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('अरब सागर हिन्द महासागर का पश्चिमोत्तर भाग, लगभग 38,62,0...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
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अरब सागर [[हिन्द महासागर]] का पश्चिमोत्तर भाग, लगभग 38,62,000 वर्ग किमी॰ क्षेत्रफल में फैला हुआ है और [[यूरोप]] व [[भारत]] के बीच मुख्य समुद्री मार्ग के एक हिस्से को निर्मित करता है। यह पश्चिम में अफ़्रीका अन्तरीप और अरब प्रायद्वीप से, उत्तर में [[ईरान]] और [[पाकिस्तान]], पूर्व में भारत और दक्षिण की ओर हिन्द महासागर के शेष भाग से घिरा हुआ है। [[ओमान की खाड़ी]] उत्तर में सागर को [[फ़ारस की खाड़ी]] से हॉरमुज़ जलडमरूमध्य के माध्यम से जोड़ती है। पश्चिम में [[अदन की खाड़ी]] उसे बाब एल–मंदेब जलडमरूमध्य के माध्यम से [[लाल सागर]] से जोड़ती है। इसकी औसत गहराई 2,734 मीटर है। रोमन काल में इसका नाम मेर एरिथ्रेइयम (एरिथ्रेइयन सागर) था।
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|अन्य जानकारी=मध्यकाल के अरबों के लिए अरब सागर भारत का [[सागर]] अथवा 'महान सागर' का एक भाग था, जिसमें से छोटी खाड़ियाँ, जैसे फ़रिस का समुद्र ([[फ़ारस की खाड़ी]]) या कोलज़म का समुद्र ([[लाल सागर]]), अलग पहचान रखती थीं।
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'''अरब सागर''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Arabian Sea'') [[हिन्द महासागर]] का पश्चिमोत्तर भाग, लगभग 38,62,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है और [[यूरोप]] व [[भारत]] के बीच मुख्य समुद्री मार्ग के एक हिस्से को निर्मित करता है। यह पश्चिम में [[अफ़्रीका]] अन्तरीप और अरब प्रायद्वीप से, उत्तर में [[ईरान]] और [[पाकिस्तान]], पूर्व में [[भारत]] और दक्षिण की ओर हिन्द महासागर के शेष भाग से घिरा हुआ है। [[ओमान की खाड़ी]] उत्तर में [[सागर]] को [[फ़ारस की खाड़ी]] से हॉरमुज़ जलडमरूमध्य के माध्यम से जोड़ती है। पश्चिम में [[अदन की खाड़ी]] उसे बाब एल–मंदेब जलडमरूमध्य के माध्यम से [[लाल सागर]] से जोड़ती है। इसकी औसत गहराई 2,734 मीटर है। रोमन काल में इसका नाम मेर एरिथ्रेइयम (एरिथ्रेइयन सागर) था।
  
भारत, ईरान और पाकिस्तान के अलावा ओमान सल्तनत, यमन और सोमालिया सागर के आसपास स्थित राजनैतिक इकाइयाँ हैं। सागर के द्वीपों में सोकोत्रा (यमन का एक भाग) अफ़्रीकी हॉर्न के निकट, ओमान के तट के निकट कुरिया मुरिया द्वीप और लक्षद्वीप।<ref>भारत का एक संघ शासित प्रदेश, जो लक्कादीव, मिनिकाय और अमीनदीवी द्वीपों से बना है।</ref> लक्षद्वीप भारत के दक्षिण–पश्चिम (मालाबार) तट से 160 और 400 किमी0 के बीच स्थित मूंगे के प्रवाल द्वीपों का समूह है। [[सिंधु नदी]] इस सागर में पड़ने वाली प्रमुख नदी है।  
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भारत, ईरान और पाकिस्तान के अलावा [[ओमान]] सल्तनत, यमन और [[सोमालिया]] सागर के आसपास स्थित राजनीतिक इकाइयाँ हैं। सागर के द्वीपों में सोकोत्रा (यमन का एक भाग) अफ़्रीकी हॉर्न के निकट, ओमान के तट के निकट कुरिया मुरिया द्वीप और लक्षद्वीप।<ref>भारत का एक संघ शासित प्रदेश, जो लक्कादीव, मिनिकाय और अमीनदीवी द्वीपों से बना है।</ref> [[लक्षद्वीप]] [[भारत]] के दक्षिण–पश्चिम ([[मालाबार तट|मालाबार]]) तट से 160 और 400 किमी के बीच स्थित मूंगे के [[प्रवाल द्वीप|प्रवाल द्वीपों]] का समूह है। [[सिंधु नदी]] इस सागर में पड़ने वाली प्रमुख नदी है।  
 
==भौतिक लक्षण==
 
==भौतिक लक्षण==
अरब सागर के अधिकांश भाग की गहराई 2,987 मीटर से अधिक है और इसके मध्य में कोई द्वीप नहीं है। पाकिस्तान व भारत के तट के निकट को छोड़कर, गहरा पानी पूर्वोत्तर में किनारों की भूमि के पास तक है। दक्षिण–पूर्व में, जो हिन्द महासागर में दक्षिण की ओर बढ़ता है और जहाँ पर वह पानी की सतह से ऊपर उठकर मालदीव के प्रवालद्वीप को निर्मित करता है। सागर के पश्चिमी भाग की ओर लगभग 113 किमी0 लम्बा व लगभग 3,626 वर्ग किमी0 क्षेत्रफल वाला सोकोत्रा का पठारी द्वीप अफ़्रीकी हॉर्न का एकद्वीपीय विस्तार है और ग्वार्डाफुई अन्तरीप से 257 किमी0 पूर्व में है।  
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अरब सागर के अधिकांश भाग की गहराई 2,987 मीटर से अधिक है और इसके मध्य में कोई [[द्वीप]] नहीं है। पाकिस्तान व [[भारत]] के [[तट]] के निकट को छोड़कर, गहरा पानी पूर्वोत्तर में किनारों की भूमि के पास तक है। दक्षिण–पूर्व में, जो [[हिन्द महासागर]] में दक्षिण की ओर बढ़ता है और जहाँ पर वह पानी की सतह से ऊपर उठकर [[मालदीव]] के प्रवालद्वीप को निर्मित करता है। सागर के पश्चिमी भाग की ओर लगभग 113 किमी लम्बा व लगभग 3,626 वर्ग किमी क्षेत्रफल वाला सोकोत्रा का पठारी द्वीप अफ़्रीकी हॉर्न का एकद्वीपीय विस्तार है और ग्वार्डाफुई अन्तरीप से 257 किमी पूर्व में है।  
 
====अन्तःसागरीय आकृति एवं भू–विज्ञान====
 
====अन्तःसागरीय आकृति एवं भू–विज्ञान====
अरब सागर विगत 1,500 लाख वर्षों (मेसोज़ोइक और सिनोज़ोइक युगों) में ही निर्मित हुआ है। जब भारतीय उपमहाद्वीप उत्तर की ओर बढ़ा और एशिया से टकराया था। सोकोत्रा से दक्षिण की ओर जलमग्न कार्ल्सबर्ग कटक है, जो कि हिन्द महासागर में भूकम्पीय गतिविधि के क्षेत्र से मिलता है। जो अरब सागर को दो मुख्य बेसिनों, पूर्व की ओर अरब बेसिन और पश्चिम की ओर सोमाली बेसिन में बाँटता है। सागर की अधिकतम गहराई 5,803 मीटर व्हीटले गर्त में है। कार्ल्सबर्ग कटक एक मध्यवर्ती घाटी द्वारा लम्बाई में विभाजित है, जो समुद्र की सतह के नीचे 3,596 मीटर की गहराई तक पहुँचती है। अदन की खाड़ी के तटीय कगार रिफ़्ट भ्रंशों से बने हैं, जो कि दक्षिण–पश्चिम की ओर अभिसरित होकर पूर्वी अथवा ग्रेट रिफ़्ट वैली के सीमांत कगारों के रूप में अफ़्रीका तक जाते हैं और पूर्वी अफ़्रीकी रिफ़्ट प्रणाली का एक हिस्सा है, अरब बेसिन ओमान की खाड़ी के बेसिन से, एक संकरे, भूकम्प सक्रिय जलमग्न मर्रे कटक द्वारा विभाजित है, जो कि पूर्वोत्तर से दक्षिण–पश्चिम में विस्तृत होकर कार्ल्सबर्ग से मिलता है। मर्रे कटक के पश्चिम में मालियान का दाबित क्षेत्र है। जहाँ पर समुद्र तल निकटवर्ती महाद्वीपीय पटल के नीचे धंस जाता है।  
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अरब सागर विगत 1,500 लाख वर्षों (मेसोज़ोइक और सिनोज़ोइक युगों) में ही निर्मित हुआ है। जब भारतीय उपमहाद्वीप उत्तर की ओर बढ़ा और [[एशिया]] से टकराया था। सोकोत्रा से दक्षिण की ओर जलमग्न कार्ल्सबर्ग कटक है, जो कि हिन्द महासागर में भूकम्पीय गतिविधि के क्षेत्र से मिलता है। जो अरब सागर को दो मुख्य बेसिनों, पूर्व की ओर अरब बेसिन और पश्चिम की ओर सोमाली बेसिन में बाँटता है। सागर की अधिकतम गहराई 5,803 मीटर व्हीटले गर्त में है। कार्ल्सबर्ग कटक एक मध्यवर्ती घाटी द्वारा लम्बाई में विभाजित है, जो समुद्र की सतह के नीचे 3,596 मीटर की गहराई तक पहुँचती है। अदन की खाड़ी के तटीय कगार रिफ़्ट भ्रंशों से बने हैं, जो कि दक्षिण–पश्चिम की ओर अभिसरित होकर पूर्वी अथवा ग्रेट रिफ़्ट वैली के सीमांत कगारों के रूप में अफ़्रीका तक जाते हैं और पूर्वी अफ़्रीकी रिफ़्ट प्रणाली का एक हिस्सा है, अरब बेसिन ओमान की खाड़ी के बेसिन से, एक संकरे, भूकम्प सक्रिय जलमग्न मर्रे कटक द्वारा विभाजित है, जो कि पूर्वोत्तर से दक्षिण–पश्चिम में विस्तृत होकर कार्ल्सबर्ग से मिलता है। मर्रे कटक के पश्चिम में मालियान का दाबित क्षेत्र है। जहाँ पर समुद्र तल निकटवर्ती महाद्वीपीय पटल के नीचे धंस जाता है।  
 
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[[चित्र:Arabian-Sea.jpg|thumb|अरब सागर का मानचित्र|left]]
सिंधु नदी के द्वारा एक गहरी जलमग्न खाई काटी गई है, जिसने 861 किमी0 चौड़े व 1,496 किमी0 लम्बे गहरे सागर का सघन अपशिष्ट शंकु भी निक्षेपित किया है। यह शंकु और इसके पास ही अरब बेसिन में गहरे पानी का एक समतल मैदान अरब सागर के अधिकांश पूर्वोत्तर समतल पर फैले हैं। सोमाली तट के पूर्व में सोमाली बेसिन गहरे पानी का दूसरा समतल मैदान बनाता है।  
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सिंधु नदी के द्वारा एक गहरी जलमग्न खाई काटी गई है, जिसने 861 किमी चौड़े व 1,496 किमी लम्बे गहरे सागर का सघन अपशिष्ट शंकु भी निक्षेपित किया है। यह शंकु और इसके पास ही अरब बेसिन में गहरे पानी का एक समतल मैदान अरब सागर के अधिकांश पूर्वोत्तर समतल पर फैले हैं। सोमाली तट के पूर्व में सोमाली बेसिन गहरे पानी का दूसरा समतल मैदान बनाता है।
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महाद्वीपीय कगार अरब प्रायद्वीप तट पर संकरा है और सोमाली तट के किनारे और भी संकरा है। अरब तट के आसपास कोई वास्तविक प्रवाल–भित्तियाँ नहीं पाई जाती हैं। अल–हद (अरब प्रायद्वीप की पूर्वी अग्रभूमि) अन्तरीप के पास के निक्षेपों में, जहाँ गर्मियों में गहरा पानी ऊपर आ जात है, उच्च जैविक पदार्थ वाले हाइड्रोजन सल्फ़ाइड युक्त हरी मिट्टी है। यह क्षेत्र, जिसमें [[मछली|मछलियों]] के कई [[अवशेष]] हैं, मछलियों की क़ब्रगाह कहलाता है। महाद्वीपीय कगार के अधिकांश भाग पर 2,743 मीटर की गहराई तक भू–व्युत्पन्न निक्षेप फैले हैं। इसके नीचे, निक्षेप ग्लोबीजेराइना (फ़ोरामिनिफ़ेरिडा वर्ग के प्रोटोजोआ का एक वंश) के चूने से बने आवरणों से निर्मित हैं, जबकि 3,962 मीटर के नीचे के बेसिन लाल मिट्टी से ढंके हैं। स्व–स्थानक (उसी जगह पर निर्मित) फ़ैरोमैंगनीज़ पिण्ड सोमाली और अरब बेसिनों में पाए गए हैं तथा कार्ल्सबर्ग कटक के आसपास पॉलीमैटेलिक सल्फ़ाइड पाए गए हैं। निक्षेप की मोटाई उत्तर में 2,499 मीटर से अरब बेसिन के दक्षिण में लगभग 489 मीटर तक घटती है।
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====जलवायु एवं जल विज्ञान====
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[[चित्र:Arabian-Sea-2.jpg|thumb|250px|अरब सागर का दृश्य]]
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अरब सागर की जलवायु मॉनसूनी है। मध्य अरब सागर में [[जनवरी]] व [[फ़रवरी]] में [[समुद्र]] की सतह के निकट हवा का न्यूनतम [[तापमान]] लगभग 24º से 25º से. रहता है, जबकि [[जून]] और [[नवम्बर]] में 28º से. से अधिक तापमान रहता है। दक्षिण–पश्चिम मॉनसूनी हवाएँ चलने के दौरान वर्षा ऋतु ([[अप्रैल]] से [[नवम्बर]]) में सागर से ऊपरी 46 मीटर में लवणता प्रति हज़ार 36 भाग से कम दर्ज की गई है। जबकि सूखे के मौसम के दौरान (नवम्बर से मार्च), जब पूर्वोत्तर मॉनसूनी हवाएँ चलती हैं, प्रति हज़ार 36 भाग से अधिक की लवणता सोमाली तट के अलावा 5º उत्तरी अक्षांश के समूचे अरब सागर की उत्तरी सतह पर दर्ज की गई है। चूंकि वाष्पन वर्षा व नदियों के निवेश के योग से अधिक होता है, सागर प्रतिवर्ष पानी की मात्रा में हानि दर्शाता है।  
  
महाद्वीपीय कगार अरब प्रायद्वीप तट पर संकरा है और सोमाली तट के किनारे और भी संकरा है। अरब तट के आसपास कोई वास्तविक प्रवाल–भित्तियाँ नहीं पाई जाती हैं। अल–हद (अरब प्रायद्वीप की पूर्वी अग्रभूमि) अन्तरीप के पास के निक्षेपों में, जहाँ गर्मियों में गहरा पानी ऊपर आ जात है, उच्च जैविक पदार्थ वाले हाइड्रोजन सल्फ़ाइड युक्त हरी मिट्टी है। यह क्षेत्र, जिसमें मछलियों के कई अवशेष हैं, मछलियों की कब्रगाह कहलाता है। महाद्वीपीय कगार के अधिकांश भाग पर 2,743 मीटर की गहराई तक भू–व्युत्पन्न निक्षेप फैले हैं। इसके नीचे, निक्षेप ग्लोबीजेराइना (फ़ोरामिनिफ़ेरिडा वर्ग के प्रोटोजोआ का एक वंश) के चूने से बने आवरणों से निर्मित हैं, जबकि 3,962 मीटर के नीचे के बेसिन लाल मिट्टी से ढंके हैं। स्व–स्थानक (उसी जगह पर निर्मित) फ़ैरोमैंगनीज़ पिण्ड सोमाली और अरब बेसिनों में पाए गए हैं तथा कार्ल्सबर्ग कटक के आसपास पॉलीमैटेलिक सल्फ़ाइड पाए गए हैं। निक्षेप की मोटाई उत्तर में 2,499 मीटर से अरब बेसिन के दक्षिण में लगभग 489 मीटर तक घटती है।
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जटिल सोमाली धारा, जो सोकोत्रा के तट के निकट लगभग सात समुद्री मील की गति पकड़ लेती है और एक दक्षिणावर्त संचरण तंत्र का भाग बन जाती है, जो गर्मियों में पूर्वोत्तर में अरब तट के साथ और फिर दक्षिण की ओर [[भारत]] के तट के साथ 10º उत्तर तक निरन्तर बहती है। उस जगह पर दक्षिण–पश्चिमी मॉनसून धारा में विलयित हो जाती है, जो 5º और 10º उत्तर के बीच पूर्व की ओर बहती है। सोमाली और अरब तटों पर गर्मियों में गहरे पानी का ऊपर उठना साफ़–साफ़ दृष्टिगोचर होता है। सोमाली धारा धीमा पड़कर पूर्वोत्तर मॉनसून (सर्दियों के) के समय विपरीत दिशा में बहती है। उत्तरी हिन्द महासागर के ऊपरी 914 मीटर में पहचाने गए पाँच जल पिण्डों में से तीन का उदय क्रमशः लाल सागर, फ़ारस की खाड़ी और अरब सागर से पाया गया है। इन जल पिण्डों के प्रवाह के मार्ग दक्षिण व पूर्व की ओर हैं।
====जलवायु एवं जल विज्ञान====
 
अरब सागर की जलवायु मॉनसूनी है। मध्य अरब सागर में जनवरी व फ़रवरी में समुद्र की सतह के निकट हवा का न्यूनतम तापमान लगभग 24º से 25º से. रहता है, जबकि जून और नवम्बर में 28º से. से अधिक तापमान रहता है। दक्षिण–पश्चिम मॉनसूनी हवाएँ चलने के दौरान वर्षा ऋतु (अप्रैल से नवम्बर) में सागर से ऊपरी 46 मीटर में लवणता प्रति हज़ार 36 भाग से कम दर्ज की गई है। जबकि सूखे के मौसम के दौरान (नवम्बर से मार्च), जब पूर्वोत्तर मॉनसूनी हवाएँ चलती हैं, प्रति हज़ार 36 भाग से अधिक की लवणता सोमाली तट के अलावा 5º उत्तरी अक्षांश के समूचे अरब सागर की उत्तरी सतह पर दर्ज की गई है। चूंकि वाष्पन वर्षा व नदियों के निवेश के योग से अधिक होता है, सागर प्रतिवर्ष पानी की मात्रा में हानि दर्शाता है।
 
  
जटिल सोमाली धारा, जो सोकोत्रा के तट के निकट लगभग सात समुद्री मील की गति पकड़ लेती है और एक दक्षिणावर्त संचरण तंत्र का भाग बन जाती है, जो गर्मियों में पूर्वोत्तर में अरब तट के साथ और फिर दक्षिण की ओर भारत के तट के साथ 10º उत्तर तक निरन्तर बहती है। उस जगह पर दक्षिण–पश्चिमी मॉनसून धारा में विलयित हो जाती है, जो 5º और 10º उत्तर के बीच पूर्व की ओर बहती है। सोमाली और अरब तटों पर गर्मियों में गहरे पानी का ऊपर उठना साफ़–साफ़ दृष्टिगोचर होता है। सोमाली धारा धीमा पड़कर पूर्वोत्तर मॉनसून (सर्दियों के) के समय विपरीत दिशा में बहती है। उत्तरी हिन्द महासागर के ऊपरी 914 मीटर में पहचाने गए पाँच जल पिण्डों में से तीन का उदय क्रमशः लाल सागर, फ़ारस की खाड़ी और अरब सागर से पाया गया है। इन जल पिण्डों के प्रवाह के मार्ग दक्षिण व पूर्व की ओर हैं।
 
 
==आर्थिक पहलू==
 
==आर्थिक पहलू==
 
इसके कुछ आर्थिक पहलू भी है।
 
इसके कुछ आर्थिक पहलू भी है।
 
====संसाधन====
 
====संसाधन====
अकार्बनिक पुष्टिकारकों, जैसे सांद्रित फ़ॉस्फ़ेट के उच्च स्तर, जो कि प्रचुर मात्रा में मछलियों का उत्पादन करत हैं, पश्चिमी अरब सागर में और अरब प्रायद्वीप के दक्षिण–पूर्वी तट के निकट देखे गए हैं। प्रकाश–भेदन क्षेत्र (प्रकाश का क्षेत्र, जो समुद्र के ऊपरी 137 मीटर में पाया जाता है) में मौजूद यह पोषणकारी प्रभाव निश्चित रूप से कुछ हद तक तट पर पानी के ऊपर उठने के कारण है, जो समुद्र तल पर जमे पोषणकारकों को संचारित कर देता है।  
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अकार्बनिक पुष्टिकारकों, जैसे सांद्रित फ़ॉस्फ़ेट के उच्च स्तर, जो कि प्रचुर मात्रा में मछलियों का उत्पादन करत हैं, पश्चिमी अरब सागर में और अरब प्रायद्वीप के दक्षिण–पूर्वी तट के निकट देखे गए हैं। प्रकाश–भेदन क्षेत्र (प्रकाश का क्षेत्र, जो समुद्र के ऊपरी 137 मीटर में पाया जाता है) में मौजूद यह पोषणकारी प्रभाव निश्चित रूप से कुछ हद तक तट पर पानी के ऊपर उठने के कारण है, जो समुद्र तल पर जमे पोषणकारकों को संचारित कर देता है। अरब सागर में रहने वाली तेलापवर्ती मछलियों<ref>जो तट से दूर समुद्र में सतह के निकट रहती हैं।</ref> में ट्यूना, सार्डीन, बिलफ़िश<ref>एक प्रजाति, जिसकी एक लम्बी, तीखी चोंच या थूथन होती है</ref>, वाहू<ref>तेज़ी से तैरने वाली एक बड़ी शिकारी मछली</ref>, [[शार्क]], लैंसेट फ़िश<ref>एक बड़ी प्रजाति, जिसके आरी जैसे दाँत होते हैं</ref> और मून फ़िश<ref>धंसी छाती और पतले शरीर वाली एक रुपहली मछली</ref> शामिल है।  
  
अरब सागर में रहने वाली तेलापवर्ती मछलियों<ref>जो तट से दूर समुद्र में सतह के निकट रहती हैं।</ref> में ट्यूना, सार्डीन, बिलफ़िश<ref>एक प्रजाति, जिसकी एक लम्बी, तीखी चोंच या थूथन होती है</ref>, वाहू<ref>तेज़ी से तैरने वाली एक बड़ी शिकारी मछली</ref>, शार्क, लैंसेट फ़िश<ref>एक बड़ी प्रजाति, जिसके आरी जैसे दाँत होते हैं</ref> और मून फ़िश<ref>धंसी छाती और पतले शरीर वाली एक रुपहली मछली</ref> शामिल है।
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अरब सागर की एक आवर्ति घटना मछलियों का बड़े पैमाने पर मर जाना है। इस घटना का कारण उष्णकटिबंधीय पानी की एक अंदरूनी सतह है, जिसमें [[ऑक्सीजन]] कम काफ़ी कम है, किन्तु फ़ॉस्फ़ेट की प्रचुरता है। कुछ परिस्थितियों में यह परत ऊपर उठती है, जिसके परिणामस्वरूप ऑक्सीजन की कमी से मछलियों की मृत्यु हो जाती है। अरब सागर में छोटे, लेकिन गहन पैमाने पर, विशेषकर [[अफ़्रीका]] और अरब सागर प्रायद्वीप के पूर्वी तट के निकट मछली का, विस्तृत शिकार किया जाता है। इन प्रक्रियाओं में पेड़ के तने से खोदी गई उलंडी डोंगियों, धोव(पाल नौका) और अन्य छोटी नावों का प्रयोग किया जाता है। व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए बड़ी नावों से भी मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। [[भारत]], [[पाकिस्तान]], [[श्रीलंका]], [[ईरान]], ओमान, यमन, [[फ़्राँस]], संयुक्त अरब अमीरात, दक्षिण कोरिया और [[मालदीव]] मछली पकड़ने वाले प्रमुख देश हैं।  
 
 
अरब सागर की एक आवर्ति घटना मछलियों का बड़े पैमाने पर मर जाना है। इस घटना का कारण उष्णकटिबंधीय पानी की एक अंदरूनी सतह है, जिसमें आक्सीजन कम काफ़ी कम है, किन्तु फ़ॉस्फ़ेट की प्रचुरता है। कुछ परिस्थितियों में यह परत ऊपर उठती है, जिसके परिणामस्वरूप ऑक्सीजन की कमी से मछलियों की मृत्यु हो जाती है। अरब सागर में छोटे, लेकिन गहन पैमाने पर, विशेषकर [[अफ़्रीका]] और अरब सागर प्रायद्वीप के पूर्वी तट के निकट मछली का, विस्तृत शिकार किया जाता है। इन प्रक्रियाओं में पेड़ के तने से खोदी गई उलंडी डोंगियों, धोव(पाल नौका) और अन्य छोटी नावों का प्रयोग किया जाता है। व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए बड़ी नावों से भी मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। भारत, पाकिस्तान, [[श्रीलंका]], ईरान, [[ओमान]], [[यमन]], [[फ़्राँस]], [[संयुक्त अरब अमीरात]], दक्षिण [[कोरिया]] और [[मालदीव]] मछली पकड़ने वाले प्रमुख देश हैं।  
 
 
====परिवहन====  
 
====परिवहन====  
लाल सागर (स्वेज़ नहर समेत) और फ़ारस की खाड़ी के समक्ष अनुकूल स्थिति के कारण अरब सागर में विश्व के कुछ व्यस्ततम समुद्री मार्ग हैं और इन्हीं दो विस्तारों से प्रमुख मार्ग निकलते हैं। फ़ारस की खाड़ी का नौ परिवहन मुख्यतः टैंकरों से होता है, जिनमें से कुछ अत्यधिक क्षमता वाले होते हैं और पूर्वी एशिया, यूरोप और उत्तर व दक्षिण अमेरिकी के गंतव्यों तक पहुँचने के लिए अरब सागर में चलते हैं। 'स्वेज़ नहर–लाल सागर मार्ग' का इस्तेमाल मुख्यतः सामान्य मालवाहक पोतों के द्वारा दक्षिण, दक्षिण–पूर्व और पूर्वी एशिया पहुँचने के लिए किया जाता है। सागर तट के देशों के काम आने वाले कई बंदरगाह हैं। इनमें सर्वाधिक बड़े बंदरगाहों में, पाकिस्तान में मुहम्मद बिन क़ासिम और [[कराची]] तथा भारत में [[मुम्बई]] (सामान्य माल) और मार्मूगाव (लोह अयस्क) आते हैं।  
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[[चित्र:Arabian-Sea-4.jpg|thumb|250px|अरब सागर]]
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लाल सागर (स्वेज़ नहर समेत) और फ़ारस की खाड़ी के समक्ष अनुकूल स्थिति के कारण अरब सागर में विश्व के कुछ व्यस्ततम समुद्री मार्ग हैं और इन्हीं दो विस्तारों से प्रमुख मार्ग निकलते हैं। फ़ारस की खाड़ी का नौ परिवहन मुख्यतः टैंकरों से होता है, जिनमें से कुछ अत्यधिक क्षमता वाले होते हैं और पूर्वी एशिया, यूरोप और उत्तर व दक्षिण अमेरिकी के गंतव्यों तक पहुँचने के लिए अरब सागर में चलते हैं। 'स्वेज़ नहर–लाल सागर मार्ग' का इस्तेमाल मुख्यतः सामान्य मालवाहक पोतों के द्वारा दक्षिण, दक्षिण–पूर्व और पूर्वी एशिया पहुँचने के लिए किया जाता है। सागर तट के देशों के काम आने वाले कई बंदरगाह हैं। इनमें सर्वाधिक बड़े बंदरगाहों में, पाकिस्तान में मुहम्मद बिन क़ासिम और [[कराची]] तथा [[भारत]] में [[मुम्बई]] (सामान्य माल) और मार्मूगाव (लोह अयस्क) आते हैं।  
 
====अध्ययन एवं अनुसन्धान====
 
====अध्ययन एवं अनुसन्धान====
मध्यकाल काल के अरबों के लिए अरब सागर भारत का सागर अथवा 'महान सागर' का एक भाग था, जिसमें से छोटी खाड़ियाँ, जैसे फ़रिस का समुद्र (फ़ारस की खाड़ी) या कोलज़म का समुद्र ([[लाल सागर]]), अलग पहचान रखती थीं। लगभग आठवीं या नौवीं शताब्दी से अरब और फ़ारसी समुद्री यात्रियों ने ग्रीष्म ऋतुओं की मॉनसूनी हवाओं के द्वारा प्रेरित सतह की धाराओं का उपयोग करना सीखा। दक्षिणी अरबी, पूर्व अफ़्रीकी और लाल सागर के बंदरगाहों और साथ ही भारत, [[मलेशिया]] और [[चीन]] के बंदरगाहों के बीच यात्रा करने के लिए वृहद नौसंचालन निर्देश ओमान और दक्षिणी अरब के हद्रामाउत इलाक़े के नाविकों के द्वारा नौवीं और पन्द्रहवीं शताब्दी के बीच लेखबद्ध किए गए। इनमें से कुछ, जो फ़ारसी राहमांग (मार्गों की पुस्तकें) में शामिल हैं। तटों, सम्पर्क मार्गों और द्वीपों के विवरण के साथ ही हवाओं, धाराओं, ध्वनियों और तारों की मदद से नौसंचालन की महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं। इनमें वर्णित समृद्ध मध्यकालीन बंदरगाहों में भारत में दीव और [[सूरत]], फ़ारस में हॉरमुज़ और अरब प्रायद्वीप में मस्कट और अदन, अरब प्रायद्वीप दक्षिण–पूर्वी तट पर अल–हद और मद्रकाह अन्तरीप, दोनों, और सोमालिया में अफ़्रीकी हॉर्न का अन्तरीप ग्वार्डाफुई अन्तरीप वर्णित भू–चिह्नों में हैं। 20वीं शताब्दी में अरब सागर का अध्ययन कई सागरीय अभियानों के माध्यम में किया गया है, जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण 1933-34 को 'माबाहिस' या 'जॉन मर्रे' अभियान रहा है, जिसने जल सर्वेक्षण, [[रसायन विज्ञान]], धाराओं, जल पिण्डों, तल के उच्चावच और निक्षेपों के बारे में जानकारियाँ दीं। बहुत सी जानकारी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्द महासागर अभियान (1960-65) के दौरान प्राप्त की गईं, जिसमें [[ब्रिटिश]], [[अमेरिका]], सोवियत और जर्मन जहाज़ों ने भाग लिया और धाराओं, जैवीय उत्पादकता, भूकम्प विज्ञान और भौमिकी का अध्ययन किया।  
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मध्यकाल काल के अरबों के लिए अरब सागर [[भारत]] का सागर अथवा 'महान सागर' का एक भाग था, जिसमें से छोटी खाड़ियाँ, जैसे फ़रिस का समुद्र (फ़ारस की खाड़ी) या कोलज़म का समुद्र ([[लाल सागर]]), अलग पहचान रखती थीं। लगभग आठवीं या नौवीं शताब्दी से अरब और फ़ारसी समुद्री यात्रियों ने ग्रीष्म ऋतुओं की मॉनसूनी हवाओं के द्वारा प्रेरित सतह की धाराओं का उपयोग करना सीखा। दक्षिणी अरबी, पूर्व अफ़्रीकी और लाल सागर के बंदरगाहों और साथ ही भारत, [[मलेशिया]] और [[चीन]] के बंदरगाहों के बीच यात्रा करने के लिए वृहद नौसंचालन निर्देश ओमान और दक्षिणी अरब के हद्रामाउत इलाक़े के नाविकों के द्वारा नौवीं और पन्द्रहवीं शताब्दी के बीच लेखबद्ध किए गए। इनमें से कुछ, जो फ़ारसी राहमांग (मार्गों की पुस्तकें) में शामिल हैं। तटों, सम्पर्क मार्गों और द्वीपों के विवरण के साथ ही हवाओं, धाराओं, ध्वनियों और तारों की मदद से नौसंचालन की महत्त्वपूर्ण जानकारी देते हैं। इनमें वर्णित समृद्ध मध्यकालीन बंदरगाहों में [[भारत]] में दीव और [[सूरत]], फ़ारस में हॉरमुज़ और अरब प्रायद्वीप में [[मस्कट]] और अदन, अरब प्रायद्वीप दक्षिण–पूर्वी तट पर अल–हद और मद्रकाह अन्तरीप, दोनों, और सोमालिया में अफ़्रीकी हॉर्न का अन्तरीप ग्वार्डाफुई अन्तरीप वर्णित भू–चिह्नों में हैं। 20वीं शताब्दी में अरब सागर का अध्ययन कई सागरीय अभियानों के माध्यम में किया गया है, जिनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण 1933-34 को 'माबाहिस' या 'जॉन मर्रे' अभियान रहा है, जिसने जल सर्वेक्षण, [[रसायन विज्ञान]], धाराओं, जल पिण्डों, तल के उच्चावच और निक्षेपों के बारे में जानकारियाँ दीं। बहुत सी जानकारी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्द महासागर अभियान (1960-65) के दौरान प्राप्त की गईं, जिसमें [[ब्रिटेन|ब्रिटिश]], [[अमेरिका]], सोवियत और जर्मन जहाज़ों ने भाग लिया और धाराओं, जैवीय उत्पादकता, भूकम्प विज्ञान और भौमिकी का अध्ययन किया।  
 
 
 
 
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12:04, 10 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण

अरब सागर
अरब सागर, केरल
विवरण अरब सागर हिन्द महासागर का पश्चिमोत्तर भाग है और यूरोप व भारत के बीच मुख्य समुद्री मार्ग के एक हिस्से को निर्मित करता है।
देश भारत, पाकिस्तान और ईरान
अधिकतम गहराई 4,652 मीटर
अधिकतम चौड़ाई 2,400 किलोमीटर
क्षेत्रफल लगभग 38,62,000 वर्ग किलोमीटर
गूगल मानचित्र गूगल मानचित्र
अन्य जानकारी मध्यकाल के अरबों के लिए अरब सागर भारत का सागर अथवा 'महान सागर' का एक भाग था, जिसमें से छोटी खाड़ियाँ, जैसे फ़रिस का समुद्र (फ़ारस की खाड़ी) या कोलज़म का समुद्र (लाल सागर), अलग पहचान रखती थीं।

अरब सागर (अंग्रेज़ी:Arabian Sea) हिन्द महासागर का पश्चिमोत्तर भाग, लगभग 38,62,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है और यूरोपभारत के बीच मुख्य समुद्री मार्ग के एक हिस्से को निर्मित करता है। यह पश्चिम में अफ़्रीका अन्तरीप और अरब प्रायद्वीप से, उत्तर में ईरान और पाकिस्तान, पूर्व में भारत और दक्षिण की ओर हिन्द महासागर के शेष भाग से घिरा हुआ है। ओमान की खाड़ी उत्तर में सागर को फ़ारस की खाड़ी से हॉरमुज़ जलडमरूमध्य के माध्यम से जोड़ती है। पश्चिम में अदन की खाड़ी उसे बाब एल–मंदेब जलडमरूमध्य के माध्यम से लाल सागर से जोड़ती है। इसकी औसत गहराई 2,734 मीटर है। रोमन काल में इसका नाम मेर एरिथ्रेइयम (एरिथ्रेइयन सागर) था।

भारत, ईरान और पाकिस्तान के अलावा ओमान सल्तनत, यमन और सोमालिया सागर के आसपास स्थित राजनीतिक इकाइयाँ हैं। सागर के द्वीपों में सोकोत्रा (यमन का एक भाग) अफ़्रीकी हॉर्न के निकट, ओमान के तट के निकट कुरिया मुरिया द्वीप और लक्षद्वीप।[1] लक्षद्वीप भारत के दक्षिण–पश्चिम (मालाबार) तट से 160 और 400 किमी के बीच स्थित मूंगे के प्रवाल द्वीपों का समूह है। सिंधु नदी इस सागर में पड़ने वाली प्रमुख नदी है।

भौतिक लक्षण

अरब सागर के अधिकांश भाग की गहराई 2,987 मीटर से अधिक है और इसके मध्य में कोई द्वीप नहीं है। पाकिस्तान व भारत के तट के निकट को छोड़कर, गहरा पानी पूर्वोत्तर में किनारों की भूमि के पास तक है। दक्षिण–पूर्व में, जो हिन्द महासागर में दक्षिण की ओर बढ़ता है और जहाँ पर वह पानी की सतह से ऊपर उठकर मालदीव के प्रवालद्वीप को निर्मित करता है। सागर के पश्चिमी भाग की ओर लगभग 113 किमी लम्बा व लगभग 3,626 वर्ग किमी क्षेत्रफल वाला सोकोत्रा का पठारी द्वीप अफ़्रीकी हॉर्न का एकद्वीपीय विस्तार है और ग्वार्डाफुई अन्तरीप से 257 किमी पूर्व में है।

अन्तःसागरीय आकृति एवं भू–विज्ञान

अरब सागर विगत 1,500 लाख वर्षों (मेसोज़ोइक और सिनोज़ोइक युगों) में ही निर्मित हुआ है। जब भारतीय उपमहाद्वीप उत्तर की ओर बढ़ा और एशिया से टकराया था। सोकोत्रा से दक्षिण की ओर जलमग्न कार्ल्सबर्ग कटक है, जो कि हिन्द महासागर में भूकम्पीय गतिविधि के क्षेत्र से मिलता है। जो अरब सागर को दो मुख्य बेसिनों, पूर्व की ओर अरब बेसिन और पश्चिम की ओर सोमाली बेसिन में बाँटता है। सागर की अधिकतम गहराई 5,803 मीटर व्हीटले गर्त में है। कार्ल्सबर्ग कटक एक मध्यवर्ती घाटी द्वारा लम्बाई में विभाजित है, जो समुद्र की सतह के नीचे 3,596 मीटर की गहराई तक पहुँचती है। अदन की खाड़ी के तटीय कगार रिफ़्ट भ्रंशों से बने हैं, जो कि दक्षिण–पश्चिम की ओर अभिसरित होकर पूर्वी अथवा ग्रेट रिफ़्ट वैली के सीमांत कगारों के रूप में अफ़्रीका तक जाते हैं और पूर्वी अफ़्रीकी रिफ़्ट प्रणाली का एक हिस्सा है, अरब बेसिन ओमान की खाड़ी के बेसिन से, एक संकरे, भूकम्प सक्रिय जलमग्न मर्रे कटक द्वारा विभाजित है, जो कि पूर्वोत्तर से दक्षिण–पश्चिम में विस्तृत होकर कार्ल्सबर्ग से मिलता है। मर्रे कटक के पश्चिम में मालियान का दाबित क्षेत्र है। जहाँ पर समुद्र तल निकटवर्ती महाद्वीपीय पटल के नीचे धंस जाता है।

अरब सागर का मानचित्र

सिंधु नदी के द्वारा एक गहरी जलमग्न खाई काटी गई है, जिसने 861 किमी चौड़े व 1,496 किमी लम्बे गहरे सागर का सघन अपशिष्ट शंकु भी निक्षेपित किया है। यह शंकु और इसके पास ही अरब बेसिन में गहरे पानी का एक समतल मैदान अरब सागर के अधिकांश पूर्वोत्तर समतल पर फैले हैं। सोमाली तट के पूर्व में सोमाली बेसिन गहरे पानी का दूसरा समतल मैदान बनाता है।


महाद्वीपीय कगार अरब प्रायद्वीप तट पर संकरा है और सोमाली तट के किनारे और भी संकरा है। अरब तट के आसपास कोई वास्तविक प्रवाल–भित्तियाँ नहीं पाई जाती हैं। अल–हद (अरब प्रायद्वीप की पूर्वी अग्रभूमि) अन्तरीप के पास के निक्षेपों में, जहाँ गर्मियों में गहरा पानी ऊपर आ जात है, उच्च जैविक पदार्थ वाले हाइड्रोजन सल्फ़ाइड युक्त हरी मिट्टी है। यह क्षेत्र, जिसमें मछलियों के कई अवशेष हैं, मछलियों की क़ब्रगाह कहलाता है। महाद्वीपीय कगार के अधिकांश भाग पर 2,743 मीटर की गहराई तक भू–व्युत्पन्न निक्षेप फैले हैं। इसके नीचे, निक्षेप ग्लोबीजेराइना (फ़ोरामिनिफ़ेरिडा वर्ग के प्रोटोजोआ का एक वंश) के चूने से बने आवरणों से निर्मित हैं, जबकि 3,962 मीटर के नीचे के बेसिन लाल मिट्टी से ढंके हैं। स्व–स्थानक (उसी जगह पर निर्मित) फ़ैरोमैंगनीज़ पिण्ड सोमाली और अरब बेसिनों में पाए गए हैं तथा कार्ल्सबर्ग कटक के आसपास पॉलीमैटेलिक सल्फ़ाइड पाए गए हैं। निक्षेप की मोटाई उत्तर में 2,499 मीटर से अरब बेसिन के दक्षिण में लगभग 489 मीटर तक घटती है।

जलवायु एवं जल विज्ञान

अरब सागर का दृश्य

अरब सागर की जलवायु मॉनसूनी है। मध्य अरब सागर में जनवरीफ़रवरी में समुद्र की सतह के निकट हवा का न्यूनतम तापमान लगभग 24º से 25º से. रहता है, जबकि जून और नवम्बर में 28º से. से अधिक तापमान रहता है। दक्षिण–पश्चिम मॉनसूनी हवाएँ चलने के दौरान वर्षा ऋतु (अप्रैल से नवम्बर) में सागर से ऊपरी 46 मीटर में लवणता प्रति हज़ार 36 भाग से कम दर्ज की गई है। जबकि सूखे के मौसम के दौरान (नवम्बर से मार्च), जब पूर्वोत्तर मॉनसूनी हवाएँ चलती हैं, प्रति हज़ार 36 भाग से अधिक की लवणता सोमाली तट के अलावा 5º उत्तरी अक्षांश के समूचे अरब सागर की उत्तरी सतह पर दर्ज की गई है। चूंकि वाष्पन वर्षा व नदियों के निवेश के योग से अधिक होता है, सागर प्रतिवर्ष पानी की मात्रा में हानि दर्शाता है।

जटिल सोमाली धारा, जो सोकोत्रा के तट के निकट लगभग सात समुद्री मील की गति पकड़ लेती है और एक दक्षिणावर्त संचरण तंत्र का भाग बन जाती है, जो गर्मियों में पूर्वोत्तर में अरब तट के साथ और फिर दक्षिण की ओर भारत के तट के साथ 10º उत्तर तक निरन्तर बहती है। उस जगह पर दक्षिण–पश्चिमी मॉनसून धारा में विलयित हो जाती है, जो 5º और 10º उत्तर के बीच पूर्व की ओर बहती है। सोमाली और अरब तटों पर गर्मियों में गहरे पानी का ऊपर उठना साफ़–साफ़ दृष्टिगोचर होता है। सोमाली धारा धीमा पड़कर पूर्वोत्तर मॉनसून (सर्दियों के) के समय विपरीत दिशा में बहती है। उत्तरी हिन्द महासागर के ऊपरी 914 मीटर में पहचाने गए पाँच जल पिण्डों में से तीन का उदय क्रमशः लाल सागर, फ़ारस की खाड़ी और अरब सागर से पाया गया है। इन जल पिण्डों के प्रवाह के मार्ग दक्षिण व पूर्व की ओर हैं।

आर्थिक पहलू

इसके कुछ आर्थिक पहलू भी है।

संसाधन

अकार्बनिक पुष्टिकारकों, जैसे सांद्रित फ़ॉस्फ़ेट के उच्च स्तर, जो कि प्रचुर मात्रा में मछलियों का उत्पादन करत हैं, पश्चिमी अरब सागर में और अरब प्रायद्वीप के दक्षिण–पूर्वी तट के निकट देखे गए हैं। प्रकाश–भेदन क्षेत्र (प्रकाश का क्षेत्र, जो समुद्र के ऊपरी 137 मीटर में पाया जाता है) में मौजूद यह पोषणकारी प्रभाव निश्चित रूप से कुछ हद तक तट पर पानी के ऊपर उठने के कारण है, जो समुद्र तल पर जमे पोषणकारकों को संचारित कर देता है। अरब सागर में रहने वाली तेलापवर्ती मछलियों[2] में ट्यूना, सार्डीन, बिलफ़िश[3], वाहू[4], शार्क, लैंसेट फ़िश[5] और मून फ़िश[6] शामिल है।

अरब सागर की एक आवर्ति घटना मछलियों का बड़े पैमाने पर मर जाना है। इस घटना का कारण उष्णकटिबंधीय पानी की एक अंदरूनी सतह है, जिसमें ऑक्सीजन कम काफ़ी कम है, किन्तु फ़ॉस्फ़ेट की प्रचुरता है। कुछ परिस्थितियों में यह परत ऊपर उठती है, जिसके परिणामस्वरूप ऑक्सीजन की कमी से मछलियों की मृत्यु हो जाती है। अरब सागर में छोटे, लेकिन गहन पैमाने पर, विशेषकर अफ़्रीका और अरब सागर प्रायद्वीप के पूर्वी तट के निकट मछली का, विस्तृत शिकार किया जाता है। इन प्रक्रियाओं में पेड़ के तने से खोदी गई उलंडी डोंगियों, धोव(पाल नौका) और अन्य छोटी नावों का प्रयोग किया जाता है। व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए बड़ी नावों से भी मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, ईरान, ओमान, यमन, फ़्राँस, संयुक्त अरब अमीरात, दक्षिण कोरिया और मालदीव मछली पकड़ने वाले प्रमुख देश हैं।

परिवहन

अरब सागर

लाल सागर (स्वेज़ नहर समेत) और फ़ारस की खाड़ी के समक्ष अनुकूल स्थिति के कारण अरब सागर में विश्व के कुछ व्यस्ततम समुद्री मार्ग हैं और इन्हीं दो विस्तारों से प्रमुख मार्ग निकलते हैं। फ़ारस की खाड़ी का नौ परिवहन मुख्यतः टैंकरों से होता है, जिनमें से कुछ अत्यधिक क्षमता वाले होते हैं और पूर्वी एशिया, यूरोप और उत्तर व दक्षिण अमेरिकी के गंतव्यों तक पहुँचने के लिए अरब सागर में चलते हैं। 'स्वेज़ नहर–लाल सागर मार्ग' का इस्तेमाल मुख्यतः सामान्य मालवाहक पोतों के द्वारा दक्षिण, दक्षिण–पूर्व और पूर्वी एशिया पहुँचने के लिए किया जाता है। सागर तट के देशों के काम आने वाले कई बंदरगाह हैं। इनमें सर्वाधिक बड़े बंदरगाहों में, पाकिस्तान में मुहम्मद बिन क़ासिम और कराची तथा भारत में मुम्बई (सामान्य माल) और मार्मूगाव (लोह अयस्क) आते हैं।

अध्ययन एवं अनुसन्धान

मध्यकाल काल के अरबों के लिए अरब सागर भारत का सागर अथवा 'महान सागर' का एक भाग था, जिसमें से छोटी खाड़ियाँ, जैसे फ़रिस का समुद्र (फ़ारस की खाड़ी) या कोलज़म का समुद्र (लाल सागर), अलग पहचान रखती थीं। लगभग आठवीं या नौवीं शताब्दी से अरब और फ़ारसी समुद्री यात्रियों ने ग्रीष्म ऋतुओं की मॉनसूनी हवाओं के द्वारा प्रेरित सतह की धाराओं का उपयोग करना सीखा। दक्षिणी अरबी, पूर्व अफ़्रीकी और लाल सागर के बंदरगाहों और साथ ही भारत, मलेशिया और चीन के बंदरगाहों के बीच यात्रा करने के लिए वृहद नौसंचालन निर्देश ओमान और दक्षिणी अरब के हद्रामाउत इलाक़े के नाविकों के द्वारा नौवीं और पन्द्रहवीं शताब्दी के बीच लेखबद्ध किए गए। इनमें से कुछ, जो फ़ारसी राहमांग (मार्गों की पुस्तकें) में शामिल हैं। तटों, सम्पर्क मार्गों और द्वीपों के विवरण के साथ ही हवाओं, धाराओं, ध्वनियों और तारों की मदद से नौसंचालन की महत्त्वपूर्ण जानकारी देते हैं। इनमें वर्णित समृद्ध मध्यकालीन बंदरगाहों में भारत में दीव और सूरत, फ़ारस में हॉरमुज़ और अरब प्रायद्वीप में मस्कट और अदन, अरब प्रायद्वीप दक्षिण–पूर्वी तट पर अल–हद और मद्रकाह अन्तरीप, दोनों, और सोमालिया में अफ़्रीकी हॉर्न का अन्तरीप ग्वार्डाफुई अन्तरीप वर्णित भू–चिह्नों में हैं। 20वीं शताब्दी में अरब सागर का अध्ययन कई सागरीय अभियानों के माध्यम में किया गया है, जिनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण 1933-34 को 'माबाहिस' या 'जॉन मर्रे' अभियान रहा है, जिसने जल सर्वेक्षण, रसायन विज्ञान, धाराओं, जल पिण्डों, तल के उच्चावच और निक्षेपों के बारे में जानकारियाँ दीं। बहुत सी जानकारी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्द महासागर अभियान (1960-65) के दौरान प्राप्त की गईं, जिसमें ब्रिटिश, अमेरिका, सोवियत और जर्मन जहाज़ों ने भाग लिया और धाराओं, जैवीय उत्पादकता, भूकम्प विज्ञान और भौमिकी का अध्ययन किया।  

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारत का एक संघ शासित प्रदेश, जो लक्कादीव, मिनिकाय और अमीनदीवी द्वीपों से बना है।
  2. जो तट से दूर समुद्र में सतह के निकट रहती हैं।
  3. एक प्रजाति, जिसकी एक लम्बी, तीखी चोंच या थूथन होती है
  4. तेज़ी से तैरने वाली एक बड़ी शिकारी मछली
  5. एक बड़ी प्रजाति, जिसके आरी जैसे दाँत होते हैं
  6. धंसी छाती और पतले शरीर वाली एक रुपहली मछली

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