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'''बीना राय''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Bina Rai'', जन्म- [[13 जुलाई]], [[1932]], [[लखनऊ]]; मृत्यु- [[6 दिसम्बर]], [[2009]], [[मुम्बई]]) [[हिन्दी]] फ़िल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं। उनका वास्तविक नाम 'कृष्णा सरीन' था। पचास के दशक की बेहतरीन अभिनेत्रियों में से वह एक थीं। उन्होंने सन [[1951]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'काली घटा' से अपना फ़िल्मी कॅरियर शुरू किया था। [[विवाह]] के बाद बीना राय ने पति के साथ मिलकर ‘पी.एन. फ़िल्म्स’ के बैनर में ‘शगूफा’ ([[1953]]), ‘गोलकुण्डा का क़ैदी’ ([[1954]]) और ‘समुन्दर’ ([[1957]]) जैसी फिल्मों का निर्माण किया। साथ ही पति-पत्नी की इस जोड़ी ने इन फिल्मों में अभिनय भी किया। [[1968]] में बनी ‘अपना घर अपनी कहानी’ बीना राय की अन्तिम प्रदर्शित फिल्म थी, जिसके बाद फिल्मोद्योग से नाता तोडकर वह पूरी तरह घर-गृहस्थी में रम गयीं।
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'''बीना राय''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Bina Rai'', जन्म- [[13 जुलाई]], [[1932]], [[लखनऊ]]; मृत्यु- [[6 दिसम्बर]], [[2009]], [[मुम्बई]]) [[हिन्दी]] फ़िल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं। उनका वास्तविक नाम 'कृष्णा सरीन' था। पचास के दशक की बेहतरीन अभिनेत्रियों में से वह एक थीं। उन्होंने सन [[1951]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'काली घटा' से अपना फ़िल्मी कॅरियर शुरू किया था। [[विवाह]] के बाद बीना राय ने पति के साथ मिलकर ‘पी.एन. फ़िल्म्स’ के बैनर में ‘शगूफा’ ([[1953]]), ‘गोलकुण्डा का क़ैदी’ ([[1954]]) और ‘समुन्दर’ ([[1957]]) जैसी फ़िल्मों का निर्माण किया। साथ ही पति-पत्नी की इस जोड़ी ने इन फ़िल्मों में अभिनय भी किया। [[1968]] में बनी ‘अपना घर अपनी कहानी’ बीना राय की अन्तिम प्रदर्शित फ़िल्म थी, जिसके बाद फ़िल्मोद्योग से नाता तोडकर वह पूरी तरह घर-गृहस्थी में रम गयीं।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
 
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13 जुलाई, 1932 को [[लखनऊ]], [[उत्तर प्रदेश]] में जन्मीं बीना राय के [[पिता]] रेलवे में अधिकारी थे। उनके घर में सभी को फ़िल्में देखने का शौक था। बीना जी की पसन्दीदा हिरोईन ख़ुर्शीद थीं। पचास का दशक [[श्यामा]], [[नन्दा]], वैजयन्तीमाला, [[नूतन]], [[आशा पारेख]], माला सिन्हा, [[मीना कुमारी]], [[वहीदा रहमान]] और अमिता जैसी प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों के उदय का गवाह है, जिन्होंने इस दशक में बतौर नायिका कॅरियर की शुरुआत की और अपनी प्रतिभा और सौन्दर्य के बल पर आगे चलकर लाखों दर्शकों को अपना दीवाना बनाया। इन्हीं अभिनेत्रियों में शामिल थीं, निर्माता-निर्देशक किशोर साहू की फिल्म ‘काली घटा’ (1951) से फिल्मोद्योग में कदम रखने वाली खूबसूरत अभिनेत्री बीना राय। 18 बरस के अपने कॅरियर में बीना राय ने सिर्फ़ अट्ठाईस फिल्मों में काम किया और फिर वक़्त के बदलते रुख को भांपकर शालीनता के साथ फिल्मोद्योग से किनारा कर लिया और फिर चार दशकों से भी ज़्यादा समय तक उन्होंने मीडिया और अपने प्रशंसकों की नज़रों से खुद को छिपाये रखा।<ref>{{cite web |url=http://beetehuedin.blogspot.in/2015/02/ |title=बीना राय |accessmonthday=20 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=beetehuedin.blogspot.in |language=हिंदी }}</ref>
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==कॅरियर==
 
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बीना राय ने शादी के बाद भी फिल्मों में काम करना जारी रखा। शादीशुदा अभिनेत्री के कॅरियर को लेकर उस ज़माने में भी तमाम तरह की आशंकायें जतायी जाती थीं। लेकिन बीना राय के मामले में ऐसी तमाम आशंकायें झूठी साबित हुईं, क्योंकि सही मायनों में उनके कॅरियर ने गति शादी के बाद ही पकड़ी। ‘गौहर’, ‘शोले’, ‘मीनार’, ‘इन्सानियत’, ‘मदभरे नैन’, ‘मैरीन ड्राईव’, ‘सरदार’, ‘चन्द्रकांता’, ‘हमारा वतन’, ‘दुर्गेशनन्दिनी’, ‘बंदी’, ‘हिल स्टेशन’, ‘मेरा सलाम’, ‘तलाश’, ‘घूंघट’, ‘वल्लाह क्या बात है’, ‘ताजमहल’ और ‘दादी मां’ जैसी कुल अट्ठाईस फिल्मों में उन्होंने [[अशोक कुमार]], [[दिलीप कुमार]], [[देव आनन्द]], [[भारत भूषण]], [[किशोर कुमार]], [[प्रदीप कुमार]] और [[शम्मी कपूर]] जैसे अपने समय के सभी जाने माने नायकों के साथ [[अभिनय]] किया। फिल्म ‘घूंघट’ ([[1960]]) के लिये उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार हासिल किया था।
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बीना राय ने शादी के बाद भी फ़िल्मों में काम करना जारी रखा। शादीशुदा अभिनेत्री के कॅरियर को लेकर उस ज़माने में भी तमाम तरह की आशंकायें जतायी जाती थीं। लेकिन बीना राय के मामले में ऐसी तमाम आशंकायें झूठी साबित हुईं, क्योंकि सही मायनों में उनके कॅरियर ने गति शादी के बाद ही पकड़ी। ‘गौहर’, ‘शोले’, ‘मीनार’, ‘इन्सानियत’, ‘मदभरे नैन’, ‘मैरीन ड्राईव’, ‘सरदार’, ‘चन्द्रकांता’, ‘हमारा वतन’, ‘दुर्गेशनन्दिनी’, ‘बंदी’, ‘हिल स्टेशन’, ‘मेरा सलाम’, ‘तलाश’, ‘घूंघट’, ‘वल्लाह क्या बात है’, ‘ताजमहल’ और ‘दादी मां’ जैसी कुल अट्ठाईस फ़िल्मों में उन्होंने [[अशोक कुमार]], [[दिलीप कुमार]], [[देव आनन्द]], [[भारत भूषण]], [[किशोर कुमार]], [[प्रदीप कुमार]] और [[शम्मी कपूर]] जैसे अपने समय के सभी जाने माने नायकों के साथ [[अभिनय]] किया। फ़िल्म ‘घूंघट’ ([[1960]]) के लिये उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्मफेयर पुरस्कार हासिल किया था।
 
==मृत्यु==
 
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बीना राय ने ज़िंदगी के आख़िरी बरस दक्षिण [[मुम्बई]] के मालाबार हिल स्थित मशहूर अनीता बिल्डिंग में अपने छोटे बेटे अभिनेता मोण्टी के [[परिवार]] के साथ रहकर गुज़ारे। उनका निधन [[6 दिसम्बर]], [[2009]] को [[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]] में हुआ।
 
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बीना राय विषय सूची
बीना राय
बीना राय
पूरा नाम कृष्णा सरीन (मूल नाम)
प्रसिद्ध नाम बीना राय
जन्म 13 जुलाई, 1932
जन्म भूमि लखनऊ, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 6 दिसम्बर, 2009
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
पति/पत्नी प्रेमनाथ
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र अभिनय
मुख्य फ़िल्में 'काली घटा', ‘शोले’, ‘मैरीन ड्राईव’, ‘चन्द्रकांता’, ‘दुर्गेशनन्दिनी’, ‘बंदी’, ‘मेरा सलाम’, ‘तलाश’, ‘घूंघट’, ‘ताजमहल’, 'औरत' और ‘दादी मां’ आदि।
पुरस्कार-उपाधि सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्मफेयर पुरस्कार (‘घूंघट’, 1960)
प्रसिद्धि अभिनेत्री
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी विवाह के बाद बीना राय ने पति प्रेमनाथ के साथ मिलकर ‘पी.एन.फ़िल्म्स’ के बैनर में ‘शगूफा’, ‘गोलकुण्डा का क़ैदी’ और ‘समुन्दर’ जैसी फ़िल्मों का निर्माण किया। साथ ही पति-पत्नी की इस जोड़ी ने इन फ़िल्मों में अभिनय भी किया।
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बीना राय (अंग्रेज़ी: Bina Rai, जन्म- 13 जुलाई, 1932, लखनऊ; मृत्यु- 6 दिसम्बर, 2009, मुम्बई) हिन्दी फ़िल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं। उनका वास्तविक नाम 'कृष्णा सरीन' था। पचास के दशक की बेहतरीन अभिनेत्रियों में से वह एक थीं। उन्होंने सन 1951 में प्रदर्शित फ़िल्म 'काली घटा' से अपना फ़िल्मी कॅरियर शुरू किया था। विवाह के बाद बीना राय ने पति के साथ मिलकर ‘पी.एन. फ़िल्म्स’ के बैनर में ‘शगूफा’ (1953), ‘गोलकुण्डा का क़ैदी’ (1954) और ‘समुन्दर’ (1957) जैसी फ़िल्मों का निर्माण किया। साथ ही पति-पत्नी की इस जोड़ी ने इन फ़िल्मों में अभिनय भी किया। 1968 में बनी ‘अपना घर अपनी कहानी’ बीना राय की अन्तिम प्रदर्शित फ़िल्म थी, जिसके बाद फ़िल्मोद्योग से नाता तोडकर वह पूरी तरह घर-गृहस्थी में रम गयीं।

परिचय

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13 जुलाई, 1932 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में जन्मीं बीना राय के पिता रेलवे में अधिकारी थे। उनके घर में सभी को फ़िल्में देखने का शौक था। बीना जी की पसन्दीदा हिरोईन ख़ुर्शीद थीं। पचास का दशक श्यामा, नन्दा, वैजयन्तीमाला, नूतन, आशा पारेख, माला सिन्हा, मीना कुमारी, वहीदा रहमान और अमिता जैसी प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों के उदय का गवाह है, जिन्होंने इस दशक में बतौर नायिका कॅरियर की शुरुआत की और अपनी प्रतिभा और सौन्दर्य के बल पर आगे चलकर लाखों दर्शकों को अपना दीवाना बनाया। इन्हीं अभिनेत्रियों में शामिल थीं, निर्माता-निर्देशक किशोर साहू की फ़िल्म ‘काली घटा’ (1951) से फ़िल्मोद्योग में कदम रखने वाली खूबसूरत अभिनेत्री बीना राय। 18 बरस के अपने कॅरियर में बीना राय ने सिर्फ़ अट्ठाईस फ़िल्मों में काम किया और फिर वक़्त के बदलते रुख को भांपकर शालीनता के साथ फ़िल्मोद्योग से किनारा कर लिया और फिर चार दशकों से भी ज़्यादा समय तक उन्होंने मीडिया और अपने प्रशंसकों की नज़रों से खुद को छिपाये रखा।[1]

कॅरियर

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बीना राय ने शादी के बाद भी फ़िल्मों में काम करना जारी रखा। शादीशुदा अभिनेत्री के कॅरियर को लेकर उस ज़माने में भी तमाम तरह की आशंकायें जतायी जाती थीं। लेकिन बीना राय के मामले में ऐसी तमाम आशंकायें झूठी साबित हुईं, क्योंकि सही मायनों में उनके कॅरियर ने गति शादी के बाद ही पकड़ी। ‘गौहर’, ‘शोले’, ‘मीनार’, ‘इन्सानियत’, ‘मदभरे नैन’, ‘मैरीन ड्राईव’, ‘सरदार’, ‘चन्द्रकांता’, ‘हमारा वतन’, ‘दुर्गेशनन्दिनी’, ‘बंदी’, ‘हिल स्टेशन’, ‘मेरा सलाम’, ‘तलाश’, ‘घूंघट’, ‘वल्लाह क्या बात है’, ‘ताजमहल’ और ‘दादी मां’ जैसी कुल अट्ठाईस फ़िल्मों में उन्होंने अशोक कुमार, दिलीप कुमार, देव आनन्द, भारत भूषण, किशोर कुमार, प्रदीप कुमार और शम्मी कपूर जैसे अपने समय के सभी जाने माने नायकों के साथ अभिनय किया। फ़िल्म ‘घूंघट’ (1960) के लिये उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्मफेयर पुरस्कार हासिल किया था।

मृत्यु

बीना राय ने ज़िंदगी के आख़िरी बरस दक्षिण मुम्बई के मालाबार हिल स्थित मशहूर अनीता बिल्डिंग में अपने छोटे बेटे अभिनेता मोण्टी के परिवार के साथ रहकर गुज़ारे। उनका निधन 6 दिसम्बर, 2009 को मुम्बई, महाराष्ट्र में हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बीना राय (हिंदी) beetehuedin.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 20 जून, 2017।

संबंधित लेख

बीना राय विषय सूची

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