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'''धरमपाल''' अथवा '''धर्मपाल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Dharampal'', जन्म: 1922 - मृत्यु: 2006)  [[भारत]] के एक महान गांधीवादी, विचारक, इतिहासकार एवं दार्शनिक थे। इन्होंने कई सारे दस्तावेज़ जमा करके किताबें लिखीं जिनमें उन्होंने दिखलाया कि पुराने हिन्दुस्तान के लोग विज्ञान जानते थे और उन्होंने कई सारे ऐसे तरीक़ों को ईजाद किया था जिनके बारे में हमें पता भी नहीं है।  
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'''धरमपाल''' अथवा '''धर्मपाल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Dharampal'', जन्म: 1922 - मृत्यु: 2006)  [[भारत]] के एक महान गांधीवादी, विचारक, इतिहासकार एवं दार्शनिक थे। इन्होंने कई सारे दस्तावेज़ जमा करके किताबें लिखीं जिनमें उन्होंने दिखलाया कि पुराने हिन्दुस्तान के लोग विज्ञान जानते थे और उन्होंने कई सारे ऐसे तरीक़ों को ईजाद किया था जिनके बारे में हमें पता भी नहीं है। धरमपाल का जन्म [[उत्तर प्रदेश]] के [[मुज़फ़्फ़रनगर ज़िला|मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले]] में हुआ था। भारत से लेकर ब्रिटेन तक लगभग 30 साल उन्होंने इस बात की खोज में लगाये कि अंग्रेज़ों से पहले भारत कैसा था। इसी कड़ी में उनके द्वारा जुटाये गये तथ्यों, दस्तावेजों से भारत के बारे में जो पता चलता है वह हमारे मन पर अंकित तस्वीर के उलट है। गाँधीजी भारतीय शिक्षा को 'द ब्यूटीफुल ट्री' (The beautiful tree) कहा करते थे। इसके पीछे कारण यह था कि गाँधी ने भारत की शिक्षा के बारे में जो कुछ पढ़ा था, उससे पाया था कि भारत में शिक्षा सरकारों के बजाय समाज के अधीन थी।
==जीवन परिचय==
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==भारतीय सनातन परंपरा के रचनाकार==
धरमपाल का जन्म [[उत्तर प्रदेश]] के [[मुज़फ़्फ़रनगर ज़िला|मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले]] में हुआ था। भारत से लेकर ब्रिटेन तक लगभग 30 साल उन्होंने इस बात की खोज में लगाये कि अंग्रेजों से पहले भारत कैसा था। इसी कड़ी में उनके द्वारा जुटाये गये तथ्यों, दस्तावेजों से भारत के बारे में जो पता चलता है वह हमारे मन पर अंकित तस्वीर के उलट है।  
 
====भारतीय सनातन परंपरा के रचनाकार====
 
 
[[महात्मा गाँधी|गांधीजी]] की भारत में की गई स्वराजी साधना के बाद जिनका भी जन्म हुआ उसने गांधी के साथ [[प्रत्यक्ष]] या परोक्ष संवाद अवश्य बनाया। आज जितने भी गांधीवादी विचारक हैं उनके लिए गांधी तक पहुंचने के कई पुल हैं। एक पुल [[विनोबा भावे]] का है। दूसरा [[राम मनोहर लोहिया]] का है। तीसरा एन. के. बोस का है। चौथा जे.पी.एस. उबेराय का है और पांचवा पुल धर्मपाल का है। धर्मपाल ने खुद गांधी को सनातन भारत तक पहुंचने एवं भारत में अंग्रेजी राज को समझने के लिए एक पुल बनाया था। [[1942]] से [[1966]] तक धर्मपाल [[मीराबेन]] के प्रभाव में गांधी के रास्ते रचनात्मक कार्य में लगे रहे। इस तरह के गांधीवादी कार्यों के सिद्धांतकार पारंपरिक रूप से विनोबा भावे माने जाते हैं। लेकिन धर्मपाल विनोबा साहित्य से कितना परिचित और कितना प्रभावित थे अधिकारिक रूप से नहीं कहा जा सकता। [[1966]] से [[1986]] तक उनका अधिकांश समय शोध एवं लेखन में लगा। इस दौरान मूल रूप से उन्होंने यूरोपीय आंखों से भारत की परंपरागत ज्ञान निधि और संरचनाओं को समझने एवं समझाने का कार्य किया। इसकी कड़ी के रूप में [[1971]] में ‘सिविल डिसओबीडियेन्स इन इंडियन टे्रडिशन विद् सम अर्ली नाईन्टीन्थ सेन्चुरी डाक्युमेंट्स’ का प्रकाशन हुआ। 1971 में ही उनकी दूसरी महत्वपूर्ण पुस्तक ‘इंडियन साइंस एण्ड टेक्नालाजी इन दि एटीन्थ सेन्चुरी : सम कन्टेम्परोरी एकाउन्ट्स’ प्रकाशित हुई। [[1972]] में उनकी तीसरी पुस्तक आई ‘दि मद्रास पंचायत सिस्टम : ए जनरल ऐसेसमेंट’।  आगामी वर्षों में उनकी कई और किताबें आईं, जिनमें  ‘दि ब्यूटीफुल ट्री’ नामक पुस्तक का विशेष महत्व है। इन किताबों की संरचना एवं इनके संकलन की शैली पश्चिमी मानक पर पश्चिमी स्त्रोतों के आधार पर भी खरी उतरती है और भारतीय समाज को समझने में इनका इस्तेमाल विश्वविद्यालयों में उसी तरह, धीरे-धीरे होने लगा है जिस तरह [[आनंद कुमार स्वामी]], ए. के. सरण, एन. के. बोस या जे. पी. एस. उबेराय की पुस्तकों का होता है। इनमें कम से कम एन.के. बोस एवं जे.पी.एस. उबेराय अपने को गांधीवादी समाज विज्ञानी मानते रहे हैं और इनकी अकादमिक पहचान भी ऐसी ही बनी है।
 
[[महात्मा गाँधी|गांधीजी]] की भारत में की गई स्वराजी साधना के बाद जिनका भी जन्म हुआ उसने गांधी के साथ [[प्रत्यक्ष]] या परोक्ष संवाद अवश्य बनाया। आज जितने भी गांधीवादी विचारक हैं उनके लिए गांधी तक पहुंचने के कई पुल हैं। एक पुल [[विनोबा भावे]] का है। दूसरा [[राम मनोहर लोहिया]] का है। तीसरा एन. के. बोस का है। चौथा जे.पी.एस. उबेराय का है और पांचवा पुल धर्मपाल का है। धर्मपाल ने खुद गांधी को सनातन भारत तक पहुंचने एवं भारत में अंग्रेजी राज को समझने के लिए एक पुल बनाया था। [[1942]] से [[1966]] तक धर्मपाल [[मीराबेन]] के प्रभाव में गांधी के रास्ते रचनात्मक कार्य में लगे रहे। इस तरह के गांधीवादी कार्यों के सिद्धांतकार पारंपरिक रूप से विनोबा भावे माने जाते हैं। लेकिन धर्मपाल विनोबा साहित्य से कितना परिचित और कितना प्रभावित थे अधिकारिक रूप से नहीं कहा जा सकता। [[1966]] से [[1986]] तक उनका अधिकांश समय शोध एवं लेखन में लगा। इस दौरान मूल रूप से उन्होंने यूरोपीय आंखों से भारत की परंपरागत ज्ञान निधि और संरचनाओं को समझने एवं समझाने का कार्य किया। इसकी कड़ी के रूप में [[1971]] में ‘सिविल डिसओबीडियेन्स इन इंडियन टे्रडिशन विद् सम अर्ली नाईन्टीन्थ सेन्चुरी डाक्युमेंट्स’ का प्रकाशन हुआ। 1971 में ही उनकी दूसरी महत्वपूर्ण पुस्तक ‘इंडियन साइंस एण्ड टेक्नालाजी इन दि एटीन्थ सेन्चुरी : सम कन्टेम्परोरी एकाउन्ट्स’ प्रकाशित हुई। [[1972]] में उनकी तीसरी पुस्तक आई ‘दि मद्रास पंचायत सिस्टम : ए जनरल ऐसेसमेंट’।  आगामी वर्षों में उनकी कई और किताबें आईं, जिनमें  ‘दि ब्यूटीफुल ट्री’ नामक पुस्तक का विशेष महत्व है। इन किताबों की संरचना एवं इनके संकलन की शैली पश्चिमी मानक पर पश्चिमी स्त्रोतों के आधार पर भी खरी उतरती है और भारतीय समाज को समझने में इनका इस्तेमाल विश्वविद्यालयों में उसी तरह, धीरे-धीरे होने लगा है जिस तरह [[आनंद कुमार स्वामी]], ए. के. सरण, एन. के. बोस या जे. पी. एस. उबेराय की पुस्तकों का होता है। इनमें कम से कम एन.के. बोस एवं जे.पी.एस. उबेराय अपने को गांधीवादी समाज विज्ञानी मानते रहे हैं और इनकी अकादमिक पहचान भी ऐसी ही बनी है।
 
====प्रकाशित पुस्तकों में एक दशक का अंतर====
 
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==प्रमुख पुस्तकें==
 
==प्रमुख पुस्तकें==
 
धरमपाल द्वारा रचित प्रमुख पुस्तकें हैं-
 
धरमपाल द्वारा रचित प्रमुख पुस्तकें हैं-
* साइंस एण्ड टेक्नालॉजी इन एट्टींथ सेंचुरी  
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; अंग्रेज़ी में
* द ब्यूटीफुल ट्री
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* साइंस एण्ड टेक्नालॉजी इन एट्टींथ सेंचुरी (''Indian Science and Technology in the Eighteenth Century'')
* भारतीय चित्त मानस और काल
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* द ब्यूटीफुल ट्री (''The Beautiful Tree'')
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* सिविल डिसआबिडिएन्स एण्ड इंडियन ट्रेडिशन (''Civil Disobedience and Indian Tradition'')
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* डिस्पाइलेशन एण्ड डिफेमिंग ऑफ़ इंडिया (''Despoliation and Defaming of India'')
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* अंडरस्टेंडिंग गाँधी (''Understanding Gandhi'')
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; हिन्दी में
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* भारतीय चित्त मानस और काल  
 
* भारत का स्वधर्म
 
* भारत का स्वधर्म
* सिविल डिसआबिडिएन्स एण्ड इंडियन ट्रेडिशन
 
* डिस्पाइलेशन एण्ड डिफेमिंग आफ इंडिया
 
  
  

11:33, 3 दिसम्बर 2014 का अवतरण

धरमपाल अथवा धर्मपाल (अंग्रेज़ी: Dharampal, जन्म: 1922 - मृत्यु: 2006) भारत के एक महान गांधीवादी, विचारक, इतिहासकार एवं दार्शनिक थे। इन्होंने कई सारे दस्तावेज़ जमा करके किताबें लिखीं जिनमें उन्होंने दिखलाया कि पुराने हिन्दुस्तान के लोग विज्ञान जानते थे और उन्होंने कई सारे ऐसे तरीक़ों को ईजाद किया था जिनके बारे में हमें पता भी नहीं है। धरमपाल का जन्म उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले में हुआ था। भारत से लेकर ब्रिटेन तक लगभग 30 साल उन्होंने इस बात की खोज में लगाये कि अंग्रेज़ों से पहले भारत कैसा था। इसी कड़ी में उनके द्वारा जुटाये गये तथ्यों, दस्तावेजों से भारत के बारे में जो पता चलता है वह हमारे मन पर अंकित तस्वीर के उलट है। गाँधीजी भारतीय शिक्षा को 'द ब्यूटीफुल ट्री' (The beautiful tree) कहा करते थे। इसके पीछे कारण यह था कि गाँधी ने भारत की शिक्षा के बारे में जो कुछ पढ़ा था, उससे पाया था कि भारत में शिक्षा सरकारों के बजाय समाज के अधीन थी।

भारतीय सनातन परंपरा के रचनाकार

गांधीजी की भारत में की गई स्वराजी साधना के बाद जिनका भी जन्म हुआ उसने गांधी के साथ प्रत्यक्ष या परोक्ष संवाद अवश्य बनाया। आज जितने भी गांधीवादी विचारक हैं उनके लिए गांधी तक पहुंचने के कई पुल हैं। एक पुल विनोबा भावे का है। दूसरा राम मनोहर लोहिया का है। तीसरा एन. के. बोस का है। चौथा जे.पी.एस. उबेराय का है और पांचवा पुल धर्मपाल का है। धर्मपाल ने खुद गांधी को सनातन भारत तक पहुंचने एवं भारत में अंग्रेजी राज को समझने के लिए एक पुल बनाया था। 1942 से 1966 तक धर्मपाल मीराबेन के प्रभाव में गांधी के रास्ते रचनात्मक कार्य में लगे रहे। इस तरह के गांधीवादी कार्यों के सिद्धांतकार पारंपरिक रूप से विनोबा भावे माने जाते हैं। लेकिन धर्मपाल विनोबा साहित्य से कितना परिचित और कितना प्रभावित थे अधिकारिक रूप से नहीं कहा जा सकता। 1966 से 1986 तक उनका अधिकांश समय शोध एवं लेखन में लगा। इस दौरान मूल रूप से उन्होंने यूरोपीय आंखों से भारत की परंपरागत ज्ञान निधि और संरचनाओं को समझने एवं समझाने का कार्य किया। इसकी कड़ी के रूप में 1971 में ‘सिविल डिसओबीडियेन्स इन इंडियन टे्रडिशन विद् सम अर्ली नाईन्टीन्थ सेन्चुरी डाक्युमेंट्स’ का प्रकाशन हुआ। 1971 में ही उनकी दूसरी महत्वपूर्ण पुस्तक ‘इंडियन साइंस एण्ड टेक्नालाजी इन दि एटीन्थ सेन्चुरी : सम कन्टेम्परोरी एकाउन्ट्स’ प्रकाशित हुई। 1972 में उनकी तीसरी पुस्तक आई ‘दि मद्रास पंचायत सिस्टम : ए जनरल ऐसेसमेंट’। आगामी वर्षों में उनकी कई और किताबें आईं, जिनमें ‘दि ब्यूटीफुल ट्री’ नामक पुस्तक का विशेष महत्व है। इन किताबों की संरचना एवं इनके संकलन की शैली पश्चिमी मानक पर पश्चिमी स्त्रोतों के आधार पर भी खरी उतरती है और भारतीय समाज को समझने में इनका इस्तेमाल विश्वविद्यालयों में उसी तरह, धीरे-धीरे होने लगा है जिस तरह आनंद कुमार स्वामी, ए. के. सरण, एन. के. बोस या जे. पी. एस. उबेराय की पुस्तकों का होता है। इनमें कम से कम एन.के. बोस एवं जे.पी.एस. उबेराय अपने को गांधीवादी समाज विज्ञानी मानते रहे हैं और इनकी अकादमिक पहचान भी ऐसी ही बनी है।

प्रकाशित पुस्तकों में एक दशक का अंतर

धर्मपाल की 1971-72 में एवं 1983 में प्रकाशित पुस्तकों में एक दशक का अंतर है और भारत तथा दुनिया में इन दो दशकों में बहुत कुछ हुआ। 1970 का दशक 1967-68 की देशी-विदेशी घटनाओं से प्रभावित रहा। इस देश में 1967 से संविद सरकारों का चलन शुरू हुआ। फ्रांस एवं पश्चिमी देशों में 1968 से छात्र आंदोलन, जॉज संगीत, हिप्पी कल्चर एवं उत्तर आधुनिकता का चलन बढ़ा। नेहरूवाद ने भारत में अंतिम सांसें लीं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के रूप में इंदिरा गांधी और मार्क्सवादी विचारकों का साझा प्रयोग रवीन्द्रनाथ के विश्वभारती, शांतिनिकेतन एवं मदन मोहन मालवीय जी के प्रयोग बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी ही नहीं अंग्रेजी राज के स्तंभ कलकत्ता, बंबई, मद्रास, दिल्ली और इलाहाबाद विश्वविद्यालयों पर भी भारी पड़ने लगे थे। इसी क्रम में तपन राय चौधरी एवं इरफान हबीब के संपादन में कैंब्रिज इकोनौमिक हिस्ट्री, भाग 1 का प्रकाशन हुआ था। इस संपादित पुस्तक की सामग्री और धर्मपाल के 1971-72 के प्रकाशनों में पूरकता का संबंध देखा, पहचाना एवं सराहा गया। लेकिन 1983 के प्रकाशनों के बाद स्थिति बदलने लगी।
31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद टेलीविजन का एक नया प्रयोग शुरू हुआ। सी.एन.एन. ने ईराक युद्ध का प्रसारण बाद में किया। राजीव गांधी के सलाहकारों ने 31 अक्टूबर 1984 से इंदिरा गांधी की लाश का लगातार प्रकाशन करके लिखे हुए टेक्स्ट (पाट्य) की जगह पर्दे पर दिखाए गए टेक्टस (पाट्य) का महत्व बढ़ा दिया। भारत ऐसे भी मौखिक समाज रहा है। लिखे हुए शब्दों का जो महत्व यूरोप में रहा है वह भारत में नहीं रहा है। हमारे यहां किताब को शास्त्र नहीं माना जाता। यहां गुरु-आचार्य के जीवनानुभूति के आधार पर बोले हुए वचन शास्त्र होते हैं। 1986 तक आते-आते धर्मपाल को भी यह बात समझ में आ गई। और उनकी दृष्टि बदल गई। जीवन का ढर्रा बदल गया। इस बदलाव को केवल उनकी पुस्तकों के आधार पर नहीं समझा जा सकता। परंतु प्रकाशित पुस्तकों में भी इसकी पहचान की जा सकती है। 1986 से वे भारतीय आस्थाओं को नष्ट करने के ब्रिटिश कुचक्रों के बारे में ब्रिटिश दस्तावेजों के प्रकाशन को महत्वपूर्ण मानने लगे। इसके तहत 1999 में उनकी पुस्तक ‘भारत की लूट और बदनामी: उन्नीसवीं सदी के आरंभ में इंग्लिश धर्मयुद्ध’ प्रकाशित हुई। फिर जुलाई 2002 में भारत में गोहत्या का ब्रिटिश मूल 1880-1894 प्रकाशित हुआ। लेकिन 1986 से 2002 के बीच उनकी दिनचर्या में संवाद, चिंतन, मनन, प्रवचन का क्रम बढ़ता गया। इस बीच वे आम आदमी, लोक संस्कृति और सनातन परंपरा को समझने की कोशिश करते रहे। लोक में प्रिय शास्त्रों के पुनर्पठन पर जोर देते रहे। इस काल खण्ड के धर्मपाल को समझने में उनकी दोनों पुस्तकों ‘भारतीय चित्त, मानस और काल’ तथा ‘भारत का स्वधर्म, इतिहास, वर्तमान और भविष्य का संदर्भ’ का बहुत महत्व है। लेकिन दुर्भाग्य से इन पुस्तकों की गंभीर समीक्षा जान-बूझकर नहीं की गई है। धर्मपाल का लेखन और उनका जीवन सनातन धर्म एवं सनातन परंपरा को ईसा की 18 वीं एवं 19 वीं शताब्दी में समझने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।[1]

प्रमुख पुस्तकें

धरमपाल द्वारा रचित प्रमुख पुस्तकें हैं-

अंग्रेज़ी में
  • साइंस एण्ड टेक्नालॉजी इन एट्टींथ सेंचुरी (Indian Science and Technology in the Eighteenth Century)
  • द ब्यूटीफुल ट्री (The Beautiful Tree)
  • सिविल डिसआबिडिएन्स एण्ड इंडियन ट्रेडिशन (Civil Disobedience and Indian Tradition)
  • डिस्पाइलेशन एण्ड डिफेमिंग ऑफ़ इंडिया (Despoliation and Defaming of India)
  • अंडरस्टेंडिंग गाँधी (Understanding Gandhi)
हिन्दी में
  • भारतीय चित्त मानस और काल
  • भारत का स्वधर्म


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शर्मा, डा. अमित। भारतीय सनातन परंपरा के रचनाकार धर्मपाल (हिन्दी) भारतीय पक्ष। अभिगमन तिथि: 3 दिसम्बर, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख