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− | ''' | + | '''श्रीधर वेंकटेश केलकर''' (जन्म- [[2 फरवरी]], [[1884]], [[नागपुर]], मृत्यु- [[1937]]) प्रसिद्ध मराठी विश्वकोश के संपादक थे। मराठी विश्वकोश को मूर्तरूप देने के लिये उन्होंने [[1914]] में एक लिमिटेड कंपनी बनाकर नागपुर से यह कार्य आरंभ किया। परंतु संपादन व्यवस्था, मुद्रण, प्रकाशन और ग्राहक बनाने तक का सब काम स्वयं ही किया। |
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− | प्रसिद्ध | + | प्रसिद्ध मराठी विश्वकोश के संपादक डॉ. श्रीधर वेंकटेश केलकर का जन्म [[2 फरवरी]], [[1884]] ई. को नागपुर के निकट रायपुर में हुआ था। उनके पिता वेंकटेश पोस्ट मास्टर थे और श्रीधर के बचपन में ही पिता का देहांत हो गया। [[अमरावती]] में अपने चाचा के पास रहकर उन्होंने शिक्षा आरंभ की। इसी बीच मां और बहन का भी देहांत हो जाने से श्रीधर अकेले पड़ गए। इसलिए बी.ए. की परीक्षा में असफल हो जाने पर उन्होंने अपनी पैत्रिक संपत्ति बेच दी और [[1906]] ई. में [[अमेरिका]] चले गए। वहां उन्होंने बी.ए. और एम.ए. किया और महाराजा बड़ौदा की छात्रवृत्ति लेकर पी.एच.डी. कर ली। उनके शोध का विषय था [[भारत]] में जातियों का [[इतिहास]]। इसके परिशिष्ट में उन्होंने वर्ण और जाति के मौलिक भेद पर विशेष बल दिया। श्रीधर को विविध विषयों के [[ग्रंथ]] पढ़ने का शौक भारत में ही था। उनकी जानकारी के कारण वे विश्वकोश के नाम से पुकारे जाने लगे थे। अमेरिका में भी उनका अध्ययन जारी रहा। वहां से लौटते समय केलकर कुछ समय [[इंग्लैंड]] में रुके। वहीं उनकी भेंट [[जर्मनी]] निवासी कु.एडिथ कोहन से हुई थी, जिसने [[मराठी भाषा]] में डिप्लोमा किया था। 8 वर्ष बाद [[1920]] में उन्होंने इसी महिला से [[विवाह]] किया और वैदिक विधि से उसे [[हिंदू धर्म]] में सम्मिलित करके उसका नाम शीलावती रखा।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=868|url=}}</ref> |
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− | + | श्रीधर वेंकटेश केलकर ने एक बहुत ही ऐतिहासिक महत्व की रचना की है, वह है मराठी विश्वकोश। मराठी विश्वकोश को लेकर केलकर के दिमाग में विचार पहले से ही था। मराठी विश्वकोश के लक्ष्य को पाने के लिये उन्होंने [[1914]] में एक लिमिटेड कंपनी बनाकर [[नागपुर]] से इस कार्य की शुरूआत कर दी और बाद में इसे [[पुणे]] ले गए। वे इस कार्य को 5 वर्ष में पूरा करना चाहते थे, परंतु संपादन व्यवस्था, मुद्रण, प्रकाशन और ग्राहक बनाने तक का सब काम उन्होंने खुद ही किया। इसमें 14-15 वर्ष का समय लगने के बाद अनुक्रमणिका का 21 वा खंड [[1929]] ई. में प्रकाशित हो सका। 'भारतीय समाजशास्त्र' तथा 'निशास्त्रांचे राजकरण' नामक [[ग्रंथ|ग्रंथों]] की रचना की। उनकी एक पुस्तक 'हिंदुत्व उसका मूलाधार और भविष्य' प्रकाशित हुई। इसके अतिरिक्त 4 खंण्डों में प्राचीन [[महाराष्ट्र]] का [[इतिहास]] लिखा जिसका पहला खंड उनके जीवन काल में प्रकाशित हो सका था। उन्होंने 'विद्या सेवक' नामक मराठी मासिक पत्रिका का संपादन किया और कुछ समय तक एक दैनिक पत्र निकाला। उन्होंने छ्ह [[उपन्यास]] लिखे | |
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− | + | [[अमेरिका]] से [[इंग्लैंड]] होते हुए [[1912]] में केलकर [[भारत]] आए और कुछ समय तक [[कोलकाता विश्वविद्यालय]] में राजनीति और [[अर्थशास्त्र]] के प्राध्यापक रहे। इस बीच 'भारतीय अर्थशास्त्र' और 'हिंदू विधि नामक दो ग्रंथ और प्रकाशित हुए। [[1914]] में उन्होंने [[कांग्रेस]] के [[मद्रास]] अधिवेशन में भाग लिया और [[भाषा]] के आधार पर प्रदेशों के निर्माण की मांग की। उन्होंने मद्रास की विज्ञान कांग्रेस में भी भाग लिया। यहीं उनका संपर्क के.वी.लक्ष्मण राव से हुआ, जिन्होंने तेलुगु विश्वकोश का प्रकाशन आरंभ किया था। | |
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06:22, 11 अगस्त 2018 का अवतरण
श्रीधर वेंकटेश केलकर (जन्म- 2 फरवरी, 1884, नागपुर, मृत्यु- 1937) प्रसिद्ध मराठी विश्वकोश के संपादक थे। मराठी विश्वकोश को मूर्तरूप देने के लिये उन्होंने 1914 में एक लिमिटेड कंपनी बनाकर नागपुर से यह कार्य आरंभ किया। परंतु संपादन व्यवस्था, मुद्रण, प्रकाशन और ग्राहक बनाने तक का सब काम स्वयं ही किया।
परिचय
प्रसिद्ध मराठी विश्वकोश के संपादक डॉ. श्रीधर वेंकटेश केलकर का जन्म 2 फरवरी, 1884 ई. को नागपुर के निकट रायपुर में हुआ था। उनके पिता वेंकटेश पोस्ट मास्टर थे और श्रीधर के बचपन में ही पिता का देहांत हो गया। अमरावती में अपने चाचा के पास रहकर उन्होंने शिक्षा आरंभ की। इसी बीच मां और बहन का भी देहांत हो जाने से श्रीधर अकेले पड़ गए। इसलिए बी.ए. की परीक्षा में असफल हो जाने पर उन्होंने अपनी पैत्रिक संपत्ति बेच दी और 1906 ई. में अमेरिका चले गए। वहां उन्होंने बी.ए. और एम.ए. किया और महाराजा बड़ौदा की छात्रवृत्ति लेकर पी.एच.डी. कर ली। उनके शोध का विषय था भारत में जातियों का इतिहास। इसके परिशिष्ट में उन्होंने वर्ण और जाति के मौलिक भेद पर विशेष बल दिया। श्रीधर को विविध विषयों के ग्रंथ पढ़ने का शौक भारत में ही था। उनकी जानकारी के कारण वे विश्वकोश के नाम से पुकारे जाने लगे थे। अमेरिका में भी उनका अध्ययन जारी रहा। वहां से लौटते समय केलकर कुछ समय इंग्लैंड में रुके। वहीं उनकी भेंट जर्मनी निवासी कु.एडिथ कोहन से हुई थी, जिसने मराठी भाषा में डिप्लोमा किया था। 8 वर्ष बाद 1920 में उन्होंने इसी महिला से विवाह किया और वैदिक विधि से उसे हिंदू धर्म में सम्मिलित करके उसका नाम शीलावती रखा।[1]
रचनाएं
श्रीधर वेंकटेश केलकर ने एक बहुत ही ऐतिहासिक महत्व की रचना की है, वह है मराठी विश्वकोश। मराठी विश्वकोश को लेकर केलकर के दिमाग में विचार पहले से ही था। मराठी विश्वकोश के लक्ष्य को पाने के लिये उन्होंने 1914 में एक लिमिटेड कंपनी बनाकर नागपुर से इस कार्य की शुरूआत कर दी और बाद में इसे पुणे ले गए। वे इस कार्य को 5 वर्ष में पूरा करना चाहते थे, परंतु संपादन व्यवस्था, मुद्रण, प्रकाशन और ग्राहक बनाने तक का सब काम उन्होंने खुद ही किया। इसमें 14-15 वर्ष का समय लगने के बाद अनुक्रमणिका का 21 वा खंड 1929 ई. में प्रकाशित हो सका। 'भारतीय समाजशास्त्र' तथा 'निशास्त्रांचे राजकरण' नामक ग्रंथों की रचना की। उनकी एक पुस्तक 'हिंदुत्व उसका मूलाधार और भविष्य' प्रकाशित हुई। इसके अतिरिक्त 4 खंण्डों में प्राचीन महाराष्ट्र का इतिहास लिखा जिसका पहला खंड उनके जीवन काल में प्रकाशित हो सका था। उन्होंने 'विद्या सेवक' नामक मराठी मासिक पत्रिका का संपादन किया और कुछ समय तक एक दैनिक पत्र निकाला। उन्होंने छ्ह उपन्यास लिखे
गतिविधियां
अमेरिका से इंग्लैंड होते हुए 1912 में केलकर भारत आए और कुछ समय तक कोलकाता विश्वविद्यालय में राजनीति और अर्थशास्त्र के प्राध्यापक रहे। इस बीच 'भारतीय अर्थशास्त्र' और 'हिंदू विधि नामक दो ग्रंथ और प्रकाशित हुए। 1914 में उन्होंने कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन में भाग लिया और भाषा के आधार पर प्रदेशों के निर्माण की मांग की। उन्होंने मद्रास की विज्ञान कांग्रेस में भी भाग लिया। यहीं उनका संपर्क के.वी.लक्ष्मण राव से हुआ, जिन्होंने तेलुगु विश्वकोश का प्रकाशन आरंभ किया था।
मृत्यु
डॉ. श्रीधर वेंकटेश केलकर का मधुमेह रोग के कारण 1937 में निधन हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 868 |
बाहरी कड़ियाँ
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