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इतना तो निश्चित रूप से ज्ञात है कि ईसाई मिशनरियों ने धर्मप्रचारक का अपना काम भारत में सोलहवीं शताब्दी के दौरान संत फ़्राँसिस जैवियर के ज़माने से शुरू किया था। संत जैवियर का नाम आज भी भारत के अनेक स्कूल कॉलेज से सम्बद्ध है। [[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]] के भारत आने और [[गोवा]] में जम जाने के बाद [[ईसाई]] पादरियों ने भारतीयों का बलात् धर्म-परिवर्तन करना शुरू कर दिया। आरम्भिक ईसाई मिशन रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा प्रवर्तित थे और वे छुटपुट रूप से भारत आये। लेकिन उन्नीसवीं शताब्दी एग्लिंकन प्रोटेस्टेट चर्च के द्वारा ईसाई धर्म प्रचार का कार्य सुव्यवस्थित ढंग से आरम्भ किया। इस काल में [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] ने ईसाई मिशनरियों को अपने राज्य के  भीतर रहने की इजाज़त नहीं दी, क्योंकि उसे भय था कि कहीं भारतीयों में उनके विरुद्ध उत्तेजना न उत्पन्न हो जाए। फलस्वरूप विलियम कैरी सरीखे प्रथम ब्रिटिश प्रोटेस्टेट मिशनरियों को कम्पनी को क्षेत्राधिकार के बाहर श्रीरामपुर में रहना पड़ा। अथवा कुछ मिशनरियों को कम्पनी से सम्बद्ध पादरियों के रूप में सेवा करनी पड़ी। जैसा कि डेविड ब्राउन और हेनरी मार्टिन ने किया।
 
इतना तो निश्चित रूप से ज्ञात है कि ईसाई मिशनरियों ने धर्मप्रचारक का अपना काम भारत में सोलहवीं शताब्दी के दौरान संत फ़्राँसिस जैवियर के ज़माने से शुरू किया था। संत जैवियर का नाम आज भी भारत के अनेक स्कूल कॉलेज से सम्बद्ध है। [[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]] के भारत आने और [[गोवा]] में जम जाने के बाद [[ईसाई]] पादरियों ने भारतीयों का बलात् धर्म-परिवर्तन करना शुरू कर दिया। आरम्भिक ईसाई मिशन रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा प्रवर्तित थे और वे छुटपुट रूप से भारत आये। लेकिन उन्नीसवीं शताब्दी एग्लिंकन प्रोटेस्टेट चर्च के द्वारा ईसाई धर्म प्रचार का कार्य सुव्यवस्थित ढंग से आरम्भ किया। इस काल में [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] ने ईसाई मिशनरियों को अपने राज्य के  भीतर रहने की इजाज़त नहीं दी, क्योंकि उसे भय था कि कहीं भारतीयों में उनके विरुद्ध उत्तेजना न उत्पन्न हो जाए। फलस्वरूप विलियम कैरी सरीखे प्रथम ब्रिटिश प्रोटेस्टेट मिशनरियों को कम्पनी को क्षेत्राधिकार के बाहर श्रीरामपुर में रहना पड़ा। अथवा कुछ मिशनरियों को कम्पनी से सम्बद्ध पादरियों के रूप में सेवा करनी पड़ी। जैसा कि डेविड ब्राउन और हेनरी मार्टिन ने किया।
 
==कॉलेजों की स्थापना==
 
==कॉलेजों की स्थापना==
सन् 1813 ई. में ईसाई पादरियों पर से रोक हटा ली गई और कुछ ही वर्षों के अन्दर [[इंग्लैण्ड]], [[जर्मनी]] और [[अमेरिका]] से आने वाले विभिन्न ईसाई मिशन भारत में स्थापित हो गए और उन्होंने भारतीयों में ईसाई धर्म का प्रचार शुरू कर दिया। ये ईसाई मिशन अपने को बहुत अर्से तक विशुद्ध धर्मप्रचार तक ही सीमित न रख सके। उन्होंने शैक्षणिक और लोकोपकारी कार्यों में भी दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी और भारत के बड़े-बड़े नगरों में कॉलेजों की स्थापना की और उनका संचालन किया। इस मामले में एक स्काटिश प्रेसबिटेरियन मिशनरी अलेक्जेंडर डफ़ अग्रणी था। उसने 1830 ई. में [[कलकत्ता]] में जनरल असेम्बलीज इंस्ट्रीट्यूशन की स्थापना की और उसके बाद कलकत्ता से लेकर [[बंगाल]] के बाहर तक कई और मिशनरी स्कूल और कॉलेज खोले। [[अंग्रेज़ी भाषा]] सीखने के उद्देश्य से भारतीय युवक इन कॉलेजों की ओर भारी संख्या में आकर्षित हुए। ऐसे युवक बाद में पश्चिमी ज्ञान और मान्यताओं को कट्टर [[हिन्दू]] और [[मुसलमान|मुस्लिम]] समाज तक पहुँचाने का महत्वपूर्ण माध्यम बने।
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सन् 1813 ई. में ईसाई पादरियों पर से रोक हटा ली गई और कुछ ही वर्षों के अन्दर [[इंग्लैण्ड]], [[जर्मनी]] और [[अमेरिका]] से आने वाले विभिन्न ईसाई मिशन भारत में स्थापित हो गए और उन्होंने भारतीयों में ईसाई धर्म का प्रचार शुरू कर दिया। ये ईसाई मिशन अपने को बहुत अर्से तक विशुद्ध धर्मप्रचार तक ही सीमित न रख सके। उन्होंने शैक्षणिक और लोकोपकारी कार्यों में भी दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी और भारत के बड़े-बड़े नगरों में कॉलेजों की स्थापना की और उनका संचालन किया। इस मामले में एक स्काटिश प्रेसबिटेरियन मिशनरी अलेक्जेंडर डफ़ अग्रणी था। उसने 1830 ई. में [[कलकत्ता]] में जनरल असेम्बलीज इंस्ट्रीट्यूशन की स्थापना की और उसके बाद कलकत्ता से लेकर [[बंगाल]] के बाहर तक कई और मिशनरी स्कूल और कॉलेज खोले। [[अंग्रेज़ी भाषा]] सीखने के उद्देश्य से भारतीय युवक इन कॉलेजों की ओर भारी संख्या में आकर्षित हुए। ऐसे युवक बाद में पश्चिमी ज्ञान और मान्यताओं को कट्टर [[हिन्दू]] और [[मुसलमान|मुस्लिम]] समाज तक पहुँचाने का महत्त्वपूर्ण माध्यम बने।
 
==समाज सुधार योगदान==
 
==समाज सुधार योगदान==
ईसाई मिशन और मिशनरियों ने बौद्धिक स्तर पर तो भारतीयों के मस्तिष्क को प्रभावित किया ही, साथ ही अपने लोकोपकारी कार्यों (विशेष रूप से चिकित्सा सम्बन्धी) से भी यूरोपीय व ईसाई सिद्धान्तों और आदर्शों का प्रचार-प्रसार किया। इस प्रकार ईसाई मिशनरियों ने आधुनिक भारत के विकास पर गहरा प्रभाव डाला। मिशनरियों ने प्राय: बिना पर्याप्त जानकारी के भारतीय [[धर्म]] की अनुचित आलोचना की, जिससे कुछ कटुता उत्पन्न हो गई, लेकिन उन्होंने भारत के सामाजिक उत्थान में भी निसंदेह रूप से महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने भारतीय नारी की दयनीय, असम्मानजनक स्थिति, [[सती प्रथा]], बाल हत्या, बाल-विवाह, बहुविवाह और जातिवाद जैसी कुरीतियों की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। इन सामाजिक व्याधियों को समाप्त करने में ईसाई मिशनरियों का बहुत बड़ा योगदान है।
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ईसाई मिशन और मिशनरियों ने बौद्धिक स्तर पर तो भारतीयों के मस्तिष्क को प्रभावित किया ही, साथ ही अपने लोकोपकारी कार्यों (विशेष रूप से चिकित्सा सम्बन्धी) से भी यूरोपीय व ईसाई सिद्धान्तों और आदर्शों का प्रचार-प्रसार किया। इस प्रकार ईसाई मिशनरियों ने आधुनिक भारत के विकास पर गहरा प्रभाव डाला। मिशनरियों ने प्राय: बिना पर्याप्त जानकारी के भारतीय [[धर्म]] की अनुचित आलोचना की, जिससे कुछ कटुता उत्पन्न हो गई, लेकिन उन्होंने भारत के सामाजिक उत्थान में भी निसंदेह रूप से महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने भारतीय नारी की दयनीय, असम्मानजनक स्थिति, [[सती प्रथा]], बाल हत्या, बाल-विवाह, बहुविवाह और जातिवाद जैसी कुरीतियों की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। इन सामाजिक व्याधियों को समाप्त करने में ईसाई मिशनरियों का बहुत बड़ा योगदान है।
  
 
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13:40, 21 मार्च 2014 के समय का अवतरण

ईसाई मिशनरी, जिनका आधुनिक भारत पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है। भारत के सुदूर दक्षिणी भागों में बहुत पहले से ही सीरियाई ईसाइयों की भारी संख्या में उपस्थिति इस बात की द्योतक है कि इस देश में सबसे पहले आने वाले ईसाई मिशनरी यूरोप के नहीं, सीरिया के थे। जो भी हो, राजा गोंडोफ़ारस (लगभग 28 से 48 ई.) से संत टामस का सम्बन्ध यह संकेत करता है कि ईसाई धर्म प्रचारकों का एक मिशन सम्भवत: प्रथम ईसवी के दौरान भारत आया था।

ईसाई धर्म का प्रचार

इतना तो निश्चित रूप से ज्ञात है कि ईसाई मिशनरियों ने धर्मप्रचारक का अपना काम भारत में सोलहवीं शताब्दी के दौरान संत फ़्राँसिस जैवियर के ज़माने से शुरू किया था। संत जैवियर का नाम आज भी भारत के अनेक स्कूल कॉलेज से सम्बद्ध है। पुर्तग़ालियों के भारत आने और गोवा में जम जाने के बाद ईसाई पादरियों ने भारतीयों का बलात् धर्म-परिवर्तन करना शुरू कर दिया। आरम्भिक ईसाई मिशन रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा प्रवर्तित थे और वे छुटपुट रूप से भारत आये। लेकिन उन्नीसवीं शताब्दी एग्लिंकन प्रोटेस्टेट चर्च के द्वारा ईसाई धर्म प्रचार का कार्य सुव्यवस्थित ढंग से आरम्भ किया। इस काल में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने ईसाई मिशनरियों को अपने राज्य के भीतर रहने की इजाज़त नहीं दी, क्योंकि उसे भय था कि कहीं भारतीयों में उनके विरुद्ध उत्तेजना न उत्पन्न हो जाए। फलस्वरूप विलियम कैरी सरीखे प्रथम ब्रिटिश प्रोटेस्टेट मिशनरियों को कम्पनी को क्षेत्राधिकार के बाहर श्रीरामपुर में रहना पड़ा। अथवा कुछ मिशनरियों को कम्पनी से सम्बद्ध पादरियों के रूप में सेवा करनी पड़ी। जैसा कि डेविड ब्राउन और हेनरी मार्टिन ने किया।

कॉलेजों की स्थापना

सन् 1813 ई. में ईसाई पादरियों पर से रोक हटा ली गई और कुछ ही वर्षों के अन्दर इंग्लैण्ड, जर्मनी और अमेरिका से आने वाले विभिन्न ईसाई मिशन भारत में स्थापित हो गए और उन्होंने भारतीयों में ईसाई धर्म का प्रचार शुरू कर दिया। ये ईसाई मिशन अपने को बहुत अर्से तक विशुद्ध धर्मप्रचार तक ही सीमित न रख सके। उन्होंने शैक्षणिक और लोकोपकारी कार्यों में भी दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी और भारत के बड़े-बड़े नगरों में कॉलेजों की स्थापना की और उनका संचालन किया। इस मामले में एक स्काटिश प्रेसबिटेरियन मिशनरी अलेक्जेंडर डफ़ अग्रणी था। उसने 1830 ई. में कलकत्ता में जनरल असेम्बलीज इंस्ट्रीट्यूशन की स्थापना की और उसके बाद कलकत्ता से लेकर बंगाल के बाहर तक कई और मिशनरी स्कूल और कॉलेज खोले। अंग्रेज़ी भाषा सीखने के उद्देश्य से भारतीय युवक इन कॉलेजों की ओर भारी संख्या में आकर्षित हुए। ऐसे युवक बाद में पश्चिमी ज्ञान और मान्यताओं को कट्टर हिन्दू और मुस्लिम समाज तक पहुँचाने का महत्त्वपूर्ण माध्यम बने।

समाज सुधार योगदान

ईसाई मिशन और मिशनरियों ने बौद्धिक स्तर पर तो भारतीयों के मस्तिष्क को प्रभावित किया ही, साथ ही अपने लोकोपकारी कार्यों (विशेष रूप से चिकित्सा सम्बन्धी) से भी यूरोपीय व ईसाई सिद्धान्तों और आदर्शों का प्रचार-प्रसार किया। इस प्रकार ईसाई मिशनरियों ने आधुनिक भारत के विकास पर गहरा प्रभाव डाला। मिशनरियों ने प्राय: बिना पर्याप्त जानकारी के भारतीय धर्म की अनुचित आलोचना की, जिससे कुछ कटुता उत्पन्न हो गई, लेकिन उन्होंने भारत के सामाजिक उत्थान में भी निसंदेह रूप से महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने भारतीय नारी की दयनीय, असम्मानजनक स्थिति, सती प्रथा, बाल हत्या, बाल-विवाह, बहुविवाह और जातिवाद जैसी कुरीतियों की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। इन सामाजिक व्याधियों को समाप्त करने में ईसाई मिशनरियों का बहुत बड़ा योगदान है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 57।

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