"नागदा उदयपुर": अवतरणों में अंतर
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'''नागदा''' [[उदयपुर]], [[राजस्थान]] से 13 मील {{मील|मील=13}} उत्तर की ओर स्थित एक प्राचीन नगर है। यह प्राचीन नगर अधिकतर खंडहरों के रूप में पड़ा हुआ है। चारों ओर [[अरावली पर्वतमाला|अरावली पहाड़]] की चोटियाँ दिखाई देती हैं। प्राचीन काल के अनेक मंदिर, जिनका नष्टप्राय कलावैभव आज भी दर्शकों को मुग्ध कर देता है, एक [[झील]] के निकट बने हुए हैं। [[मेवाड़]] के संस्थापक [[बप्पा रावल]] ने नागदा ही में अपनी राजधानी बनाई थी। 1226 ई. में [[दिल्ली]] के सुल्तान [[इल्तुतमिश]] ने आक्रमण करके इसे नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। नागदा में [[हिन्दू]] एवं [[जैन मन्दिर|जैन मन्दिरों]] के अनेक स्मारक हैं। | '''नागदा''' [[उदयपुर]], [[राजस्थान]] से 13 मील {{मील|मील=13}} उत्तर की ओर स्थित एक प्राचीन नगर है। यह प्राचीन नगर अधिकतर खंडहरों के रूप में पड़ा हुआ है। चारों ओर [[अरावली पर्वतमाला|अरावली पहाड़]] की चोटियाँ दिखाई देती हैं। प्राचीन काल के अनेक मंदिर, जिनका नष्टप्राय कलावैभव आज भी दर्शकों को मुग्ध कर देता है, एक [[झील]] के निकट बने हुए हैं। [[मेवाड़]] के संस्थापक [[बप्पा रावल]] ने नागदा ही में अपनी राजधानी बनाई थी। 1226 ई. में [[दिल्ली]] के सुल्तान [[इल्तुतमिश]] ने आक्रमण करके इसे नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। नागदा में [[हिन्दू]] एवं [[जैन मन्दिर|जैन मन्दिरों]] के अनेक स्मारक हैं। | ||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
नागदा पहले गुहिल शासकों की प्राचीन राजधानी रह चु्का है। 661 ई. (संवत् 718) का अभिलेख इस स्थान की प्राचीनता को प्रमाणित करता है, यह पुरातात्विक सामग्री की शैली के आधार पर उतना प्राचीन प्रतीत नहीं होता है। यहाँ के प्राचीन स्मारक समय के साथ नष्ट हो गये होंगे। यहाँ से प्राप्त 1026 ई. के एक [[अभिलेख]] के अनुसार, गुहिल शासक श्रीधर ने यहाँ के कुछ मंदिरों का निर्माण करवाया था, वर्त्तमान का सास-बहू मंदिर इन्हीं मंदिरों में है। शैलीगत समानता के आधार पर भी ये मंदिर 10वीं और 11 वीं [[शताब्दी]] में निर्मित प्रतीत होते हैं। कहा जाता है कि इन मंदिरों की स्थापना सहस्रबाहु नामक राजा के द्वारा करवाई गई थी, लेकिन चूँकि गुहिल वंश के इतिहास में इस नाम से किसी भी शासक की चर्चा नहीं की गई है। अतः यह तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता। | |||
नागदा पहले गुहिल शासकों की प्राचीन राजधानी रह चु्का है। 661 ई. (संवत् 718) का अभिलेख इस स्थान की प्राचीनता को प्रमाणित करता है, यह पुरातात्विक सामग्री की शैली के आधार पर उतना प्राचीन प्रतीत नहीं होता है। यहाँ के प्राचीन स्मारक समय के साथ नष्ट हो गये होंगे। यहाँ से प्राप्त 1026 ई. के एक [[अभिलेख]] के अनुसार, गुहिल शासक श्रीधर ने यहाँ के कुछ मंदिरों का निर्माण करवाया था, वर्त्तमान का सास- बहू मंदिर इन्हीं मंदिरों में है। शैलीगत समानता के आधार पर भी ये मंदिर 10वीं और 11 वीं [[शताब्दी]] में निर्मित प्रतीत होते हैं। कहा जाता है कि इन मंदिरों की स्थापना सहस्रबाहु नामक राजा के द्वारा करवाई गई थी, लेकिन चूँकि गुहिल वंश के इतिहास में इस नाम से किसी भी शासक की चर्चा नहीं की गई है। अतः यह तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता। | |||
==प्रसिद्धि== | ==प्रसिद्धि== | ||
यहाँ के मन्दिरों के शिल्प में आत्मोत्थान के भाव स्पष्ट प्रतिबिम्बित होते हैं। मूर्तियों में गुप्तकालीन कला की परम्परा और पूर्व मध्यकाल की गति शक्ति और प्रेम के भाव झलकते हैं। यहाँ के मन्दिरों में सास-बहू का मन्दिर सर्वाधिक उल्लेखनीय है। ये [[विष्णु]] को समर्पित है। सास-बहू मन्दिर के कोरित कलात्मक स्तम्भ, गवाक्ष तथा आले सोलंकी परम्परा के उत्तम उदाहरण हैं। ये मंदिर दसवीं शताब्दी के बने हैं। ये दोनों [[श्वेत रंग|श्वेत]] पत्थर के चौकोर चबूतरों पर बने हैं, जो 140 फुट लम्बे हैं। सास के मन्दिर का शिखर ईटों का है। शेष मन्दिर संगमरमर का है। इस मन्दिर के स्तम्भ, उत्कीर्ण शिलापट्ट एवं मूर्तियाँ सभी शिल्प के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। मन्दिर के बाहरी भाग में भी सुन्दर मूर्तिकारी प्रदर्शित हैं। सभा मण्डप भी शिल्पकारी से सम्पन्न है। इसकी छत में वृहत् [[कमल|कमल पुष्प]] उकेरा गया है, जिसकी विकसित पंखुड़िया पर चार नर्तकियाँ नृत्यमुद्रा में प्रदर्शित हैं। | यहाँ के मन्दिरों के शिल्प में आत्मोत्थान के भाव स्पष्ट प्रतिबिम्बित होते हैं। मूर्तियों में गुप्तकालीन कला की परम्परा और पूर्व मध्यकाल की गति शक्ति और प्रेम के भाव झलकते हैं। यहाँ के मन्दिरों में सास-बहू का मन्दिर सर्वाधिक उल्लेखनीय है। ये [[विष्णु]] को समर्पित है। सास-बहू मन्दिर के कोरित कलात्मक स्तम्भ, गवाक्ष तथा आले सोलंकी परम्परा के उत्तम उदाहरण हैं। ये मंदिर दसवीं शताब्दी के बने हैं। ये दोनों [[श्वेत रंग|श्वेत]] पत्थर के चौकोर चबूतरों पर बने हैं, जो 140 फुट लम्बे हैं। सास के मन्दिर का शिखर ईटों का है। शेष मन्दिर संगमरमर का है। इस मन्दिर के स्तम्भ, उत्कीर्ण शिलापट्ट एवं मूर्तियाँ सभी शिल्प के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। मन्दिर के बाहरी भाग में भी सुन्दर मूर्तिकारी प्रदर्शित हैं। सभा मण्डप भी शिल्पकारी से सम्पन्न है। इसकी छत में वृहत् [[कमल|कमल पुष्प]] उकेरा गया है, जिसकी विकसित पंखुड़िया पर चार नर्तकियाँ नृत्यमुद्रा में प्रदर्शित हैं। | ||
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07:49, 12 जून 2012 का अवतरण

Nagda Temple, Udaipur
नागदा उदयपुर, राजस्थान से 13 मील (लगभग 20.8 कि.मी.) उत्तर की ओर स्थित एक प्राचीन नगर है। यह प्राचीन नगर अधिकतर खंडहरों के रूप में पड़ा हुआ है। चारों ओर अरावली पहाड़ की चोटियाँ दिखाई देती हैं। प्राचीन काल के अनेक मंदिर, जिनका नष्टप्राय कलावैभव आज भी दर्शकों को मुग्ध कर देता है, एक झील के निकट बने हुए हैं। मेवाड़ के संस्थापक बप्पा रावल ने नागदा ही में अपनी राजधानी बनाई थी। 1226 ई. में दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने आक्रमण करके इसे नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। नागदा में हिन्दू एवं जैन मन्दिरों के अनेक स्मारक हैं।
इतिहास
नागदा पहले गुहिल शासकों की प्राचीन राजधानी रह चु्का है। 661 ई. (संवत् 718) का अभिलेख इस स्थान की प्राचीनता को प्रमाणित करता है, यह पुरातात्विक सामग्री की शैली के आधार पर उतना प्राचीन प्रतीत नहीं होता है। यहाँ के प्राचीन स्मारक समय के साथ नष्ट हो गये होंगे। यहाँ से प्राप्त 1026 ई. के एक अभिलेख के अनुसार, गुहिल शासक श्रीधर ने यहाँ के कुछ मंदिरों का निर्माण करवाया था, वर्त्तमान का सास-बहू मंदिर इन्हीं मंदिरों में है। शैलीगत समानता के आधार पर भी ये मंदिर 10वीं और 11 वीं शताब्दी में निर्मित प्रतीत होते हैं। कहा जाता है कि इन मंदिरों की स्थापना सहस्रबाहु नामक राजा के द्वारा करवाई गई थी, लेकिन चूँकि गुहिल वंश के इतिहास में इस नाम से किसी भी शासक की चर्चा नहीं की गई है। अतः यह तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता।
प्रसिद्धि
यहाँ के मन्दिरों के शिल्प में आत्मोत्थान के भाव स्पष्ट प्रतिबिम्बित होते हैं। मूर्तियों में गुप्तकालीन कला की परम्परा और पूर्व मध्यकाल की गति शक्ति और प्रेम के भाव झलकते हैं। यहाँ के मन्दिरों में सास-बहू का मन्दिर सर्वाधिक उल्लेखनीय है। ये विष्णु को समर्पित है। सास-बहू मन्दिर के कोरित कलात्मक स्तम्भ, गवाक्ष तथा आले सोलंकी परम्परा के उत्तम उदाहरण हैं। ये मंदिर दसवीं शताब्दी के बने हैं। ये दोनों श्वेत पत्थर के चौकोर चबूतरों पर बने हैं, जो 140 फुट लम्बे हैं। सास के मन्दिर का शिखर ईटों का है। शेष मन्दिर संगमरमर का है। इस मन्दिर के स्तम्भ, उत्कीर्ण शिलापट्ट एवं मूर्तियाँ सभी शिल्प के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। मन्दिर के बाहरी भाग में भी सुन्दर मूर्तिकारी प्रदर्शित हैं। सभा मण्डप भी शिल्पकारी से सम्पन्न है। इसकी छत में वृहत् कमल पुष्प उकेरा गया है, जिसकी विकसित पंखुड़िया पर चार नर्तकियाँ नृत्यमुद्रा में प्रदर्शित हैं।
दर्शनीय स्थल
गुहिल शासकों के सूर्यवंशी होने के कारण बागदा के इस मंदिर को विष्णु जी को समर्पित किया गया है। गर्भगृह के पृष्ठभाग की प्रमुख ताख में एक चतुर्भुज विष्णु प्रतिमा प्रतिष्ठित है। दोनों मंदिरों के बाह्य भाग पर श्रृंगार-रत नर-नारियों का अंकन किया गया है। इस मंदिरों के दायीं ओर के कोने पर एक शक्ति मंदिर निर्मित है, जिस मंदिर में शक्ति के विविध रुपों का अंकन किया गया है। नागदा के पास ही एक मंदिर समूह एकलिंग या कैलाशपुरी के नाम से जाना जाता है। यहाँ के लकुलीश मंदिर से प्राप्त शिलालेख 971 ई. का है और यह सर्वाधिक प्राचीन है। अन्य मंदिर 12वीं शताब्दी के हैं।
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