"पहेली मार्च 2014": अवतरणों में अंतर
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-[[शाहजहाँ]] | -[[शाहजहाँ]] | ||
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||[[चित्र:Shershah Tomb2.jpg|right| | ||[[चित्र:Shershah Tomb2.jpg|right|100px|]]शेरशाह ने [[बंगाल]] के सोनागाँव से लेकर [[पंजाब]] में [[सिंधु नदी]] तक, [[आगरा]] से [[राजस्थान]] और [[मालवा]] तक पक्की सड़कें बनवाई थीं। सड़कों के किनारे छायादार एवं फल वाले वृक्ष लगाये गये थे, और जगह-जगह पर सराय, मस्जिद और कुओं का निर्माण कराया गया था। [[ब्रजमंडल]] के चौमुहाँ गाँव की सराय और छाता गाँव की सराय का भीतरी भाग उसी के द्वारा निर्मित हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शेरशाह]] | ||
{सर्वप्रथम [[पृथ्वी]] की त्रिज्या मापने वाला | {सर्वप्रथम [[पृथ्वी]] की त्रिज्या मापने वाला विद्वान् कौन था? | ||
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-[[क्लॉडियस टॉलमी|टॉल्मी]] | -[[क्लॉडियस टॉलमी|टॉल्मी]] | ||
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||[[माहम अनगा]] बादशाह [[अकबर]] के बचपन में उसकी मुख्य अनगा (दूधमाता) थी। वह एक कटु राजनीतिज्ञ महिला और अदहम ख़ाँ की माँ थी। वह हरम के अन्दर उस दल में सम्मिलित थी, जो [[बैरम ख़ाँ]] के राज्य का सर्वेसर्वा बने रहने का विरोधी था। उसने अकबर को बैरम ख़ाँ के हाथ से सल्तनत की बाग़डोर छीनने के लिए प्रोत्साहित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[माहम अनगा]] | ||[[माहम अनगा]] बादशाह [[अकबर]] के बचपन में उसकी मुख्य अनगा (दूधमाता) थी। वह एक कटु राजनीतिज्ञ महिला और अदहम ख़ाँ की माँ थी। वह हरम के अन्दर उस दल में सम्मिलित थी, जो [[बैरम ख़ाँ]] के राज्य का सर्वेसर्वा बने रहने का विरोधी था। उसने अकबर को बैरम ख़ाँ के हाथ से सल्तनत की बाग़डोर छीनने के लिए प्रोत्साहित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[माहम अनगा]] | ||
{' | {'संन्यासी विद्रोह' किस क्षेत्र में हुआ था? | ||
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-[[महाराष्ट्र]] | -[[महाराष्ट्र]] | ||
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-[[असम]] | -[[असम]] | ||
+[[बंगाल]] | +[[बंगाल]] | ||
|| सन 1757 में [[प्लासी]] के युद्ध ने [[इतिहास]] की धारा को मोड़ दिया, जब [[अंग्रेज़]] पहली बार [[बंगाल]] और [[भारत]] में अपने पांव जमा पाए। सन् 1905 में राजनीतिक लाभ के लिए अंग्रेज़ों ने बंगाल का विभाजन कर दिया, लेकिन [[कांग्रेस]] के नेतृत्व में लोगों के बढ़ते हुए आक्रोश को देखते हुए [[1911]] में बंगाल को फिर से एक कर दिया गया। 18वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध [[भारत]] के कुछ भागों में | || सन 1757 में [[प्लासी]] के युद्ध ने [[इतिहास]] की धारा को मोड़ दिया, जब [[अंग्रेज़]] पहली बार [[बंगाल]] और [[भारत]] में अपने पांव जमा पाए। सन् 1905 में राजनीतिक लाभ के लिए अंग्रेज़ों ने बंगाल का विभाजन कर दिया, लेकिन [[कांग्रेस]] के नेतृत्व में लोगों के बढ़ते हुए आक्रोश को देखते हुए [[1911]] में बंगाल को फिर से एक कर दिया गया। 18वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध [[भारत]] के कुछ भागों में सन्न्यासियों ने आन्दोलन प्रारम्भ कर दिये थे, इस आन्दोलन को 'संन्यासी विद्रोह' कहा जाता है। ब्रिटिश शासन काल में यह आन्दोलन अधिकतर बंगाल प्रांत में हुआ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बंगाल]] | ||
{[[भारत]] की पहली महिला स्नातक एवं पहली महिला फिजीशियन कौन थीं? | {[[भारत]] की पहली महिला स्नातक एवं पहली महिला फिजीशियन कौन थीं? | ||
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+[[जहाँगीर]] | +[[जहाँगीर]] | ||
-[[शेरशाह]] | -[[शेरशाह]] | ||
||जहाँगीर के चरित्र में एक अच्छा लक्षण था - प्रकृति से | ||जहाँगीर के चरित्र में एक अच्छा लक्षण था - प्रकृति से हृदय से आनंद लेना तथा फूलों को प्यार करना, उत्तम सौन्दर्य, बोधात्मक रुचि से सम्पन्न। स्वयं चित्रकार होने के कारण [[जहाँगीर]] [[कला]] एवं [[साहित्य]] का पोषक था। उसका ‘तुजूके-जहाँगीरी’ संस्मरण उसकी साहित्यिक योग्यता का प्रमाण है। उसने कष्टकर चुंगियों एवं करों को समाप्त किया तथा हिजड़ों के व्यापार का निषेध करने का प्रयास किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जहाँगीर]] | ||
{अपने प्रशासन में पश्चिमी प्रक्रियाओं को अपनाने वाला पहला भारतीय शासक कौन था? | {अपने प्रशासन में पश्चिमी प्रक्रियाओं को अपनाने वाला पहला भारतीय शासक कौन था? | ||
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-[[बलबन]] | -[[बलबन]] | ||
-[[रज़िया सुल्तान]] | -[[रज़िया सुल्तान]] | ||
||[[चित्र:Iltutmish-Tomb-Qutab-Minar.jpg| | ||[[चित्र:Iltutmish-Tomb-Qutab-Minar.jpg|100px|right]][[इल्तुतमिश]] (1210- 236 ई.) एक इल्बारी तुर्क था। खोखरों के विरुद्ध इल्तुतमिश की कार्य कुशलता से प्रभावित होकर [[मुहम्मद ग़ोरी]] ने उसे “अमीरूल उमरा” नामक महत्त्वपूर्ण पद दिया था। अकस्मात् मुत्यु के कारण [[कुतुबद्दीन ऐबक]] अपने किसी उत्तराधिकारी का चुनाव नहीं कर सका था। अतः [[लाहौर]] के तुर्क अधिकारियों ने कुतुबद्दीन ऐबक के विवादित पुत्र [[आरामशाह]] (जिसे इतिहासकार नहीं मानते) को लाहौर की गद्दी पर बैठाया, परन्तु [[दिल्ली]] के तुर्को सरदारों एवं नागरिकों के विरोध के फलस्वरूप कुतुबद्दीन ऐबक के दामाद इल्तुतमिश, जो उस समय [[बदायूँ]] का सूबेदार था, को दिल्ली आमंत्रित कर राज्यसिंहासन पर बैठाया गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[इल्तुतमिश]] | ||
{[[रामायण]] में किस [[राक्षस]] को [[रावण]] ने [[सुग्रीव]] के पास रक्तपात से बचने का संदेश देकर भेजा था? | {[[रामायण]] में किस [[राक्षस]] को [[रावण]] ने [[सुग्रीव]] के पास रक्तपात से बचने का संदेश देकर भेजा था? |
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