पुष्कर

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Disamb2.jpg पुष्कर एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- पुष्कर (बहुविकल्पी)


पुष्कर
पुष्कर, अजमेर
विवरण पुष्कर, ब्रह्मा के मंदिर और ऊँटों के व्यापार मेले के लिए प्रसिद्ध है।
राज्य राजस्थान
ज़िला अजमेर
भौगोलिक स्थिति उत्तर- 26° 30' 0.00", पूर्व- 74° 33' 0.00"
मार्ग स्थिति पुष्कर जंक्शन रोड से लगभग 13 से 14 किमी की दूरी पर स्थित है।
प्रसिद्धि पुष्कर के मेले में पच्चीस हज़ार से भी अधिक ऊँटों का व्यापार होता है।
कैसे पहुँचें हवाई जहाज़, रेल, बस आदि
हवाई अड्डा सांगानेर हवाई अड्डे, जयपुर
रेलवे स्टेशन अजमेर रेलवे स्टेशन
बस अड्डा अजमेर बस अड्डा
यातायात टैक्सी, ऑटो रिक्शा, साईकिल रिक्शा, स्थानीय बस
क्या देखें ब्रह्मा मन्दिर, सावित्री मन्दिर, बद्रीनारायण मन्दिर, वराह मन्दिर व शिवात्मेश्वरी मन्दिर
कहाँ ठहरें होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह
एस.टी.डी. कोड 0145
ए.टी.एम लगभग सभी
Map-icon.gif गूगल मानचित्र
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अन्य जानकारी पुष्कर में देश का इकलौता ब्रह्मा मन्दिर है।
अद्यतन‎

पुष्कर ब्रह्मा के मंदिर और ऊँटों के व्यापार मेले के लिए प्रसिद्ध है। पुष्कर का शाब्दिक अर्थ है तालाब। अजमेर से मात्र 11 किलोमीटर दूर तीर्थराज पुष्कर विश्वविख्यात है और पुराणों में वर्णित तीर्थों में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। राजस्थान के शहर अजमेर में कई पर्यटन स्थल है जिनमें से ये एक है। अनेक पौराणिक कथाएं इसका प्रमाण हैं। यहाँ से प्रागैतिहासिक कालीन पाषाण निर्मित अस्त्र-शस्त्र मिले हैं, जो उस युग में यहाँ पर मानव के क्रिया-कलापों की ओर संकेत करते हैं।

ऐतिहासिक उल्लेख

बताया जाता है कि कभी इस स्थान पर मेड़ (मेर) जाति के आदिवासी निवास करते थे। उनके नाम पर इस पूरे प्रदेश का नाम मेरवाड़ा कहा जाता था। ईस्वी शताब्दी के प्रारंभ में यह क्षेत्र तक्षकों के अधिकार में रहा। इन तक्षकों को नाग भी कहा जाता था। इनका बौद्धों से वैमनस्य था। बौद्धों व हूणों के बार-बार आक्रमण के कारण ये पहाडिय़ां बदल-बदल कर आखिर वहाँ पहुंचे, जहां पुष्कर तीर्थ था। उन्होंने यहाँ से मेड़ों को मार भगाया। नाग पर्वत उनकी स्मृति का प्रतीक है। इतिहास की करवट के साथ यह आदिवासी क्षेत्र राजपूतकाल में परमार शासकों के अधीन आ गया। उस समय इस क्षेत्र को पद्मावती कहा जाने लगा। नाग व परमार दोनों ही जैन धर्मानुयायी जातियां रहीं। ब्राह्मणों से उनके संघर्ष के अनेक उदाहरण पुराणों में उपलब्ध हैं। जोधपुर के निकट मंडोर के परिहार राजपूत राजाओं व मेरवाड़ा के गुर्जर राजाओं व जागीरदारों की मदद से ब्राह्मणों ने इन जैन परमारों को सत्ताच्युत कर दिया। ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के कुछ शिलालेख मिले हैं, जिनमें वर्णित प्रसंगों के आधार पर कहा जाता है कि हिंदुओं के समान ही बौद्धों के लिए भी पुष्कर पवित्र स्थान रहा है।

  • भगवान बुद्ध ने यहां ब्राह्मणों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। फलस्वरूप बौद्धों की एक नई शाखा पौष्करायिणी स्थापित हुई। शंकराचार्य, जिन सूरी और जिन वल्लभ सूरी, हिमगिरि, पुष्पक, ईशिदत्त आदि विद्वानों के नाम पुष्कर से जुड़े हुए हैं। चौहान राजा अरणोराज के काल में विशाल शास्त्रार्थ हुआ था। इसमें अजमेर के जैन विद्वान् जिन सूरी और जिन वल्लभ सूरी ने भाग लिया था। पांच सौ साल पहले निम्बार्काचार्य परशुराम देवाचार्य निकटवर्ती निम्बार्क तीर्थ से रोज यहां स्नानार्थ आते थे। वल्लभाचार्य महाप्रभु ने यहां श्रीमद्भागवत कथा की। गुरुनानक देव ने यहाँ ग्रंथ साहब का पाठ किया और सन् 1662 में गुरु गोविंद सिंह ने भी गऊघाट पर संगत की। ईसा पश्चात् 1809 में मराठा सरदारों ने इसका पुनर्निर्माण करवाया। यही वह स्थान है, जहां गुरु गोविंदसिंह ने संवत 1762 (ईसा पश्चात् 1705) में गुरुग्रंथ साहब का पाठ किया।
पुष्कर, अजमेर
  • सन् 1911 ईस्वी बाद अंग्रेज़ी शासनकाल में महारानी मेरी ने यहां महिलाओं के लिए अलग से घाट बनवाया। इसी स्थान पर महात्मा गांधी की अस्थियां प्रवाहित की गईं, तब से इसे गांधी घाट भी कहा जाता है। मारवाड़ मंडोर के प्रतिहार नरेश नाहड़राव ने पुष्कर के जल से कुष्ठ रोग से मुक्ति पर पुष्कर सरोवर की खुदाई की, घाट व धर्मशाला बनवाई। हर्षनाथ मंदिर (सीकर) में मिले सन् 1037 के एक शिलालेख के अनुसार चौहान राजा सिंहराज ने हर्षनाथ मंदिर बनवाया। राणा मोकल ने वराह मंदिर में अपने को स्वर्ण से तुलवा कर ब्राह्मणों को दान में दिया। जोधपुर, जयपुर, कोटा, भरतपुर आदि रियासतों के राजाओं ने घाट बनवाए।
  • पुष्कर जैनों को भी पवित्र तीर्थ रहा है। जैनों की पट्टावलियों व वंशावलियों में यह क्षेत्र पद्मावती के नाम से विख्यात था। जिनपति सूरी ने ईसा पश्चात् 1168, 1188 व 1192 में इस स्थान की यात्रा की और अनेक लोगों को दीक्षा दी। वराह मंदिर के पास हुआ घमासान पुष्कर में पौराणिक महत्व का वराह मंदिर एक घमासान युद्ध का गवाह रहा है। यहाँ औरंगजेब और जोधपुर के महाराज अजीत सिंह के बीच हुए युद्ध में दोनों ओर के सात हज़ार सैनिक शहीद हुए थे। अजमेर के सूबेदार तहव्वुर खान को विजय मिली और उत्सव मनाने के लिए उसने एक हज़ार गायें काटने का ऐलान किया। इस पर राजपूतों ने फिर युद्ध कर तहव्वुर को भगा दिया। जीत की खुशी में गाय की प्रतिमा स्थापित की। यही प्रतिमा आज गऊ घाट पर विद्यमान है। गऊ घाट के पास शाही मस्जिद तहव्वुर ने बनवाई थी।

पौराणिक उल्लेख

पुष्कर

पौराणिक दृष्टि से पुष्कर के निर्माण की गाथाएं रहस्य और रोमांच से परिपूर्ण हैं। इनका उल्लेख पद्मपुराण में मिलता है। पद्मपुराण के सृष्टि खंड में लिखा है कि किसी समय वज्रनाभ नामक एक राक्षस इस स्थान में रह कर ब्रह्माजी के पुत्रों का वध किया करता था। ब्रह्माजी ने क्रोधित हो कर कमल का प्रहार कर इस राक्षस को मार डाला। उस समय कमल की जो तीन पंखुडियाँ ज़मीन पर गिरीं, उन स्थानों पर जल धारा प्रवाहित होने लगी। कालांतर में ये ही तीनों स्थल ज्येष्ठ पुष्कर, मध्यम पुष्कर व कनिष्ठ पुष्कर के नाम से विख्यात हुए। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्मा, मध्य के विष्णु व कनिष्ठ के देवता शिव हैं। मुख्य पुष्कर ज्येष्ठ पुष्कर है और कनिष्ठ पुष्कर बूढ़ा पुष्कर के नाम से विख्यात हैं, जिसका हाल ही जीर्णोद्धार कराया गया है। इसे बुद्ध पुष्कर भी कहा जाता है। पुष्कर के नामकरण के बारे में कहा जाता है कि ब्रह्माजी के हाथों (कर) से पुष्प गिरने के कारण यह स्थान पुष्कर कहलाया। राक्षस का वध करने के बाद ब्रह्माजी ने इस स्थान को पवित्र करने के उद्देश्य से कार्तिक नक्षत्र के उदय के समय कार्तिक एकादशी से यहाँ यज्ञ किया, जिसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया। उसकी पूर्णाहुति पूर्णिमा के दिन हुई। उसी की स्मृति में यहाँ कार्तिक माह एकादशी से पूर्णिमा तक मेला लगने लगा।

पद्म पुराण के अनुसार यज्ञ को निर्विघ्न पूरा करने के लिए ब्रह्माजी ने दक्षिण दिशा में रत्नागिरी, उत्तर में नीलगिरी, पश्चिम में सोनाचूड़ और पूर्व दिशा में सर्पगिरी (नाग पहाड़) नामक पहाड़ियाँ बनाई थीं। परम आराध्या देवी गायत्री का जन्म स्थान भी पुष्कर ही माना जाता है। कहते हैं कि यज्ञ शुरू करने से पहले ब्रह्माजी ने अपनी पत्नी सावित्री को बुला कर लाने के लिए अपने पुत्र नारद से कहा। नारद के कहने पर जब सावित्री रवाना होने लगी तो नारद ने उनको देव-ऋषियों की पत्नियों को भी साथ ले जाने की सलाह दी। इस कारण सावित्री को विलम्ब हो गया। यज्ञ के नियमों के तहत पत्नी की उपस्थिति ज़रूरी थी। इस कारण इन्द्र ने एक गुर्जर कन्या को तलाश कर गाय के मुंह में डाल कर पीठ से निकाल कर पवित्र किया और उसका ब्रह्माजी के साथ विवाह संपन्न हुआ। इसी कारण उसका नाम गायत्री कहलाया। जैसे ही सावित्री यहाँ पहुँची और ब्रह्माजी को गायत्री के साथ बैठा देखा तो उसने क्रोधित हो कर ब्रह्माजी को शाप दिया कि पुष्कर के अलावा पृथ्वी पर आपका कोई मंदिर नहीं होगा। इन्द्र को शाप दिया कि युद्ध में तुम कभी विजयी नहीं हो पाआगे। ब्राह्मणों को शाप दिया कि तुम सदा दरिद्र रहोगे। गाय को शाप दिया कि तू गंदी वस्तुओं का सेवन करेगी। कुबेर को शाप दिया कि तुम धनहीन हो जाओगे। यज्ञ की समाप्ति पर गायत्री ने सभी को शाप से मुक्ति दिलाई और ब्राह्मणों से कहा कि तुम संसार में पूजनीय रहोगे। इन्द्र से कहा कि तुम हार कर भी स्वर्ग में निवास करोगे।

पुष्कर माहात्म्य

ऋषि बोले, हे महाभाग! पद्मक योग का किस समय ठीक स्वरूप होता है, सो कहो। सूत जी ने कहा - विशाखा नक्षत्र पर सूर्य हो और कृत्तिका पर चंद्रमा हो, तब 'पद्मक योग' होता है, परंतु पुष्कर तीर्थ में इसका मिलना कठिन है। हे द्विजों में उत्तम जब कार्तिकी कृतिका नक्षत्रयुक्त हो और सूर्य विशाखा नक्षत्र पर हो, वहां यहां 'कार्तिकी' कहलाती है, इस दिन स्नान करने पर सूर्यग्रहण जितना फल होता है। जो मनुष्य श्रृद्धा से 'ज्येष्ठ पुष्कर' में स्नान करे, वह बारह वर्ष के संपूर्ण फल को प्राप्त करता है। द्विज बोले- हे सूत नंदन! तीर्थ पुष्कर अंतरिक्ष में क्यों ठहरा है और मनुष्यों को कैसे मिल सकता है? यह हमसे कहो। सूत जी बोले- पूर्वकाल में पाप से संयुक्त होने पर भी पुष्कर स्नान करने से ही मनुष्य स्वर्ग को चले जाते थे, इस कारण से अग्निष्टोम यज्ञ, उत्तम कर्म, देव पूजन पितृकर्म और जपादिक सब बंद हो गए। केवल पुष्कर में स्नान करके लोग स्वर्ग में जाने लगे और स्वर्गलोक मनुष्यों से भर गया, तब देवताओं के मन में चिंता हुई। तब इंद्र, सब देवगण, विष्णु और शिव को आगे कर ब्रह्मलोक में ब्रह्मदेव की अनेक प्रकार वेद सूक्तों से स्तुति कर देवता बोले- हे देव! यह जो आपने पुष्कर तीर्थ बनाया है, इसके प्रभाव से स्वर्ग मनुष्यों से भर गया है। मनुष्य पापी होने पर भी देवता की बराबरी कैसे कर सकता है? इसलिए हे महाभाग चतुर्मुख! पुष्कर तीर्थ के स्नान का फल निष्फल कीजिए। ब्रह्मा जी ने कहा- जहर का वृक्ष भी लगाकर काटना नहीं चाहिए, इसलिए हे देवताओ, मैं इस तीर्थ को अंतरिक्ष में रखूंगा। हे देव! कार्तिक शुक्लपक्ष के अंत के पांच दिन छोड़ यहां रहेगा, उन पांच दिनों में तीर्थ पुष्कर भूतल पर रहेगा, शेष काल में मंत्रों से आह्वान होने पर पुष्कर तीर्थ अंतरिक्ष से भूतल पर आ जाएगा। हे द्विज श्रेष्ठ! इस कारण से पुष्कर भूमि पर होकर भी अंतरिक्ष में हो गया। सूत जी बोले- तीर्थराज पुष्कर में अनेक मुनियों व देवताओं के आश्रम और तीर्थ हैं सो हमसे कहो। सूतजी बोले- हे उत्तम जन! तीर्थ में मुनियों और राज ऋषियों के असंख्य स्थान हैं, जिनकी संख्या बृहस्पति आदि सैकड़ों वर्षों में भी नहीं कर सकते हैं। इस पुष्कर क्षेत्र में पंचश्रोता सरस्वती, प्राणियों के पाप दूर करने के लिए ब्रह्मलोक से आकर ठहरी हैं और उनका सुप्रभा, चंद्रा, नंदा, प्राची, सरस्वती- ये पांच श्रोत स्थित हैं। ज्येष्ठ पुष्कर में सुप्रभा नदी, मध्य पुष्कर में शुद्ध नदी और कनिष्ठ पुष्कर में कनका, नंदा और प्राची सरस्वती नदी बहती है और मंगलकारणी, विष्णु पदि, पद-पद पर पर्वतों-शिखरों को धोती है। जिसके दर्शन मात्र से मनुष्य पापों से छूट जाता है। यज्ञ पर्वत के किनारे पर जो नाग तीर्थ प्रसिद्ध हैं, वहां स्नान करने वाले मनुष्य को सांप काटने से कभी मृत्यु नहीं होती है। भगवान विष्णु ने प्रथम चक्र यहां छोड़ा था, वह प्रति वासर में पिंड देने से पितृगण प्रसन्न होकर उत्तम गति को प्राप्त होते हैं।[1]

रामायण में उल्लेख

वाल्मिकी रामायण में भी पुष्कर का उल्लेख है। अयोध्या के राजा त्रिशंकु को सदेह स्वर्ग में भेजने के लिए अपना सारा तप दांव लगा देने के लिए विश्वामित्र ने यहाँ तप किया था। यह उल्लेख भी मिलता है कि अप्सरा मेनका भी पुष्कर के पवित्र जल में स्नान करने आयी थी। उसको देख कर ही विश्वामित्र काम के वशीभूत हो गए थे। वे दस साल तक मेनका के संसर्ग में रहे, जिससे शकुन्तला नामक पुत्र का जन्म हुआ। भगवान राम ने अपने पिताश्री दशरथ का श्राद्ध मध्य पुष्कर के निकट गया कुंड में ही किया था।

पुष्कर, अजमेर

महाभारत में उल्लेख

महाभारत में महाराजा युधिष्ठिर के यात्रा वृतांत के वर्णन में यह उल्लेख मिलता है कि महाराजा को जंगलों में होते हुए छोटी-छोटी नदियों को पार करते हुए पुष्कर के जल में स्नान करना चाहिए। महाभारत काल की पुष्टि करते कुछ सिक्के भी खुदाई में मिले हैं। कहा जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास काल के कुछ दिन पुष्कर में ही बिताए थे। उन्हीं के नाम पर यहाँ पंचकुंड बना हुआ है। सुभद्रा हरण के बाद अर्जुन ने पुष्कर में कुछ समय विश्राम किया था। अगस्त्य, वामदेव, जमदग्नि, भृतहरि ऋषियों की तपस्या स्थली के रूप में उनकी गुफाएं आज भी नाग पहाड़ में हैं। बताया जाता है कि पाराशर ऋषि भी इसी स्थान पर उत्पन्न हुए थे। उन्हीं के वशंज पाराशर ब्राह्मण कहलाते हैं। महाभारत के वन पर्व के अनुसार श्रीकृष्ण ने पुष्कर में दीर्घकाल तक तपस्या की।

लुप्त सरस्वती नदी

ऐसी मान्यता है कि वेदों में वर्णित सरस्वती नदी पुष्कर तीर्थ और इसके आसपास बहती है। पुष्कर के समीपर्ती गनाहेड़ा, बांसेली, चावंडिया, नांद व भगवानपुरा की रेतीली भूमि में ही सरस्वती का विस्तार था। पद्म पुराण के अनुसार देवताओं ने बड़वानल को पश्चिमी समुद्र में ले जाने के लिए जगतपिता ब्रह्मा की निष्पाप कुमारी कन्या सरस्वती से अनुरोध किया तो वह सबसे पहले ब्रह्माजी के पास यहीं पुष्कर में आशीर्वाद लेने पहुंची। वह ब्रह्माजी के सृष्टि रचना यज्ञ स्थली की अग्रि को अपने साथ लेकर आगे बढ़ीं। महाभारत के शल्य पर्व (गदा युद्ध पर्व) में एक श्लोक है-पितामहेन मजता आहूता पुष्करेज वा सुप्रभा नाम राजेन्द्र नाम्नातम सरस्वती। अर्थात् पितामह ब्रह्माजी ने सरस्वती को पुष्कर में आहूत किया। बताते हैं कि नांद, पिचौलिया व भगवानपुरा जिस नदी से सरसब्ज रहे, वह नंदा सरस्वती ही मौलिक रूप से सरस्वती नदी है। इसके बारे में पद्म पुराण में रोचक कथा है। इसके अनुसार राजा प्रभंजन कुमार ने बच्चे को दूध पिलाती एक हिरणी को तार दिया तो हिरणी के शाप से एक सौ साल तक नरभक्षी बाघ बने रहे। उसने शाप मुक्ति का उपाय पूछा तो हिरणी ने बताया कि नंदा नाम की गाय से वार्तालाप से मुक्ति मिलेगी। एक सौ साल पूरे होने पर बाघ ने एक गाय को पकड़ लिया। गाय ने जैसे ही बताया कि वह नंदा है तो बाघ वापस राजा प्रभंजन के रूप में अवतरित हो गया। गाय की सच्चाई से प्रसन्न हो धर्मराज ने वचन दिया यहां वन में बहने वाली सरस्वती नदी नंदा के नाम से पुकारी जाए।

पुष्कर क्षेत्र के विशेष आकर्षण

  • पुष्कर झील राजस्थान के अजमेर नगर से ग्यारह किलोमीटर उत्तर में स्थित है।
  • मान्यता के अनुसार इसका निर्माण भगवान ब्रह्मा ने करवाया था, तथा इसमें बावन स्नान घाट हैं। इन घाटों में वराह, ब्रह्म व गऊ घाट महत्त्वपूर्ण हैं।
  • वराह घाट पर भगवान विष्णु ने वराह अवतार (जंगली सूअर) लिया था।
  • पौराणिक सरस्वती नदी कुरुक्षेत्र के समीप लुप्त हो जाने के बाद यहाँ पुनः प्रवाहित होती है। ऐसी मान्यता है कि श्रीराम ने यहाँ पर स्नान किया था। लघु पुष्कर के गव कुंड स्थान पर लोग अपने दिवंगत पुरखों के लिए अनुष्ठान करते हैं।
  • भगवान ब्रह्मा का समर्पित पुष्कर में पाँच मन्दिर हैं— ब्रह्मा मन्दिर, सावित्री मन्दिर, बद्रीनारायण मन्दिर, वराह मन्दिर व शिवआत्मेश्वरी मन्दिर।

देश का इकलौता ब्रह्मा मन्दिर

पुष्कर को तीर्थों का मुख माना जाता है। जिस प्रकार प्रयाग को "तीर्थराज" कहा जाता है, उसी प्रकार से इस तीर्थ को "पुष्करराज" कहा जाता है। पुष्कर की गणना पंचतीर्थों व पंच सरोवरों में की जाती है। पुष्कर सरोवर तीन हैं -

  1. ज्येष्ठ (प्रधान) पुष्कर
  2. मध्य (बूढ़ा) पुष्कर
  3. कनिष्क पुष्कर।
ब्रह्मा मन्दिर, पुष्कर

ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता भगवान विष्णु और कनिष्क पुष्कर के देवता रुद्र हैं। पुष्कर का मुख्य मन्दिर ब्रह्माजी का मन्दिर है। जो कि पुष्कर सरोवर से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। मन्दिर में चतुर्मुख ब्रह्मा जी की दाहिनी ओर सावित्री एवं बायीं ओर गायत्री का मन्दिर है। पास में ही एक और सनकादि की मूर्तियाँ हैं, तो एक छोटे से मन्दिर में नारद जी की मूर्ति। एक मन्दिर में हाथी पर बैठे कुबेर तथा नारद की मूर्तियाँ हैं।

ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लिखित है कि अपने मानस पुत्र नारद द्वारा सृष्टिकर्म करने से इन्कार किए जाने पर ब्रह्मा ने उन्हें रोषपूर्वक शाप दे दिया कि—"तुमने मेरी आज्ञा की अवहेलना की है, अतः मेरे शाप से तुम्हारा ज्ञान नष्ट हो जाएगा और तुम गन्धर्व योनि को प्राप्त करके कामिनियों के वशीभूत हो जाओगे।" तब नारद ने भी दुःखी पिता ब्रह्मा को शाप दिया—"तात! आपने बिना किसी कारण के सोचे - विचारे मुझे शाप दिया है। अतः मैं भी आपको शाप देता हूँ कि तीन कल्पों तक लोक में आपकी पूजा नहीं होगी और आपके मंत्र, श्लोक कवच आदि का लोप हो जाएगा।" तभी से ब्रह्मा जी की पूजा नहीं होती है। मात्र पुष्कर क्षेत्र में ही वर्ष में एक बार उनकी पूजा–अर्चना होती है।

पूरे भारत में केवल एक यही ब्रह्मा का मन्दिर है। इस मन्दिर का निर्माण ग्वालियर के महाजन गोकुल प्राक् ने अजमेर में करवाया था। ब्रह्मा मन्दिर की लाट लाल रंग की है तथा इसमें ब्रह्मा के वाहन हंस की आकृतियाँ हैं। चतुर्मुखी ब्रह्मा देवी गायत्री तथा सावित्री यहाँ मूर्तिरूप में विद्यमान हैं। हिन्दुओं के लिए पुष्कर एक पवित्र तीर्थ व महान् पवित्र स्थल है।

वर्तमान समय में इसकी देख–रेख की व्यवस्था सरकार ने सम्भाल रखी है। अतः तीर्थस्थल की स्वच्छता बनाए रखने में भी काफ़ी मदद मिली है। यात्रियों की आवास व्यवस्था का विशेष ध्यान रखा जाता है। हर तीर्थयात्री, जो यहाँ आता है, यहाँ की पवित्रता और सौंदर्य की मन में एक याद संजोए जाता है।

पुष्कर मेला

ऊँट मेला, पुष्कर

पुष्कर मेले का एक रोचक अंग ऊँटों का क्रय–विक्रय है। निस्संदेह अन्य पशुओं का भी व्यापार किया जाता है, परन्तु ऊँटों का व्यापार ही यहाँ का मुख्य आकर्षण होता है। मीलों दूर से ऊँट व्यापारी अपने पशुओं के साथ में पुष्कर आते हैं। पच्चीस हज़ार से भी अधिक ऊँटों का व्यापार यहाँ पर होता है। यह सम्भवतः ऊँटों का संसार भर में सबसे बड़ा मेला होता है। इस दौरान लोग ऊँटों की सवारी कर ख़रीददारों का अपनी ओर लुभाते हैं। पुष्कर में सरस्वती नदी के स्नान का सर्वाधिक महत्त्व है। यहाँ सरस्वती नाम की एक प्राचीन पवित्र नदी है। यहाँ पर वह पाँच नामों से बहती है। पुष्कर स्नान कार्तिक पूर्णिमा को सर्वाधिक पुण्यप्रद माना जाता है। यहाँ प्रतिवर्ष दो विशाल मेलों का आयोजन किया जाता हैं।

  • कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक यहाँ पर एक विशाल मेला लगता है।
  • दूसरा मेला वैशाख शुक्ला एकादशी से पूर्णिमा तक रहता है।

मेलों के रंग राजस्थान में देखते ही बनते हैं। ये मेले मरुस्थल के गाँवों के कठोर जीवन में एक नवीन उत्साह भर देते हैं। लोग रंग–बिरंगे परिधानों में सज–धजकर जगह–जगह पर नृत्य गान आदि समारोहों में भाग लेते हैं। यहाँ पर काफ़ी मात्रा में भीड़ देखने को मिलती है। लोग इस मेले को श्रद्धा, आस्था और विश्वास का प्रतीक मानते हैं। पुष्कर मेला थार मरुस्थल का एक लोकप्रिय व रंगों से भरा मेला है। यह कार्तिक शुक्ल एकादशी को प्रारम्भ हो कार्तिक पूर्णिमा तक पाँच दिन तक आयोजित किया जाता है। मेले का समय पूर्ण चन्द्रमा पक्ष, अक्टूबर–नवम्बर का होता है। पुष्कर झील भारतवर्ष में पवित्रतम स्थानों में से एक है। प्राचीनकाल से लोग यहाँ पर प्रतिवर्ष कार्तिक मास में एकत्रित हो भगवान ब्रह्मा की पूजा उपासना करते हैं। [2]

पुष्कर झील
अजमेर की पुष्कर झील का विह्गंम दृश्य


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुष्कर माहात्म्य (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 22 अप्रैल, 2013।
  2. पुष्कर (हिन्दी) google.com/site/ajmervisit। अभिगमन तिथि: 4 जुलाई, 2011।

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