प्रतृत्ति बढ़ती गयी और स्वराज्य की भावना के आधार पर सारे देश पर मराठा शासन स्थापित होने में बाधक सिद्ध हुई।

शिवाजी ने शासन व्यवस्था के साथ-साथ सेना की भी व्यवस्था की। सेना में मुख्य रूप से पैदल सैनिक तथा घुड़सवार होते थे। यह सेना छापामार युद्ध तथा पर्वतीय क्षेत्रों में लड़ने के लिए बहुत उपयुक्त थी। राजा स्वयं सैनिक का चुनाव करता था। वेतन या तो नक़द दिया जाता था या ज़िला प्रशासन को सुपुर्द कर दिया जाता था। शिवाजी ने वेतन के लिए जागीरें देने की प्रथा नहीं चलाई। सेना में कड़ा अनुशासन रखा जाता था और सैनिकों को शिविर में स्त्रियों को साथ रखने की अनुमति नहीं थी। सैनिक लूट का सारा माल राज्य को सौंप देते थे। सेना को भारी शस्त्रास्त्र अथवा शिविरों के लिए भारी असबाब लेकर नहीं चलना पड़ता था। शिवाजी ने घुड़सवारों को दो श्रेणियों में बाँट रखा था। 'बरगीरियों' को घोड़े तथा शस्त्रास्त्र राज्य की ओर से मिलते थे। 'सिलहदारों' को घोड़ों और शस्त्रास्त्रों की स्वयं व्यवस्था करनी पड़ती थी। सेना का नियंत्रण करने के लिए क्रमिक रीति से नायकों, जुमलादारों, हज़ारियों और पंजहज़ारियों की नियुक्ति की जाती थी। इन सबके ऊपर और एक सरनौबत घुड़सवार सेना के ऊपर होता था। समस्त सेना के ऊपर सेनापति रहता था। महाराष्ट्र के पर्वतीय क्षेत्र में क़िलों का बहुत महत्त्व था और शिवाजी ने अपने राज्य के सभी महत्त्वपूर्ण दर्रों पर क़िले स्थापित कर दिये थे और उनमें सैनिकों तथा रसद की उत्तम व्यवस्था की थी। मराठों का सारा मुल्की तथा सैनिक प्रशासन राजा के प्रत्यक्ष नियंत्रण में रहता था। फलस्वरूप राजा के ऊपर बहुत अधिक कर्तव्य भार पड़ जाता था। बाद के मराठा शासक अपने उत्तरदायित्वों को सुचारू रीति से वहन नहीं कर पाये। फलस्वरूप मराठा शासन एवं सैन्य व्यवस्था में शिथिलता आ गयी और जब उसको अंग्रेज़ों की आधुनिक सैन्य-व्यवस्था का मुक़ाबला करना पड़ा, वह विफल सिद्ध हुई।


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