"गीता 18:65": अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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पूर्व [[श्लोक]] में जिस सर्वगुह्रातम बात को कहने की भगवान् ने प्रतिज्ञा की, उसे अब कहते हैं- | |||
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हे < | हे [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ! तू मुझमें मन वाला हो, मेरा [[भक्त]] बन, मेरा पूजन करने वाला हो और मुझको प्रणाम कर। ऐसा करने से तू मुझे ही प्राप्त होगा, यह मैं तुझसे सत्य प्रतिज्ञा करता हूँ; क्योंकि तू मेरा अत्यन्त प्रिय है ।।65।। | ||
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==संबंधित लेख== | |||
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06:54, 7 जनवरी 2013 का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-65 / Gita Chapter-18 Verse-65
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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