"जश्न मनाया जाय -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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छोड़कर मुझको हर इक दोस्त बुलाया जाय | छोड़कर मुझको हर इक दोस्त बुलाया जाय | ||
− | रौनक़-ए-बज़्म<ref>बज़्म= सभा | + | रौनक़-ए-बज़्म के लायक़ मेरी हस्ती ही नहीं<ref>बज़्म= सभा, महफ़िल</ref> |
यही हर बार मुझे याद दिलाया जाय | यही हर बार मुझे याद दिलाया जाय | ||
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कहीं जो भूल से भी ज़िक्र मेरा आता हो | कहीं जो भूल से भी ज़िक्र मेरा आता हो | ||
− | यही ताकीद<ref>ताकीद = कोई बात ज़ोर देकर कहना | + | यही ताकीद कि मक़्ता ही न गाया जाय<ref>ताकीद = कोई बात ज़ोर देकर कहना</ref><ref>ग़ज़ल के आखरी शेर को जिसमें शायर का नाम अथवा उपनाम हो उसे ‘मक़्ता’ कहते हैं।</ref> |
मेरे वो ख़ाब में ना आएँ बस इसी के लिए | मेरे वो ख़ाब में ना आएँ बस इसी के लिए |
07:26, 16 जनवरी 2014 का अवतरण
जश्न मनाया जाय -आदित्य चौधरी
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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