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पौराणिक किंवदंती के अनुसार [[नासिक]] का नाम [[सत युग|सतयुग]] में [[पद्यनगर]], [[त्रेता युग|त्रेता]] में त्रिकंटक, [[द्वापर युग|द्वापर]] में जनस्थान और [[कलि युग|कलियुग]] में नासिक है।
'''जनस्थान''' पौराणिक मान्यताओं के अनुसार [[नासिक]] ([[महाराष्ट्र]]) का ही प्राचीन नाम है। इसका नाम [[सत युग|सतयुग]] में '[[पद्यनगर]]', [[त्रेता युग|त्रेता]] में 'त्रिकंटक', [[द्वापर युग|द्वापर]] में 'जनस्थान' और [[कलि युग|कलियुग]] में 'नासिक' है। यह [[दंडकारण्य]] का ही एक भाग था।


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*[[पुराण|पुराणों]] के अनुसार नासिक का ही एक नाम जनस्थान है-
<blockquote>'कृते तु पद्यंनगरंत्रेतायां तु त्रिकंटकम् द्वापरे च जनस्थानं कलौ नासिकमुख्यते'।</blockquote>
*[[वाल्मीकि रामायण]] के अनुसार जनस्थान [[खर दूषण]] आदि राक्षसों का निवास जनस्थान में था-
<blockquote>'नानाप्रहरणा: क्षिप्रमितोगच्छत सत्वरा:, जनस्थानं हतस्थानं भूतपूर्वखरालयम्। तत्रास्यतां जनस्थानेशून्ये निहतराक्षसे, पौरुषं बलमाश्रित्य त्रासमुत्सृज्य दूरत:'।</blockquote>
*[[रामचन्द्र|रामचन्द्रजी]] ने, जैसा कि इस उद्धरण से सूचित होता है, इस प्रदेश के सभी राक्षसों का अंत कर दिया था।
*महाकवि [[कालिदास]] ने कई स्थलों पर जनस्थान का उल्लेख किया है-
<blockquote>'प्राप्य चाशुजनस्थानं खरादिभ्यस्तधाविधम्'<ref>[[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]] 12, 42.</ref></blockquote>
<blockquote>'पुराजनस्थानविमर्दशंकी संघाय लंकाधि पति: प्रतस्ये'<ref>रघुवंश 6, 62.</ref></blockquote>
<blockquote>'अमीजनस्थानमपोढविध्नं मत्वा समारब्ध नवोटजानि'<ref>रघुवंश 13, 22.</ref></blockquote>
 
उपर्युक्त अंतिम उद्धरण से विदित होता है कि [[मुनि|मुनियों]] ने जनस्थान से राक्षसों का भय दूर होने पर अपने परित्यक्त [[आश्रम|आश्रमों]] में पुन: नवीन कुटियाँ बना ली थीं।
*[[भवभूति]] ने भी जनस्थान और [[पंचवटी]] का [[नासिक]] के निकट उल्लेख किया है-
<blockquote>'पश्चामि च जरस्थानं भूतपर्वखरालयम्, प्रत्यक्षानिव वृत्तान्तान्पूर्वाननुभवामिच'<ref>[[उत्तररामचरित]] 2, 17.</ref></blockquote>
 
उपर्युक्त [[श्लोक]] में वाल्मीकि रामायण के उपर्युक्त उद्धरण की भाँति जनस्थान में खर राक्षस का घर कहा गया है।
*यह संभव है कि उपर्युक्त उद्धरणों में वर्णित जनस्थान की ठीक-ठीक स्थिति [[गोदावरी नदी]] के [[पर्वत]] से अवरोहण करने के स्थान ([[नासिक]] के निकट) पर पालवेराम के सन्निकट रही होगी।<ref>इंडियन एंटिक्वेरी जिल्द 2, पृ. 283</ref> किंतु [[महाभारत]], [[अनुशासनपर्व महाभारत|अनुशासनपर्व]]<ref>[[अनुशासनपर्व महाभारत|अनुशासनपर्व]] 25, 29</ref> में जनस्थान को [[चित्रकूट]] और [[मंदाकिनी नदी|मंदाकिनी]] के निकट बताया गया है-
<blockquote>'चित्रकूटजनस्थाने तथा मंदाकिनी जले, विगाह्म वै निराहारो राजलक्ष्म्या निषेव्यते'।</blockquote>
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==संबंधित लेख==
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08:55, 9 सितम्बर 2012 का अवतरण

जनस्थान पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नासिक (महाराष्ट्र) का ही प्राचीन नाम है। इसका नाम सतयुग में 'पद्यनगर', त्रेता में 'त्रिकंटक', द्वापर में 'जनस्थान' और कलियुग में 'नासिक' है। यह दंडकारण्य का ही एक भाग था।

  • पुराणों के अनुसार नासिक का ही एक नाम जनस्थान है-

'कृते तु पद्यंनगरंत्रेतायां तु त्रिकंटकम् द्वापरे च जनस्थानं कलौ नासिकमुख्यते'।

'नानाप्रहरणा: क्षिप्रमितोगच्छत सत्वरा:, जनस्थानं हतस्थानं भूतपूर्वखरालयम्। तत्रास्यतां जनस्थानेशून्ये निहतराक्षसे, पौरुषं बलमाश्रित्य त्रासमुत्सृज्य दूरत:'।

  • रामचन्द्रजी ने, जैसा कि इस उद्धरण से सूचित होता है, इस प्रदेश के सभी राक्षसों का अंत कर दिया था।
  • महाकवि कालिदास ने कई स्थलों पर जनस्थान का उल्लेख किया है-

'प्राप्य चाशुजनस्थानं खरादिभ्यस्तधाविधम्'[1]

'पुराजनस्थानविमर्दशंकी संघाय लंकाधि पति: प्रतस्ये'[2]

'अमीजनस्थानमपोढविध्नं मत्वा समारब्ध नवोटजानि'[3]

उपर्युक्त अंतिम उद्धरण से विदित होता है कि मुनियों ने जनस्थान से राक्षसों का भय दूर होने पर अपने परित्यक्त आश्रमों में पुन: नवीन कुटियाँ बना ली थीं।

'पश्चामि च जरस्थानं भूतपर्वखरालयम्, प्रत्यक्षानिव वृत्तान्तान्पूर्वाननुभवामिच'[4]

उपर्युक्त श्लोक में वाल्मीकि रामायण के उपर्युक्त उद्धरण की भाँति जनस्थान में खर राक्षस का घर कहा गया है।

'चित्रकूटजनस्थाने तथा मंदाकिनी जले, विगाह्म वै निराहारो राजलक्ष्म्या निषेव्यते'।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रघुवंश 12, 42.
  2. रघुवंश 6, 62.
  3. रघुवंश 13, 22.
  4. उत्तररामचरित 2, 17.
  5. इंडियन एंटिक्वेरी जिल्द 2, पृ. 283
  6. अनुशासनपर्व 25, 29

संबंधित लेख