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'''चीन''' विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक | '''चीन''' विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक, जो [[एशिया महाद्वीप|एशियाई महाद्वीप]] के पूर्व में स्थित है। चीन की सभ्यता एवं संस्कृति छठी [[शताब्दी]] से भी पुरानी है। यह दुनिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है। चीन ही एक ऐसा देश है, जिसने सबसे पहले [[काग़ज़]] बनाने का काम शुरू किया था। ऐतिहासिक रूप से चीनी संस्कृति का प्रभाव पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों पर रहा है और चीनी धर्म, रिवाज़ और लेखन प्रणाली को इन देशो में अलग-अलग स्तर तक अपनाया गया है। चीन के निवासी अपनी भाषा में अपने देश को 'चंगक्यूह' कहते हैं। कदाचित इसीलिये [[भारत]] तथा [[फ़ारस]] के प्राचीन निवासियों ने इस देश का नाम अपने यहाँ 'चीन' रख लिया था। | ||
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चीन तथा [[भारत]] के व्यापारिक तथा सांस्कृतिक संबंध अति प्राचीन हैं। प्राचीन काल में चीन का रेशमी कपड़ा भारत में प्रसिद्ध था। [[महाभारत]], [[सभापर्व महाभारत|सभापर्व]]<ref>महाभारत सभापर्व 51, 26</ref> में कीटज तथा पट्टज कपड़े का चीन के संबंध में उल्लेख है। इस प्रकार का वस्त्र पश्चिमोत्तर प्रदेशों के अनेक निवासी ([[शक]], तुषार, कंक, रोमश आदि) [[युधिष्ठिर]] के [[राजसूय यज्ञ]] में भेंट स्वरूप लाए थे<ref name="aa">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=338|url=}}</ref>- | |||
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चीन में [[बौद्ध धर्म]] का प्रचार चीन के हान वंश के सम्राट मिगंती के समय में (65 ई.) हुआ था। उसने स्वप्न में सुवर्ण पुरुष [[बुद्ध]] को दखा और तदुपरांत अपने दूतों को भारत से बौद्ध सूत्रग्रन्थों और भिक्षुओं को लाने के लिए भेजा। परिणामस्वरूप, भारत से 'धर्मरक्ष' और 'काश्यपमातंग' अनेक धर्मग्रन्थों तथा मूर्तियों को साथ लेकर चीन पहुंचे और वहां उन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की। धर्मग्रन्थ श्वेत अश्व पर रख कर चीन ले जाए गए थे, इसलिए चीन के प्रथम बौद्ध विहार को ''श्वेताश्वविहार'' की संज्ञा दी गई। भारत-चीन के सांस्कृतिक संबंधों की जो परंपरा इस समय स्थापित की गई थी, उसका पूर्ण विकास आगे चल कर [[फ़ाह्यान]] (चौथी शती ई.) और [[युवानच्वांग]] (सातवीं शती ई.) के समय में हुआ, जब चीन के बौद्धों की सबसे बड़ी आकांक्षा यहां रहती थी कि किसी प्रकार [[भारत]] जाकर वहां के बौद्ध तीर्थों का दर्शन करें और भारत के प्राचीन ज्ञान और [[दर्शन]] का अध्ययन कर अपना जीवन समुन्नत बनाएं। उस काल में चीन के बौद्ध, भारत को अपनी पुण्यभूमि और संसार का महानतम सांस्कृतिक केंद्र मानते थे।<ref name="aa"/> | |||
==भारत-चीन सम्बंध== | |||
वर्ष [[2008]] [[भारत]]-चीन संबधों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण वर्ष रहा। [[प्रधानमंत्री]] [[डॉ. मनमोहन सिंह]] ने [[13 जनवरी|13]]-[[15 जनवरी]], 2008 के दौरान 'पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चीन' की सरकारी यात्रा की। [[भारत]] और चीन के नेताओं ने दोनों देशों के बीच शांति और खुशहाली के लिए सामरिक एवं सहयोगात्मक संबंध विकसित करने का संकल्प व्यक्त किया। उन्होंने सभी बकाया मतभेदों को शांतिपूर्ण बातचीत के जरिए दूर करने का दृढ़ संकल्प दोहराया और यह सुनिश्चित करने का भी संकल्प व्यक्त किया कि ऐसे मतभेदों का आपसी संबधों के रचनात्मक विकास पर कोई असर नहीं पड़ेगा। दोनों प्रधानमंत्रियों ने 21वीं [[सदी]] के लिए साझा लक्ष्य तय करने संबंधी दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए, जिसमें दोनों देशों की यह अकांक्षा झलकती है कि वे क्षेत्रीय और बहुराष्ट्रीय मामलों में आपसी हित के क्षेत्रों में एक-दूसरे के साथ सहयोग करेंगे। भारत और चीन के विदेश मंत्रियों ने भी क्रमशः [[जून]], 2008 और [[सितंबर]], 2008 में एक-दूसरे देश की यात्रा की। इन यात्राओं के दौरान गुवान्झू और [[कोलकाता]] में नए महावाणिज्य दूतावासों का औपचारिक रूप से विमोचन किया गया। आपसी व्यापार 2008 में 51.8 अरब अमरीकी डॉलर पर पहुँच गया, जो दोनों प्रधानमंत्रियों द्वारा [[2010]] के लिए तय किए गए 60 अरब अमरीकी डॉलर मूल्य के लक्ष्य के क़्ररीब है। | |||
रक्षा संबंधों के क्षेत्र में सहयोग और आदान-प्रदान भी जारी रहा। इसके अंतर्गत [[दिसंबर]], [[2008]] में भारत में दूसरा सयुक्त सैन्य अभ्यास और दूसरी वार्षिक रक्षा वार्ता आयोजित की गई। भारत-चीन सीमा विवाद के बारे में 12वें दौर के विचार-विमर्श के लिए दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों की बैठक सितबंर, 2008 में हुई। [[मई]], 2008 में चीन के सिचुवान प्रांत में आए विनाशकारी [[भूकंप]] के बाद भारत ने मानवीय सहायता के रूप में चीन को 50 लाख अमरीकी डॉलर की मदद पहुँचायी। दोनों देशों ने अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संकट और जलवायु परिवर्तन सहित महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्री मुद्दों पर एक-दूसरे के साथ विचार-विमर्श भी किया। | |||
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07:09, 14 अगस्त 2014 का अवतरण

चीन विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक, जो एशियाई महाद्वीप के पूर्व में स्थित है। चीन की सभ्यता एवं संस्कृति छठी शताब्दी से भी पुरानी है। यह दुनिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है। चीन ही एक ऐसा देश है, जिसने सबसे पहले काग़ज़ बनाने का काम शुरू किया था। ऐतिहासिक रूप से चीनी संस्कृति का प्रभाव पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों पर रहा है और चीनी धर्म, रिवाज़ और लेखन प्रणाली को इन देशो में अलग-अलग स्तर तक अपनाया गया है। चीन के निवासी अपनी भाषा में अपने देश को 'चंगक्यूह' कहते हैं। कदाचित इसीलिये भारत तथा फ़ारस के प्राचीन निवासियों ने इस देश का नाम अपने यहाँ 'चीन' रख लिया था।
इतिहास
चीन तथा भारत के व्यापारिक तथा सांस्कृतिक संबंध अति प्राचीन हैं। प्राचीन काल में चीन का रेशमी कपड़ा भारत में प्रसिद्ध था। महाभारत, सभापर्व[1] में कीटज तथा पट्टज कपड़े का चीन के संबंध में उल्लेख है। इस प्रकार का वस्त्र पश्चिमोत्तर प्रदेशों के अनेक निवासी (शक, तुषार, कंक, रोमश आदि) युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भेंट स्वरूप लाए थे[2]-
'प्रमाणरागस्पर्शाढ्यं वाल्ही चीनसमुद्भवम् ओर्ण च रांकवंचैव कीटजं पट्टजं तथा।'
- तत्कालीन भारतीयों को इस बात का ज्ञान था कि रेशम कीट से उत्पन्न होता है। महाभारत, सभापर्व[3] में चीनियों का शकों के साथ उल्लेख है। ये युधिष्ठिर की राज्य सभा में भेंट लेकर उपस्थित हुए थे-
'चीनाछकांस्तथा चौड्रान् बर्वरान् वनवासिन:, वार्ष्णेयान् हारहूणांश्च कृष्णान् हैमवतांस्तथा।'[2]
- भीष्मपर्व में विजातीयों की नामसूची में चीन के निवासियों का भी उल्लेख है-
'उत्तराश्चापरम्लेच्छा: क्रूरा भरतसत्तम यवनश्चीनकाम्बोजा दारुणाम्लेच्छजातय:। सकृद्ग्रहा कुलत्थाश्चहूणा: पारसिकै: सह, तथैव रमणाश्चीनास्तथैवदशमालिका:।[4]
- कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र' में भी चीन देश का उल्लेख है, जिससे मौर्य काल के भारत और चीन के व्यापारिक संबंधों का पता लगता है।
- कालिदास ने 'अभिज्ञानशाकुंतलम'[5] में 'चीनांशुक'[6] का वर्णन बड़े काव्यात्मक प्रसंग में किया है-
'गच्छति पुर: शरीरं धावति पश्चादसंस्थितश्चेत: चीनांशुकमिवकेतो: प्रतिवातं नीयमानस्य।'
- 'हर्षचरित' के प्रथमोच्छवास में बाणभट्ट ने शोण के पवित्र और तरंगित बालुकामय तट को चीन के बने रेशमी कपड़े के समान कोमल बताया है।
बौद्ध धर्म का प्रचार
चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार चीन के हान वंश के सम्राट मिगंती के समय में (65 ई.) हुआ था। उसने स्वप्न में सुवर्ण पुरुष बुद्ध को दखा और तदुपरांत अपने दूतों को भारत से बौद्ध सूत्रग्रन्थों और भिक्षुओं को लाने के लिए भेजा। परिणामस्वरूप, भारत से 'धर्मरक्ष' और 'काश्यपमातंग' अनेक धर्मग्रन्थों तथा मूर्तियों को साथ लेकर चीन पहुंचे और वहां उन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की। धर्मग्रन्थ श्वेत अश्व पर रख कर चीन ले जाए गए थे, इसलिए चीन के प्रथम बौद्ध विहार को श्वेताश्वविहार की संज्ञा दी गई। भारत-चीन के सांस्कृतिक संबंधों की जो परंपरा इस समय स्थापित की गई थी, उसका पूर्ण विकास आगे चल कर फ़ाह्यान (चौथी शती ई.) और युवानच्वांग (सातवीं शती ई.) के समय में हुआ, जब चीन के बौद्धों की सबसे बड़ी आकांक्षा यहां रहती थी कि किसी प्रकार भारत जाकर वहां के बौद्ध तीर्थों का दर्शन करें और भारत के प्राचीन ज्ञान और दर्शन का अध्ययन कर अपना जीवन समुन्नत बनाएं। उस काल में चीन के बौद्ध, भारत को अपनी पुण्यभूमि और संसार का महानतम सांस्कृतिक केंद्र मानते थे।[2]
भारत-चीन सम्बंध
वर्ष 2008 भारत-चीन संबधों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण वर्ष रहा। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 13-15 जनवरी, 2008 के दौरान 'पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चीन' की सरकारी यात्रा की। भारत और चीन के नेताओं ने दोनों देशों के बीच शांति और खुशहाली के लिए सामरिक एवं सहयोगात्मक संबंध विकसित करने का संकल्प व्यक्त किया। उन्होंने सभी बकाया मतभेदों को शांतिपूर्ण बातचीत के जरिए दूर करने का दृढ़ संकल्प दोहराया और यह सुनिश्चित करने का भी संकल्प व्यक्त किया कि ऐसे मतभेदों का आपसी संबधों के रचनात्मक विकास पर कोई असर नहीं पड़ेगा। दोनों प्रधानमंत्रियों ने 21वीं सदी के लिए साझा लक्ष्य तय करने संबंधी दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए, जिसमें दोनों देशों की यह अकांक्षा झलकती है कि वे क्षेत्रीय और बहुराष्ट्रीय मामलों में आपसी हित के क्षेत्रों में एक-दूसरे के साथ सहयोग करेंगे। भारत और चीन के विदेश मंत्रियों ने भी क्रमशः जून, 2008 और सितंबर, 2008 में एक-दूसरे देश की यात्रा की। इन यात्राओं के दौरान गुवान्झू और कोलकाता में नए महावाणिज्य दूतावासों का औपचारिक रूप से विमोचन किया गया। आपसी व्यापार 2008 में 51.8 अरब अमरीकी डॉलर पर पहुँच गया, जो दोनों प्रधानमंत्रियों द्वारा 2010 के लिए तय किए गए 60 अरब अमरीकी डॉलर मूल्य के लक्ष्य के क़्ररीब है।
रक्षा संबंधों के क्षेत्र में सहयोग और आदान-प्रदान भी जारी रहा। इसके अंतर्गत दिसंबर, 2008 में भारत में दूसरा सयुक्त सैन्य अभ्यास और दूसरी वार्षिक रक्षा वार्ता आयोजित की गई। भारत-चीन सीमा विवाद के बारे में 12वें दौर के विचार-विमर्श के लिए दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों की बैठक सितबंर, 2008 में हुई। मई, 2008 में चीन के सिचुवान प्रांत में आए विनाशकारी भूकंप के बाद भारत ने मानवीय सहायता के रूप में चीन को 50 लाख अमरीकी डॉलर की मदद पहुँचायी। दोनों देशों ने अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संकट और जलवायु परिवर्तन सहित महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्री मुद्दों पर एक-दूसरे के साथ विचार-विमर्श भी किया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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