महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 56 श्लोक 1-12

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षट्पंचाशत्‍तम (56) अध्याय: द्रोण पर्व ( अभिमन्‍युपर्व )

महाभारत: द्रोण पर्व: षट्पंचाशत्‍तम अध्याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद

राजा सुहोत्र की दानशीलता नारदजी कहते हैं – सृंजय ! राजा सुहोत्र की भी मृत्‍यु सुनी गयी है । वे अपने समय के अद्वितीय वीर थे । देवता भी उनकी ओर आंख उठाकर नहीं देख सकते थे । उन्‍होंने धर्म के अनुसार राज्‍य पाकर ऋत्विजों, ब्राह्मणों तथा पुरोहितों से अपने कल्‍याण का उपाय पूछा और पूछकर वे उनकी सम्‍मति के अनुसार चलते हरे । प्रजापालन, धर्म, दान, या और शत्रुओं पर विजय पाना – इन सबको राजा सुहोत्र ने अपने लिये श्रेयस्‍कर जानकर धर्म के द्वारा ही धन पाने की अभिलाषा की । उन्‍होंने इस पृथ्‍वी को म्‍लेच्‍छों तथा तस्‍करों से रहित करके इसका उपभोग किया और धर्माचरण द्वारा देवताओं की आराधना तथा बाणों द्वारा शत्रुओं पर विजय करते हुए अपने गुणों से समस्‍त प्राणियों का मनोरंजन किया था, उनके लिये मेघ ने अनेक वर्षों तक सुवर्ण की वर्षा की थी । राजा सुहोत्र के राज्‍य में पहले स्‍वच्‍छन्‍द गति से बहने वाली स्‍वर्णरस से भरी हुई सरिताऍं सुवर्णमय, ग्राहों, केकडों, मत्‍स्‍यों तथा नाना प्रकार के बहुसंख्‍यक जल-जन्‍तुओं को अपने भीतर बहाया करती थी ।

मेघ अभीष्‍ट वस्‍तुओं की तथा नाना प्रकार के रजत और असंख्‍य सुवर्ण की वर्षा करते थे । उनके राज्‍य में एक-एक कोस की लंबी-चौडी बावलियां थीं । उनमें सहस्‍त्रों नाटे-कुबडे ग्राह, मगर और कछुए रहते थे, जिनके शरीर सुवर्ण के बने हुए थे । उन्‍हें देखकर रजा को उन दिनों बडा विस्‍मय होता था । राजर्षि सुहोत्र ने कुरुजांगल देश में यज्ञ किया और उस विशाल यज्ञ में अपनी अनन्‍त सुवर्ण राशि ब्राह्मणों को बांट दी । उन्‍होंने एक हजार अश्‍वमेघ, सौ राजसूय तथा बहुत सी श्रेष्‍ठ दक्षिणा वाले अनेक पुण्‍यमय क्षत्रिय-यज्ञों का अनुष्‍ठान किया था । राजा ने नित्‍य, नैमित्तिक तथा कास्‍य यज्ञों के निरन्‍तर अनुष्‍ठान से मनोवांछित गति प्राप्‍त कर ली । श्‍वैत्‍य सृंजय ! वे भी तुमसे धर्म, ज्ञान, वैराग्‍य और ऐश्‍वर्य – इन चारों कल्‍याणकारी विषयों में बहुत बढे-चढे थे । तुम्‍हारे पुत्र से भी वे अधिक पुण्‍यात्‍मा थे । जब वे भी मर गये, तब तुम्‍हें अपने पुत्र के लिये अनुताप नहीं चाहिये, क्‍योंकि तुम्‍हारे पुत्र ने न तो कोई यज्ञ किया था और न उसमें दाक्षिण्‍य (उदारता का गुण) ही था । नारदजी ने राजा सृंजय से यही बात कही ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोण पर्व के अन्‍तर्गत अभिमन्‍यु वध पर्व में षोडशराजकीयोपाख्‍यान विषयक छप्‍पन वां अध्‍याय पूरा हुआ ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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