महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 70 श्लोक 1-13
सप्ततितम (70) अध्याय: द्रोण पर्व ( अभिमन्युपर्व )
परशुराम जी का चरित्र
नारद जी कहते हैं – सृंजय ! महातपस्वी शूरवीर, वीरजनवन्दित महायशस्वी जमदग्निनन्दन परशुराम जी भी अतृप्त अवस्था में ही मौत के मुख में चले जायँगे । जिन्होंने इस पृथ्वी को सुखमय बनाते हुए आदि युग के धर्म का जहां निरन्तर प्रचार किया था तथा परम उत्तम सम्पत्ति को पाकर भी जिनके मन में किसी प्रकार का विचार नहीं आया । जब क्षत्रियों ने गाय के बछडे को पकड लिया और पिता जमदग्नि को मार डाला, तब जिन्होंने मौन रहकर ही समरभूमि में दूसरों से कभी पराजित न होने वाले कृतवीर्यकुमार अर्जुन का वध किया था । उस समय मरने-मारने का निश्चय करके एकत्र हुए चौसठ करोड क्षत्रियों को उन्होंने एकमात्र धनुष के द्वारा जीत लिया । उसी युद्ध के सिलसिले में परशुराम जी ने चौदह हजार दूसरे ब्रह्मद्रोहियों का दमन किया और दन्तक्रूर नामक राजा को भी मार डाला । उन्होंने एक सहस्त्र क्षत्रियों को मूसल से मार गिराया, एक सहस्त्र राजपूतों को तलवार से काट डाला, फिर एक सहस्त्र क्षत्रियों को वृक्षों की शाखाओं में फाँसी पर लटकाकर मार डाला और पुन: एक सहस्त्र को पानी में डूबो दिया । एक सहस्त्र राजपूतों के दांत तोडकर नाक और कान काट डाले तथा सात हजार राजाओं को कडुवा धूप पिला दिया । शेष क्षत्रियों को बांधकर उनका वध कर डाला । उनमें से कितनों के ही मस्तक विदीर्ण कर डाले । गुणवती से उत्तर और खाण्डव वन से दक्षिण पर्वत के निकटवर्ती प्रदेश में लाखों हैहयवंशी क्षत्रिय वीर पिता के लिये कुपित हुए बुद्धिमान परशुराम जी के द्वारा समरभूमि में मारे गये । वे अपने रथ, घोडे और हाथियों सहित मारे जाकर वहां धराशायी हो गये । परशुराम जी ने उस समय अपने फरसे से दस हजार क्षत्रियों को काट डाला । आश्रमवासियों ने आर्तभाव से जो बातें कही थीं, वहां के श्रेष्ठ ब्राह्मणों ने ‘भृगुवंशी परशुराम ! दौडो, बचाओ’ इस प्रकार कहकर जो करुण क्रन्दन किया था, उनकी वह कातर पुकार परशुराम जी से नहीं सही गयी । तदनन्तर प्रतापी परशुराम ने काश्मीर, दरद, कुन्ति, क्षुद्रक, मालव, अंग, वंग, कलिंग, विदेह, ताम्रलिप्त, रक्षोवाह, वीतिहोत्र, त्रिगर्त, मार्तिकावत, शिबि तथा अन्य सहस्त्रों देशों के क्षत्रियों का अपने तीखे बाणों द्वारा संहार किया ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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