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'''घृताची''' स्वर्ग की एक [[अप्सरा]] का नाम है, जो तपस ([[माघ]]) मास में अन्य गणों के साथ [[सूर्य देव|सूर्य]] पर अधिष्ठित रहती है।<ref>[[भागवतपुराण]] 9.20.5; 12.11.39; [[विष्णुपुराण]] 1.9.103; [[ब्रह्मांडपुराण]] 2.23.13; 3.7.15; [[मत्स्यपुराण]]  49.4; [[वायुपुराण]] 69.49; 70.68.</ref> इसे देखने से [[वेदव्यास|महर्षि वेदव्यास]] कामासक्त हो गए थे, जिससे [[शुकदेव]] उत्पन्न हुए थे।
'''घृताची''' स्वर्ग की एक [[अप्सरा]] का नाम है, जो तपस ([[माघ]]) मास में अन्य गणों के साथ [[सूर्य देव|सूर्य]] पर अधिष्ठित रहती है।<ref>[[भागवतपुराण]] 9.20.5; 12.11.39; [[विष्णुपुराण]] 1.9.103; [[ब्रह्मांडपुराण]] 2.23.13; 3.7.15; [[मत्स्यपुराण]]  49.4; [[वायुपुराण]] 69.49; 70.68.</ref> इसे देखने से [[वेदव्यास|महर्षि वेदव्यास]] कामासक्त हो गए थे, जिससे [[शुकदेव]] उत्पन्न हुए थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणा प्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=162|url=}}</ref>


*[[च्यवन|महर्षि च्यवन]] के पुत्र प्रमिति ने घृताची के गर्भ से रूरू नामक पुत्र उत्पन्न किया था।
*[[च्यवन|महर्षि च्यवन]] के पुत्र प्रमिति ने घृताची के गर्भ से रूरू नामक पुत्र उत्पन्न किया था।

13:43, 30 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण

घृताची स्वर्ग की एक अप्सरा का नाम है, जो तपस (माघ) मास में अन्य गणों के साथ सूर्य पर अधिष्ठित रहती है।[1] इसे देखने से महर्षि वेदव्यास कामासक्त हो गए थे, जिससे शुकदेव उत्पन्न हुए थे।[2]

  • महर्षि च्यवन के पुत्र प्रमिति ने घृताची के गर्भ से रूरू नामक पुत्र उत्पन्न किया था।
  • महोदय (आधुनिक कन्नौज) के नरेश कुशनाभ ने इसके गर्भ से सौ कन्याएँ उत्पन्न की थीं।
  • गंगाद्वार के पास भरद्वाज ऋषि का आश्रम था। आश्रम के निकट घृताची को स्नान करते देख भरद्वाज काम-पीड़ित हो गए, जिससे उनका वीर्यपात हो गया। मुनि ने स्खलित वीर्य को द्रोणि[3] रख दिया, जिससे वीर द्रोण का जन्म हुआ।
  • रुद्राश्व से घृताची को दस पुत्र और दस पुत्रियाँ हुई थीं।[4]
  • विश्वकर्मा से भी घृताची के पुत्र हुए थे।[5]
  • आश्वयुज मास में यह सूर्य के रथ पर अधिष्ठित रहती है।[6]
  • शरत में यह सूर्य के रथ पर अन्य गणों के साथ अधिष्ठित रहती है।[7]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भागवतपुराण 9.20.5; 12.11.39; विष्णुपुराण 1.9.103; ब्रह्मांडपुराण 2.23.13; 3.7.15; मत्स्यपुराण 49.4; वायुपुराण 69.49; 70.68.
  2. पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 162 |
  3. एक प्रकार का पात्र
  4. हरिवंशपुराण
  5. ब्रह्मवैवर्तपुराण
  6. विष्णुपुराण 2.10.11
  7. ब्रह्मांडपुराण 4.33.19; वायुपुराण 52.13

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