इशरत सुल्ताना

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इशरत सुल्ताना
इशरत सुल्ताना
पूरा नाम इशरत सुल्ताना
प्रसिद्ध नाम बिब्बो
मृत्यु 1972
कर्म भूमि भारत, पाकिस्तान
कर्म-क्षेत्र अभिनेत्री, गायिका
मुख्य फ़िल्में वासवदत्ता, ग़रीब परवर, मनमोहन, जागीरदार, दुपट्टा, गुलनार, नजराना, मंडी, कातिल, कुंवारी बेवा, जहर-ए- इश्क, सलमा, ग़ालिब, फानूस आदि
पुरस्कार-उपाधि निगार सम्मान
पहली फ़िल्म मायाजाल (1933)

इशरत सुल्ताना (अंग्रेज़ी: Ishrat Sultana) बिब्बो के नाम से प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं। बहुत कम लोग जानते हैं कि एक साल से भी कम समय के लिए मुंबइया फ़िल्मों से जुड़ने वाले प्रेमचंद ने 1934 में मज़दूर उर्फ मिल नाम की जिस फ़िल्म की पटकथा लिखी उसकी नायिका थी बिब्बो। उनका असली नाम था इशरत सुल्ताना। इशरत सुल्ताना का जन्म पुरानी दिल्ली के चावड़ी बाज़ार के समीपवर्ती इशरताबाद इलाक़े में हुआ था। उनकी माँ हफीजन बाई कोठे पर नाचने-गाने वाली तवायफ़ थीं।

जीवन परिचय

इशरत सुल्ताना के आरंभिक जीवन के बारे में बहुत-सी बातें अज्ञात हैं या विवादास्पद हैं, जैसे कि उनका जन्म कब हुआ, उनके पिता का क्या नाम था और उनका नाम बिब्बो किसने रखा? प्रामाणिक स्त्रोतों के अनुसार उनकी पहली फ़िल्म 1933 में बनी मायाजाल थी। बिब्बो बहुत जल्दी हिंदी सिनेमा की प्रमुख अभिनेत्री बन गई। मायाजाल फ़िल्म की निर्देशक थी शांति दवे और निर्माता थे अजंता सिनेटोम कंपनी के मालिक मोहन भवनानी। मोहन भवनानी ने ही प्रेमचंद को मुंबई बुलाया और उनके साथ पटकथाएं लिखने का अनुबंध किया और उनकी मज़दूर फ़िल्म का निर्देशन भी किया। बिब्बो ने प्रेमचंद जैसे मूर्धन्य कथाकार की पहली और एकमात्र फ़िल्म में नायिका की भूमिका अदा की और वह हिंदी फ़िल्मों की पहली महिला संगीत निर्देशक भी थीं।[1]

प्रसिद्धि

उत्कृष्ट अभिनय के लिए उन्हें पहला सम्मान भारत में नहीं, पाकिस्तान में मिला था निगार नामक सम्मान। आमतौर पर माना जाता है कि अभिनेत्री नर्गिस की माँ जद्दन बाई मुंबइया फ़िल्मों की पहली महिला संगीत निर्देशक थीं, लेकिन सच्चाई यह है कि बिब्बो ने उनसे एक वर्ष पहले 1934 में अदले-जहांगीर फ़िल्म का संगीत निर्देशन किया था। बिब्बो ने 1937 में एक और फ़िल्म 'कज्जाक की लड़की' में भी संगीत दिया था। अगर फ़िल्मों की संख्या के आधार पर तुलना करें तो जद्दन बाई निश्चय ही बिब्बो से आगे थीं। उन्होंने 1936 में ह्दय मंथन, मैडम फैशन और 1937 में जीवन स्वप्न, मोती का हार में संगीत दिया। बिब्बो को घुट्टी में संगीत मिला था और फ़िल्मों में आते ही उन्होंने गाना शुरू कर दिया। हालांकि उस समय सारी अभिनेत्रियां गाती थीं, क्योंकि हिंदी फ़िल्मों में पार्श्व गायन शुरू नहीं हुआ था। 1930 और 1940 के दशक के हिंदी फ़िल्मों में बिब्बो के गानों को याद करते हैं। अभिनेत्री के रूप में फ़िल्म मज़दूर में बिब्बो ने आदर्शवादी मिल मालकिन की भूमिका अदा की थी जिसका नाम था पद्मा। इसमें कपड़ा मिलों के शोषित मज़दूरों के जीवन का यथार्थ चित्रण था जिसमें व्यापक रूप से प्रेमचंद के आदर्शवाद की पूरी छाप थी। उन्होंने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि अगर मालिक उदार, दयालु और मज़दूरों का हितचिंतक हो तो न केवल मज़दूर ख़ुश रहते हैं, बल्कि वे मेहनत भी ज्यादा करते हैं। इसके विपरीत अगर मज़दूरों पर अत्याचार किया जाए तो वे मालिकों से झगड़ा करते हैं और हड़तालें करते हैं। इस सुखांत फ़िल्म की शूटिंग एक मिल में की गई थी। भारतीय फ़िल्मों के इतिहास में इस तरह की लोकेशन शूटिंग पहली बार की गई थी, क्योंकि तब स्टूडियो में सेट लगाकर ही शूटिंग होती थी।[1]

फ़िल्मी जीवन

फ़िल्मी जीवन के आरंभिक वर्षो में बिब्बो का खलील सरदार नाम के एक सुंदर युवा अभिनेता से प्यार हो गया था और वह उससे शादी करके लाहौर चली गई। शादी का जश्न मनाने के लिए 1937 में उन दोनों ने वहां कज्जाक की लड़की नामक फ़िल्म बनाई, लेकिन वह पिट गई। इससे उनका रोमांस तो ठंडा हुआ ही, उनकी शादी भी टूट गई। टूटे दिल के साथ बिब्बो वापस मुंबई आ गई और फ़िल्मों में काम करने लगी। उनकी चर्चित फ़िल्मों के नाम हैं-वासवदत्ता, ग़रीब परवर, मनमोहन, जागीरदार, डायनामाइट, ग्रामोफोन सिंगर, प्यार की मार, शाने-ख़ुदा, सागर का शेर, बड़े नवाब साहिब, नसीब और पहली नजर। पहली नजर वही फ़िल्म है जिसमें मुकेश ने पार्शव गायक के रूप में पहला गाना गाया था-दिल जलता है तो जलने दे। भारत में बिब्बो की आखिरी फ़िल्म थी 1947 में बनी पहला प्यार जिसका निर्देशन एपी कपूर ने किया था। वर्ष 1950 में बिब्बो भारत को हमेशा के लिए छोड़कर पाकिस्तान चली गई और वहां की फ़िल्मों में काम करने लगीं। वहां उसी साल उन्होंने अपनी पहली पाकिस्तानी फ़िल्म 'शम्मी' में अभिनय किया। यह फ़िल्म पंजाबी में थी। पाकिस्तान में बिब्बो की बहुत-सी फ़िल्में चर्चित हुई जिनमें से कुछ के नाम हैं-दुपट्टा, गुलनार, नजराना, मंडी, कातिल, कुंवारी बेवा, जहर-ए- इश्क, सलमा, ग़ालिब और फानूस। फानूस में उन्होंने प्रसिद्ध पाकिस्तानी अभिनेता आजाद के साथ सराहनीय अभिनय किया, लेकिन फ़िल्म चली नहीं। अलबत्ता 'ग़ालिब' फ़िल्म में उनके अभिनय की सभी फ़िल्म समीक्षकों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। वर्ष 1958 में जहर-ए-इश्क फ़िल्म में उत्कृष्ट अभिनय के लिए उन्हें निगार सम्मान प्राप्त हुआ था। बिब्बो की आखिरी पाकिस्तानी फ़िल्म थी 1969 में बनी बुजदिल। [1]

निधन

जीवन के अंतिम वर्षो में बिब्बो घोर आर्थिक संकटों में पड़ गई थी और उनके सारे मित्र और चाहने वाले उन्हें छोड़ गए थे। किसी जमाने में लाखों दिलों की धड़कन और अद्वितीय सुंदरी मानी जाने वाली इस कलाकार का वर्ष 1972 में बड़ा दुखद अंत हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 हिंदी फ़िल्मों का एक भूला-बिसरा अध्याय (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) जागरण डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 7 फ़रवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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