पुष्कर

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पुष्कर मेला — ऊँटों के व्यापार का बड़ा केन्द्र

पुष्कर, अजमेर
Pushkar, Ajmer

राजस्थान के शहर अजमेर में कई पर्यटन स्थल है जिनमें से ये एक है। पद्म पुराण के अनुसार सृष्टि के आदि में पुष्कर तीर्थ स्थान में वज्रनाभ नामक एक राक्षस रहता था। वह बालकों को मार दिया करता था। उसी समय ब्रह्मा जी के मन में यज्ञ करने की इच्छा हुई। वे भगवान विष्णु की नाभि से निकले, और उस स्थान पर आए जहाँ पर वज्रनाभ रहता था। वहाँ अपने हाथ के कमल को फैंककर उन्होंने वज्रनाभ को मार डाला। ब्रह्मा जी के हाथ पर कमल गिरा था, वहाँ पर सरोवर बन गया, उसे ही पुष्कर सरोवर कहते हैं। ब्रह्मा इसी स्थल पर उतरे तथा यज्ञ का आयोजन हुआ, परन्तु यह सफल नहीं हो सका, क्योंकि उनकी पत्नी सावित्री वहाँ पर उपस्थित नहीं थीं। नारद को सावित्री को बुलाने के लिए भेजा गया। सावित्री ने विधिपूर्वक आने की तैयारी की। सावित्री के आने में देर होने से ब्रह्मा को यह चिन्ता हुई कि यदि उनकी पूजा का शुभ क्षण निकल गया, तो फिर यह पूजा कहीं अन्यत्र न हो सकेगी। शुभ क्षण बीतने के भय से व्याकुल ब्रह्मा ने इन्द्र से आग्रह किया कि वे उनके लिए "कहीं से भी पत्नी" का प्रबन्ध करें। एक युवा गुर्जर[1] बाला गायत्री को यज्ञ में पूजा के लिए लाया गया। इसी बीच में सावित्री वहाँ पर पहुँच गईं, तो वह यह सब देखकर रुष्ट हो गईं कि ब्रह्मा जी के साथ पत्नी के रूप में एक अन्य स्त्री बैठी हुई है। उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दे दिया कि पृथ्वी पर तुम्हारी पूजा इस क्षेत्र को छोड़कर कहीं पर भी नहीं होगी। सावित्री फिर रत्नागिरी पर्वत पर चलीं गईं, जहाँ पर ब्रह्मा ने दूसरा यज्ञ किया। इसी पर्वत के शिखर पर सावित्री का एक मन्दिर भी है।आज भी पुष्कर मे पुजारी गुर्जर समुदाय से होते है।[2]

अजमेर से पुष्कर की दूरी लगभग नौ किलोमीटर है। पुष्कर को तीर्थों का मुख माना जाता है। जिस प्रकार प्रयाग को "तीर्थराज" कहा जाता है, उसी प्रकार से इस तीर्थ को "पुष्करराज" कहा जाता है। पुष्कर की गणना पंचतीर्थों व पंच सरोवरों में की जाती है। पुष्कर सरोवर तीन हैं -

  1. ज्येष्ठ (प्रधान) पुष्कर
  2. मध्य (बूढ़ा) पुष्कर
  3. कनिष्क पुष्कर।

ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता भगवान विष्णु और कनिष्क पुष्कर के देवता रुद्र हैं। पुष्कर का मुख्य मन्दिर ब्रह्माजी का मन्दिर है। जो कि पुष्कर सरोवर से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। मन्दिर में चतुर्मुख ब्रह्मा जी की दाहिनी ओर सावित्री एवं बायीं ओर गायत्री का मन्दिर है। पास में ही एक और सनकादि की मूर्तियाँ हैं, तो एक छोटे से मन्दिर में नारद जी की मूर्ति। एक मन्दिर में हाथी पर बैठे कुबेर तथा नारद की मूर्तियाँ हैं।

पुष्कर में सरस्वती नदी के स्नान का सर्वाधिक महत्व है। यहाँ सरस्वती नाम की एक प्राचीन पवित्र नदी है। यहाँ पर वह पाँच नामों से बहती है। पुष्कर स्नान कार्तिक पूर्णिमा को सर्वाधिक पुण्यप्रद माना जाता है। यहाँ प्रतिवर्ष दो विशाल मेलों का आयोजन किया जाता हैं।

  • कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक यहाँ पर एक विशाल मेला लगता है।
  • दूसरा मेला वैशाख शुक्ला एकादशी से पूर्णिमा तक रहता है।

मेलों के रंग राजस्थान में देखते ही बनते हैं। ये मेले मरुस्थल के गाँवों के कठोर जीवन में एक नवीन उत्साह भर देते हैं। लोग रंग–बिरंगे परिधानों मे सज–धजकर जगह–जगह पर नृत्य गान आदि समारोहों में भाग लेते हैं। यहाँ पर काफ़ी मात्रा में भीड़ देखने को मिलती है। लोग इस मेले को श्रद्धा, आस्था और विश्वास का प्रतीक मानते हैं। पुष्कर मेला थार मरुस्थल का एक लोकप्रिय व रंगों से भरा मेला है। यह कार्तिक शुक्ल एकादशी को प्रारम्भ हो कार्तिक पूर्णिमा तक पाँच दिन तक आयोजित किया जाता है। मेले का समय पूर्ण चन्द्रमा पक्ष, अक्टूबर–नवम्बर का होता है। पुष्कर झील भारतवर्ष में पवित्रतम स्थानों में से एक है। प्राचीनकाल से लोग यहाँ पर प्रतिवर्ष कार्तिक मास में एकत्रित हो भगवान ब्रह्मा की पूजा उपासना करते हैं।

पुष्कर क्षेत्र के विशेष आकर्षण

  • पुष्कर झील राजस्थान के अजमेर नगर से ग्यारह किमी. उत्तर में स्थित है।
  • मान्यता के अनुसार इसका निर्माण भगवान ब्रह्मा ने करवाया था, तथा इसमें बावन स्नान घाट हैं। इन घाटों में वराह, ब्रह्म व गव घाट महत्त्वपूर्ण हैं।
  • वराह घाट भगवान विष्णु ने वराह अवतार (जंगली सूअर) लिया था।
  • पौराणिक सरस्वती नदी कुरुक्षेत्र के समीप लुप्त हो जाने के बाद यहाँ पुनः प्रवाहित होती है। ऐसी मान्यता है कि श्रीराम ने यहाँ पर स्नान किया था। लघु पुष्कर के गव कुंड स्थान पर लोग अपेन दिवंगत पुरखों के लिए अनुष्ठान करते हैं।
  • भगवान ब्रह्मा का समर्पित पुष्कर में पाँच मन्दिर हैं — ब्रह्मा मन्दिर, सावित्री मन्दिर, बद्रीनारायण मन्दिर, वराह मन्दिर व शिवआत्मेश्वरी मन्दिर।

देश का इकलौता ब्रह्मा मन्दिर

ऊँट मेला, पुष्कर
Camel Fair, Pushkar

ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लिखित है कि अपने मानस पुत्र नारद द्वारा सृष्टिकर्म करने से इन्कार किए जाने पर ब्रह्मा ने उन्हें रोषपूर्वक शाप दे दिया कि—"तुमने मेरी आज्ञा की अवहेलना की है, अतः मेरे शाप से तुम्हारा ज्ञान नष्ट हो जाएगा और तुम गन्धर्व योनि को प्राप्त करके कामिनियों के वशीभूत हो जाओगे।" तब नारद ने भी दुःखी पिता ब्रह्मा को शाप दिया—"तात! आपने बिना किसी कारण के सोचे - विचारे मुझे शाप दिया है। अतः मैं भी आपको शाप देता हूँ कि तीन कल्पों तक लोक में आपकी पूजा नहीं होगी और आपके मंत्र, श्लोक कवच आदि का लोप हो जाएगा।" तभी से ब्रह्मा जी की पूजा नहीं होती है। मात्र पुष्कर क्षेत्र में ही वर्ष में एक बार उनकी पूजा–अर्चना होती है।

पूरे भारत में केवल एक यही ब्रह्मा का मन्दिर है। इस मन्दिर का निर्माण ग्वालियर के महाजन गोकुल प्राक् ने अजमेर में करवाया था। ब्रह्मा मन्दिर की लाट लाल रंग की है तथा इसमें ब्रह्मा के वाहन हंस की आकृतियाँ हैं। चतुर्मुखी ब्रह्मा देवी गायत्री तथा सावित्री यहाँ मूर्तिरूप में विद्यमान हैं। हिन्दुओं के लिए पुष्कर एक पवित्र तीर्थ व महान पवित्र स्थल है।

वर्तमान समय में इसकी देख–रेख की व्यवस्था सरकार ने सम्भाल रखी है। अतः तीर्थस्थल की स्वच्छता बनाए रखने में भी काफ़ी मदद मिली है। यात्रियों की आवास व्यवस्था का विशेष ध्यान रखा जाता है। हर तीर्थयात्री, जो यहाँ आता है, यहाँ की पवित्रता और सौंदर्य की मन में एक याद संजोए जाता है।

पुष्कर का प्रसिद्ध ऊँट मेला

पुष्कर मेले का एक रोचक अंग ऊँटों का क्रय–विक्रय है। निस्संदेह अन्य पशुओं का भी व्यापार किया जाता है, परन्तु ऊँटों का व्यापार ही यहाँ का मुख्य आकर्षण होता है। मीलों दूर से ऊँट व्यापारी अपने पशुओं के साथ में पुष्कर आते हैं। पच्चीस हज़ार से भी अधिक ऊँटों का व्यापार यहाँ पर होता है। यह सम्भवतः ऊँटों का संसार भर में सबसे बड़ा मेला होता है। इस दौरान लोग ऊँटों की सवारी कर ख़रीददारों का अपनी ओर लुभाते हैं।

पुष्कर झील
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Panoramic View Of Pushkar Lake, Ajmer

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संदर्भ