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<blockquote>'समुद्रं पश्चिमं गत्वा सरस्वत्यब्धि संगमम्'<ref>[[महाभारत]] 35, 77.</ref></blockquote>
 
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*यह विशिष्ट स्थल या देहोत्सर्ग तीर्थ नगर के पूर्व में हिरण्या, सरस्वती तथा [[कपिला नदी|कपिला]] के संगम पर बताया जाता है। इसे प्राची त्रिवेणी भी कहते हैं। [[युधिष्ठिर]] तथा अन्य [[पांडव|पांडवों]] ने अपने वनवास काल में अन्य तीर्थों के साथ प्रभास की भी यात्रा की थी-
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*यह विशिष्ट स्थल या देहोत्सर्ग तीर्थ नगर के पूर्व में [[हिरण्या नदी|हिरण्या]], सरस्वती तथा [[कपिला नदी|कपिला]] के संगम पर बताया जाता है। इसे प्राची त्रिवेणी भी कहते हैं। [[युधिष्ठिर]] तथा अन्य [[पांडव|पांडवों]] ने अपने वनवास काल में अन्य तीर्थों के साथ प्रभास की भी यात्रा की थी-
 
<blockquote>'द्विजै: पृथिव्यां प्रथितं महद्भिस्तीर्थ प्रभासं समुषजगाम'<ref>[[महाभारत]], [[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] 118, 15.</ref></blockquote>
 
<blockquote>'द्विजै: पृथिव्यां प्रथितं महद्भिस्तीर्थ प्रभासं समुषजगाम'<ref>[[महाभारत]], [[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] 118, 15.</ref></blockquote>
 
*इस तीर्थ को महोदधि (समुद्र) का तीर्थ कहा गया है-
 
*इस तीर्थ को महोदधि (समुद्र) का तीर्थ कहा गया है-

06:06, 5 सितम्बर 2012 का अवतरण

प्रभास अथवा 'प्रभासपाटन' अथवा 'प्रभासपट्टन' काठियावाड़ के समुद्र तट पर स्थित बीराबल बंदरगाह की वर्तमान बस्ती का प्राचीन नाम है। यह एक प्रमुख तीर्थ स्थान है। किंवदंती के अनुसार जरा नामक व्याघ का बाण लगने से भगवान श्रीकृष्ण इसी स्थान पर परम धाम सिधारे थे। महाभारत के अनुसार यह सरस्वती-समुद्र संगम पर स्थित प्रसिद्ध तीर्थ था-

'समुद्रं पश्चिमं गत्वा सरस्वत्यब्धि संगमम्'[1]

  • यह विशिष्ट स्थल या देहोत्सर्ग तीर्थ नगर के पूर्व में हिरण्या, सरस्वती तथा कपिला के संगम पर बताया जाता है। इसे प्राची त्रिवेणी भी कहते हैं। युधिष्ठिर तथा अन्य पांडवों ने अपने वनवास काल में अन्य तीर्थों के साथ प्रभास की भी यात्रा की थी-

'द्विजै: पृथिव्यां प्रथितं महद्भिस्तीर्थ प्रभासं समुषजगाम'[2]

  • इस तीर्थ को महोदधि (समुद्र) का तीर्थ कहा गया है-

'प्रभासतीर्थ संप्राप्य पुण्यं तीर्थ महोदवे:-[3]

'ततस्ते यादवास्सर्वे रथानारुह्य शीघ्रगान, प्रभासं प्रययुस्सार्ध कृष्णरामादिमिर्द्विज। प्रभास समनुप्राप्ता कुकुरांधक वृष्णय: चक्रुस्तव महापानं वासुदेवेन नोदिता:, पिवतां तत्र चैतेषां संघर्षेण परस्परम्, अतिवादेन्धनोजज्ञे कलहाग्नि: क्षयावह:'[4]

  • देहोत्सर्ग के आगे यादव स्थली है, जहाँ यादव लोग परस्पर लड़भिड़ कर नष्ट हो गए थे। प्रभासपाटन का जैन साहित्य में 'देवकीपाटन' नाम भी मिलता है।

'वंदे स्वर्णगिरौ तथा सुरगिरौ श्री देवकीपत्तने'।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 584 |

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