"इलाहाबाद": अवतरणों में अंतर
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'''इलाहाबाद''' | '''इलाहाबाद''' दक्षिणी [[उत्तर प्रदेश]] राज्य के [[उत्तरी भारत]] में स्थित है। यह [[गंगा नदी|गंगा]] और [[यमुना नदी]] पर बसा हुआ है। यह प्राचीन नगर गंगा और यमुना के संगम के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि इस संगम पर भूमिगत रूप से [[सरस्वती नदी]] भी आकर मिलती है। गंगा और यमुना नदियों के संगम पर बसा इलाहाबाद [[वाराणसी]] (भूतपूर्व [[बनारस]]) व [[हरिद्वार]] के समकक्ष पवित्र प्राचीन प्रयाग की भूमि पर स्थित है। यह स्थान सामरिक दृष्टि से बड़ा महत्त्वपूर्ण है। इलाहाबाद उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक महत्त्वपूर्ण ज़िला है। [[भारत]] का मानक याम्योत्तर ग्रीनविच से 82.5° पूर्व है, जिसका अर्थ है कि हमारा [[मानक समय]], [[ग्रीनविच मानक समय]] से साढ़े पाँच घंटे आगे है। भारत में पूर्वी देशान्तर, जो कि इलाहाबाद के निकट नैनी से गुजरती है, के समय को मानक समय माना गया है। | ||
[[चित्र:Junction-Of-Gange-And-Yamuna-Allahabad.jpg|thumb|350px|left|मानचित्र में [[गंगा नदी|गंगा]] और [[यमुना नदी|यमुना]] का संगम, इलाहाबाद ([[1885]])]] | [[चित्र:Junction-Of-Gange-And-Yamuna-Allahabad.jpg|thumb|350px|left|मानचित्र में [[गंगा नदी|गंगा]] और [[यमुना नदी|यमुना]] का संगम, इलाहाबाद ([[1885]])]] | ||
==स्थापना== | ==स्थापना== | ||
वर्तमान इलाहाबाद शहर की स्थापना 1583 में मुग़ल बादशाह अकबर ने की थी और इसका नाम अल-इलाहाबाद | वर्तमान इलाहाबाद शहर की स्थापना सन 1583 में [[मुग़ल]] बादशाह [[अकबर]] ने की थी और इसका नाम 'अल-इलाहाबाद' अर्थात "अल्लाह का शहर" रखा था। [[मुग़ल साम्राज्य]] में इलाहाबाद प्रांतीय राजधानी रहा और सन 1599 से 1604 तक यह बाग़ी शहज़ादा [[सलीम]], जो बाद में मुग़ल बादशाह [[जहाँगीर]] बना, का मुख्यालय था। [[इलाहाबाद क़िला|इलाहाबाद क़िले]] के बाहर ही जहाँगीर के बाग़ी पुत्र ख़ुसरो की क़ब्र है। मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद सन 1801 में [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] द्वारा इलाहाबाद पर कब्ज़ा किए जाने तक यह शहर कई शासकों के हाथों में गया। [[1857]] में ब्रिटिश सत्ता के ख़िलाफ़ हुए भारतीय विद्रोह में यहाँ भारी रक्तपात हुआ। सन [[1904]] से [[1949]] तक इलाहाबाद संयुक्त प्रांत (वर्तमान उत्तर प्रदेश) की राजधानी था। | ||
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{{main|इलाहाबाद का इतिहास}} | {{main|इलाहाबाद का इतिहास}} | ||
इलाहाबाद का प्राचीन नाम प्रयाग | इलाहाबाद का प्राचीन नाम 'प्रयाग' है। इसे 'तीर्थराज' भी कहा जाता है। एक प्राचीन किंवदन्ती के अनुसार [[प्रयाग]] का एक नाम 'इलाबास' भी था, जो [[वैवस्वत मनु|मनु]] की पुत्री [[इला]] के नाम पर था। प्रयाग के निकट 'भुसी' या '[[प्रतिष्ठानपुर]]' में [[चन्द्रवंश|चन्द्रवंशी]] राजाओं की राजधानी थी। इसका पहला राजा इला और बुध का पुत्र [[पुरुरवा]] हुआ था। उसी ने अपनी राजधानी को 'इलाबास' की संज्ञा दी, जिसका रूपांतर [[अकबर]] के समय में इलाहाबाद हो गया। ईसा की चौथी और पाँचवीं शताब्दी में [[गुप्त वंश]] के राज में यह नगर उनकी एक राजधानी भी रहा। सातवीं शताब्दी में सम्राट् [[हर्षवर्धन]] वहाँ पाँच-पाँच वर्ष के अनन्तर, सत्र का आयोजन किया करता था। ऐसे एक सत्र में चीनी यात्री [[ह्वेन त्सांग]] ने 643 ई. में भाग लिया था। इलाहाबाद में सबसे प्राचीन ऐतिहासिक स्मारक [[मौर्य]] सम्राट [[अशोक]] (273-232 ई. पू.) के 6 स्तम्भ-लेखों में से एक है। इस पर गुप्त सम्राट् [[समुद्रगुप्त]] (330-380 ई.) की कवि [[हरिषेण]] द्वारा रचित प्रसिद्ध 'प्रयाग प्रशस्ति' है। इसमें उसके दिग्विजय होने का वर्णन है। इस स्थान के सामरिक महत्त्व को देखकर ही बादशाह [[अकबर]] ने 1583 ई. में यहाँ [[गंगा]]-[[यमुना]] के संगम पर क़िला बनवाया था और प्रयाग के स्थान पर इसका नाम इलाहाबाद रख दिया। यह नगर इलाहाबाद सूबे की राजधानी बनाया गया। यह नगर बाद में उत्तर प्रदेश (संयुक्त प्रांत [[आगरा]], [[अवध]]) की राजाधानी रहा था। | ||
[[ह्वेन त्सांग]] ने 643 ई. में भाग लिया था। इलाहाबाद में सबसे प्राचीन ऐतिहासिक स्मारक अशोक (273-232 ई. पू.) के 6 स्तम्भ-लेखों में से एक है। इस पर गुप्त सम्राट् [[ | ==महत्त्व== | ||
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* यहाँ उत्तर प्रदेश का [[उच्च न्यायालय]] और एजी कार्यालय भी | * यहाँ उत्तर प्रदेश का [[उच्च न्यायालय]] और एजी कार्यालय भी है। | ||
* इलाहाबाद का अपना ऐतिहासिक महत्त्व है [[रामायण]] में इलाहाबाद, प्रयाग के नाम से वर्णित है। | * इलाहाबाद का अपना ऐतिहासिक महत्त्व है [[रामायण]] में इलाहाबाद, प्रयाग के नाम से वर्णित है। | ||
* संगम का धार्मिक महत्त्व भी बहुत | * संगम का धार्मिक महत्त्व भी बहुत है। | ||
* इलाहाबाद शहर का हिन्दी साहित्य में बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान | * इलाहाबाद शहर का [[हिन्दी साहित्य]] में बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। | ||
* पूर्वी उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के किनारे बसा इलाहाबाद [[भारत]] का पवित्र और लोकप्रिय तीर्थस्थल | * पूर्वी उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के किनारे बसा इलाहाबाद [[भारत]] का पवित्र और लोकप्रिय तीर्थस्थल है। इस शहर का उल्लेख [[भारत]] के धार्मिक ग्रन्थों में भी मिलता है। [[वेद]], [[पुराण]], [[रामायण]] और [[महाभारत]] में इस स्थान को प्रयाग कहा गया है। | ||
*गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का यहाँ संगम होता है, इसलिए [[हिन्दू|हिन्दुओं]] के लिए इस शहर का विशेष महत्त्व है। | |||
*12 साल बाद यहाँ [[कुम्भ मेला|कुम्भ]] के मेले का आयोजन होता है। कुम्भ के मेले में 2 करोड़ की भीड़ इकट्ठा होने का अनुमान किया जाता है, जो सम्भवत: विश्व में सबसे बड़ा जमावड़ा है। | |||
==धार्मिक ऐतिहासिकता== | |||
इलाहाबाद की अपनी एक धार्मिक ऐतिहासिकता भी रही है। छठवें [[जैन]] [[तीर्थंकर]] भगवान [[पद्मप्रभ]] की जन्मस्थली [[कौशाम्बी]] रही है तो [[भक्ति आंदोलन]] के प्रमुख स्तम्भ [[रामानन्द]] का जन्म भी यहीं हुआ। [[रामायण]] काल का चर्चित [[श्रृंगवेरपुर]], जहाँ पर केवट ने राम के चरण धोये थे, यहीं पर है। यहाँ गंगातट पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम व समाधि है। [[भारद्वाज|भारद्वाज मुनि]] का प्रसिद्ध आश्रम भी यहीं [[आनन्द भवन]] के पास है, जहाँ भगवान राम श्रृंगवेरपुर से [[चित्रकूट]] जाते समय मुनि से आशीर्वाद लेने आए थे। अलोपी देवी के मंदिर के रूप में प्रसिद्ध सिद्धिपीठ यहीं पर है तो सीता-समाहित स्थल के रूप में प्रसिद्ध [[सीतामढ़ी|सीतामढ़ी]] भी यहीं पर है। [[गंगा]] तट पर अवस्थित दशाश्वमेध मंदिर जहाँ [[ब्रह्मा]] ने सृष्टि का प्रथम [[अश्वमेध यज्ञ]] किया था, भी इलाहाबाद में ही अवस्थित है। धौम्य ऋषि ने अपने तीर्थयात्रा प्रसंग में वर्णन किया है कि प्रयाग में सभी तीर्थों, देवों और ऋषि-मुनियों का सदैव से निवास रहा है तथा [[सोम देव|सोम]], [[वरुण देवता|वरुण]] व प्रजापति का जन्मस्थान भी प्रयाग ही है। | |||
====कुम्भ मेला==== | |||
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संगम तट पर लगने वाले [[कुम्भ मेला|कुम्भ मेले]] के बिना इलाहाबाद का इतिहास अधूरा है। प्रत्येक बारह वर्ष में यहाँ पर महाकुम्भ मेले का आयोजन होता है, जो कि अपने में एक लघु भारत का दर्शन करने के समान है। इसके अलावा प्रत्येक वर्ष लगने वाले [[माघ स्नान]] और कल्पवास का भी आध्यात्मिक महत्व है। [[महाभारत]] के अनुशासन पर्व के अनुसार माघ मास में तीन करोड़ दस हज़ार तीर्थ इलाहाबाद में एकत्र होते हैं और विधि-विधान से यहाँ [[ध्यान]] और कल्पवास करने से मनुष्य स्वर्गलोक का अधिकारी बनता है। '[[पद्मपुराण]]' के अनुसार इलाहाबाद में माघ मास के समय तीन दिन पर्यन्त संगम [[स्नान]] करने से प्राप्त फल [[पृथ्वी]] पर एक हज़ार अश्वमेध यज्ञ करने से भी नहीं प्राप्त होता- | |||
<blockquote><poem>प्रयागे माघमासे तु त्र्यहं स्नानस्य यत्फलम्। | |||
नाश्वमेधसस्त्रेण तत्फलं लभते भुवि।।</poem></blockquote> | |||
==स्वतत्रता आन्दोलन में भूमिका== | |||
[[भारत]] के स्वतत्रता आन्दोलन में भी इलाहाबाद की एक अहम् भूमिका रही। राष्ट्रीय नवजागरण का उदय इलाहाबाद की भूमि पर हुआ तो [[गाँधी युग]] में यह नगर प्रेरणा केन्द्र बना। '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' के संगठन और उन्नयन में भी इस नगर का योगदान रहा है। सन [[1857]] के विद्रोह का नेतृत्व यहाँ पर [[लियाक़त अली ख़ाँ]] ने किया था। कांग्रेस पार्टी के तीन अधिवेशन यहाँ पर [[1888]], [[1892]] और [[1910]] में क्रमशः जार्ज यूल, [[व्योमेश चन्द्र बनर्जी]] और सर विलियम बेडरबर्न की अध्यक्षता में हुए। [[महारानी विक्टोरिया]] का [[1 नवम्बर]], [[1858]] का प्रसिद्ध घोषणा पत्र यहीं अवस्थित 'मिण्टो पार्क'<ref>अब मदन मोहन मालवीय पार्क</ref> में तत्कालीन [[वायसराय]] [[लॉर्ड केनिंग]] द्वारा पढ़ा गया था। नेहरू परिवार का पैतृक आवास 'स्वराज भवन' और 'आनन्द भवन' यहीं पर है। नेहरू-गाँधी परिवार से जुडे़ होने के कारण इलाहाबाद ने देश को प्रथम [[प्रधानमंत्री]] भी दिया। | |||
====क्रांतिकारियों की शरणस्थली==== | |||
उदारवादी व समाजवादी नेताओं के साथ-साथ इलाहाबाद क्रांतिकारियों की भी शरणस्थली रहा है। [[चंद्रशेखर आज़ाद]] ने यहीं पर अल्फ्रेड पार्क में [[27 फ़रवरी]], [[1931]] को अंग्रेज़ों से लोहा लेते हुए ब्रिटिश पुलिस अध्यक्ष नॉट बाबर और पुलिस अधिकारी विशेश्वर सिंह को घायल कर कई पुलिसजनों को मार गिराया औरं अंततः ख़ुद को गोली मारकर आजीवन आज़ाद रहने की कसम पूरी की। [[1919]] के [[रौलेट एक्ट]] को सरकार द्वारा वापस न लेने पर [[जून]], [[1920]] में [[इलाहाबाद]] में एक सर्वदलीय सम्मेलन हुआ, जिसमें स्कूल, कॉलेजों और अदालतों के बहिष्कार के कार्यक्रम की घोषणा हुई, इस प्रकार प्रथम [[असहयोग आंदोलन]] और [[ख़िलाफ़त आंदोलन]] की नींव भी इलाहाबाद में ही रखी गयी थी। | |||
==यातायात और परिवहन== | ==यातायात और परिवहन== | ||
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==शिक्षण संस्थान== | ==शिक्षण संस्थान== | ||
[[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] ([[1887]]) से संबद्ध अनेक महाविद्यालयों के साथ-साथ यहाँ एक उड्डयन प्रशिक्षण केंद्र भी है। 'प्रयाग संगीत समिति' आज भारत का जाना पहचाना नाम है। यहाँ पर संगीत की शिक्षा ग्रहण करने के लिए देश-विदेश से हज़ारों की संख्या में विद्यार्थी आते हैं। यहाँ पर कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालय भी है। | [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] ([[1887]]) से संबद्ध अनेक महाविद्यालयों के साथ-साथ यहाँ एक उड्डयन प्रशिक्षण केंद्र भी है। 'प्रयाग संगीत समिति' आज भारत का जाना पहचाना नाम है। यहाँ पर संगीत की शिक्षा ग्रहण करने के लिए देश-विदेश से हज़ारों की संख्या में विद्यार्थी आते हैं। यहाँ पर कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालय भी है। | ||
== जनसंख्या== | == जनसंख्या== | ||
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12:18, 9 जनवरी 2013 का अवतरण
इलाहाबाद
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विवरण | इलाहाबाद शहर, दक्षिणी उत्तर प्रदेश राज्य के उत्तरी भारत में स्थित है। इलाहाबाद गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है। |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
ज़िला | इलाहाबाद ज़िला |
निर्माता | अकबर |
स्थापना | सन 1583 ई. |
भौगोलिक स्थिति | उत्तर- 25.45°, पूर्व- 81.85° |
मार्ग स्थिति | राष्ट्रीय राजमार्ग 2 और 27 से इलाहाबाद पहुँचा जा सकता है। |
कब जाएँ | अक्टूबर से मार्च |
कैसे पहुँचें | विमान, रेल, बस, टैक्सी |
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इलाहाबाद विमानक्षेत्र, नज़दीकी वाराणसी हवाई अड्डा |
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प्रयाग रेलवे स्टेशन, इलाहाबाद सिटी रेलवे स्टेशन, दारागंज रेलवे स्टेशन, इलाहाबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन, नैनी जंक्शन रेलवे स्टेशन, सूबेदारगंज रेलवे स्टेशन, बमरौली रेलवे स्टेशन |
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लीडर रोड एवं सिविल लाइंस से बसें उपलब्ध |
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ऑटो रिक्शा, बस, टैम्पो, साइकिल रिक्शा |
क्या देखें | इलाहाबाद पर्यटन |
कहाँ ठहरें | होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह |
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गूगल मानचित्र, इलाहाबाद विमानक्षेत्र |
अद्यतन | 17:09, 15 नवंबर 2010 (IST)
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इलाहाबाद | इलाहाबाद पर्यटन | इलाहाबाद ज़िला |
इलाहाबाद दक्षिणी उत्तर प्रदेश राज्य के उत्तरी भारत में स्थित है। यह गंगा और यमुना नदी पर बसा हुआ है। यह प्राचीन नगर गंगा और यमुना के संगम के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि इस संगम पर भूमिगत रूप से सरस्वती नदी भी आकर मिलती है। गंगा और यमुना नदियों के संगम पर बसा इलाहाबाद वाराणसी (भूतपूर्व बनारस) व हरिद्वार के समकक्ष पवित्र प्राचीन प्रयाग की भूमि पर स्थित है। यह स्थान सामरिक दृष्टि से बड़ा महत्त्वपूर्ण है। इलाहाबाद उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक महत्त्वपूर्ण ज़िला है। भारत का मानक याम्योत्तर ग्रीनविच से 82.5° पूर्व है, जिसका अर्थ है कि हमारा मानक समय, ग्रीनविच मानक समय से साढ़े पाँच घंटे आगे है। भारत में पूर्वी देशान्तर, जो कि इलाहाबाद के निकट नैनी से गुजरती है, के समय को मानक समय माना गया है।

स्थापना
वर्तमान इलाहाबाद शहर की स्थापना सन 1583 में मुग़ल बादशाह अकबर ने की थी और इसका नाम 'अल-इलाहाबाद' अर्थात "अल्लाह का शहर" रखा था। मुग़ल साम्राज्य में इलाहाबाद प्रांतीय राजधानी रहा और सन 1599 से 1604 तक यह बाग़ी शहज़ादा सलीम, जो बाद में मुग़ल बादशाह जहाँगीर बना, का मुख्यालय था। इलाहाबाद क़िले के बाहर ही जहाँगीर के बाग़ी पुत्र ख़ुसरो की क़ब्र है। मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद सन 1801 में अंग्रेज़ों द्वारा इलाहाबाद पर कब्ज़ा किए जाने तक यह शहर कई शासकों के हाथों में गया। 1857 में ब्रिटिश सत्ता के ख़िलाफ़ हुए भारतीय विद्रोह में यहाँ भारी रक्तपात हुआ। सन 1904 से 1949 तक इलाहाबाद संयुक्त प्रांत (वर्तमान उत्तर प्रदेश) की राजधानी था।
इतिहास
इलाहाबाद का प्राचीन नाम 'प्रयाग' है। इसे 'तीर्थराज' भी कहा जाता है। एक प्राचीन किंवदन्ती के अनुसार प्रयाग का एक नाम 'इलाबास' भी था, जो मनु की पुत्री इला के नाम पर था। प्रयाग के निकट 'भुसी' या 'प्रतिष्ठानपुर' में चन्द्रवंशी राजाओं की राजधानी थी। इसका पहला राजा इला और बुध का पुत्र पुरुरवा हुआ था। उसी ने अपनी राजधानी को 'इलाबास' की संज्ञा दी, जिसका रूपांतर अकबर के समय में इलाहाबाद हो गया। ईसा की चौथी और पाँचवीं शताब्दी में गुप्त वंश के राज में यह नगर उनकी एक राजधानी भी रहा। सातवीं शताब्दी में सम्राट् हर्षवर्धन वहाँ पाँच-पाँच वर्ष के अनन्तर, सत्र का आयोजन किया करता था। ऐसे एक सत्र में चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने 643 ई. में भाग लिया था। इलाहाबाद में सबसे प्राचीन ऐतिहासिक स्मारक मौर्य सम्राट अशोक (273-232 ई. पू.) के 6 स्तम्भ-लेखों में से एक है। इस पर गुप्त सम्राट् समुद्रगुप्त (330-380 ई.) की कवि हरिषेण द्वारा रचित प्रसिद्ध 'प्रयाग प्रशस्ति' है। इसमें उसके दिग्विजय होने का वर्णन है। इस स्थान के सामरिक महत्त्व को देखकर ही बादशाह अकबर ने 1583 ई. में यहाँ गंगा-यमुना के संगम पर क़िला बनवाया था और प्रयाग के स्थान पर इसका नाम इलाहाबाद रख दिया। यह नगर इलाहाबाद सूबे की राजधानी बनाया गया। यह नगर बाद में उत्तर प्रदेश (संयुक्त प्रांत आगरा, अवध) की राजाधानी रहा था।
महत्त्व

- यहाँ उत्तर प्रदेश का उच्च न्यायालय और एजी कार्यालय भी है।
- इलाहाबाद का अपना ऐतिहासिक महत्त्व है रामायण में इलाहाबाद, प्रयाग के नाम से वर्णित है।
- संगम का धार्मिक महत्त्व भी बहुत है।
- इलाहाबाद शहर का हिन्दी साहित्य में बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है।
- पूर्वी उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के किनारे बसा इलाहाबाद भारत का पवित्र और लोकप्रिय तीर्थस्थल है। इस शहर का उल्लेख भारत के धार्मिक ग्रन्थों में भी मिलता है। वेद, पुराण, रामायण और महाभारत में इस स्थान को प्रयाग कहा गया है।
- गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का यहाँ संगम होता है, इसलिए हिन्दुओं के लिए इस शहर का विशेष महत्त्व है।
- 12 साल बाद यहाँ कुम्भ के मेले का आयोजन होता है। कुम्भ के मेले में 2 करोड़ की भीड़ इकट्ठा होने का अनुमान किया जाता है, जो सम्भवत: विश्व में सबसे बड़ा जमावड़ा है।
धार्मिक ऐतिहासिकता
इलाहाबाद की अपनी एक धार्मिक ऐतिहासिकता भी रही है। छठवें जैन तीर्थंकर भगवान पद्मप्रभ की जन्मस्थली कौशाम्बी रही है तो भक्ति आंदोलन के प्रमुख स्तम्भ रामानन्द का जन्म भी यहीं हुआ। रामायण काल का चर्चित श्रृंगवेरपुर, जहाँ पर केवट ने राम के चरण धोये थे, यहीं पर है। यहाँ गंगातट पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम व समाधि है। भारद्वाज मुनि का प्रसिद्ध आश्रम भी यहीं आनन्द भवन के पास है, जहाँ भगवान राम श्रृंगवेरपुर से चित्रकूट जाते समय मुनि से आशीर्वाद लेने आए थे। अलोपी देवी के मंदिर के रूप में प्रसिद्ध सिद्धिपीठ यहीं पर है तो सीता-समाहित स्थल के रूप में प्रसिद्ध सीतामढ़ी भी यहीं पर है। गंगा तट पर अवस्थित दशाश्वमेध मंदिर जहाँ ब्रह्मा ने सृष्टि का प्रथम अश्वमेध यज्ञ किया था, भी इलाहाबाद में ही अवस्थित है। धौम्य ऋषि ने अपने तीर्थयात्रा प्रसंग में वर्णन किया है कि प्रयाग में सभी तीर्थों, देवों और ऋषि-मुनियों का सदैव से निवास रहा है तथा सोम, वरुण व प्रजापति का जन्मस्थान भी प्रयाग ही है।
कुम्भ मेला
संगम तट पर लगने वाले कुम्भ मेले के बिना इलाहाबाद का इतिहास अधूरा है। प्रत्येक बारह वर्ष में यहाँ पर महाकुम्भ मेले का आयोजन होता है, जो कि अपने में एक लघु भारत का दर्शन करने के समान है। इसके अलावा प्रत्येक वर्ष लगने वाले माघ स्नान और कल्पवास का भी आध्यात्मिक महत्व है। महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार माघ मास में तीन करोड़ दस हज़ार तीर्थ इलाहाबाद में एकत्र होते हैं और विधि-विधान से यहाँ ध्यान और कल्पवास करने से मनुष्य स्वर्गलोक का अधिकारी बनता है। 'पद्मपुराण' के अनुसार इलाहाबाद में माघ मास के समय तीन दिन पर्यन्त संगम स्नान करने से प्राप्त फल पृथ्वी पर एक हज़ार अश्वमेध यज्ञ करने से भी नहीं प्राप्त होता-
प्रयागे माघमासे तु त्र्यहं स्नानस्य यत्फलम्।
नाश्वमेधसस्त्रेण तत्फलं लभते भुवि।।
स्वतत्रता आन्दोलन में भूमिका
भारत के स्वतत्रता आन्दोलन में भी इलाहाबाद की एक अहम् भूमिका रही। राष्ट्रीय नवजागरण का उदय इलाहाबाद की भूमि पर हुआ तो गाँधी युग में यह नगर प्रेरणा केन्द्र बना। 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के संगठन और उन्नयन में भी इस नगर का योगदान रहा है। सन 1857 के विद्रोह का नेतृत्व यहाँ पर लियाक़त अली ख़ाँ ने किया था। कांग्रेस पार्टी के तीन अधिवेशन यहाँ पर 1888, 1892 और 1910 में क्रमशः जार्ज यूल, व्योमेश चन्द्र बनर्जी और सर विलियम बेडरबर्न की अध्यक्षता में हुए। महारानी विक्टोरिया का 1 नवम्बर, 1858 का प्रसिद्ध घोषणा पत्र यहीं अवस्थित 'मिण्टो पार्क'[1] में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड केनिंग द्वारा पढ़ा गया था। नेहरू परिवार का पैतृक आवास 'स्वराज भवन' और 'आनन्द भवन' यहीं पर है। नेहरू-गाँधी परिवार से जुडे़ होने के कारण इलाहाबाद ने देश को प्रथम प्रधानमंत्री भी दिया।
क्रांतिकारियों की शरणस्थली
उदारवादी व समाजवादी नेताओं के साथ-साथ इलाहाबाद क्रांतिकारियों की भी शरणस्थली रहा है। चंद्रशेखर आज़ाद ने यहीं पर अल्फ्रेड पार्क में 27 फ़रवरी, 1931 को अंग्रेज़ों से लोहा लेते हुए ब्रिटिश पुलिस अध्यक्ष नॉट बाबर और पुलिस अधिकारी विशेश्वर सिंह को घायल कर कई पुलिसजनों को मार गिराया औरं अंततः ख़ुद को गोली मारकर आजीवन आज़ाद रहने की कसम पूरी की। 1919 के रौलेट एक्ट को सरकार द्वारा वापस न लेने पर जून, 1920 में इलाहाबाद में एक सर्वदलीय सम्मेलन हुआ, जिसमें स्कूल, कॉलेजों और अदालतों के बहिष्कार के कार्यक्रम की घोषणा हुई, इस प्रकार प्रथम असहयोग आंदोलन और ख़िलाफ़त आंदोलन की नींव भी इलाहाबाद में ही रखी गयी थी।
यातायात और परिवहन
वायु मार्ग
इलाहाबाद का निकटतम हवाई अड्डा वाराणसी में है जो इलाहाबाद से 147 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। लखनऊ हवाई अड्डा 210 किलोमीटर की दूरी पर है।

रेल मार्ग
इलाहाबाद दिल्ली-कोलकाता के रास्ते पर स्थित है। देश के किसी भी हिस्से से यहाँ रेल से पहुँचा जा सकता है। कोलकाता, दिल्ली, पटना, गुवाहाटी, चैन्नई, मुम्बई, ग्वालियर, मेरठ, लखनऊ, कानपुर, वाराणसी आदि शहरों से इलाहाबाद के लिए सीधी रेलें हैं।
सड़क मार्ग
उत्तर प्रदेश और देश के अनेक शहरों से इलाहाबाद के लिए नियमित बसें चलती हैं।
कृषि और खनिज
इलाहाबाद शहर के चारों ओर का इलाका गंगा के मैदानी क्षेत्र में आता है इसलिए यह कृषि उत्पादों का बाज़ार भी है। धान, गेहूँ, जौ, चना यहाँ की मुख्य फ़सलें हैं।
उद्योग और व्यापार

मुख्यतः शैक्षणिक व प्रशासनिक केंद्र होने के साथ-साथ इलाहाबाद में कुछ उद्योग (खाद्य प्रसंस्करण व विनिर्माण) हैं।
शिक्षण संस्थान
इलाहाबाद विश्वविद्यालय (1887) से संबद्ध अनेक महाविद्यालयों के साथ-साथ यहाँ एक उड्डयन प्रशिक्षण केंद्र भी है। 'प्रयाग संगीत समिति' आज भारत का जाना पहचाना नाम है। यहाँ पर संगीत की शिक्षा ग्रहण करने के लिए देश-विदेश से हज़ारों की संख्या में विद्यार्थी आते हैं। यहाँ पर कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालय भी है।
जनसंख्या
इलाहाबाद की कुल जनसंख्या (2001 की गणना के अनुसार) 9,90,298 है। इलाहाबाद के कुल ज़िले की जनसंख्या 49,41,510 है।
पर्यटन
पर्यटकों के लिये यहाँ ब्रिटिश काल का एक सरकारी बंगला, आंग्ल व रोमन कैथॅलिक गिरजाघर और जामी मस्जिद भी हैं। उत्तर प्रदेश के इस ऐतिहासिक शहर का प्रशासनिक, शैक्षिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक दृष्टि से अग्रणी स्थान है। इस शहर का उल्लेख भारत के धार्मिक ग्रन्थों में भी मिलता है। वेद, पुराण, रामायण और महाभारत में इस स्थान को प्रयाग कहा गया है। गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का यहां संगम होता है।
वीथिका
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अब मदन मोहन मालवीय पार्क
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