"गीता 18:50": अवतरणों में अंतर
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उपर्युक्त श्लोक में यह बात कही गयी कि | उपर्युक्त [[श्लोक]] में यह बात कही गयी कि सन्न्यास के द्वारा मनुष्य परम नैष्कर्म्य सिद्धि को प्राप्त होता है; इस पर यह जिज्ञासा होती है कि उस सन्न्यास (सांख्ययोग) का क्या स्वरूप है और उसके द्वारा मनुष्य किस क्रम से सिद्धि को प्राप्त होकर ब्रह्म को प्राप्त होता है ? अत: इन सब बातों को बतलाने की प्रस्तावना करते हुए भगवान् [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> को सुनने के लिये सावधान करते हैं- | ||
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जो कि ज्ञानयोग की परानिष्ठा है, उस नैष्कर्म्य सिद्धि को जिस प्रकार से प्राप्त होकर मनुष्य ब्रह्म को प्राप्त होता है, उस प्रकार को हे < | जो कि ज्ञानयोग की परानिष्ठा है, उस नैष्कर्म्य सिद्धि को जिस प्रकार से प्राप्त होकर मनुष्य ब्रह्म को प्राप्त होता है, उस प्रकार को हे [[कुन्ती]]<ref>ये [[वसुदेव|वसुदेवजी]] की बहन और भगवान [[श्रीकृष्ण]] की बुआ थीं। [[महाभारत]] में महाराज [[पाण्डु]] की ये पत्नी थीं।</ref> पुत्र ! तू संक्षेप में ही मुझसे समझ ।।50।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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13:53, 2 मई 2015 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-50 / Gita Chapter-18 Verse-50
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख |
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