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|अन्य जानकारी=दारा सिंह 2003 से 2009 तक राज्यसभा के सांसद रह चुके हैं।
 
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'''दारा सिंह''' ([[अंग्रेज़ी]]: Dara Singh, जन्म:[[19 नवम्बर]], [[1928]], [[अमृतसर]] - मृत्यु: [[12 जुलाई]], [[2012]] [[मुम्बई]]) अपने जमाने के विश्व प्रसिद्ध फ्रीस्टाइल पहलवान और प्रसिद्ध अभिनेता थे। दारा सिंह 2003-2009 तक [[राज्यसभा]] के सदस्य भी रहे। दारा सिंह ने खेल और मनोरंजन की दुनिया में समान रुप से नाम कमाया और अपने काम का लोहा मनवाया। यही वजह है कि उन्हें अभिनेता और पहलवान दोनों तौर पर जाना जाता है। उन्होंने 1959 में पूर्व विश्व चैम्पियन जार्ज गार्डीयांका को पराजित करके कॉमनवेल्थ की विश्व चैम्पियनशिप जीती थी। बाद में वे [[अमरीका]] के विश्व चैम्पियन लाऊ थेज को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैम्पियन बन गये।
  
==शुरूआती जीवन==
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==आरम्भिक जीवन==
दारा सिंह ने खेल और मनोरंजन की दुनिया में समान रुप से नाम कमाया और अपने काम का लोहा मनवाया। यही वजह है कि उन्हें अभिनेता और पहलवान दोनों तौर पर जानते हैं। अखाड़े से फिल्मी दुनिया तक का सफर दारा सिंह के लिए काफी चुनौती भरा रहा। बचपन से ही पहलवानी के दीवाने रहे दारा सिंह का पूरा नाम दारा सिंह रंधावा है। हालांकि चाहनेवालों के बीच वे दारा सिंह के नाम से ही जाने गए। सूरत सिंह रंधावा और बलवंत कौर के बेटे दारा सिंह का जन्म 19 नवंबर 1928 को पंजाब के अमृतसर के धरमूचक (धर्मूचक्क/धर्मूचाक/धर्मचुक) गांव के जाट-सिख परिवार में हुआ था। उस समय देश में अंग्रेजों का शासन था। दारा सिंह के पिताजी बाहर रहते थे। दादाजी चाहते कि बडा होने के कारण दारा स्कूल न जाकर खेतों में काम करे और छोटा भाई पढाई करे। इसी बात को लेकर लंबे समय तक झगडा चलता रहा। वह हंसते हुए बताते हैं, मां मेरे उठने से पहले मेरा बस्ता छुपा देतीं ताकि मैं दादाजी का कहना मान खेतों पर चला जाऊं।
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अखाड़े से फ़िल्मी दुनिया तक का सफर दारा सिंह के लिए काफी चुनौती भरा रहा। बचपन से ही पहलवानी के दीवाने रहे दारा सिंह का पूरा नाम दारा सिंह रंधावा है। हालांकि चाहने वालों के बीच वे दारा सिंह के नाम से ही जाने गए। सूरत सिंह रंधावा और बलवंत कौर के बेटे दारा सिंह का जन्म [[19 नवंबर]] [[1928]] को [[पंजाब]] के [[अमृतसर]] के धरमूचक (धर्मूचक्क या धर्मूचाक या धर्मचुक) गांव के जाट-सिख परिवार में हुआ था। उस समय देश में [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] का शासन था। दारा सिंह के पिताजी बाहर रहते थे। दादाजी चाहते कि बडा होने के कारण दारा स्कूल न जाकर खेतों में काम करे और छोटा भाई पढाई करे। इसी बात को लेकर लंबे समय तक झगड़ा चलता रहा।
 
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====पहलवानी का शौक====
दारा सिंह ने अपनी जीवन के शुरूआती दौर में ही काफी मुश्किलें देखी हैं। अपनी किशोर अवस्था में दारा सिंह दूध व मक्खन के साथ 100 बादाम रोज खाकर कई घंटे कसरत व व्यायाम में गुजारा करते थे। कम उम्र में ही दारा सिंह के घरवालों ने उनकी शादी कर दी। नतीजतन महज 17 साल की नाबालिग उम्र में ही एक बच्चे के पिता बन गए लेकिन जब उन्होंने कुश्ती की दुनिया में नाम कमाया तो उन्होंने अपनी पसन्द से दूसरी शादी सुरजीत कौर से की।
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दारा सिंह को बचपन से ही पहलवानी का शौक था। अपनी किशोर अवस्था में दारा सिंह [[दूध]] व मक्खन के साथ 100 [[बादाम]] रोज खाकर कई घंटे कसरत व व्यायाम में गुजारा करते थे। कम उम्र में ही दारा सिंह के घरवालों ने उनकी शादी कर दी। नतीजतन महज 17 साल की नाबालिग उम्र में ही एक बच्चे के पिता बन गए लेकिन जब उन्होंने कुश्ती की दुनिया में नाम कमाया तो उन्होंने अपनी पसन्द से दूसरी शादी सुरजीत कौर से की।
 
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====परिवार====
आज दारा सिंह के भरे-पूरे परिवार में तीन बेटियां और तीन बेटे हैं। उन्हें टीवी धारावाहिक रामायण में हनुमानजी के अभिनय से अपार लोकप्रियता मिली जिसके परिणाम स्वरूप 2003 में भाजपा ने उन्हें राज्यसभा की सदस्यता भी प्रदान की। दारा सिंह 2003 से 2009 तक राज्यसभा के सासद रह चुके हैं। 1978 में दारा सिंह को रुस्तम-ए-हिंद के खिताब से नवाजा गया।  
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दारा सिंह के परिवार में तीन पुत्रियाँ और तीन पुत्र हैं। उन्हें [[रामानन्द सागर]] द्वारा निर्देशित के टीवी धारावाहिक रामायण में हनुमान जी के अभिनय से अपार लोकप्रियता मिली जिसके परिणाम स्वरूप 2003 में भाजपा ने उन्हें राज्यसभा की सदस्यता भी प्रदान की। दारा सिंह 2003 से 2009 तक राज्यसभा के सासद रह चुके हैं।  
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==सम्मान और उपाधि==
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1978 में दारा सिंह को रुस्तम-ए-हिंद के खिताब से नवाजा गया।  
  
 
==कुश्ती में करियर==
 
==कुश्ती में करियर==
 
[[चित्र:Dara Singh's Old Photo with Family.jpg|thumb|300px|दारा सिंह और परिवार]]
 
[[चित्र:Dara Singh's Old Photo with Family.jpg|thumb|300px|दारा सिंह और परिवार]]
दारा सिंह अपने जमाने के विश्व प्रसिद्ध फ्रीस्टाइल पहलवान हैं। साठ के दशक में पूरे भारत में उनकी फ्री स्टाइल कुश्तियों का बोलबाला रहा। दारा सिंह को पहलवानी का शौक बचपन से ही था। बचपन अपने फार्म पर काम करते-करते गुजर गया, जिसके बाद ऊंचे कद मजबूत काठी को देखते हुए उन्हें कुश्ती लड़ने की प्रेरणा मिलती रही। दारा सिंह ने अपने घर से ही कुश्ती की शुरूआत की। दारा सिंह और उनके छोटे भाई सरदारा सिंह ने मिलकर पहलवानी शुरू कर दी और धीरे-धीरे गांव के दंगलों से लेकर शहरों में कुश्तियां जीतकर अपने गांव का नाम रोशन करना शुरू कर दिया और भारत में अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश में जुट गए।
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दारा सिंह अपने जमाने के विश्व प्रसिद्ध फ्रीस्टाइल पहलवान रहे। साठ के दशक में पूरे [[भारत]] में उनकी फ्री स्टाइल कुश्तियों का बोलबाला रहा। दारा सिंह को पहलवानी का शौक बचपन से ही था। बचपन अपने फार्म पर काम करते-करते गुजर गया, जिसके बाद ऊंचे कद मजबूत काठी को देखते हुए उन्हें कुश्ती लड़ने की प्रेरणा मिलती रही। दारा सिंह ने अपने घर से ही कुश्ती की शुरूआत की। दारा सिंह और उनके छोटे भाई सरदारा सिंह ने मिलकर पहलवानी शुरू कर दी और धीरे-धीरे गांव के दंगलों से लेकर शहरों में कुश्तियां जीतकर अपने गांव का नाम रोशन करना शुरू कर दिया और भारत में अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश में जुट गए। दारा सिंह ने अखाड़े में पहलवानी सीखी। उस दौर में दारा सिंह को राजा महाराजाओं की ओर कुश्ती लड़ने का न्यौता मिला करता था। हाटों और मेलों में भी कुश्ती की और कई पहलवानों को पटखनी दी।  
 
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====कुश्ती चैम्पियनशिप====
दारा सिंह ने अखाड़े में पहलवानी सीखी। उस दौर में दारा सिंह को राजा महाराजाओं की ओर कुश्ती लड़ने का न्यौता मिला करता था। हाटों और मेलों में भी कुश्ती की और कई पहलवानों को पटखनी दी।  
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भारत की आज़ादी के दौरान 1947 में दारा सिंह [[सिंगापुर]] पहुंचे। वहां रहते हुए उन्होंने भारतीय स्टाइल की कुश्ती में मलेशियाई चैंपियन त्रिलोक सिंह को पराजित कर कुआलालंपुर में मलेशियाई कुश्ती चैम्पियनशिप जीती। उसके बाद उनका विजयी रथ अन्य देशों की ओर चल पड़ा और एक पेशेवर पहलवान के रूप में सभी देशों में अपनी कामयाबी का झंडा गाड़कर वे 1952 में भारत लौट आए। क़रीब पांच साल तक फ्री स्टाइल रेसलिंग में दुनियाभर (पूर्वी एशियाई देशों) के पहलवानों को चित्त करने के बाद दारा सिंह भारत आकर सन 1954 में भारतीय कुश्ती चैंपियन (राष्ट्रीय चैंपियन) बने। दारा सिंह ने उन सभी देशों का एक-एक करके दौरा किया जहां फ्रीस्टाइल कुश्तियां लड़ी जाती थीं।  
 
 
आजादी के दौरान 1947 में दारा सिंह सिंगापुर पहुंचे। वहां रहते हुए उन्होंने भारतीय स्टाइल की कुश्ती में मलेशियाई चैंपियन त्रिलोक सिंह को पराजित कर कुआलालंपुर में मलेशियाई कुश्ती चैम्पियनशिप जीती। उसके बाद उनका विजयी रथ अन्य देशों की ओर चल पड़ा और एक पेशेवर पहलवान के रूप में सभी देशों में अपनी कामयाबी का झंडा गाड़कर वे 1952 में भारत लौट आए। करीब पांच साल तक फ्री स्टाइल रेसलिंग में दुनियाभर (पूर्वी एशियाई देशों) के पहलवानों को चित्त करने के बाद दारा सिंह भारत आकर सन 1954 में भारतीय कुश्ती चैंपियन (राष्ट्रीय चैंपियन) बने। दारा सिंह ने उन सभी देशों का एक-एक करके दौरा किया जहां फ्रीस्टाइल कुश्तियां लड़ी जाती थीं।  
 
 
[[चित्र:young dara.jpg|thumb|300px|दारा सिंह]]
 
[[चित्र:young dara.jpg|thumb|300px|दारा सिंह]]
इसके बाद उन्होंने कॉमनवेल्थ देशों का दौरा किया और विश्व चैंपियन किंग कॉन्ग को भी धूल चटा दी। दारा सिंह की लोकप्रियता से भन्नाए कनाडा के विश्व चैंपियन जार्ज गार्डीयांका और न्यूजीलैंड के जॉन डिसिल्वा ने 1959 में कोलकाता में कॉमनवेल्थ कुश्ती चैंपियनशिप में उन्हें खुली चुनौती दे डाली। नतीजा वही रहा। यहां भी दारा सिंह ने दोनों पहलवानों को हराकर विश्व चैंपियनशिप का खिताब हासिल किया।  
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====विश्व चैंपियन====
 
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इसके बाद उन्होंने कॉमनवेल्थ देशों का दौरा किया और विश्व चैंपियन किंग कॉन्ग को भी धूल चटा दी। दारा सिंह की लोकप्रियता से भन्नाए कनाडा के विश्व चैंपियन जार्ज गार्डीयांका और न्यूजीलैंड के जॉन डिसिल्वा ने 1959 में [[कोलकाता]] में कॉमनवेल्थ कुश्ती चैंपियनशिप में उन्हें खुली चुनौती दे डाली। नतीजा वही रहा। यहां भी दारा सिंह ने दोनों पहलवानों को हराकर विश्व चैंपियनशिप का खिताब हासिल किया। कॉमनवेल्थ चैपियनशिप के बाद दारा सिंह का मिशन था पूरी दुनिया को अपना दम-खम दिखाना। भारत के इस पहलवान ने दुनिया के लगभग हर देश के पहलवान को चित किया। आखिरकार अमेरिका के विश्व चैंपियन लाऊ थेज को [[29 मई]] [[1968]] को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैंपियन बन गए। कुश्ती का शहंशाह बनने के इस सफर में दारा सिंह ने पाकिस्तान के माज़िद अकरा, शाने अली और तारिक अली, जापान के रिकोडोजैन, यूरोपियन चैंपियन बिल रॉबिनसन, इंग्लैंड के चैपियन पैट्रॉक समेत कई पहलवानों का गुरूर मिट्टी में मिला दिया। 1983 में कुश्ती से रिटायरमेंट लेने वाले दारा सिंह ने 500 से ज़्यादा पहलवानों को हराया और ख़ास बात ये कि ज़्यादातर पहलवानों को दारा सिंह ने उन्हीं के घर में जाकर चित किया। उनकी कुश्ती कला को सलाम करने के लिए 1966 में दारा सिंह को रुस्तम-ए-पंजाब और 1978 में रुस्तम-ए-हिंद के खिताब से नवाज़ा गया।
कॉमनवेल्थ चैपियनशिप के बाद दारा सिंह का मिशन था पूरी दुनिया को अपना दम-खम दिखाना। भारत के इस पहलवान ने दुनिया के लगभग हर देश के पहलवान को चित किया। आखिरकार अमेरिका के विश्व चैंपियन लाऊ थेज को 29 मई 1968 को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैंपियन बन गए। कुश्ती का शहंशाह बनने के इस सफर में दारा सिंह ने पाकिस्तान के माज़िद अकरा, शाने अली और तारिक अली, जापान के रिकोडोजैन, यूरोपियन चैंपियन बिल रॉबिनसन, इंग्लैंड के चैपियन पैट्रॉक समेत कई पहलवानों का गुरूर मिट्टी में मिला दिया।  
 
 
 
1983 में कुश्ती से रिटायरमेंट लेने वाले दारा सिंह ने 500 से ज्यादा पहलवानों को हराया और खास बात ये कि ज्यादातर पहलवानों को दारा सिंह ने उन्हीं के घर में जाकर चित किया। उनकी कुश्ती कला को सलाम करने के लिए 1966 में दारा सिंह को रुस्तम-ए-पंजाब और 1978 में रुस्तम-ए-हिंद के खिताब से नवाज़ा गया।
 
 
 
दारा सिंह ने करीब 36 साल तक अखाड़े में पसीना बहाया और अब तक लड़ी कुल 500 कुश्तियों में से दारा सिंह एक भी नहीं हारे, जिसकी बदौलत उनका नाम ऑब्जरवर न्यूजलेटर हॉल ऑफ फेम में दर्ज है। दारा सिंह की कुश्ती के दीवानों में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू समेत कई दूसरे प्रधानमंत्री भी शामिल थे। सही मायने में दारा सिंह कुश्ती के दंगल के वो शेर थे, जिनकी दहाड़ सुनकर बड़े-बड़े पहलवानों ने दुम दबाकर अखाड़ा छोड़ दिया।
 
  
कुश्ती के करियर को खत्म करने से पहले दारा सिंह ने सोच लिया था कि अब उन्हें क्या करना है। सामने कामयाबी का एक और रास्ता दिखाई दे रहा था। चुनौतियां तो थीं लेकिन दारा सिंह को तो मुश्किलों से जूझने में मानो मजा आने लगा था लिहाजा वो निकल पड़े बॉलीवुड के सफर पर।
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दारा सिंह ने क़रीब 36 साल तक अखाड़े में पसीना बहाया और अब तक लड़ी कुल 500 कुश्तियों में से दारा सिंह एक भी नहीं हारे, जिसकी बदौलत उनका नाम ऑब्जरवर न्यूजलेटर हॉल ऑफ फेम में दर्ज है। दारा सिंह की कुश्ती के दीवानों में भारत के पहले [[प्रधानमंत्री]] [[जवाहर लाल नेहरू]] समेत कई दूसरे प्रधानमंत्री भी शामिल थे। सही मायने में दारा सिंह कुश्ती के दंगल के वो शेर थे, जिनकी दहाड़ सुनकर बड़े-बड़े पहलवानों ने दुम दबाकर अखाड़ा छोड़ दिया।
 
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==फ़िल्मी करियर==
==फिल्मी करियर==
 
 
[[चित्र:darasingh roles.jpg|thumb|300px|दारा सिंह का फिल्मी करियर]]
 
[[चित्र:darasingh roles.jpg|thumb|300px|दारा सिंह का फिल्मी करियर]]
पिछले 60 साल में दारा सिंह ने हिंदुस्तान के दिल पर राज किया है। आज की पीढ़ी को शायद अंदाज़ा भी ना हो कि अखाड़े से अदाकारी के मैदान में उतरे दारा सिंह बॉलीवुड के पहले हीमैन माने जाते हैं। वो टारजन सीरीज़ की फिल्मों के हीरो रहे हैं। फिल्म अभिनेत्री मुमताज का करियर संवारने में भी सबसे बड़ा सहारा दारा सिंह का साथ ही साबित हुआ।
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लगभग 60 साल तक दारा सिंह ने हिंदुस्तान के दिल पर राज किया है। आज की पीढ़ी को शायद अंदाज़ा भी ना हो कि अखाड़े से अदाकारी के मैदान में उतरे दारा सिंह बॉलीवुड के पहले हीमैन माने जाते हैं। वो टारजन सीरीज़ की फिल्मों के हीरो रहे हैं। दारा सिंह अपनी मजबूत कद काठी की वजह से फिल्मों में आए। फिल्म अभिनेत्री मुमताज का करियर संवारने में भी सबसे बड़ा सहारा दारा सिंह का साथ ही साबित हुआ। बॉलीवुड में बॉडी दिखाकर स्टारडम पाने का रास्ता ना खुलता, अगर दारा सिंह ना होते। जी हां, बॉलीवुड में आज हर सुपरस्टार पर शर्ट खोलकर मसल्स दिखाने की जो धुन सवार है, वो चलन शुरू हुआ था दारा सिंह के जरिए। जिस वक्त पूरी दुनिया में दारा सिंह की पहलवानी का सिक्का चल रहा था, तब 6 फीट 2 इंच लंबे इस गबरू जट्ट पर बॉलीवुड इस कदर फिदा हुआ कि पहलवान दारा सिंह बन गए अभिनेता दारा सिंह। दारा सिंह ने अपने समय की मशहूर अदाकारा मुमताज के साथ हिंदी की स्टंट फिल्मों में प्रवेश किया और कई फिल्मों में अभिनेता बने। दारा सिंह ने मुमताज़ के 16 फिल्मों में साथ काम किया। यही नहीं कई फिल्मों में वह निर्देशक व निर्माता भी बने। दारा सिंह ने कई हिंदी फिल्मों का निर्माण किया और उसमें खुद हीरो रहे।
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====पहली फिल्म====
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दारा सिंह की पहली फिल्म 'संगदिल' 1952 में रिलीज़ हुई, जिसमें [[दिलीप कुमार]] और [[मधुबाला]] मुख्य भूमिकाओं में थे। 1955 में वो फिल्म 'पहली झलक' में पहलवान बनकर आए, जिसमें मुख्य किरदार [[किशोर कुमार]] और [[वैजयंती माला]] ने निभाया था। कुश्ती और फिल्मों में एक साथ मौजूदगी दर्ज़ कराते रहे दारा सिंह की बतौर हीरो पहली फिल्म थी 'जग्गा डाकू.' जिसके बाद वो बॉलीवुड के पहले एक्शन हीरो के तौर पर छा गए।
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====मुख्य फ़िल्में====
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दारा सिंह की असल पहचान बनी 1962 में आई फिल्म ‘किंग कॉन्ग’ से। इस फिल्म ने उन्हें शोहरत के आसमान पर पहुंचा दिया। ये फिल्म कुश्ती पर ही आधारित थी। किंग कांग के बाद रुस्तम-ए-रोम, रुस्तम-ए-बगदाद, रुस्तम-ए-हिंद आदि फिल्में कीं। सभी फिल्में सफल रहीं। मशहूर फिल्म [[आनंद (फ़िल्म)|आनंद]] में भी उनकी छोटी-सी किंतु यादगार भूमिका थी। उन्होंने कई फिल्मों में अलग-अलग किरदार निभाए हैं। वर्ष 2002 में शरारत, 2001 में फर्ज, 2000 में दुल्हन हम ले जाएंगे, कल हो ना हो, 1999 में ज़ुल्मी, 1999 में दिल्लगी और इस तरह से अन्य कई फिल्में।
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====मुमताज़ से जुगलबंदी====
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अपने 60 साल लंबे फिल्मी करियर में दारा सिंह ने 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया जिनमें सबसे ज्यादा 16 फिल्में अभिनेत्री मुमताज के साथ की। मुमताज के साथ दारा सिंह की जोड़ी बनी 1963 में फिल्म 'फौलाद' से। शोख-चुलबुली मुमताज और हीमैन दारा सिंह की जोड़ी का जादू करीब पांच साल तक सिल्वर स्क्रीन पर छाया रहा। दारा सिंह और मुमताज ने 'वीर भीमसेन', 'हरक्यूलिस', 'आंधी और तूफान', 'राका', 'रुस्तम-ए-हिंद', 'सैमसन', 'सिकंदर-ए-आज़म', 'टारज़न कम्स टु डेल्ही', 'टारज़न एंड किंगकांग', 'बॉक्सर', 'जवां मर्द' और 'डाकू मंगल सिंह' समेत करीब डेढ़ दर्ज़न फिल्मों में साथ काम किया।
  
बॉलीवुड में बॉडी दिखाकर स्टारडम पाने का रास्ता ना खुलता, अगर दारा सिंह ना होते। जी हां, बॉलीवुड में आज हर सुपरस्टार पर शर्ट खोलकर मसल्स दिखाने की जो धुन सवार है, वो चलन शुरू हुआ था दारा सिंह के जरिए। जिस वक्त पूरी दुनिया में दारा सिंह की पहलवानी का सिक्का चल रहा था, तब 6 फीट 2 इंच लंबे इस गबरू जट्ट पर बॉलीवुड इस कदर फिदा हुआ कि पहलवान दारा सिंह बन गए एक्टर दारा सिंह।
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==फ़िल्म निर्देशक और निर्माता==
 
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उम्र जब तक ढली नहीं, तब तक दारा सिंह बॉलीवुड में एक्शन और धार्मिक फिल्में बनाने वाले फिल्मकारों के सबसे पसंदीदा कलाकार बने रहे और उम्र ढ़लने के बाद वो बन गए सुपरस्टार के बाप। कुश्ती के बाद दारा सिंह को सबसे ज़्यादा प्यार फिल्मों से ही रहा। उन्होंने मोहाली के पास दारा स्टूडियो बनाया और ढे़र सारी फिल्में भी। उन्होंने पहली फिल्म बनाई अपनी मातृभाषा [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]] में 'नानक दुखिया सब संसार'। भक्ति भावना वाली यह फिल्म जबर्दस्त हिट रही। इसके बाद 'ध्यानी भगत', 'सवा लाख से एक लडाऊं' 'भगत धन्ना जट्ट' आदि फिल्मों का निर्माण भी उन्होंने किया।  
आज भी बॉलीवुड दारा सिंह को उस सितारे के तौर पर जानता है, जिसकी शोहबत में आने के बाद ही मुमताज जैसी अदाकारा शोहरत की बुलंदियों तक पहुंचीं। दारा सिंह अपनी मजबूत कद काठी की वजह से फिल्मों में आए। दारा सिंह ने अपने समय की मशहूर अदाकारा मुमताज के साथ हिंदी की स्टंट फिल्मों में प्रवेश किया और कई फिल्मों में अभिनेता बने। यही नहीं कई फिल्मों में वह निर्देशक व निर्माता भी बने। दारा सिंह ने कई हिंदी फिल्मों का निर्माण किया और उसमें खुद हीरो रहे। दारा सिंह ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के दौर में कई फिल्मों में नायक के तौर पर नज़र आ चुके हैं।
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दारा सिंह ने हिंदी और पंजाबी में 8 फिल्में निर्मित कीं, 8 फिल्मों का निर्देशन किया और 7 फिल्मों की कहानी भी खुद ही लिखी। सौ से ज़्यादा फिल्मों में अदाकारी कर चुके दारा सिंह की आखिरी यादगार फिल्म थी 2007 में इम्तियाज अली की फिल्म 'जब वी मेट', जिसमें उन्होंने करीना कपूर के दादाजी का किरदार निभाया। वो आखिरी दम तक फिल्मों में जुड़ा रहना चाहते थे, लेकिन बढ़ती उम्र और बिगड़ती सेहत साथ नहीं दे रही थी, लिहाज़ा दारा सिंह ने 2011 में लाइट-कैमरा और एक्शन को अलविदा कह दिया।
 
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====धारावाहिक रामायण में हनुमान====
दारा सिंह की पहली फिल्म 'संगदिल' 1952 में रिलीज़ हुई, जिसमें दिलीप कुमार और मधुबाला लीड रोल में थे। 1955 में वो फिल्म 'पहली झलक' में पहलवान बनकर आए, जिसमें मुख्य किरदार किशोर कुमार और वैजयंती माला ने निभाया था। कुश्ती और फिल्मों में एक साथ मौजूदगी दर्ज़ कराते रहे दारा सिंह की बतौर हीरो पहली फिल्म थी 'जग्गा डाकू.' जिसके बाद वो बॉलीवुड के पहले एक्शन हीरो के तौर पर छा गए।
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कोई एक किरदार कैसे किसी की मुकम्मल पहचान बदल देता है, इसकी मिसाल हैं दारा सिंह। सीरियल रामायण में हनुमान के किरदार ने उन्हें घर-घर में ऐसी पहचान दी कि अब किसी को याद भी नहीं कि दारा सिंह अपने ज़माने के वर्ल्ड चैंपियन पहलवान थे। ये वो किरदार है, जिसने पहलवान से अभिनेता बने दारा सिंह की पूरी पहचान बदल दी। 1986 में [[रामानंद सागर]] के सीरियल रामायण में दारा सिंह हनुमान के रोल में ऐसे रच-बस गए कि इसके बाद कभी किसी ने किसी दूसरे कलाकार को हनुमान बनाने के बारे में सोचा ही नहीं। रामायण सीरियल के बाद आए दूसरे पौराणिक धारावाहिक महाभारत में भी हनुमान के रूप में दारा सिंह ही नज़र आए। 1989 में जब 'लव कुश' की पौराणिक कथा छोटे परदे पर उतारी गई, तो उसमें भी हनुमान का रोल दारा सिंह ने ही किया। 1997 में आई फिल्म 'लव कुश' में भी हनुमान बने दारा सिंह।
 
 
उनकी असल पहचान बनी 1962 में आई फिल्म ‘किंग कॉन्ग’ से। इस फिल्म ने उन्हें शोहरत के आसमान पर पहुंचा दिया। ये फिल्म कुश्ती पर ही आधारित थी। किंग कांग के बाद रुस्तम-ए-रोम, रुस्तम-ए-बगदाद, रुस्तम-ए-हिंद आदि फिल्में कीं। सभी फिल्में सफल रहीं। मशहूर फिल्म आनंद में भी उनकी छोटी-सी किंतु यादगार भूमिका थी। उन्होंने कई फिल्मों में अलग-अलग किरदार निभाए हैं। साल 1966 में दारा की पहली फिल्म नौजवान आई।
 
 
 
वर्ष 2002 में शरारत, 2001 में फर्ज, 2000 में दुल्हन हम ले जाएंगे, कल हो ना हो, 1999 में ज़ुल्मी, 1999 में दिल्लगी और इस तरह से अन्य कई फिल्में। अपने 60 साल लंबे फिल्मी करियर में दारा सिंह ने 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया जिनमें सबसे ज्यादा 16 फिल्में अभिनेत्री मुमताज के साथ की।
 
 
 
मुमताज के साथ दारा सिंह की जोड़ी बनी 1963 में फिल्म 'फौलाद' से। शोख-चुलबुली मुमताज और हीमैन दारा सिंह की जोड़ी का जादू करीब पांच साल तक सिल्वर स्क्रीन पर छाया रहा। दारा सिंह और मुमताज ने 'वीर भीमसेन', 'हरक्यूलिस', 'आंधी और तूफान', 'राका', 'रुस्तम-ए-हिंद', 'सैमसन', 'सिकंदर-ए-आज़म', 'टारज़न कम्स टु डेल्ही', 'टारज़न एंड किंगकांग', 'बॉक्सर', 'जवां मर्द' और 'डाकू मंगल सिंह' समेत करीब डेढ़ दर्ज़न फिल्मों में साथ काम किया।
 
 
 
उम्र जब तक ढली नहीं, तब तक दारा सिंह बॉलीवुड में एक्शन और धार्मिक फिल्में बनाने वाले फिल्मकारों के सबसे पसंदीदा कलाकार बने रहे और उम्र ढ़लने के बाद वो बन गए सुपरस्टार के बाप। कुश्ती के बाद दारा सिंह को सबसे ज़्यादा प्यार फिल्मों से ही रहा। उन्होंने मोहाली के पास दारा स्टूडियो बनाया और ढे़र सारी फिल्में भी।
 
 
 
उन्होंने पहली फिल्म बनाई अपनी मातृभाषा पंजाबी में नानक दुखिया सब संसार। भक्ति भावना वाली यह फिल्म जबर्दस्त हिट रही। इसके बाद ध्यानी भगत, सवा लाख से एक लडाऊं व भगत धन्ना जट्ट आदि फिल्मों का निर्माण भी उन्होंने किया। अब तक करीब सवा सौ फिल्मों में काम कर चुके हैं वह, धारावाहिकों में अभी भी लगातार काम कर रहे हैं।
 
 
 
दारा सिंह ने हिंदी और पंजाबी में 8 फिल्में प्रोड्यूस कीं, 8 फिल्मों का निर्देशन किया और 7 फिल्मों की कहानी भी खुद ही लिखी। सौ से ज़्यादा फिल्मों में अदाकारी कर चुके दारा सिंह की आखिरी यादगार फिल्म थी 2007 में इम्तियाज अली की फिल्म 'जब वी मेट', जिसमें उन्होंने करीना कपूर के दादाजी का किरदार निभाया। वो आखिरी दम तक फिल्मों में जुड़ा रहना चाहते थे, लेकिन बढ़ती उम्र और बिगड़ती सेहत साथ नहीं दे रही थी, लिहाज़ा दारा सिंह ने 2011 में लाइट-कैमरा और एक्शन को अलविदा कह दिया।
 
 
 
कोई एक किरदार कैसे किसी की मुकम्मल पहचान बदल देता है, इसकी मिसाल हैं दारा सिंह। सीरियल रामायण में हनुमान के किरदार ने उन्हें घर-घर में ऐसी पहचान दी कि अब किसी को याद भी नहीं कि दारा सिंह अपने ज़माने के वर्ल्ड चैंपियन पहलवान थे।
 
 
 
ये वो किरदार है, जिसने पहलवान से अभिनेता बने दारा सिंह की पूरी पहचान बदल दी। 1986 में रामानंद सागर के सीरियल रामायण में दारा सिंह हनुमान के रोल में ऐसे रच-बस गए कि इसके बाद कभी किसी ने किसी दूसरे कलाकार को हनुमान बनाने के बारे में सोचा ही नहीं।
 
 
 
रामायण सीरियल के बाद आए दूसरे पौराणिक धारावाहिक महाभारत में भी हनुमान के रूप में दारा सिंह ही नज़र आए। 1989 में जब 'लव कुश' की पौराणिक कथा छोटे परदे पर उतारी गई, तो उसमें भी हनुमान का रोल दारा सिंह ने ही किया। 1997 में आई फिल्म 'लव कुश' में भी हनुमान बने दारा सिंह।
 
 
[[चित्र:sanjay-rajiv-indra-amitabh-dara-singh.jpg|thumb|300px|दारा सिंह]]
 
[[चित्र:sanjay-rajiv-indra-amitabh-dara-singh.jpg|thumb|300px|दारा सिंह]]
दिलचस्प बात ये है कि बॉलीवुड को अपने हनुमान उन दारा सिंह में दिखे, जिनकी फिल्मी पारी पहलवान और डाकू जैसी भूमिकाओं से शुरू हुई थी। बाद में वो राजा और रोमांस के राजकुमार भी बने। और जब 1960 और 70 के दशक में पौराणिक फिल्मों का दौर लौटा, तो दारा सिंह की कदकाठी देखते हुए उन्हें कभी भीम बनाया गया, कभी बलराम तो कभी महादेव शिव।
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====विभिन्न धार्मिक चरित्र====
 
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1964 में फिल्म 'वीर भीमसेन' में दारा सिंह ने भीम का रोल निभाया। अगले साल आई फिल्म 'महाभारत' में भी दारा सिंह ही भीम बने। 1968 में फिल्म 'बलराम श्रीकृष्ण' में दारा सिंह कृष्ण के बड़े भाई बलराम की भूमिका में नज़र आए। 1971 में फिल्म 'तुलसी विवाह' में दारा सिंह पहली बार भगवान शिव के रोल में सामने आए। भगवान शिव की भूमिका उन्होंने 'हरि दर्शन' और 'हर-हर महादेव' में भी निभाई। दारा सिंह को पहली बार हनुमान बनाया निर्माता-निर्देशक चंद्रकांत ने। 1976 में रिलीज़ हुई फिल्म 'बजरंग बली' में दारा सिंह हनुमान की भूमिका में थे। इस फिल्म में तब तक चॉकलेटी हीरो विश्वजीत [[राम]] के रोल में थे, जबकि [[लक्ष्मण]] की भूमिका [[शशि कपूर]] ने निभाई और [[रावण]] बने थे प्रेमनाथ। 'बजरंग बली' रिलीज़ होने के बारह साल साल बाद जब रामायण सीरियल शुरू हुआ, तो रामानंद सागर के जेहन में हनुमान के रोल को लेकर कोई दुविधा नहीं थी। वो पूरी तरह इस बात से सहमत थे कि हनुमान की भूमिका के लिए दारा सिंह से बेहतर कोई हो ही नहीं सकता।
1964 में फिल्म 'वीर भीमसेन' में दारा सिंह ने भीम का रोल निभाया। अगले साल आई फिल्म 'महाभारत' में भी दारा सिंह ही भीम बने। 1968 में फिल्म 'बलराम श्रीकृष्ण' में दारा सिंह कृष्ण के बड़े भाई बलराम की भूमिका में नज़र आए। 1971 में फिल्म 'तुलसी विवाह' में दारा सिंह पहली बार भगवान शिव के रोल में सामने आए। भगवान शिव की भूमिका उन्होंने 'हरि दर्शन' और 'हर-हर महादेव' में भी निभाई।
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84 साल का दिल का दौरा पड़ने से [[12 जुलाई]] [[2012]] को निधन हुआ। इस प्रकार एक सफल पहलवान, एक सफल अभिनेता, निर्देशक और निर्माता के तौर पर दारा सिंह ने अपने जीवन में बहुत कुछ पाया और साथ ही देश का गौरव बढ़ाया।
दारा सिंह को पहली बार हनुमान बनाया निर्माता-निर्देशक चंद्रकांत ने। 1976 में रिलीज़ हुई फिल्म 'बजरंग बली' में दारा सिंह हनुमान की भूमिका में थे। इस फिल्म में तब तक चॉकलेटी हीरो विश्वजीत राम के रोल में थे, जबकि लक्ष्मण की भूमिका शशि कपूर ने निभाई और रावण बने थे प्रेमनाथ।
 
 
 
'बजरंग बली' रिलीज़ होने के बारह साल साल बाद जब रामायण सीरियल शुरू हुआ, तो रामानंद सागर के जेहन में हनुमान के रोल को लेकर कोई दुविधा नहीं थी। वो पूरी तरह इस बात से सहमत थे कि हनुमान की भूमिका के लिए दारा सिंह से बेहतर कोई हो ही नहीं सकता।
 
 
 
एक सफल पहलवान, एक सफल अभिनेता, निर्देशक और निर्माता के तौर पर दारा सिंह ने अपने जीवन में बहुत कुछ पाया और साथ ही देश का गौरव बढ़ाया।
 
 
 
 
 
  
  
 
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08:27, 12 जुलाई 2012 का अवतरण

दारा सिंह
दारा सिंह
पूरा नाम दारा सिंह रंधावा
प्रसिद्ध नाम दारा सिंह
अन्य नाम रुस्तम-ए-हिंद
जन्म 19 नवंबर 1928
जन्म भूमि धरमूचक (धर्मूचक्क) गांव, अमृतसर पंजाब
मृत्यु 12 जुलाई, 2012
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
पति/पत्नी सुरजीत कौर
संतान तीन बेटियां और तीन बेटे
कर्म-क्षेत्र पहलवान, अभिनेता
मुख्य फ़िल्में 'वतन से दूर', 'रुस्तम-ए-बगदाद', 'शेर दिल', 'सिकंदर-ए-आज़म', 'राका', 'मेरा नाम जोकर', 'धरम करम' और 'मर्द'
पुरस्कार-उपाधि 1966 में रुस्तम-ए-पंजाब और 1978 में रुस्तम-ए-हिंद
प्रसिद्धि दारा सिंह ने रामानंद सागर द्वारा निर्मित धारावाहिक 'रामायण' में हनुमान की भूमिका निभाकर हिन्दुस्तान के घर-घर में प्रसिद्धि पाई
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी दारा सिंह 2003 से 2009 तक राज्यसभा के सांसद रह चुके हैं।

दारा सिंह (अंग्रेज़ी: Dara Singh, जन्म:19 नवम्बर, 1928, अमृतसर - मृत्यु: 12 जुलाई, 2012 मुम्बई) अपने जमाने के विश्व प्रसिद्ध फ्रीस्टाइल पहलवान और प्रसिद्ध अभिनेता थे। दारा सिंह 2003-2009 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे। दारा सिंह ने खेल और मनोरंजन की दुनिया में समान रुप से नाम कमाया और अपने काम का लोहा मनवाया। यही वजह है कि उन्हें अभिनेता और पहलवान दोनों तौर पर जाना जाता है। उन्होंने 1959 में पूर्व विश्व चैम्पियन जार्ज गार्डीयांका को पराजित करके कॉमनवेल्थ की विश्व चैम्पियनशिप जीती थी। बाद में वे अमरीका के विश्व चैम्पियन लाऊ थेज को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैम्पियन बन गये।

आरम्भिक जीवन

अखाड़े से फ़िल्मी दुनिया तक का सफर दारा सिंह के लिए काफी चुनौती भरा रहा। बचपन से ही पहलवानी के दीवाने रहे दारा सिंह का पूरा नाम दारा सिंह रंधावा है। हालांकि चाहने वालों के बीच वे दारा सिंह के नाम से ही जाने गए। सूरत सिंह रंधावा और बलवंत कौर के बेटे दारा सिंह का जन्म 19 नवंबर 1928 को पंजाब के अमृतसर के धरमूचक (धर्मूचक्क या धर्मूचाक या धर्मचुक) गांव के जाट-सिख परिवार में हुआ था। उस समय देश में अंग्रेज़ों का शासन था। दारा सिंह के पिताजी बाहर रहते थे। दादाजी चाहते कि बडा होने के कारण दारा स्कूल न जाकर खेतों में काम करे और छोटा भाई पढाई करे। इसी बात को लेकर लंबे समय तक झगड़ा चलता रहा।

पहलवानी का शौक

दारा सिंह को बचपन से ही पहलवानी का शौक था। अपनी किशोर अवस्था में दारा सिंह दूध व मक्खन के साथ 100 बादाम रोज खाकर कई घंटे कसरत व व्यायाम में गुजारा करते थे। कम उम्र में ही दारा सिंह के घरवालों ने उनकी शादी कर दी। नतीजतन महज 17 साल की नाबालिग उम्र में ही एक बच्चे के पिता बन गए लेकिन जब उन्होंने कुश्ती की दुनिया में नाम कमाया तो उन्होंने अपनी पसन्द से दूसरी शादी सुरजीत कौर से की।

परिवार

दारा सिंह के परिवार में तीन पुत्रियाँ और तीन पुत्र हैं। उन्हें रामानन्द सागर द्वारा निर्देशित के टीवी धारावाहिक रामायण में हनुमान जी के अभिनय से अपार लोकप्रियता मिली जिसके परिणाम स्वरूप 2003 में भाजपा ने उन्हें राज्यसभा की सदस्यता भी प्रदान की। दारा सिंह 2003 से 2009 तक राज्यसभा के सासद रह चुके हैं।

सम्मान और उपाधि

1978 में दारा सिंह को रुस्तम-ए-हिंद के खिताब से नवाजा गया।

कुश्ती में करियर

दारा सिंह और परिवार

दारा सिंह अपने जमाने के विश्व प्रसिद्ध फ्रीस्टाइल पहलवान रहे। साठ के दशक में पूरे भारत में उनकी फ्री स्टाइल कुश्तियों का बोलबाला रहा। दारा सिंह को पहलवानी का शौक बचपन से ही था। बचपन अपने फार्म पर काम करते-करते गुजर गया, जिसके बाद ऊंचे कद मजबूत काठी को देखते हुए उन्हें कुश्ती लड़ने की प्रेरणा मिलती रही। दारा सिंह ने अपने घर से ही कुश्ती की शुरूआत की। दारा सिंह और उनके छोटे भाई सरदारा सिंह ने मिलकर पहलवानी शुरू कर दी और धीरे-धीरे गांव के दंगलों से लेकर शहरों में कुश्तियां जीतकर अपने गांव का नाम रोशन करना शुरू कर दिया और भारत में अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश में जुट गए। दारा सिंह ने अखाड़े में पहलवानी सीखी। उस दौर में दारा सिंह को राजा महाराजाओं की ओर कुश्ती लड़ने का न्यौता मिला करता था। हाटों और मेलों में भी कुश्ती की और कई पहलवानों को पटखनी दी।

कुश्ती चैम्पियनशिप

भारत की आज़ादी के दौरान 1947 में दारा सिंह सिंगापुर पहुंचे। वहां रहते हुए उन्होंने भारतीय स्टाइल की कुश्ती में मलेशियाई चैंपियन त्रिलोक सिंह को पराजित कर कुआलालंपुर में मलेशियाई कुश्ती चैम्पियनशिप जीती। उसके बाद उनका विजयी रथ अन्य देशों की ओर चल पड़ा और एक पेशेवर पहलवान के रूप में सभी देशों में अपनी कामयाबी का झंडा गाड़कर वे 1952 में भारत लौट आए। क़रीब पांच साल तक फ्री स्टाइल रेसलिंग में दुनियाभर (पूर्वी एशियाई देशों) के पहलवानों को चित्त करने के बाद दारा सिंह भारत आकर सन 1954 में भारतीय कुश्ती चैंपियन (राष्ट्रीय चैंपियन) बने। दारा सिंह ने उन सभी देशों का एक-एक करके दौरा किया जहां फ्रीस्टाइल कुश्तियां लड़ी जाती थीं।

दारा सिंह

विश्व चैंपियन

इसके बाद उन्होंने कॉमनवेल्थ देशों का दौरा किया और विश्व चैंपियन किंग कॉन्ग को भी धूल चटा दी। दारा सिंह की लोकप्रियता से भन्नाए कनाडा के विश्व चैंपियन जार्ज गार्डीयांका और न्यूजीलैंड के जॉन डिसिल्वा ने 1959 में कोलकाता में कॉमनवेल्थ कुश्ती चैंपियनशिप में उन्हें खुली चुनौती दे डाली। नतीजा वही रहा। यहां भी दारा सिंह ने दोनों पहलवानों को हराकर विश्व चैंपियनशिप का खिताब हासिल किया। कॉमनवेल्थ चैपियनशिप के बाद दारा सिंह का मिशन था पूरी दुनिया को अपना दम-खम दिखाना। भारत के इस पहलवान ने दुनिया के लगभग हर देश के पहलवान को चित किया। आखिरकार अमेरिका के विश्व चैंपियन लाऊ थेज को 29 मई 1968 को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैंपियन बन गए। कुश्ती का शहंशाह बनने के इस सफर में दारा सिंह ने पाकिस्तान के माज़िद अकरा, शाने अली और तारिक अली, जापान के रिकोडोजैन, यूरोपियन चैंपियन बिल रॉबिनसन, इंग्लैंड के चैपियन पैट्रॉक समेत कई पहलवानों का गुरूर मिट्टी में मिला दिया। 1983 में कुश्ती से रिटायरमेंट लेने वाले दारा सिंह ने 500 से ज़्यादा पहलवानों को हराया और ख़ास बात ये कि ज़्यादातर पहलवानों को दारा सिंह ने उन्हीं के घर में जाकर चित किया। उनकी कुश्ती कला को सलाम करने के लिए 1966 में दारा सिंह को रुस्तम-ए-पंजाब और 1978 में रुस्तम-ए-हिंद के खिताब से नवाज़ा गया।

दारा सिंह ने क़रीब 36 साल तक अखाड़े में पसीना बहाया और अब तक लड़ी कुल 500 कुश्तियों में से दारा सिंह एक भी नहीं हारे, जिसकी बदौलत उनका नाम ऑब्जरवर न्यूजलेटर हॉल ऑफ फेम में दर्ज है। दारा सिंह की कुश्ती के दीवानों में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू समेत कई दूसरे प्रधानमंत्री भी शामिल थे। सही मायने में दारा सिंह कुश्ती के दंगल के वो शेर थे, जिनकी दहाड़ सुनकर बड़े-बड़े पहलवानों ने दुम दबाकर अखाड़ा छोड़ दिया।

फ़िल्मी करियर

दारा सिंह का फिल्मी करियर

लगभग 60 साल तक दारा सिंह ने हिंदुस्तान के दिल पर राज किया है। आज की पीढ़ी को शायद अंदाज़ा भी ना हो कि अखाड़े से अदाकारी के मैदान में उतरे दारा सिंह बॉलीवुड के पहले हीमैन माने जाते हैं। वो टारजन सीरीज़ की फिल्मों के हीरो रहे हैं। दारा सिंह अपनी मजबूत कद काठी की वजह से फिल्मों में आए। फिल्म अभिनेत्री मुमताज का करियर संवारने में भी सबसे बड़ा सहारा दारा सिंह का साथ ही साबित हुआ। बॉलीवुड में बॉडी दिखाकर स्टारडम पाने का रास्ता ना खुलता, अगर दारा सिंह ना होते। जी हां, बॉलीवुड में आज हर सुपरस्टार पर शर्ट खोलकर मसल्स दिखाने की जो धुन सवार है, वो चलन शुरू हुआ था दारा सिंह के जरिए। जिस वक्त पूरी दुनिया में दारा सिंह की पहलवानी का सिक्का चल रहा था, तब 6 फीट 2 इंच लंबे इस गबरू जट्ट पर बॉलीवुड इस कदर फिदा हुआ कि पहलवान दारा सिंह बन गए अभिनेता दारा सिंह। दारा सिंह ने अपने समय की मशहूर अदाकारा मुमताज के साथ हिंदी की स्टंट फिल्मों में प्रवेश किया और कई फिल्मों में अभिनेता बने। दारा सिंह ने मुमताज़ के 16 फिल्मों में साथ काम किया। यही नहीं कई फिल्मों में वह निर्देशक व निर्माता भी बने। दारा सिंह ने कई हिंदी फिल्मों का निर्माण किया और उसमें खुद हीरो रहे।

पहली फिल्म

दारा सिंह की पहली फिल्म 'संगदिल' 1952 में रिलीज़ हुई, जिसमें दिलीप कुमार और मधुबाला मुख्य भूमिकाओं में थे। 1955 में वो फिल्म 'पहली झलक' में पहलवान बनकर आए, जिसमें मुख्य किरदार किशोर कुमार और वैजयंती माला ने निभाया था। कुश्ती और फिल्मों में एक साथ मौजूदगी दर्ज़ कराते रहे दारा सिंह की बतौर हीरो पहली फिल्म थी 'जग्गा डाकू.' जिसके बाद वो बॉलीवुड के पहले एक्शन हीरो के तौर पर छा गए।

मुख्य फ़िल्में

दारा सिंह की असल पहचान बनी 1962 में आई फिल्म ‘किंग कॉन्ग’ से। इस फिल्म ने उन्हें शोहरत के आसमान पर पहुंचा दिया। ये फिल्म कुश्ती पर ही आधारित थी। किंग कांग के बाद रुस्तम-ए-रोम, रुस्तम-ए-बगदाद, रुस्तम-ए-हिंद आदि फिल्में कीं। सभी फिल्में सफल रहीं। मशहूर फिल्म आनंद में भी उनकी छोटी-सी किंतु यादगार भूमिका थी। उन्होंने कई फिल्मों में अलग-अलग किरदार निभाए हैं। वर्ष 2002 में शरारत, 2001 में फर्ज, 2000 में दुल्हन हम ले जाएंगे, कल हो ना हो, 1999 में ज़ुल्मी, 1999 में दिल्लगी और इस तरह से अन्य कई फिल्में।

मुमताज़ से जुगलबंदी

अपने 60 साल लंबे फिल्मी करियर में दारा सिंह ने 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया जिनमें सबसे ज्यादा 16 फिल्में अभिनेत्री मुमताज के साथ की। मुमताज के साथ दारा सिंह की जोड़ी बनी 1963 में फिल्म 'फौलाद' से। शोख-चुलबुली मुमताज और हीमैन दारा सिंह की जोड़ी का जादू करीब पांच साल तक सिल्वर स्क्रीन पर छाया रहा। दारा सिंह और मुमताज ने 'वीर भीमसेन', 'हरक्यूलिस', 'आंधी और तूफान', 'राका', 'रुस्तम-ए-हिंद', 'सैमसन', 'सिकंदर-ए-आज़म', 'टारज़न कम्स टु डेल्ही', 'टारज़न एंड किंगकांग', 'बॉक्सर', 'जवां मर्द' और 'डाकू मंगल सिंह' समेत करीब डेढ़ दर्ज़न फिल्मों में साथ काम किया।

फ़िल्म निर्देशक और निर्माता

उम्र जब तक ढली नहीं, तब तक दारा सिंह बॉलीवुड में एक्शन और धार्मिक फिल्में बनाने वाले फिल्मकारों के सबसे पसंदीदा कलाकार बने रहे और उम्र ढ़लने के बाद वो बन गए सुपरस्टार के बाप। कुश्ती के बाद दारा सिंह को सबसे ज़्यादा प्यार फिल्मों से ही रहा। उन्होंने मोहाली के पास दारा स्टूडियो बनाया और ढे़र सारी फिल्में भी। उन्होंने पहली फिल्म बनाई अपनी मातृभाषा पंजाबी में 'नानक दुखिया सब संसार'। भक्ति भावना वाली यह फिल्म जबर्दस्त हिट रही। इसके बाद 'ध्यानी भगत', 'सवा लाख से एक लडाऊं' व 'भगत धन्ना जट्ट' आदि फिल्मों का निर्माण भी उन्होंने किया। दारा सिंह ने हिंदी और पंजाबी में 8 फिल्में निर्मित कीं, 8 फिल्मों का निर्देशन किया और 7 फिल्मों की कहानी भी खुद ही लिखी। सौ से ज़्यादा फिल्मों में अदाकारी कर चुके दारा सिंह की आखिरी यादगार फिल्म थी 2007 में इम्तियाज अली की फिल्म 'जब वी मेट', जिसमें उन्होंने करीना कपूर के दादाजी का किरदार निभाया। वो आखिरी दम तक फिल्मों में जुड़ा रहना चाहते थे, लेकिन बढ़ती उम्र और बिगड़ती सेहत साथ नहीं दे रही थी, लिहाज़ा दारा सिंह ने 2011 में लाइट-कैमरा और एक्शन को अलविदा कह दिया।

धारावाहिक रामायण में हनुमान

कोई एक किरदार कैसे किसी की मुकम्मल पहचान बदल देता है, इसकी मिसाल हैं दारा सिंह। सीरियल रामायण में हनुमान के किरदार ने उन्हें घर-घर में ऐसी पहचान दी कि अब किसी को याद भी नहीं कि दारा सिंह अपने ज़माने के वर्ल्ड चैंपियन पहलवान थे। ये वो किरदार है, जिसने पहलवान से अभिनेता बने दारा सिंह की पूरी पहचान बदल दी। 1986 में रामानंद सागर के सीरियल रामायण में दारा सिंह हनुमान के रोल में ऐसे रच-बस गए कि इसके बाद कभी किसी ने किसी दूसरे कलाकार को हनुमान बनाने के बारे में सोचा ही नहीं। रामायण सीरियल के बाद आए दूसरे पौराणिक धारावाहिक महाभारत में भी हनुमान के रूप में दारा सिंह ही नज़र आए। 1989 में जब 'लव कुश' की पौराणिक कथा छोटे परदे पर उतारी गई, तो उसमें भी हनुमान का रोल दारा सिंह ने ही किया। 1997 में आई फिल्म 'लव कुश' में भी हनुमान बने दारा सिंह।

दारा सिंह

विभिन्न धार्मिक चरित्र

1964 में फिल्म 'वीर भीमसेन' में दारा सिंह ने भीम का रोल निभाया। अगले साल आई फिल्म 'महाभारत' में भी दारा सिंह ही भीम बने। 1968 में फिल्म 'बलराम श्रीकृष्ण' में दारा सिंह कृष्ण के बड़े भाई बलराम की भूमिका में नज़र आए। 1971 में फिल्म 'तुलसी विवाह' में दारा सिंह पहली बार भगवान शिव के रोल में सामने आए। भगवान शिव की भूमिका उन्होंने 'हरि दर्शन' और 'हर-हर महादेव' में भी निभाई। दारा सिंह को पहली बार हनुमान बनाया निर्माता-निर्देशक चंद्रकांत ने। 1976 में रिलीज़ हुई फिल्म 'बजरंग बली' में दारा सिंह हनुमान की भूमिका में थे। इस फिल्म में तब तक चॉकलेटी हीरो विश्वजीत राम के रोल में थे, जबकि लक्ष्मण की भूमिका शशि कपूर ने निभाई और रावण बने थे प्रेमनाथ। 'बजरंग बली' रिलीज़ होने के बारह साल साल बाद जब रामायण सीरियल शुरू हुआ, तो रामानंद सागर के जेहन में हनुमान के रोल को लेकर कोई दुविधा नहीं थी। वो पूरी तरह इस बात से सहमत थे कि हनुमान की भूमिका के लिए दारा सिंह से बेहतर कोई हो ही नहीं सकता।

निधन

84 साल का दिल का दौरा पड़ने से 12 जुलाई 2012 को निधन हुआ। इस प्रकार एक सफल पहलवान, एक सफल अभिनेता, निर्देशक और निर्माता के तौर पर दारा सिंह ने अपने जीवन में बहुत कुछ पाया और साथ ही देश का गौरव बढ़ाया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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