तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली अनुवाक-1

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  • इस अनुवाक में कहा गया है कि ब्रह्मवेत्ता साधक ही परब्रह्म के सान्निध्य को प्राप्त कर पाता है और विशिष्ट ज्ञान-स्वरूप उस ब्रह्म के साथ समस्त भोगों का आनन्द प्राप्त करता है।
  • सर्वप्रथम परमात्मा से आकाशतत्त्व प्रकट हुआ।
  • उसके बाद आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल, जल से पृथ्वी, पृथ्वी से औषधियां, औषधियों से अन्न तथा अन्न से पुरुष का विकास हुआ।
  • पुरुष में ही अन्न का रस विद्यमान है।
  • आत्मा उसके मध्य भाग, अर्थात् हृदय में निवास करती है। ब्रह्मवेत साधक हृदय में स्थित इसी 'आत्मा' की उपासना करके 'परब्रह्म' तक पहुंचता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


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