बिल्व वृक्ष

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बिल्व वृक्ष
बिल्व वृक्ष
जगत पादप (Plantae)
उपजगत सापीन्दालेस (Sapindales)
कुल रुतासेऐ (Rutaceae)
जाति ऐग्ले (Aegle)
प्रजाति मार्मेलोस (marmelos}
द्विपद नाम ऐग्ले मार्मेलोस
संबंधित लेख बेलपत्र, शिव, महाशिवरात्रि
विशेष बिल्व वृक्ष भगवान का प्रिय है। इसके पत्ते शिव पूजा में विशेष रूप से प्रयोग किए जाते हैं।
अन्य जानकारी बिल्व वृक्ष पन्द्रह से तीस फुट ऊँचा और पत्तियाँ तीन और कभी-कभी पाँच पत्र युक्त होती हैं। गर्मियों में पत्ते गिरने पर मई में पुष्प लगते हैं

बिल्व, बेल या बेलपत्थर (वानस्पतिक नाम 'ऐग्ले मार्मेलोस') विश्व के कई हिस्सों में पाया जाता है। भारत में इस वृक्ष का पीपल, नीम, आम, पारिजात और पलाश आदि वृक्षों के समान ही बहुत अधिक सम्मान है। हिन्दू धर्म में बिल्व वृक्ष भगवान शिव की अराधना का मुख्य अंग है। धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण इसे मंदिरों के पास लगाया जाता है। बिल्व वृक्ष की तासीर बहुत शीतल होती है। गर्मी की तपिश से बचने के लिए इसके फल का शर्बत बड़ा ही लाभकारी होता है। यह शर्बत कुपचन, आँखों की रौशनी में कमी, पेट में कीडे और लू लगने जैसी समस्याओं से निजात पाने के लिये उत्तम है। बिल्व की पत्तियों मे टैनिन, लोह, कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नेशियम जैसे रसायन पाए जाते है।

परिचय

बिल्व वृक्ष पन्द्रह से तीस फुट ऊँचा और पत्तियाँ तीन और कभी-कभी पाँच पत्र युक्त होती हैं। तीखी स्वाद वाली इन पत्तियों को मसलने पर विशिष्ट गंध निकलती है। गर्मियों में पत्ते गिरने पर मई में पुष्प लगते हैं, जिनमें अगले वर्ष मार्च-मई तक फल तैयार हो जाते हैं। इसका कड़ा और चिकना फल कवच कच्ची अवस्था में हरे रंग और पकने पर सुनहरे पीले रंग का हो जाता है। कवच तोड़ने पर पीले रंग का सुगन्धित मीठा गूदा निकलता है, जो खाने और शर्बत बनाने के काम आता है। 'जंगली बेल' के वृक्ष में काँटे अधिक और फल छोटा होता है।

प्राप्ति स्थान

बेल के वृक्ष पूरे भारत में पाये जाते हैं। विशेष रूप से हिमालय की तराई, सूखे पहाड़ी क्षेत्रों में चार हज़ार फीट की ऊँचाई तक ये पाये जाते हैं। मध्य व दक्षिण भारत में बेल वृक्ष जंगल के रूप में फैले हुए हैं और बड़ी संख्या में उगते हैं। इसके पेड़ प्राकृतिक रूप से भारत के अलावा दक्षिणी नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया एवं थाईलैंड में उगते हैं। इसके अतिरिक्त इसकी खेती पूरे भारत के साथ श्रीलंका, उत्तरी मलय प्रायद्वीप, जावा एवं फिलीपींस तथा फीजी द्वीपसमूह में भी की जाती है।

धार्मिक महत्त्व

हिन्दू धर्म में बिल्व वृक्ष को भगवान शिव का रूप माना जाता है। मान्यता है कि इसके मूल में महादेव का वास है। इसीलिए इस वृक्ष की पूजा का बहुत महत्त्व है। धर्मग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। भगवान शिव को बिल्व और बिल्व के पत्ते अत्यधिक प्रिय हैं। नियमित बेलपत्र अर्पित करके भगवान शिव की पूजा करने वाला भगवान शिव का प्रिय होता है। ऐसा व्यक्ति अपनी जन्मपत्री में चाहे कितने भी अशुभ योग लेकर आया हो, तब भी उससे प्रभावित नहीं होता। 'शिवपुराण' में बेल के पेड़ को साक्षात शिव का स्वरूप कहा गया है। महर्षि व्यास के पुत्र सूतजी ने ऋषि-मुनियों को समझाते हुए कहा है कि- "जितने भी तीर्थ हैं, उन सबमें स्नान करने का जो फल है, वह बेल के वृक्ष के नीचे स्नान करने मात्र से प्राप्त हो जाता है।" गंध, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य सहित जो व्यक्ति बिल्व के पेड़ की पूजा करता है, उसे इस लोक में संतान एवं भौतिक सुख मिलता है। ऐसा व्यक्ति मृत्यु के पश्चात शिवलोक में स्थान प्राप्त करने योग्य बन जाता है। बेल के पेड़ की पूजा करने के बाद जो व्यक्ति एक भी शिव भक्त को आदर पूर्वक बेल की छांव में भोजन करवाता है, वह कोटि गुणा पुण्य प्राप्त कर लेता है। शिव भक्त को खीर एवं घी से बना भोजन करवाने वाले व्यक्ति पर महादेव की विशिष्ट कृपा होती है। ऐसा व्यक्ति कभी गरीब नहीं होता है। शाम के समय बेल की जड़ के चारों ओर दीपक जलाकर भगवान शिव का ध्यान और पूजन करने वाला व्यक्ति कई जन्मों के पाप कर्मों के प्रभाव से मुक्त हो जाता है।

महिमा

भगवान शिव की पूजा में बिल्व पत्र यानी बेलपत्र का विशेष महत्व है। महादेव एक बेलपत्र अर्पण करने से भी प्रसन्न हो जाते है, इसलिए तो उन्हें 'आशुतोष' भी कहा जाता है। सामान्य तौर पर बेलपत्र में एक साथ तीन पत्तियाँ जुड़ी रहती हैं, जिसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है। वैसे तो बेलपत्र की महिमा का वर्णन कई पुराणों में मिलता है, लेकिन 'शिवपुराण' में इसकी महिमा विस्तृत रूप में बतायी गयी है। शिवपुराण में कहा गया है कि बेलपत्र भगवान शिव का प्रतीक है। भगवान स्वयं इसकी महिमा स्वीकारते हैं। मान्यता है कि बेल वृक्ष की जड़ के पास शिवलिंग रखकर जो भक्त भगवान शिव की आराधना करते हैं, वे हमेशा सुखी रहते हैं। बेल वृक्ष की जड़ के निकट शिवलिंग पर जल अर्पित करने से उस व्यक्ति के परिवार पर कोई संकट नहीं आता और वह सपरिवार खुश और संतुष्ट रहता है। कहते हैं कि बेल वृक्ष के नीचे भगवान भोलेनाथ को खीर का भोग लगाने से परिवार में धन की कमी नहीं होती है और वह व्यक्ति कभी निर्धन नहीं होता है। बेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में 'स्कंदपुराण' में कहा गया है कि एक बार देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीना पोछकर फेंका, जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ। इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तना में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी और फलों में कात्यायनी वास करती हैं। कहा जाता है कि बेल वृक्ष के कांटों में भी कई शक्तियाँ समाहित हैं। यह माना जाता है कि देवी महालक्ष्मी का भी बेल वृक्ष में वास है। जो व्यक्ति शिव-पार्वती की पूजा बेलपत्र अर्पित कर करते हैं, उन्हें महादेव और देवी पार्वती दोनों का आशीर्वाद मिलता है।

औषधीय गुण

आयुर्वेद में बेल वृक्ष को कई प्रकार से लाभकारी बताया गया है। इसके पत्तों, फलों आदि का औषधी के रूप में बहुत प्रयोग किया जाता है। इसके कुछ घरेलू इलाज निम्नलिखित हैं, किन्तु इनका सेवन करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श कर लेना उचित रहता है-

  • गुजरात प्राँत के डाँग ज़िले के आदिवासी बेल और सीताफल पत्रों की समान मात्रा मधुमेह के रोगियों के देते है।
  • गर्मियों मे पसीने और तन की दुर्गंध को दूर भगाने के लिये यदि बेल की पत्तियों का रस नहाने के बाद शरीर पर लगा दिया जाए तो समस्या से छुटकारा मिल सकता है।
  • पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार बेल के कच्चे फल और पत्तियों को गौ-मूत्र में पीस लिया जाए और नारियल तेल में इसे गर्म कर कान में डाला जाए तो बधिरता दूर हो सकती है।
  • जिन्हे हाथ-पैर, तालुओं और शरीर में अक्सर जलन की शिकायत रहती है, उन्हें कच्चे बेल फल के गूदे को नारियल तेल में एक सप्ताह तक डुबोए रखने के बाद, इस तेल से प्रतिदिन स्नान से पूर्व मालिश करनी चाहिये।
  • बेल की जड़ों की छाल का काढ़ा मलेरिया व अन्य बुखारों में हितकर होता है।
  • अजीर्ण में बेल की पत्तियों के दस ग्राम रस में, एक-एक ग्राम काली मिर्च और सेंधा नमक मिलाकर पिलाने से आराम मिल सकता है।
  • अतिसार के पतले दस्तों में ठंडे पानी से 5-10 ग्राम बिल्व चूर्ण लेने से आराम पहुँचाता है। कच्चे बेल की कचरियों को धूप में अच्छी तरह सुखा लें या पंसारी से साफ छाँट कर ले आएँ। इन्हें बारीक पीस कर व कपड़े से छान करके शीशी में भर लें। यही बिल्व चूर्ण है। छोटे बच्चों के दाँत निकलते समय दस्तों में भी यह चुटकी भर देना चाहिए।
  • आँखें दुखने पर बेल के पत्तों का रस, स्वच्छ पतले वस्त्र से छानकर एक-दो बूँद आँखों में टपकाना चाहिए। इससे दुखती आँखों की पीड़ा, चुभन, शूल ठीक होकर, नेत्र ज्योति बढ़ती है।
  • जल जाने पर बिल्व चूर्ण को गरम किए गये तेल में मिलाकर उसको ठंडा करके पेस्ट बना लें। इसे जले अंग पर लेप करने से आराम आएगा। चूर्ण न होने पर बेल का पका हुआ गूदा साफ करके भी लेपा जा सकता है।


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