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*12वीं [[सदी]] के उत्तरार्द्ध में यादव वंश के राजा [[देवगिरि का यादव वंश|भिल्लम]] द्वारा स्थापित यह शहर मध्य काल में एक महत्त्वपूर्ण दुर्ग और प्रशासनिक केंद्र था। एक विशाल चट्टानी परिदृश्य वाला यह दुर्ग अपराजेय था और इसे कभी ताक़त के बल पर हासिल नहीं किया जा सका, षड्यंत्रों के द्वारा ही इस पर क़ब्ज़ा किया गया।  
 
*12वीं [[सदी]] के उत्तरार्द्ध में यादव वंश के राजा [[देवगिरि का यादव वंश|भिल्लम]] द्वारा स्थापित यह शहर मध्य काल में एक महत्त्वपूर्ण दुर्ग और प्रशासनिक केंद्र था। एक विशाल चट्टानी परिदृश्य वाला यह दुर्ग अपराजेय था और इसे कभी ताक़त के बल पर हासिल नहीं किया जा सका, षड्यंत्रों के द्वारा ही इस पर क़ब्ज़ा किया गया।  
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*14वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में दिल्ली की मुस्लिम सल्तनत के अधीन आने तक यह शहर हिन्दू यादव वंश की राजधानी था।
 
*14वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में दिल्ली की मुस्लिम सल्तनत के अधीन आने तक यह शहर हिन्दू यादव वंश की राजधानी था।
 
*17वीं शताब्दी में मुग़लों द्वारा दक्कन में औरंगाबाद के समीप अपना प्रशासनिक मुख्यालय स्थापित करने के साथ ही इसका पतन हो गया।
 
*17वीं शताब्दी में मुग़लों द्वारा दक्कन में औरंगाबाद के समीप अपना प्रशासनिक मुख्यालय स्थापित करने के साथ ही इसका पतन हो गया।
 
इस नगर ने इतिहास में बहुत बार उत्थान और पतन देखा। यह 1318 ई. तक यादवों की राजधानी रहा, 1294 ई. में [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] ने इसे लूटा। बाद में ख़िलजी की फ़ौजों ने दुबारा 1318 ई. में यादव राजा हरपाल देव को पराजित कर मार डाला। उसकी मृत्यु से [[देवगिरि का यादव वंश|यादव वंश]] का अंत हो गया। बाद में जब सुल्तान मुहम्मद तुग़लक़ गद्दी पर बैठा, उसे देवगिरी की केन्द्रीय स्थिति बहुत पसंद आयी। उस समय मुहम्मद तुग़लक़ का शासन [[पंजाब]] से [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]] तक तथा [[हिमालय]] से लेकर [[कन्याकुमारी]] तक फैला हुआ था।  
 
इस नगर ने इतिहास में बहुत बार उत्थान और पतन देखा। यह 1318 ई. तक यादवों की राजधानी रहा, 1294 ई. में [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] ने इसे लूटा। बाद में ख़िलजी की फ़ौजों ने दुबारा 1318 ई. में यादव राजा हरपाल देव को पराजित कर मार डाला। उसकी मृत्यु से [[देवगिरि का यादव वंश|यादव वंश]] का अंत हो गया। बाद में जब सुल्तान मुहम्मद तुग़लक़ गद्दी पर बैठा, उसे देवगिरी की केन्द्रीय स्थिति बहुत पसंद आयी। उस समय मुहम्मद तुग़लक़ का शासन [[पंजाब]] से [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]] तक तथा [[हिमालय]] से लेकर [[कन्याकुमारी]] तक फैला हुआ था।  
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==राजधानी बनाने का प्रयत्न==
 
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सुल्तान ने देवगिरि का नाम दौलताबाद रखा। उसने इस नगर में बड़े-बड़े भवन और सड़कें बनवायीं। एक सड़क दौलताबाद से [[दिल्ली]] तक बनायी गई। 1327 ई. में सुल्तान दिल्ली से राजधानी हटाकर दौलताबाद ले गया। दिल्ली के नागरिकों ने दौलताबाद जाना पसंद नहीं किया। इस स्थानांतरण से लाभ कुछ नहीं हुआ, उल्टे परेशानियाँ बढ़ गयीं। फलत: राजधानी पुन: दिल्ली ले आयी गई। लेकिन इससे दौलताबाद का महत्त्व नहीं घटा। दक्षिण में जब [[बहमनी राज्य]] टूटा, तब [[अहमदनगर]] राज्य में दौलताबाद का गढ़ अत्यंत शक्तिशाली माना जाता रहा। 1631 ई. में सम्राट [[शाहजहाँ]] इस गढ़ को सर न कर सका, और क़िलेदार [[फतेह ख़ाँ]] को घूस देकर ही उस पर क़ब्ज़ा कर सका। मुग़ल शासन के अंतर्गत भी दौलताबाद प्रशासन का मुख्य केन्द्र बना रहा इसी नगर से [[औरंगज़ेब]] ने अपने दक्षिणी अभियानों का आयोजन शुरू किया। औरंगज़ेब के आदेश से [[गोलकुण्डा]] का अंतिम शासक [[अब्दुल हसन]] दौलताबाद के ही गढ़ में कैद किया गया था। 1707 ई. में बुरहान-पुर में औरंगज़ेब की मृत्यु होने पर उसके शव को दौलताबाद में ही दफनाया गया। 1760 ई. में यह नगर मराठों के अधिकार में आ गया, लेकिन इसका पुराना नाम देवगिरि पुन: प्रचलित न हो सका। आज भी यह दौलताबाद के नास से ही जाना जाता है।  
 
सुल्तान ने देवगिरि का नाम दौलताबाद रखा। उसने इस नगर में बड़े-बड़े भवन और सड़कें बनवायीं। एक सड़क दौलताबाद से [[दिल्ली]] तक बनायी गई। 1327 ई. में सुल्तान दिल्ली से राजधानी हटाकर दौलताबाद ले गया। दिल्ली के नागरिकों ने दौलताबाद जाना पसंद नहीं किया। इस स्थानांतरण से लाभ कुछ नहीं हुआ, उल्टे परेशानियाँ बढ़ गयीं। फलत: राजधानी पुन: दिल्ली ले आयी गई। लेकिन इससे दौलताबाद का महत्त्व नहीं घटा। दक्षिण में जब [[बहमनी राज्य]] टूटा, तब [[अहमदनगर]] राज्य में दौलताबाद का गढ़ अत्यंत शक्तिशाली माना जाता रहा। 1631 ई. में सम्राट [[शाहजहाँ]] इस गढ़ को सर न कर सका, और क़िलेदार [[फतेह ख़ाँ]] को घूस देकर ही उस पर क़ब्ज़ा कर सका। मुग़ल शासन के अंतर्गत भी दौलताबाद प्रशासन का मुख्य केन्द्र बना रहा इसी नगर से [[औरंगज़ेब]] ने अपने दक्षिणी अभियानों का आयोजन शुरू किया। औरंगज़ेब के आदेश से [[गोलकुण्डा]] का अंतिम शासक [[अब्दुल हसन]] दौलताबाद के ही गढ़ में कैद किया गया था। 1707 ई. में बुरहान-पुर में औरंगज़ेब की मृत्यु होने पर उसके शव को दौलताबाद में ही दफनाया गया। 1760 ई. में यह नगर मराठों के अधिकार में आ गया, लेकिन इसका पुराना नाम देवगिरि पुन: प्रचलित न हो सका। आज भी यह दौलताबाद के नास से ही जाना जाता है।  
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11:30, 4 मार्च 2012 का अवतरण

दौलताबाद क़िला, महाराष्ट्र

दौलताबाद गाँव और प्राचीन शहर, महाराष्ट्र राज्य, दक्षिण-पश्चिम भारत में स्थित है। दौलताबाद दक्षिण के यादववंशी राजाओं की राजधानी थी। और यह देवगिरी का सुल्तान मुहम्मद तुग़लक़ द्वारा रखा गया नाम था। यह गोदावरी नदी की उत्तरी घाटी में स्थित है और भौगोलिक दृष्टि से भारत का केन्द्रीय स्थल कहा जा सकता है।

इतिहास

  • 12वीं सदी के उत्तरार्द्ध में यादव वंश के राजा भिल्लम द्वारा स्थापित यह शहर मध्य काल में एक महत्त्वपूर्ण दुर्ग और प्रशासनिक केंद्र था। एक विशाल चट्टानी परिदृश्य वाला यह दुर्ग अपराजेय था और इसे कभी ताक़त के बल पर हासिल नहीं किया जा सका, षड्यंत्रों के द्वारा ही इस पर क़ब्ज़ा किया गया।
  • 14वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में दिल्ली की मुस्लिम सल्तनत के अधीन आने तक यह शहर हिन्दू यादव वंश की राजधानी था।
  • 17वीं शताब्दी में मुग़लों द्वारा दक्कन में औरंगाबाद के समीप अपना प्रशासनिक मुख्यालय स्थापित करने के साथ ही इसका पतन हो गया।

इस नगर ने इतिहास में बहुत बार उत्थान और पतन देखा। यह 1318 ई. तक यादवों की राजधानी रहा, 1294 ई. में अलाउद्दीन ख़िलजी ने इसे लूटा। बाद में ख़िलजी की फ़ौजों ने दुबारा 1318 ई. में यादव राजा हरपाल देव को पराजित कर मार डाला। उसकी मृत्यु से यादव वंश का अंत हो गया। बाद में जब सुल्तान मुहम्मद तुग़लक़ गद्दी पर बैठा, उसे देवगिरी की केन्द्रीय स्थिति बहुत पसंद आयी। उस समय मुहम्मद तुग़लक़ का शासन पंजाब से बंगाल तक तथा हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक फैला हुआ था।

दौलताबाद क़िला, महाराष्ट्र

राजधानी बनाने का प्रयत्न

सुल्तान ने देवगिरि का नाम दौलताबाद रखा। उसने इस नगर में बड़े-बड़े भवन और सड़कें बनवायीं। एक सड़क दौलताबाद से दिल्ली तक बनायी गई। 1327 ई. में सुल्तान दिल्ली से राजधानी हटाकर दौलताबाद ले गया। दिल्ली के नागरिकों ने दौलताबाद जाना पसंद नहीं किया। इस स्थानांतरण से लाभ कुछ नहीं हुआ, उल्टे परेशानियाँ बढ़ गयीं। फलत: राजधानी पुन: दिल्ली ले आयी गई। लेकिन इससे दौलताबाद का महत्त्व नहीं घटा। दक्षिण में जब बहमनी राज्य टूटा, तब अहमदनगर राज्य में दौलताबाद का गढ़ अत्यंत शक्तिशाली माना जाता रहा। 1631 ई. में सम्राट शाहजहाँ इस गढ़ को सर न कर सका, और क़िलेदार फतेह ख़ाँ को घूस देकर ही उस पर क़ब्ज़ा कर सका। मुग़ल शासन के अंतर्गत भी दौलताबाद प्रशासन का मुख्य केन्द्र बना रहा इसी नगर से औरंगज़ेब ने अपने दक्षिणी अभियानों का आयोजन शुरू किया। औरंगज़ेब के आदेश से गोलकुण्डा का अंतिम शासक अब्दुल हसन दौलताबाद के ही गढ़ में कैद किया गया था। 1707 ई. में बुरहान-पुर में औरंगज़ेब की मृत्यु होने पर उसके शव को दौलताबाद में ही दफनाया गया। 1760 ई. में यह नगर मराठों के अधिकार में आ गया, लेकिन इसका पुराना नाम देवगिरि पुन: प्रचलित न हो सका। आज भी यह दौलताबाद के नास से ही जाना जाता है।


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