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बद्रीनाथ [[उत्तरांचल]] राज्य, उत्तरी [[भारत]], शीत ॠतु में निर्जुन रहने वाला गांव और मंदिर है। [[गंगा नदी]] की मुख्य धारा के किनारे बसा यह तीर्थस्थल [[हिमालय]] में समुद्र तल से 3,050 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह [[अलकनंदा नदी]] के बाएं तट पर नर और नारायण नामक दो पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित है। बद्रीनाथ का नामकरण एक समय में यहाँ प्रचुर मात्रा में पाई जाने वाली जंगली बेरी बद्री के नाम पर हुआ। बद्रीनाथ को चार धामों में से एक है।
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बद्रीनाथ उत्तर दिशा में हिमालय की अधित्यका पर [[हिन्दू|हिन्दुओं]] का मुख्य यात्रा धाम माना जाता है। मन्दिर में नर-नारायण विग्रह की [[पूजा]] होती है और अखण्ड दीप जलता है, जो कि अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है। बद्रीनाथ [[भारत]] के चार धामों में प्रमुख तीर्थ है। प्रत्येक हिन्दू की यह कामना होती है कि वह बद्रीनाथ का दर्शन एक बार अवश्य करे। यहाँ पर शीत के कारण [[अलकनन्दा]] में स्नान करना अत्यन्त ही कठिन है। अलकनन्दा के तो दर्शन ही किये जाते हैं। यात्री तप्तकुण्ड में स्नान करते हैं। वनतुलसी की माला, चले की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
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==मूर्ति स्थापना==
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बद्रीनाथ की मूर्ति शालग्राम शिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। कहा जाता है कि यह मूर्ति [[देवता|देवताओं]] ने [[नारद कुण्ड काम्यवन|नारदकुण्ड]] से निकालकर स्थापित की थी। सिद्ध, [[ऋषि]], [[मुनि]] इसके प्रधान अर्चक थे। जब [[बौद्ध|बौद्धों]] का प्राबल्य हुआ तब उन्होंने इसे [[बुद्ध]] की मूर्ति मानकर पूजा आरम्भ की। [[शंकराचार्य]] की प्रचार यात्रा के समय [[बौद्ध]] [[तिब्बत]] भागते हुए मूर्ति को अलकनन्दा में फेंक गए। शंकराचार्य ने अलकनन्दा से पुन: बाहर निकालकर उसकी स्थापना की। तदनन्तर मूर्ति पुन: स्थानान्तरित हो गयी और तीसरी बार तप्तकुण्ड से निकालकर [[रामानुजाचार्य]] ने इसकी स्थापना की। मन्दिर में बद्रीनाथ की दाहिनी ओर कुबेर की मूर्ति है। उनके सामने उद्धवजी हैं तथा उत्सवमूर्ति है। उत्सवमूर्ति शीतकाल में बर्फ़ जमने पर [[जोशीमठ]] में ले जायी जाती है। उद्धवजी के पास ही चरणपादुका है। बायीं ओर नर-नारायण की मूर्ति है। इनके समीप ही श्रीदेवी और भूदेवी है।
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==पौराणिक मान्यता==
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब [[गंगा नदी]] धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बद्रीनाथ, भगवान [[विष्णु]] का वास बना। भगवान विष्णु की प्रतिमा वाला वर्तमान मंदिर 3,133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और माना जाता है कि [[आदि शंकराचार्य]], आठवीं शताब्दी के दार्शनिक संत ने इसका निर्माण कराया था। इसके पश्चिम में 27 किमी की दूरी पर स्थित बद्रीनाथ शिखर की ऊँचाई 7,138 मीटर है। बद्रीनाथ में एक मंदिर है, जिसमें बद्रीनाथ या विष्णु की वेदी है। यह 2,000 वर्ष से भी अधिक समय से एक प्रसिद्ध [[तीर्थ स्थान]] रहा है।  
 
==दर्शनीय स्थल==
 
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बद्रीनाथ में अन्य दर्शनीय स्थल हैं-  
 
बद्रीनाथ में अन्य दर्शनीय स्थल हैं-  
*अलकनंदा के तट पर स्थित गर्म झरना- तप्त कुंड,
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*अलकनंदा के तट पर स्थित गर्म झरना- तप्त कुंड
*धार्मिक अनुष्टानों के लिए इस्तेमाल होने वाला एक समतल चबूतरा- ब्रह्म कपाल;
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*धार्मिक अनुष्टानों के लिए इस्तेमाल होने वाला एक समतल चबूतरा- ब्रह्म कपाल
*पौराणिक कथाओं में उल्लिखित सांप,
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*पौराणिक कथाओं में उल्लिखित सांप
*शेषनाग की कथित छाप वाला एक शिलाखंड – शेषनेत्र;
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*शेषनाग की कथित छाप वाला एक शिलाखंड – शेषनेत्र
*चरणपादुका- जिसके बारे में कहा जाता है कि यह भगवान विष्णु के पैरों के निशान हैं; और
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*चरणपादुका- जिसके बारे में कहा जाता है कि यह भगवान विष्णु के पैरों के निशान हैं।
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*बद्रीनाथ से नज़र आने वाला बर्फ़ से ढंका ऊँचा शिखर नीलकंठ, जो 'गढ़वाल क्वीन' के नाम से जाना जाता है।
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09:22, 17 अगस्त 2016 के समय का अवतरण

बद्रीनाथ
बद्रीनाथ मंदिर
वर्णन गंगा नदी की मुख्य धारा के किनारे बसा यह तीर्थस्थल समुद्र तल से 3,050 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
स्थान चमोली, उत्तराखण्ड
निर्माता आदि शंकराचार्य
निर्माण काल 9वीं शताब्दी
देवी-देवता बद्रीनारायण (विष्णु)
भौगोलिक स्थिति 30° 44′ 40.9″ उत्तर, 79° 29′ 28.23″ पूर्व
संबंधित लेख चार धाम यात्रा, बद्री नाथ जी की आरती
प्रसिद्धि यह भारत के चार प्रमुख धामों में से एक है।
अन्य जानकारी बद्रीनाथ का नामकरण एक समय यहाँ प्रचुर मात्रा में पाई जाने वाली जंगली बेरी बद्री के नाम पर हुआ।

बद्रीनाथ उत्तरांचल राज्य, उत्तरी भारत, शीत ऋतु में निर्जुन रहने वाला एक गांव एवं मंदिर है। गंगा नदी की मुख्य धारा के किनारे बसा यह तीर्थस्थल हिमालय में समुद्र तल से 3,050 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नामक दो पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित है। बद्रीनाथ का नामकरण एक समय यहाँ प्रचुर मात्रा में पाई जाने वाली जंगली बेरी बद्री के नाम पर हुआ। यह भारत के चार प्रमुख धामों में से एक है।

महत्व

बद्रीनाथ उत्तर दिशा में हिमालय की अधित्यका पर हिन्दुओं का मुख्य यात्रा धाम माना जाता है। मन्दिर में नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है और अखण्ड दीप जलता है, जो कि अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है। बद्रीनाथ भारत के चार धामों में प्रमुख तीर्थ है। प्रत्येक हिन्दू की यह कामना होती है कि वह बद्रीनाथ का दर्शन एक बार अवश्य करे। यहाँ पर शीत के कारण अलकनन्दा में स्नान करना अत्यन्त ही कठिन है। अलकनन्दा के तो दर्शन ही किये जाते हैं। यात्री तप्तकुण्ड में स्नान करते हैं। वनतुलसी की माला, चले की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

मूर्ति स्थापना

बद्रीनाथ की मूर्ति शालग्राम शिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर स्थापित की थी। सिद्ध, ऋषि, मुनि इसके प्रधान अर्चक थे। जब बौद्धों का प्राबल्य हुआ तब उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा आरम्भ की। शंकराचार्य की प्रचार यात्रा के समय बौद्ध तिब्बत भागते हुए मूर्ति को अलकनन्दा में फेंक गए। शंकराचार्य ने अलकनन्दा से पुन: बाहर निकालकर उसकी स्थापना की। तदनन्तर मूर्ति पुन: स्थानान्तरित हो गयी और तीसरी बार तप्तकुण्ड से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की। मन्दिर में बद्रीनाथ की दाहिनी ओर कुबेर की मूर्ति है। उनके सामने उद्धवजी हैं तथा उत्सवमूर्ति है। उत्सवमूर्ति शीतकाल में बर्फ़ जमने पर जोशीमठ में ले जायी जाती है। उद्धवजी के पास ही चरणपादुका है। बायीं ओर नर-नारायण की मूर्ति है। इनके समीप ही श्रीदेवी और भूदेवी है।

पौराणिक मान्यता

बद्रीनाथ मंदिर

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बद्रीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना। भगवान विष्णु की प्रतिमा वाला वर्तमान मंदिर 3,133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और माना जाता है कि आदि शंकराचार्य, आठवीं शताब्दी के दार्शनिक संत ने इसका निर्माण कराया था। इसके पश्चिम में 27 किमी की दूरी पर स्थित बद्रीनाथ शिखर की ऊँचाई 7,138 मीटर है। बद्रीनाथ में एक मंदिर है, जिसमें बद्रीनाथ या विष्णु की वेदी है। यह 2,000 वर्ष से भी अधिक समय से एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान रहा है।

दर्शनीय स्थल

बद्रीनाथ में अन्य दर्शनीय स्थल हैं-

  • अलकनंदा के तट पर स्थित गर्म झरना- तप्त कुंड
  • धार्मिक अनुष्टानों के लिए इस्तेमाल होने वाला एक समतल चबूतरा- ब्रह्म कपाल
  • पौराणिक कथाओं में उल्लिखित सांप
  • शेषनाग की कथित छाप वाला एक शिलाखंड – शेषनेत्र
  • चरणपादुका- जिसके बारे में कहा जाता है कि यह भगवान विष्णु के पैरों के निशान हैं।
  • बद्रीनाथ से नज़र आने वाला बर्फ़ से ढंका ऊँचा शिखर नीलकंठ, जो 'गढ़वाल क्वीन' के नाम से जाना जाता है।
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