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जेसुइट पादरी

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जेसुइट पादरी अज्ञानियों में ईसाई धर्म का प्रचार करने के उद्देश्य से संगठित 'सोसाइटी ऑफ़ जीसस' के सदस्य थे। ये पहली बार भारत में गोवा की पुर्तग़ाली बस्ती में 1542 ई. में आये। बादशाह अकबर से मिलने के लिए जो पहले जेसुइट पादरी पहुँचे, वे साधु रिदांल्फ़ो अकविवा तथा फ़ादर एंथोनी मोंसेरात थे। जेसुइट पादरियों ने भारत में ईसाई धर्म का काफ़ी प्रचार-प्रसार किया था। इन्होंने भारत में कई शिक्षण संस्थाओं की स्थापना भी की थी।

अकबर से भेंट

रिदांल्फ़ो अकविवा तथा फ़ादर एंथोनी मोंसेरात 1580 ई. में फ़तेहपुर सीकरी में बादशाह अकबर से मिले। जेसुइट पादरियों का दूसरा दल 1590 ई. में बादशाह अकबर के दरबार में पहुँचा और तीसरा दल 1595 ई. में आया। बादशाह ने जेसुइट पादरियों की बात ध्यान से और सम्मान से सुनी और एक समय यह आशा होने लगी कि वे बादशाह को ईसाई धर्म में बपतिस्मा देने में सफल हो जाएँगे। उन्होंने भारत में व्यापार करने वाली पुर्तग़ाली कम्पनी को राजनीतिक तथा व्यापारिक सुविधाएँ दिलाने की भी कोशिश की। परन्तु उनकी सारी कोशिशें विफल रहीं और अकबर ने ईसाई धर्म में बपतिस्मा नहीं लिया।

जहाँगीर का आदेश

जेसुइट पादरी जहाँगीर के दरबार में भी पहुँचे। जहाँगीर ने उन्हें अपना गिरिजाघर बनाने, अपने पादरियों के लिए लाहौर में एक मठ बनवाने तथा बादशाह की भारतीय प्रजा को बपतिस्मा देकर ईसाई बनाने की इज़ाजत दी। परन्तु जहाँगीर ने भी जेसुइट पादरियों की यह आशा पूरी नहीं की कि वह बपतिस्मा लेकर ईसाई बन जाएगा। बाद में राजनीतिक कारणों से जहाँगीर ने पुर्तग़ालियों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। फलस्वरूप उसने जेसुइट पादरियों को आदेश दिया कि वे अपने गिरिजाघर बंद कर दें और उसकी प्रजा को बपतिस्मा देकर ईसाई न बनायें।

ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार

जहाँगीर के राज्यकाल के बाद जेसुइट पादरियों का सारा राजनीतिक प्रभाव समाप्त हो गया। फिर भी भारत में उन्होंने ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार का कार्य जारी रखा। बहुत से भारतीयों को ईसाई बनाया और कलकत्ता के 'सेंट जैवियर कॉलेज' जैसी शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 172।

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