"इल्वल": अवतरणों में अंतर
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'''इल्वल''' एक असुर था, जिसके पास अथाह धन था। यह स्वभाव से बड़ा ही धूर्त राक्षस था। इसका एक भाई भी था, जिसका नाम [[वातापि]] था। ये दोनों ही [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] से घृणा करते थे और ब्राह्मणों की हत्या का उन्होंने संकल्प ले रखा था। दोनों मिलकर [[ऋषि|ऋषियों]] को दुःख देते थे और रहस्यपूर्ण ढंग से उन्हें मार भी डालते थे। [[अगस्त्य|अगस्त्य ऋषि]] ने दोनों का अंत किया था। इल्वल का एक अन्य नाम [[आतापि]] भी था। | |||
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पूर्वकाल की बात है, मणिमती नगरी में [[इल्वल]] नामक दैत्य रहता था वातापि उसी का छोटा भाई था। एक दिन दितिनन्दन इल्वल ने एक तपस्वी [[ब्राह्मण]] से कहा- 'भगवन! आप मुझे ऐसा पुत्र दें, जो [[इन्द्र]] के समान पराक्रमी हो।' उन ब्राह्मणदेवता ने इल्वल को इन्द्र के समान पुत्र नहीं दिया। इससे वह असुर उन ब्राह्मणदेवता पर बहुत कुपित हो उठा। तभी से इल्वल दैत्य क्रोध में भरकर ब्राह्मणों की हत्या करने लगा। | पूर्वकाल की बात है, मणिमती नगरी में [[इल्वल]] नामक दैत्य रहता था वातापि उसी का छोटा भाई था। एक दिन दितिनन्दन इल्वल ने एक तपस्वी [[ब्राह्मण]] से कहा- 'भगवन! आप मुझे ऐसा पुत्र दें, जो [[इन्द्र]] के समान पराक्रमी हो।' उन ब्राह्मणदेवता ने इल्वल को इन्द्र के समान पुत्र नहीं दिया। इससे वह असुर उन ब्राह्मणदेवता पर बहुत कुपित हो उठा। तभी से इल्वल दैत्य क्रोध में भरकर ब्राह्मणों की हत्या करने लगा। | ||
वह मायावी अपने भाई [[वातापि]] को माया से बकरा बना देता था। वातापि भी इच्छानुसार रूप धारण करने में समर्थ था! अत: वह क्षणभर में मेंड़ा और बकरा बन जाता था। फिर इल्वल उस भेड़ या बकरे को पकाकर उसका मांस राँधता और किसी ब्राह्मण को खिला देता था। इसके बाद वह ब्राह्मण को मारने की इच्छा करता था। इल्वल में यह शक्ति थी कि वह जिस किसी भी यमलोक में गये हुए प्राणी को उसका नाम लेकर बुलाता, वह पुन: शरीर धारण करके जीवित दिखायी देने लगता था। उस दिन वातापि दैत्य को बकरा बनाकर इल्वल उसके मांस का [[संस्कार]] किया और उन ब्राह्मणदेव को वह मांस खिलाकर पुन: अपने भाई को पुकारा। इल्वल के द्वारा उच्च स्वर से बोली हुई वाणी सुनकर वह अत्यन्त मायावी ब्राह्मणशत्रु बलवान महादैत्यवातापि उस ब्राह्मण की पसली को फाड़कर हँसता हुआ निकल आया। इस प्रकार दुष्टहृदय इल्वल दैत्य बार-बार ब्राह्मणों को भोजन कराकर अपने भाई द्वारा उनकी हिंसा करा देता था। | वह मायावी अपने भाई [[वातापि]] को माया से बकरा बना देता था। वातापि भी इच्छानुसार रूप धारण करने में समर्थ था! अत: वह क्षणभर में मेंड़ा और बकरा बन जाता था। फिर इल्वल उस भेड़ या बकरे को पकाकर उसका मांस राँधता और किसी ब्राह्मण को खिला देता था। इसके बाद वह ब्राह्मण को मारने की इच्छा करता था। इल्वल में यह शक्ति थी कि वह जिस किसी भी [[यमलोक]] में गये हुए प्राणी को उसका नाम लेकर बुलाता, वह पुन: शरीर धारण करके जीवित दिखायी देने लगता था। उस दिन वातापि दैत्य को बकरा बनाकर इल्वल उसके मांस का [[संस्कार]] किया और उन ब्राह्मणदेव को वह मांस खिलाकर पुन: अपने भाई को पुकारा। इल्वल के द्वारा उच्च स्वर से बोली हुई वाणी सुनकर वह अत्यन्त मायावी ब्राह्मणशत्रु बलवान महादैत्यवातापि उस ब्राह्मण की पसली को फाड़कर हँसता हुआ निकल आया। इस प्रकार दुष्टहृदय इल्वल दैत्य बार-बार ब्राह्मणों को भोजन कराकर अपने भाई द्वारा उनकी हिंसा करा देता था। | ||
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समुद्रस्थ राक्षसों के अत्याचार से घबराकर देवता लोग महर्षि अगस्त्य की शरण में गये और अपना दु:ख कह सुनाया। फल यह हुआ कि ये सारा समुद्र पी गये, जिससे सभी राक्षसों का विनाश हो गया। इसी प्रकार इल्वल तथा वातापी नामक दुष्ट दैत्यों द्वारा हो रहे ऋषि-संहार को इन्होंने बंद किया और लोक का | समुद्रस्थ राक्षसों के अत्याचार से घबराकर देवता लोग महर्षि अगस्त्य की शरण में गये और अपना दु:ख कह सुनाया। फल यह हुआ कि ये सारा समुद्र पी गये, जिससे सभी राक्षसों का विनाश हो गया। इसी प्रकार इल्वल तथा वातापी नामक दुष्ट दैत्यों द्वारा हो रहे ऋषि-संहार को इन्होंने बंद किया और लोक का महान् कल्याण हुआ। | ||
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14:11, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
इल्वल एक असुर था, जिसके पास अथाह धन था। यह स्वभाव से बड़ा ही धूर्त राक्षस था। इसका एक भाई भी था, जिसका नाम वातापि था। ये दोनों ही ब्राह्मणों से घृणा करते थे और ब्राह्मणों की हत्या का उन्होंने संकल्प ले रखा था। दोनों मिलकर ऋषियों को दुःख देते थे और रहस्यपूर्ण ढंग से उन्हें मार भी डालते थे। अगस्त्य ऋषि ने दोनों का अंत किया था। इल्वल का एक अन्य नाम आतापि भी था।
कथा
वैशम्पायनजी द्वारा वर्णित इल्वल से सम्बन्धित एक कथा प्रचलित है जो इस प्रकार है:-
पूर्वकाल की बात है, मणिमती नगरी में इल्वल नामक दैत्य रहता था वातापि उसी का छोटा भाई था। एक दिन दितिनन्दन इल्वल ने एक तपस्वी ब्राह्मण से कहा- 'भगवन! आप मुझे ऐसा पुत्र दें, जो इन्द्र के समान पराक्रमी हो।' उन ब्राह्मणदेवता ने इल्वल को इन्द्र के समान पुत्र नहीं दिया। इससे वह असुर उन ब्राह्मणदेवता पर बहुत कुपित हो उठा। तभी से इल्वल दैत्य क्रोध में भरकर ब्राह्मणों की हत्या करने लगा।
वह मायावी अपने भाई वातापि को माया से बकरा बना देता था। वातापि भी इच्छानुसार रूप धारण करने में समर्थ था! अत: वह क्षणभर में मेंड़ा और बकरा बन जाता था। फिर इल्वल उस भेड़ या बकरे को पकाकर उसका मांस राँधता और किसी ब्राह्मण को खिला देता था। इसके बाद वह ब्राह्मण को मारने की इच्छा करता था। इल्वल में यह शक्ति थी कि वह जिस किसी भी यमलोक में गये हुए प्राणी को उसका नाम लेकर बुलाता, वह पुन: शरीर धारण करके जीवित दिखायी देने लगता था। उस दिन वातापि दैत्य को बकरा बनाकर इल्वल उसके मांस का संस्कार किया और उन ब्राह्मणदेव को वह मांस खिलाकर पुन: अपने भाई को पुकारा। इल्वल के द्वारा उच्च स्वर से बोली हुई वाणी सुनकर वह अत्यन्त मायावी ब्राह्मणशत्रु बलवान महादैत्यवातापि उस ब्राह्मण की पसली को फाड़कर हँसता हुआ निकल आया। इस प्रकार दुष्टहृदय इल्वल दैत्य बार-बार ब्राह्मणों को भोजन कराकर अपने भाई द्वारा उनकी हिंसा करा देता था।
मृत्यु
समुद्रस्थ राक्षसों के अत्याचार से घबराकर देवता लोग महर्षि अगस्त्य की शरण में गये और अपना दु:ख कह सुनाया। फल यह हुआ कि ये सारा समुद्र पी गये, जिससे सभी राक्षसों का विनाश हो गया। इसी प्रकार इल्वल तथा वातापी नामक दुष्ट दैत्यों द्वारा हो रहे ऋषि-संहार को इन्होंने बंद किया और लोक का महान् कल्याण हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख