कहावत लोकोक्ति मुहावरे-अ

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  • अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
  • अकेला हँसता भला न रोता भला।
  • अक्ल बड़ी या भैंस।
  • अक्‍ल का अंधा।
  • अक्‍ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना।
  • अक्‍ल पर पत्‍थर/परदा पड़ना।
  • अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।

तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।

दास मलूका कह गए सब के दाता राम॥

  • अटकलें भिड़ाना।
  • अटकेगा सो भटकेगा।
  • अठखेलियाँ सूझना।
  • अडियल टट्टू।
  • अड्डे पर चहकना।
  • अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना।
  • अढ़ाई दिन की बादशाहत।
  • अढ़ाई हाथ की लकड़ी, नौ हाथ का बीज।
  • अति ऊँचे भूधारन पर भुजगन के स्थान।

तुलसी अति नीचे सुखद उंख अन्न असपान।।

  • अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।

चँदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।

  • अधजल गगरी छलकत जाय
  • अधर में लटकना या झूलना।
  • अनजान सुजान, सदा कल्याण।
  • अन्‍न जल उठ जाना।
  • अन्‍न न लगना।
  • अपना अपना कमाना, अपना अपना खाना।
  • अपना अपना राग अलापना।
  • अपना उल्‍लू सीधा करना।
  • अपना ढेंढर देखे नही, दूसरे की फुल्ली निहारे।
  • अपना मकान कोट (क़िले) समान।
  • अपना रख पराया चख।
  • अपना लाल गँवाय के दर दर माँगे भीख।
  • अपना सा मुँह लेकर रह जाना।
  • अपना ही पैसा खोया तो परखने वाले का क्या दोष।
  • अपनी अपनी तुनतुनी (ढफली), अपना अपना राग।
  • अपनी करनी पार उतरनी।
  • अपनी खाल में मस्‍त रहना।
  • अपनी खिचड़ी अलग पकाना।
  • अपनी गरज बावली।
  • अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं।
  • अपनी गली में कुत्ता भी शेर।
  • अपनी गाँठ पैसा तो, पराया आसरा कैसा।
  • अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो।
  • अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता।
  • अपनी टाँग उघारिए, आपहि मरिए लाज।
  • अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का सगुन तो बिगड़े।
  • अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना।
  • अपनी पगड़ी अपने हाथ,
  • अपनी–अपनी खाल में सब मस्त।
  • अपने किए का क्या इलाज।
  • अपने झोपड़े की खैर मनाओ।
  • अपने पांव पर आप कुल्‍हाड़ी मारना।
  • अपने पूत को कोई काना नहीं कहता।
  • अपने पैरों पर खड़ा होना।
  • अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनाना।
  • अपने मुँह मिया मिट्ठू बनाना।
  • अब की अब के साथ, जब की जब के साथ।
  • अब के बनिया देय उधार।
  • अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत।
  • अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार।
  • अबे-तबे करना।
  • अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे।
  • अभी दिल्ली दूर है।
  • अमरी की जान प्यारी, ग़रीब को दम भारी।
  • अरहर की टट्टिया, गुजराती ताला।
  • अलख पुरुष की माया, कहीं धूप कहीं छाया।
  • अशर्फ़ियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर।
  • असाढ़ जोतो लड़के ढार, सावन भादों हरवा है।

क्वार जोतो घर का बैल, तब ऊंचे उनहारे।।

  • असाढ़ मास आठें अंधियारी। जो निकले बादर जल धारी।।

चन्दा निकले बादर फोड़। साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।

  • असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र।

तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।।

  • असुनी नलिया अन्त विनासै।गली रेवती जल को नासै।।

भरनी नासै तृनौ सहूतो।कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।

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