चमसोद्भेद नामक स्थान का उल्लेख महाभारत, वनपर्व[1] में हुआ है।[2] इसके अनुसार चमसोद्भेद सरस्वती नदी के विनशन तीर्थ के पश्चात् है-
'चमसेऽथ शिवोद्भेदे नागोद्भेदे च दृश्यते, स्नात्वा तु चमसोद्भेदे अग्निष्टोमफलं लभेत।'
- उपर्युक्त प्रसंग के वर्णन से सूचित होता है कि सरस्वती नदी, विनशन में नष्ट या विलुप्त होने के पश्चात् चमसोद्भेद में फिर प्रकट होती थी।
- इसी स्थान पर अगस्त्य और लोपामुद्रा का विवाह सम्पन्न हुआ था।
- शल्यपर्व 35, 87 में भी चमसोद्भेद का सरस्वती के तटवर्ती तीर्थों में वर्णन है-
'ततस्तु चमसोद्भेदमच्युतस्वगमद् बली, चमसोद्भेद इत्येवं यं जना: कथयन्त्युत।'
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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