चौरी चौरा

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चौरी चौरा भारत में स्थित उत्तर प्रदेश राज्य गोरखपुर नगर का एक गाँव है। यह गाँव 'भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन' के दौरान ब्रिटिश पुलिस तथा राजनीतिक कार्यकर्ताओं के बीच हुई हिंसक घटनाओं के कारण चर्चा में रहा। चौरी चौरा में 4 फरवरी, 1922 ई. को स्थानीय पुलिस और ख़िलाफ़त आंदोलन एवं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के समर्थकों के बीच अप्रत्याशित संघर्ष हुआ। क्रोध से भरी हुई भीड़ ने चौरी-चौरा के थाने में आग लगा दी और 22 पुलिसकर्मियों को जिंदा जला दिया। इस घटना से महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गये 'सविनय अवज्ञा आंदोलन को आघात पहुँचा, जिसके कारण उन्हें आंदोलन को स्थागित करना पड़ा, जो बारदोली, गुजरात से शुरू किया जाने वाला था।

इतिहास

सन 1922 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में चौरी चौरा की घटना हुई थी। ये पहली ऐसी घटना थी, जिसमें क्रांतिकारियों के गुस्से का शिकार हुए पुलिसवालों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी, तब से उन्हें शहीद माना गया। इसकी एक और वजह थी कि पुलिस अपनी ड्यूटी कर रही थी। वहीं, जो सत्याग्रही मारे गए थे, उन्हें भी शहीद माना गया था। इसी के चलते हर साल 4 फ़रवरी को 'शहादत दिवस' के रूप में मनाया जाता है।[1]

महात्मा गांधी ने विदेशी कपड़ों के बहिष्कार, अंग्रेज़ी पढ़ाई छोड़ने और चरखा चलाने की अपील की थी। उस समय पूरे देश में असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था। 4 फरवरी 1922 को चौरी चौरा के भोपा मार्केट में सत्याग्रही इकट्ठा हो गए। जब वे शांति मार्च निकाल रहे थे, तब पुलिस थानेदार ने इस मार्च को अवैध घोषित कर दिया। मौके पर मौजूद एक पुलिस कांस्टेबल ने गांधी टोपी को पैर से रौंद दिया। इससे सत्याग्रही आक्रोश में आ गए, तो पुलिसवालों ने शांति मार्च पर फायरिंग कर दी। घटना में 11 सत्याग्रही शहीद और 50 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। पुलिस के पास बंदूक की गोलियां खत्म हो चुकी थीं। वे सभी पुलिस स्टेशन की ओर भागे। फायरिंग से भड़की भीड़ भी पुलिस के पीछे दौड़ पड़ी। सत्याग्रहियों ने एक दुकान से कैरोसिन तेल से भरा डब्बा उठा लिया और पुलिस स्टेशन को फूंक दिया। थानेदार ने भागने की कोशिश की तो भीड़ ने उसे पकड़कर आग के हवाले कर दिया।

इस घटना में थानेदार समेत 23 पुलिसवाले जिंदा जल गए थे। घटना को हिसंक मानते हुए महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। गोरखपुर अदालत ने 9 जनवरी, 1923 को 418 पेज का फैसला सुनाया। इसमें 172 लोगों को दोषी ठहराया गया और सजा-ए-मौत की सजा सुनाई गई। वहीं, 2 लोगों को 2 साल जेल की सजा सुनाई गई। 47 लोगों को बरी कर दिया गया। इस फैसले के खिलाफ गोरखपुर कांग्रेस कमेटी ने हाईकोर्ट में अपील की। उस वक्त इन सभी की पैरवी मदन मोहन मालवीय कर रहे थे। 30 अप्रैल, 1923 को फैसला आया। 19 को फांसी, 16 को काला पानी, बाकी सभी लोगों को 8, 5 और 2 साल की सजा दी गई। 3 लोगों को दंगा भड़काने के आरोप में 2 साल की सजा सुनाई गई और 38 लोगों को बरी कर दिया गया।

शताब्दी समारोह

ऐतिहासिक चौरी चौरा की घटना को वर्ष 2021 में 100 साल पूरे हो हुये। इसीलिये केंद्र सरकार ने 'शताब्दी समारोह' मनाने का फैसला किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस आयोजन का वर्चुअल उद्घाटन किया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार

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