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'''श्यामलाल सराफ''' (जन्म- [[4 जुलाई]], [[1904]], [[श्रीनगर]]) एक राजनीतिज्ञ और स्वतंत्रता सेनानी थे। कश्मीरी पंडित नेता श्यामलाल सराफ का [[कश्मीर]] की राजनीति में महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है।
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'''श्याम सुंदर''' (जन्म- [[18 दिसंबर]], [[1908]], [[हैदराबाद]], मृत्यु- [[19 मई]], [[1975]]) [[हिंदी]], [[उर्दू]], [[अंग्रेजी]], [[मराठी]] और [[कन्नड़]] [[भाषा|भाषाओं]] के जानकार एवं [[लेखक‍]] थे। वे दलित वर्ग के उत्थान के लिए प्रयत्नशील रहे।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
कश्मीरी पंडित नेता श्यामलाल सराफ का जन्म [[4 जुलाई]], [[1904]] ई. को [[श्रीनगर]] में हुआ था। उन्होंने श्री प्रताप कॉलेज, श्रीनगर से अपनी शिक्षा पूरी की। कॉलेज में [[शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला]] उनके सहपाठी थे। सराफ ने कश्मीरी कला वस्तुओं के उत्पादन और बिक्री से सक्रिय जीवन आरम्भ किया और साथ ही सार्वजनिक कार्यों में भाग लेने लगे। उन्होंने 'सनातन धर्म युवक सभा' और हिंदू प्रोग्रेसिव पार्टी' की स्थापना की। [[1942]] से [[1946]] तक नेशनल कांफ्रेंस की कार्यसमिति के सदस्य और उस संस्था के कोषाध्यक्ष रहे। [[कश्मीर]] के [[हिंदू]] राजा के विरुद्ध मुस्लिम बहुमत ने जब आंदोलन आरंभ किया था तो जिन थोड़े से कश्मीरी पंडितों ने उनका साथ दिया, उनमें श्यामलाल सराफ  प्रमुख थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=861|url=}}</ref>
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[[हिंदी]], [[उर्दू]], [[अंग्रेजी]], [[मराठी]] और [[कन्नड़]] [[भाषा|भाषाओं]] के ज्ञाता एवं दलित वर्ग के उत्थान के लिए जीवन भर संघर्ष करने वाले श्याम सुंदर का जन्म [[18 दिसंबर]], [[1908]] ई. को [[हैदराबाद]] में हुआ था। उनके पिता रेलवे के कर्मचारी थे। श्याम सुंदर ने [[उस्मानिया विश्वविद्यालय]] से कानून की डिग्री ली और उसके बाद मजदूर संघ के काम में लग गए। एक दलित परिवार से होने के कारण श्याम सुंदर दलित वर्ग की सामाजिक कठिनाइयों से भली भांति परिचित थे। वे [[1957]] से [[1961]] तक [[कर्नाटक]] में विधायक रहे और वहां भी दलितों के उत्थान के लिए प्रयत्न करते रहे। <ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=861|url=}}</ref>
==राजनैतिक जीवन==
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==दलितों के शुभचिंतक==
श्यामलाल सराफ का [[कश्मीर]] की राजनीति में मुख्य स्थान था। [[1946]] में कश्मीर के [[स्वतंत्रता संग्राम]] में भाग लेने के कारण उन्हें 7 वर्ष की सजा हुई थी, पर [[1947]] में वे रिहा हो गए। [[1948]] में गठित [[कश्मीर]] के मंत्रिमंडल में श्याम लाल सराफ अनेक प्रमुख विभागों के मंत्री बने। [[1953]] में [[शेख़ अब्दुल्ला]] को [[मुख्यमंत्री]] के पद से हटाने में उनकी मुख्य भूमिका थी। कुल 5 सदस्यीय मंत्रिमंडल में सराफ सहित तीन ने सदरे रियासत कर्ण सिंह के पास शेख़ के प्रति अविश्वास प्रस्ताव भेज दिया था। जब बख्शी गुलाम मोहम्मद [[कश्मीर]] के मुख्यमंत्री बने तो उनके मंत्रिमंडल में भी सराफ महत्वपूर्ण मंत्री थे। [[1962]] में वे कश्मीर से लोकसभा सदस्य बने। जब नेशनल कांफ्रेंस [[कांग्रेस]] में सम्मिलित हुई तो श्यामलाल सराफ उसके अध्यक्ष चुने गये थे।
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श्याम सुंदर दलितों के शुभचिंतक थे। उनके मन में दलित वर्ग की स्थिति को लेकर बड़ी पीड़ा थी। उन्होंने अपनी  पूरी शक्ति दलित वर्ग को ऊपर उठाने में लगाई। दलितों में आत्मविश्वास पैदा करने के लिए उन्होंने 'भीम सेना' का गठन किया। [[कर्नाटक]], [[आंध्र प्रदेश]] और [[महाराष्ट्र]] में इस सेना का अधिक प्रचार हुआ। वे दलितों द्वारा किसी अन्य [[धर्म]] को अपनाने के विरोधी थे। उनका मानना था कि दलित [[भारत]] के मूल निवासी हैं, इसलिए उन्हें कोई नया [[धर्म]] स्वीकार करने की आवश्यकता नहीं है। शिक्षा पर वे बहुत जोर देते थे। उनकी मान्यता थी की शिक्षा के द्वारा ही [[समाज]] के पिछड़ेपन को दूर किया जा सकता है।
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श्याम सुंदर (जन्म- 18 दिसंबर, 1908, हैदराबाद, मृत्यु- 19 मई, 1975) हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, मराठी और कन्नड़ भाषाओं के जानकार एवं लेखक‍ थे। वे दलित वर्ग के उत्थान के लिए प्रयत्नशील रहे।

परिचय

हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, मराठी और कन्नड़ भाषाओं के ज्ञाता एवं दलित वर्ग के उत्थान के लिए जीवन भर संघर्ष करने वाले श्याम सुंदर का जन्म 18 दिसंबर, 1908 ई. को हैदराबाद में हुआ था। उनके पिता रेलवे के कर्मचारी थे। श्याम सुंदर ने उस्मानिया विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री ली और उसके बाद मजदूर संघ के काम में लग गए। एक दलित परिवार से होने के कारण श्याम सुंदर दलित वर्ग की सामाजिक कठिनाइयों से भली भांति परिचित थे। वे 1957 से 1961 तक कर्नाटक में विधायक रहे और वहां भी दलितों के उत्थान के लिए प्रयत्न करते रहे। [1]

दलितों के शुभचिंतक

श्याम सुंदर दलितों के शुभचिंतक थे। उनके मन में दलित वर्ग की स्थिति को लेकर बड़ी पीड़ा थी। उन्होंने अपनी पूरी शक्ति दलित वर्ग को ऊपर उठाने में लगाई। दलितों में आत्मविश्वास पैदा करने के लिए उन्होंने 'भीम सेना' का गठन किया। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में इस सेना का अधिक प्रचार हुआ। वे दलितों द्वारा किसी अन्य धर्म को अपनाने के विरोधी थे। उनका मानना था कि दलित भारत के मूल निवासी हैं, इसलिए उन्हें कोई नया धर्म स्वीकार करने की आवश्यकता नहीं है। शिक्षा पर वे बहुत जोर देते थे। उनकी मान्यता थी की शिक्षा के द्वारा ही समाज के पिछड़ेपन को दूर किया जा सकता है।

भाषाओं का ज्ञान

श्याम सुंदर को हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, मराठी और कन्नड़ भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। वे एक अच्छे लेखक‍ भी थे। उनकी पुस्तक 'एन एसेसमेंट ऑफ फाइव थाउजेंडस ईयर्स ऑफ हिस्ट्री एंड कल्चर ऑफ इंडिया' बहुत प्रसिद्ध हुई।

मृत्यु

दलितों के शुभचिंतक श्याम सुंदर का 19 मई, 1975 ई. को देहावसान हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 861 |

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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