चम्पावत

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चम्पावत
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विवरण प्रकृति की गोद में बसा उत्तराखण्ड का यह छोटा-सा नगर स्वयं में बड़ा इतिहास समेटे है।
राज्य उत्तराखण्ड
ज़िला चम्पावत ज़िला
मार्ग स्थिति यह शहर सड़कमार्ग द्वारा टनकपुर लगभग 75 कि.मी. दूरी पर स्थित है।
प्रसिद्धि देवीधुरा मेला, बग्वाल, एवटमाउन्ट, ‎पूर्णागिरि मेला
कैसे पहुँचें किसी भी शहर से बस और टैक्सी द्वारा पहुँचा जा सकता है।
हवाई अड्डा पन्तनगर, नैनी सैनी हवाई अड्डा, पिथौरागढ़
रेलवे स्टेशन टनकपुर रेलवे स्टेशन
क्या देखें उत्तराखण्ड पर्यटन
क्या ख़रीदें गहत स्थानीय दाल,
एस.टी.डी. कोड 0176
सावधानी बरसात में भूस्खलन
Map-icon.gif गूगल मानचित्र, हवाई अड्डा
अन्य जानकारी चम्पावत में आप बग्वाल का भी आनन्द ले सकते हैं।

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चम्पावत चम्पावत पर्यटन चम्पावत ज़िला
1815 में कुमाऊँ की राजधानी चम्पावत

चम्पावत टनकपुर से 75 किमी की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग कि किनारे उत्तराखण्ड राज्य के चम्पावत ज़िले का प्रशासनिक मुख्यालय है। यह स्थल ऐतिहासिक होने के साथ साथ अत्यंत मनोहारी एवं नैसर्गिक छटासे परिपूर्ण है स्रथल के नजदी मानेश्वर की चोटी से भव्य हिम श्रंखलाओं का मन भावन दृष्य पर्यटकों कों अपनीओर आकर्षित कर लेता है पहाड़ों और मैदानों के बीच से होकर बहती नदियाँ अद्भुत छटा बिखेरती हैं। चंपावत में पर्यटकों को वह सब कुछ मिलता है जो वह एक पर्वतीय स्थान से चाहते हैं। यह नगर समुद्र तल से लगभग 1.6 किमी की ऊँचाई पर स्थित है।

स्थापना

2010 में चम्पावत ज़िले का प्रशासनिक मुख्यालय

उत्तराखण्ड की राज्य में प्रशासनिक सुविधा के उद्देश्य से दो मुख्य संभाग (मंडल) बनाऐ गये हैं गढ़वाल तथा कुमाऊँ। कुमाऊँ संभाग (मंडल) में नैनीताल, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, बागेश्वर, चम्पावत तथा ऊधमसिंह नगर जनपद सम्मिलित हैं जबकि गढ़वाल संभाग में पौडी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी, देहरादून, चमोली, रुद्रप्रयाग तथा हरिद्वार जनपद शामिल है।

इतिहास

कत्यूरी वंश के राजाओं द्वारा स्थापित तेरहवीं शताब्दी का मंदिर

चम्पावत कई वर्षों तक कुमाऊँ के शासकों की राजधानी रहा है। चम्पावत नगर में कत्यूरी वंश के राजाओं द्वारा स्थापित तेरहवीं शताब्दी का बालेश्वर मंदिर तत्काली शिल्प कला का एक उत्कृष्ट नमूना है।

चम्पावत का महत्त्व

  • सिक्खों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह यहाँ आये थे
  • यह स्थल पूर्व मे ऐंग्लो इन्डियन कालोनी के रूप में विद्यमान रहा है।
  • जनपद चम्पावत के टनकपुर उप संभाग के पर्वतीय अंचल में स्थित अन्नपूर्णा चोटी के शिखर में लगभग 3000 फिट की उंचाई पर पूर्णागिरि शक्ति पीठ स्थापित है।
  • जनश्रुति है कि यहां आदिगुरु गोरखनाथ की धूनी सतयुग से लगातार प्रज्वलित है।
  • किंवदंती है कि यहां पर कृष्ण के द्वारा अपने पौत्र का अपहरण किये जाने से क्रुद्ध होकर वाणासुर का वध किया गया था।

पर्यटन

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पर्यटकों के लिये यहाँ ब्रिटिश काल का एक सरकारी बंगला, मायावती अद्वैत आश्रम, एवटमाउन्ट गिरजाघर, वाणासुर का क़िला और चाय बागान भी हैं। उत्तराखण्ड के इस ऐतिहासिक शहर का धार्मिक, और सांस्कृतिक दृष्टि से अग्रणी स्थान है। इस शहर का उल्लेख भारत के धार्मिक ग्रन्थों में भी मिलता है।

वीथिका


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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