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'''मुरु''' अथवा '''मुर''' का उल्लेख [[हिन्दू]] पौराणिक [[महाकाव्य]] [[महाभारत]] में हुआ है। महाभारत के अनुसार ये एक दानव और [[प्राग्ज्योतिषपुर]] के [[भगदत्त|राजा भगदत्त]] का पिता था। यह असुरराज [[नरकासुर]] का सेनापति भी था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम= महाभारत शब्दकोश|लेखक= एस. पी. परमहंस|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली|संकलन=भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |संपादन= |पृष्ठ संख्या=88|url=}}</ref> | '''मुरु''' अथवा '''मुर''' का उल्लेख [[हिन्दू]] पौराणिक [[महाकाव्य]] [[महाभारत]] में हुआ है। महाभारत के अनुसार ये एक दानव और [[प्राग्ज्योतिषपुर]] के [[भगदत्त|राजा भगदत्त]] का पिता था। यह असुरराज [[नरकासुर]] का सेनापति भी था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम= महाभारत शब्दकोश|लेखक= एस. पी. परमहंस|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली|संकलन=भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |संपादन= |पृष्ठ संख्या=88|url=}}</ref> | ||
*यह शंखासुर का पुत्र पाँच सिर वाला एक [[दैत्य]] था, जिसे [[श्रीकृष्ण]] ने([[विष्णु]] ने ) मारा था और इसका वध करने के कारण ही उनका (कृष्ण का) नाम 'मुरारि' पड़ा था। इसके एक [[पुत्र]] का नाम | *यह शंखासुर का पुत्र पाँच सिर वाला एक [[दैत्य]] था, जिसे [[श्रीकृष्ण]] ने([[विष्णु]] ने ) मारा था और इसका वध करने के कारण ही उनका (कृष्ण का) नाम 'मुरारि' पड़ा था। इसके एक [[पुत्र]] का नाम वत्सासुर था और कुल 7000<ref>भागवत पुराण- 7</ref> पुत्र थे, जो अपने सेनापति की अध्यक्षता में युद्ध के लिये उठ खड़े हुए पर [[गरुड़]] ने सबको प्राग्ज्योतिष नगर के बाहर मार डाला था<ref>भाग. 10.59.6-19; 37.16; 3.3.11; 4.26.24; विष्णु 5.29.17,18</ref><ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक= राणा प्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन=भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन=|पृष्ठ संख्या=427|url=}}</ref> | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
05:27, 17 मार्च 2016 के समय का अवतरण
मुरु अथवा मुर का उल्लेख हिन्दू पौराणिक महाकाव्य महाभारत में हुआ है। महाभारत के अनुसार ये एक दानव और प्राग्ज्योतिषपुर के राजा भगदत्त का पिता था। यह असुरराज नरकासुर का सेनापति भी था।[1]
- यह शंखासुर का पुत्र पाँच सिर वाला एक दैत्य था, जिसे श्रीकृष्ण ने(विष्णु ने ) मारा था और इसका वध करने के कारण ही उनका (कृष्ण का) नाम 'मुरारि' पड़ा था। इसके एक पुत्र का नाम वत्सासुर था और कुल 7000[2] पुत्र थे, जो अपने सेनापति की अध्यक्षता में युद्ध के लिये उठ खड़े हुए पर गरुड़ ने सबको प्राग्ज्योतिष नगर के बाहर मार डाला था[3][4]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 88 |
- ↑ भागवत पुराण- 7
- ↑ भाग. 10.59.6-19; 37.16; 3.3.11; 4.26.24; विष्णु 5.29.17,18
- ↑ पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 427 |
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