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*वे उन्हें तत्त्वज्ञान का बोध कराने के उपरान्त, साधना द्वारा उसे स्वयं अनुभव करने के लिए कहते हैं।  
 
*तब वे स्वयं अन्न, प्राण, मन, विज्ञान और आनन्द को ब्रह्म-रूप में अनुभव करते हैं।  
 
*तब वे स्वयं अन्न, प्राण, मन, विज्ञान और आनन्द को ब्रह्म-रूप में अनुभव करते हैं।  
*ऐसा अनुभव हो जाने पर महर्षि वरुण उन्हें आशीर्वाद देते हैं और अन्नादि का दुरूपयोग न करके उसे सुनियोजित रूप से वितरण करने की प्रणाली समझाते हैं।  
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*ऐसा अनुभव हो जाने पर महर्षि वरुण उन्हें आशीर्वाद देते हैं और अन्नादि का दुरुपयोग न करके उसे सुनियोजित रूप से वितरण करने की प्रणाली समझाते हैं।  
 
*अन्त में परमात्मा के प्रति साधक के भावों और उसके समतायुक्त उद्गारों का उल्लेख करते हैं।
 
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भृगुवल्ली में दस अनुवाक हैं।

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  • भृगुवल्ली में ऋषिवर भृगु की ब्रह्मपरक जिज्ञासा का समाधान उनके पिता महर्षि वरुण द्वारा किया जाता है।
  • वे उन्हें तत्त्वज्ञान का बोध कराने के उपरान्त, साधना द्वारा उसे स्वयं अनुभव करने के लिए कहते हैं।
  • तब वे स्वयं अन्न, प्राण, मन, विज्ञान और आनन्द को ब्रह्म-रूप में अनुभव करते हैं।
  • ऐसा अनुभव हो जाने पर महर्षि वरुण उन्हें आशीर्वाद देते हैं और अन्नादि का दुरुपयोग न करके उसे सुनियोजित रूप से वितरण करने की प्रणाली समझाते हैं।
  • अन्त में परमात्मा के प्रति साधक के भावों और उसके समतायुक्त उद्गारों का उल्लेख करते हैं।
  • जो इस प्रकार है:-



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टीका टिप्पणी और संदर्भ


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