"रवीन्द्र जैन" के अवतरणों में अंतर

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'''रवीन्द्र जैन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Ravindra Jain'' , जन्म- ; मृत्यु- [[28 फ़रवरी]], [[1944]], [[अलीगढ़]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[9 अक्टूबर]], [[2015]], [[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]]) भारतीय [[हिन्दी सिनेमा]] के प्रसिद्ध संगीतकार तथा गायक थे। मुख्यत: उन्हें भजन गायक के रूप में ख्याति मिली थी। रवीन्द्र जैन हिन्दी सिनेमा के ऐसे संगीतकार थे, जिन्होंने मन की आँखों से दुनिया को समझा। सरगम के सात सुरों के माध्यम से उन्होंने जितना समाज से पाया, उससे कई गुना अधिक अपने श्रोताओं को लौटाया। वे मधुर धुनों के सर्जक होने के साथ बेहतरीन गायक भी रहे और अधिकांश गीतों की आशु रचना भी उन्होंने करके सबको चौंकाया। [[मन्ना डे]] के दृष्टिहीन चाचा कृष्णचन्द्र डे के बाद रवीन्द्र जैन दूसरे व्यक्ति थे, जिन्होंने दृश्य-श्रव्य माध्यम में केवल श्रव्य के सहारे ऐसा इतिहास रचा, जो युवा-पीढ़ी के लिए अनुकरणीय बन गया।
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'''रवीन्द्र जैन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Ravindra Jain'', जन्म- [[28 फ़रवरी]], [[1944]], [[अलीगढ़]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[9 अक्टूबर]], [[2015]], [[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]]) भारतीय [[हिन्दी सिनेमा]] के प्रसिद्ध संगीतकार तथा गायक थे। मुख्यत: उन्हें भजन गायक के रूप में ख्याति मिली थी। रवीन्द्र जैन हिन्दी सिनेमा के ऐसे संगीतकार थे, जिन्होंने मन की आँखों से दुनिया को समझा। सरगम के सात सुरों के माध्यम से उन्होंने जितना समाज से पाया, उससे कई गुना अधिक अपने श्रोताओं को लौटाया। वे मधुर धुनों के सर्जक होने के साथ बेहतरीन गायक भी रहे और अधिकांश गीतों की आशु रचना भी उन्होंने करके सबको चौंकाया। [[मन्ना डे]] के दृष्टिहीन चाचा कृष्णचन्द्र डे के बाद रवीन्द्र जैन दूसरे व्यक्ति थे, जिन्होंने दृश्य-श्रव्य माध्यम में केवल श्रव्य के सहारे ऐसा इतिहास रचा, जो युवा-पीढ़ी के लिए अनुकरणीय बन गया।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
 
प्रख्यात संगीतकार तथा गायक रवीन्द्र जैन का जन्म 28 फ़रवरी, सन 1944 में [[उत्तर प्रदेश|उत्तर प्रदेश राज्य]] के [[अलीगढ़|अलीगढ़ शहर]] में हुआ था। उनके [[पिता]] का नाम पंडित इन्द्रमणि जैन तथा [[माता]] किरणदेवी जैन थीं। अपने सात भाइयों तथा एक बहन में रवीन्द्र जैन का क्रम चौथा था। जन्म से उनकी आँखें बंद थीं, जिसे पिता के मित्र डॉ. मोहनलाल ने सर्जरी से खोला। साथ ही यह भी कहा कि बालक की आँखों में रोशनी है, जो धीरे-धीरे बढ़ सकती है, लेकिन इसे कोई काम ऐसा मत करने देना, जिससे आँखों पर जोर पड़े।<ref name="aa">{{cite web |url=http://goo.gl/7vTCA4 |title=रवींद्र जैन- गीत गाता चल ओ साथी|accessmonthday= 10 अक्टूबर|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वेबदुनिया|language= हिन्दी}}</ref>
 
प्रख्यात संगीतकार तथा गायक रवीन्द्र जैन का जन्म 28 फ़रवरी, सन 1944 में [[उत्तर प्रदेश|उत्तर प्रदेश राज्य]] के [[अलीगढ़|अलीगढ़ शहर]] में हुआ था। उनके [[पिता]] का नाम पंडित इन्द्रमणि जैन तथा [[माता]] किरणदेवी जैन थीं। अपने सात भाइयों तथा एक बहन में रवीन्द्र जैन का क्रम चौथा था। जन्म से उनकी आँखें बंद थीं, जिसे पिता के मित्र डॉ. मोहनलाल ने सर्जरी से खोला। साथ ही यह भी कहा कि बालक की आँखों में रोशनी है, जो धीरे-धीरे बढ़ सकती है, लेकिन इसे कोई काम ऐसा मत करने देना, जिससे आँखों पर जोर पड़े।<ref name="aa">{{cite web |url=http://goo.gl/7vTCA4 |title=रवींद्र जैन- गीत गाता चल ओ साथी|accessmonthday= 10 अक्टूबर|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वेबदुनिया|language= हिन्दी}}</ref>
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रवीन्द्र जैन के पिता ने डॉक्टर की नसीहत को ध्यान में रखकर [[संगीत]] की राह चुनी, जिसमें आँखों का कम उपयोग होता है। रवीन्द्र ने अपने पिता तथा भाई की आज्ञा शिरोधार्य कर मन की आँखों से सब कुछ जानने-समझने की सफल कोशिश की। बड़े भाई से आग्रह कर अनेक [[उपन्यास]] सुने। [[कविता|कविताओं]] के भावार्थ समझे। धार्मिक-ग्रंथों तथा इतिहास-पुरुषों की जीवनियों से जीवन का मर्म समझा। वे बचपन से इतने कुशाग्र बुद्धि के थे कि एक बार सुनी गई बात को कंठस्थ कर लेते, जो हमेशा उन्हें याद रहती। [[परिवार]] के [[धर्म]], [[दर्शन]] और अध्यात्ममय माहौल में उनका बचपन बीता। वे प्रतिदिन मंदिर जाते और वहाँ एक भजन गाकर सुनाना उनकी दिनचर्या में शामिल था। बदले में पिताजी एक भजन गाने पर एक [[रुपया]] इनाम भी दिया करते थे।
 
रवीन्द्र जैन के पिता ने डॉक्टर की नसीहत को ध्यान में रखकर [[संगीत]] की राह चुनी, जिसमें आँखों का कम उपयोग होता है। रवीन्द्र ने अपने पिता तथा भाई की आज्ञा शिरोधार्य कर मन की आँखों से सब कुछ जानने-समझने की सफल कोशिश की। बड़े भाई से आग्रह कर अनेक [[उपन्यास]] सुने। [[कविता|कविताओं]] के भावार्थ समझे। धार्मिक-ग्रंथों तथा इतिहास-पुरुषों की जीवनियों से जीवन का मर्म समझा। वे बचपन से इतने कुशाग्र बुद्धि के थे कि एक बार सुनी गई बात को कंठस्थ कर लेते, जो हमेशा उन्हें याद रहती। [[परिवार]] के [[धर्म]], [[दर्शन]] और अध्यात्ममय माहौल में उनका बचपन बीता। वे प्रतिदिन मंदिर जाते और वहाँ एक भजन गाकर सुनाना उनकी दिनचर्या में शामिल था। बदले में पिताजी एक भजन गाने पर एक [[रुपया]] इनाम भी दिया करते थे।
 
====शरारतें====
 
====शरारतें====
रवीन्द्र जैन भले ही दृष्टिहीन रहे हों, मगर उन्होंने बचपन में खूब शरारतें कीं। परिवार का नियम था कि सूरज ढलने से पहले घर में कदम रखो और भोजन करो। रवीन्द्र ने इस नियम का कभी पालन नहीं किया। रोज देर रात को घर आते। पिताजी के डंडे से माँ बचाती। उनके कमरे में पलंग के नीचे खाना छिपाकर रख देतीं ताकि बालक भूखा न रहे। अपनी दोस्त मंडली के साथ रवीन्द्र गाने-बजाने की टोली बनाकर [[अलीगढ़]] के रेलवे स्टेशन के आसपास मँडराया करते थे। उनके दोस्त के पास टिन का छोटा डिब्बा था, जिस पर थाप लगाकर वे गाते और हर आने-जाने वाले का मनोरंजन करते। एक दिन न जाने क्या सूझी कि डिब्बे को सीधा कर दिया। उसका खुला मुँह देख श्रोता उसमें पैसे डालने लगे। चिल्लर से डिब्बा भर गया। घर आकर उन्होंने माँ के चरणों में चिल्लर उड़ेल दी। पिताजी ने यह देखा तो गुस्से से लाल-पीले हो गए और सारा पैसा देने वालों को लौटाने का आदेश दिया। अब परेशानी यह आई कि अजनबी लोगों को खोजकर पैसा कैसे वापस किया जाए? दोस्तों ने योजना बनाई कि चाट की दुकान पर जाकर चाट-पकौड़ी जमकर खाई जाए और मजा लिया जाए।<ref name="aa"/>
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रवीन्द्र जैन भले ही दृष्टिहीन रहे हों, मगर उन्होंने बचपन में खूब शरारतें कीं। [[परिवार]] का नियम था कि सूरज ढलने से पहले घर में कदम रखो और भोजन करो। रवीन्द्र ने इस नियम का कभी पालन नहीं किया। रोज देर रात को घर आते। पिताजी के डंडे से माँ बचाती। उनके कमरे में पलंग के नीचे खाना छिपाकर रख देतीं ताकि बालक भूखा न रहे। अपनी दोस्त मंडली के साथ रवीन्द्र गाने-बजाने की टोली बनाकर [[अलीगढ़]] के रेलवे स्टेशन के आसपास मँडराया करते थे। उनके दोस्त के पास टिन का छोटा डिब्बा था, जिस पर थाप लगाकर वे गाते और हर आने-जाने वाले का मनोरंजन करते। एक दिन न जाने क्या सूझी कि डिब्बे को सीधा कर दिया। उसका खुला मुँह देख श्रोता उसमें पैसे डालने लगे। चिल्लर से डिब्बा भर गया। घर आकर उन्होंने माँ के चरणों में चिल्लर उड़ेल दी। पिताजी ने यह देखा तो गुस्से से लाल-पीले हो गए और सारा पैसा देने वालों को लौटाने का आदेश दिया। अब परेशानी यह आई कि अजनबी लोगों को खोजकर पैसा कैसे वापस किया जाए? दोस्तों ने योजना बनाई कि चाट की दुकान पर जाकर चाट-पकौड़ी जमकर खाई जाए और मजा लिया जाए।<ref name="aa"/>
 
==व्यावसायिक शुरुआत==
 
==व्यावसायिक शुरुआत==
रवीन्द्र जैन ने कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]) तथा वहाँ के '[[रवीन्द्र संगीत]]' के बारे में काफ़ी सुन रखा था। ताऊजी के बेटे पद्म भाई ने वहाँ चलने का प्रस्ताव दिया, तो फौरन राजी हो गए। पिताजी ने पचहत्तर रुपए जेब खर्च के लिए दिए। माँ ने कपड़े की पोटली में [[चावल]]-[[दाल]] बाँध दिए। [[कानपुर]] स्टेशन पर भाई के साथ नीचे उतरे, तो ट्रेन चल पड़ी। पद्म भाई तो चढ़ गए। रवीन्द्र ने भागने की कोशिश की। डिब्बे से निकले एक हाथ ने उन्हें अंदर खींच लिया। उस अजनबी ने कहा कि- "जब तक भाई नहीं मिले, हमारे साथ रहना।" फ़िल्म निर्माता राधेश्याम झुनझुनवाला के जरिए रवीन्द्र को [[संगीत]] सिखाने की एक ट्‌यूशन मिली। मेहनताने में [[चाय]] के साथ नमकीन समोसा। पहली नौकरी बालिका विद्या भवन में 40 रुपए [[महीने]] पर लगी। इसी शहर में उनकी मुलाकात [[पण्डित जसराज]] तथा पण्डित मणिरत्नम् से हुई। नई गायिका हेमलता से उनका परिचय हुआ। वे मिलकर [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]] तथा अन्य भाषाओं में धुनों की रचना करने लगे। हेमलता से नजदीकियों के चलते उन्हें ग्रामोफोन रिकॉर्डिंग कम्पनी से ऑफर मिलने लगे। एक पंजाबी फ़िल्म में [[हारमोनियम]] बजाने का मौका मिला। सार्वजनिक मंच पर प्रस्तुति के 151 रुपए तक मिलने लगे। इसी सिलसिले में वे हरिभाई जरीवाला ([[संजीव कुमार]]) के संपर्क में आए। कलकत्ता का यह पंछी उड़कर [[मुंबई]] आ गया।
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रवीन्द्र जैन ने कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]) तथा वहाँ के '[[रवीन्द्र संगीत]]' के बारे में काफ़ी सुन रखा था। ताऊजी के बेटे पद्म भाई ने वहाँ चलने का प्रस्ताव दिया, तो फौरन राजी हो गए। पिताजी ने पचहत्तर रुपए जेब खर्च के लिए दिए। माँ ने कपड़े की पोटली में [[चावल]]-[[दाल]] बाँध दिए। [[कानपुर]] स्टेशन पर भाई के साथ नीचे उतरे, तो ट्रेन चल पड़ी। पद्म भाई तो चढ़ गए। रवीन्द्र ने भागने की कोशिश की। डिब्बे से निकले एक हाथ ने उन्हें अंदर खींच लिया। उस अजनबी ने कहा कि- "जब तक भाई नहीं मिले, हमारे साथ रहना।" फ़िल्म निर्माता राधेश्याम झुनझुनवाला के जरिए रवीन्द्र को [[संगीत]] सिखाने की एक ट्‌यूशन मिली। मेहनताने में [[चाय]] के साथ नमकीन समोसा। पहली नौकरी बालिका विद्या भवन में 40 रुपए [[महीने]] पर लगी। इसी शहर में उनकी मुलाकात [[पण्डित जसराज]] तथा पण्डित मणिरत्नम् से हुई। नई गायिका हेमलता से उनका परिचय हुआ। वे मिलकर [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]] तथा अन्य भाषाओं में धुनों की रचना करने लगे। हेमलता से नजदीकियों के चलते उन्हें ग्रामोफोन रिकॉर्डिंग कम्पनी से ऑफर मिलने लगे। एक पंजाबी फ़िल्म में [[हारमोनियम]] बजाने का मौका मिला। सार्वजनिक मंच पर प्रस्तुति के 151 [[रुपया|रुपए]] तक मिलने लगे। इसी सिलसिले में वे हरिभाई जरीवाला ([[संजीव कुमार]]) के संपर्क में आए। कलकत्ता का यह पंछी उड़कर [[मुंबई]] आ गया।
 
==मुम्बई आगमन==
 
==मुम्बई आगमन==
 
सन [[1968]] में राधेश्याम झुनझुनवाला के साथ रवीन्द्र जैन मुंबई आए तो पहली मुलाकात पार्श्वगायक [[मुकेश]] से हुई। रामरिख मनहर ने कुछ महफिलों में गाने के अवसर जुटाए। [[नासिक]] के पास देवलाली में फ़िल्म 'पारस' की शूटिंग चल रही थी। [[संजीव कुमार]] ने वहाँ बुलाकार निर्माता एन. एन. सिप्पी से मिलवाया। रवीन्द्र ने अपने खजाने से कई अनमोल गीत तथा धुनें एक के बाद एक सुनाईं। श्रोताओं में [[शत्रुघ्न सिन्हा]], फ़रीदा जलाल और नारी सिप्पी भी थे। उनका पहला फ़िल्मी गीत [[14 जनवरी]], [[1972]] को [[मोहम्मद रफ़ी]] की आवाज़ में रिकॉर्ड हुआ।<ref name="aa"/>  
 
सन [[1968]] में राधेश्याम झुनझुनवाला के साथ रवीन्द्र जैन मुंबई आए तो पहली मुलाकात पार्श्वगायक [[मुकेश]] से हुई। रामरिख मनहर ने कुछ महफिलों में गाने के अवसर जुटाए। [[नासिक]] के पास देवलाली में फ़िल्म 'पारस' की शूटिंग चल रही थी। [[संजीव कुमार]] ने वहाँ बुलाकार निर्माता एन. एन. सिप्पी से मिलवाया। रवीन्द्र ने अपने खजाने से कई अनमोल गीत तथा धुनें एक के बाद एक सुनाईं। श्रोताओं में [[शत्रुघ्न सिन्हा]], फ़रीदा जलाल और नारी सिप्पी भी थे। उनका पहला फ़िल्मी गीत [[14 जनवरी]], [[1972]] को [[मोहम्मद रफ़ी]] की आवाज़ में रिकॉर्ड हुआ।<ref name="aa"/>  
 
==सफलता प्राप्ति==
 
==सफलता प्राप्ति==
 
रामरिख मनहर के जरिये 'राजश्री प्रोडक्शन' के ताराचंद बड़जात्या से मुलाकात रवीन्द्र जैन के फ़िल्म करियर को सँवार गई। [[अमिताभ बच्चन]], [[नूतन]] अभिनीत 'सौदागर' में गानों की गुंजाइश नहीं थी। उसके बावजूद रवीन्द्र ने गुड़ बेचने वाले सौदागर के लिए मीठी धुनें बनाईं, जो यादगार हो गईं। यहीं से रवीन्द्र और राजश्री का सरगम का कारवाँ आगे बढ़ता गया। 'तपस्या', 'चितचोर', 'सलाखें', 'फ़कीरा' के गाने लोकप्रिय हुए और मुंबइया संगीतकारों में रवीन्द्र जैन का नाम स्थापित हो गया। 'दीवानगी' के समय [[सचिन देव बर्मन]] बीमार हो गए तो यह फ़िल्म उन्होंने रवीन्द्र जैन को सौंप दी। एक महफिल में रवीन्द्र जैन-हेमलता गा रहे थे। श्रोताओं में [[राज कपूर]] भी थे। 'एक राधा एक मीरा दोनों ने श्याम को चाहा' गीत सुनकर राज कपूर झूम उठे, बोले- "यह गीत किसी को दिया तो नहीं?" पलटकर रवीन्द्र जैन ने कहा, "राज कपूर को दे दिया है।" बस, यहीं से उनकी एंट्री राज कपूर के शिविर में हो गई। आगे चलकर 'राम तेरी गंगा मैली' का [[संगीत]] रवीन्द्र जैन ने ही दिया और फ़िल्म तथा संगीत बेहद लोकप्रिय हुए।
 
रामरिख मनहर के जरिये 'राजश्री प्रोडक्शन' के ताराचंद बड़जात्या से मुलाकात रवीन्द्र जैन के फ़िल्म करियर को सँवार गई। [[अमिताभ बच्चन]], [[नूतन]] अभिनीत 'सौदागर' में गानों की गुंजाइश नहीं थी। उसके बावजूद रवीन्द्र ने गुड़ बेचने वाले सौदागर के लिए मीठी धुनें बनाईं, जो यादगार हो गईं। यहीं से रवीन्द्र और राजश्री का सरगम का कारवाँ आगे बढ़ता गया। 'तपस्या', 'चितचोर', 'सलाखें', 'फ़कीरा' के गाने लोकप्रिय हुए और मुंबइया संगीतकारों में रवीन्द्र जैन का नाम स्थापित हो गया। 'दीवानगी' के समय [[सचिन देव बर्मन]] बीमार हो गए तो यह फ़िल्म उन्होंने रवीन्द्र जैन को सौंप दी। एक महफिल में रवीन्द्र जैन-हेमलता गा रहे थे। श्रोताओं में [[राज कपूर]] भी थे। 'एक राधा एक मीरा दोनों ने श्याम को चाहा' गीत सुनकर राज कपूर झूम उठे, बोले- "यह गीत किसी को दिया तो नहीं?" पलटकर रवीन्द्र जैन ने कहा, "राज कपूर को दे दिया है।" बस, यहीं से उनकी एंट्री राज कपूर के शिविर में हो गई। आगे चलकर 'राम तेरी गंगा मैली' का [[संगीत]] रवीन्द्र जैन ने ही दिया और फ़िल्म तथा संगीत बेहद लोकप्रिय हुए।
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==लोकप्रिय गीत==
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|+रवीन्द्र जैन के लोकप्रिय गीत
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! क्र.सं.
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! गीत
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! फ़िल्म
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! वर्ष
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|1.
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|गीत गाता चल, ओ साथी गुनगुनाता चल
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|गीत गाता चल
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|1975
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|2.
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|जब दीप जले आना
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| चितचोर
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|1976
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|3.
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|ले जाएंगे, ले जाएंगे, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे
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| चोर मचाए शोर
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|1973
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|4.
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|ले तो आए हो हमें सपनों के गांव में
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| दुल्हन वही जो पिया मन भाए
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|1977
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|5.
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|ठंडे-ठंडे पानी से नहाना चाहिए
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| पति, पत्नी और वो
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|1978
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|-
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|6.
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|एक राधा एक मीरा
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| राम तेरी गंगा मैली
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|1985
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|-
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|7.
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|अंखियों के झरोखों से, मैंने जो देखा सांवरे
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| अंखियों के झरोखों से
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|1978
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|8.
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|सजना है मुझे सजना के लिए
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| सौदागर
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|1973
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|9.
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|हर हसीं चीज का मैं तलबगार हूं
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| सौदागर
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|1973
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|10.
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|श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम
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| गीत गाता चल
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|1975
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|11.
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|कौन दिशा में लेके
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| नदियां के पार
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| -
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|12.
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|सुन सायबा सुन, प्यार की धुन
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| राम तेरी गंगा मैली
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|1985
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|13.
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|मुझे हक है
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| विवाह
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| -
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|}
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==निधन==
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रवीन्द्र जैन का निधन [[9 अक्टूबर]], [[2015]] को [[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]] में हुआ।
  
 
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05:18, 28 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण

रवीन्द्र जैन
रवीन्द्र जैन
पूरा नाम रवीन्द्र जैन
जन्म 28 फ़रवरी, 1944
जन्म भूमि अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 9 अक्टूबर, 2015
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
अभिभावक पिता- पंडित इन्द्रमणि जैन, माता- किरणदेवी जैन
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र हिन्दी सिनेमा
प्रसिद्धि संगीतकार, गायक
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्ध गीत 'गीत गाता चल', 'जब दीप जले आना', 'ले तो आए हो हमें सपनों के गांव में', 'एक राधा एक मीरा', 'अंखियों के झरोखों से', 'मैंने जो देखा सांवरे', 'श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम' आदि।
अन्य जानकारी 1968 में राधेश्याम झुनझुनवाला के साथ रवीन्द्र जैन मुंबई आए तो पहली मुलाकात पार्श्वगायक मुकेश से हुई। उनका पहला फ़िल्मी गीत 14 जनवरी, 1972 को मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में रिकॉर्ड हुआ।

रवीन्द्र जैन (अंग्रेज़ी: Ravindra Jain, जन्म- 28 फ़रवरी, 1944, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 9 अक्टूबर, 2015, मुम्बई, महाराष्ट्र) भारतीय हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध संगीतकार तथा गायक थे। मुख्यत: उन्हें भजन गायक के रूप में ख्याति मिली थी। रवीन्द्र जैन हिन्दी सिनेमा के ऐसे संगीतकार थे, जिन्होंने मन की आँखों से दुनिया को समझा। सरगम के सात सुरों के माध्यम से उन्होंने जितना समाज से पाया, उससे कई गुना अधिक अपने श्रोताओं को लौटाया। वे मधुर धुनों के सर्जक होने के साथ बेहतरीन गायक भी रहे और अधिकांश गीतों की आशु रचना भी उन्होंने करके सबको चौंकाया। मन्ना डे के दृष्टिहीन चाचा कृष्णचन्द्र डे के बाद रवीन्द्र जैन दूसरे व्यक्ति थे, जिन्होंने दृश्य-श्रव्य माध्यम में केवल श्रव्य के सहारे ऐसा इतिहास रचा, जो युवा-पीढ़ी के लिए अनुकरणीय बन गया।

परिचय

प्रख्यात संगीतकार तथा गायक रवीन्द्र जैन का जन्म 28 फ़रवरी, सन 1944 में उत्तर प्रदेश राज्य के अलीगढ़ शहर में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित इन्द्रमणि जैन तथा माता किरणदेवी जैन थीं। अपने सात भाइयों तथा एक बहन में रवीन्द्र जैन का क्रम चौथा था। जन्म से उनकी आँखें बंद थीं, जिसे पिता के मित्र डॉ. मोहनलाल ने सर्जरी से खोला। साथ ही यह भी कहा कि बालक की आँखों में रोशनी है, जो धीरे-धीरे बढ़ सकती है, लेकिन इसे कोई काम ऐसा मत करने देना, जिससे आँखों पर जोर पड़े।[1]

एक भजन, एक रुपया

रवीन्द्र जैन के पिता ने डॉक्टर की नसीहत को ध्यान में रखकर संगीत की राह चुनी, जिसमें आँखों का कम उपयोग होता है। रवीन्द्र ने अपने पिता तथा भाई की आज्ञा शिरोधार्य कर मन की आँखों से सब कुछ जानने-समझने की सफल कोशिश की। बड़े भाई से आग्रह कर अनेक उपन्यास सुने। कविताओं के भावार्थ समझे। धार्मिक-ग्रंथों तथा इतिहास-पुरुषों की जीवनियों से जीवन का मर्म समझा। वे बचपन से इतने कुशाग्र बुद्धि के थे कि एक बार सुनी गई बात को कंठस्थ कर लेते, जो हमेशा उन्हें याद रहती। परिवार के धर्म, दर्शन और अध्यात्ममय माहौल में उनका बचपन बीता। वे प्रतिदिन मंदिर जाते और वहाँ एक भजन गाकर सुनाना उनकी दिनचर्या में शामिल था। बदले में पिताजी एक भजन गाने पर एक रुपया इनाम भी दिया करते थे।

शरारतें

रवीन्द्र जैन भले ही दृष्टिहीन रहे हों, मगर उन्होंने बचपन में खूब शरारतें कीं। परिवार का नियम था कि सूरज ढलने से पहले घर में कदम रखो और भोजन करो। रवीन्द्र ने इस नियम का कभी पालन नहीं किया। रोज देर रात को घर आते। पिताजी के डंडे से माँ बचाती। उनके कमरे में पलंग के नीचे खाना छिपाकर रख देतीं ताकि बालक भूखा न रहे। अपनी दोस्त मंडली के साथ रवीन्द्र गाने-बजाने की टोली बनाकर अलीगढ़ के रेलवे स्टेशन के आसपास मँडराया करते थे। उनके दोस्त के पास टिन का छोटा डिब्बा था, जिस पर थाप लगाकर वे गाते और हर आने-जाने वाले का मनोरंजन करते। एक दिन न जाने क्या सूझी कि डिब्बे को सीधा कर दिया। उसका खुला मुँह देख श्रोता उसमें पैसे डालने लगे। चिल्लर से डिब्बा भर गया। घर आकर उन्होंने माँ के चरणों में चिल्लर उड़ेल दी। पिताजी ने यह देखा तो गुस्से से लाल-पीले हो गए और सारा पैसा देने वालों को लौटाने का आदेश दिया। अब परेशानी यह आई कि अजनबी लोगों को खोजकर पैसा कैसे वापस किया जाए? दोस्तों ने योजना बनाई कि चाट की दुकान पर जाकर चाट-पकौड़ी जमकर खाई जाए और मजा लिया जाए।[1]

व्यावसायिक शुरुआत

रवीन्द्र जैन ने कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) तथा वहाँ के 'रवीन्द्र संगीत' के बारे में काफ़ी सुन रखा था। ताऊजी के बेटे पद्म भाई ने वहाँ चलने का प्रस्ताव दिया, तो फौरन राजी हो गए। पिताजी ने पचहत्तर रुपए जेब खर्च के लिए दिए। माँ ने कपड़े की पोटली में चावल-दाल बाँध दिए। कानपुर स्टेशन पर भाई के साथ नीचे उतरे, तो ट्रेन चल पड़ी। पद्म भाई तो चढ़ गए। रवीन्द्र ने भागने की कोशिश की। डिब्बे से निकले एक हाथ ने उन्हें अंदर खींच लिया। उस अजनबी ने कहा कि- "जब तक भाई नहीं मिले, हमारे साथ रहना।" फ़िल्म निर्माता राधेश्याम झुनझुनवाला के जरिए रवीन्द्र को संगीत सिखाने की एक ट्‌यूशन मिली। मेहनताने में चाय के साथ नमकीन समोसा। पहली नौकरी बालिका विद्या भवन में 40 रुपए महीने पर लगी। इसी शहर में उनकी मुलाकात पण्डित जसराज तथा पण्डित मणिरत्नम् से हुई। नई गायिका हेमलता से उनका परिचय हुआ। वे मिलकर बांग्ला तथा अन्य भाषाओं में धुनों की रचना करने लगे। हेमलता से नजदीकियों के चलते उन्हें ग्रामोफोन रिकॉर्डिंग कम्पनी से ऑफर मिलने लगे। एक पंजाबी फ़िल्म में हारमोनियम बजाने का मौका मिला। सार्वजनिक मंच पर प्रस्तुति के 151 रुपए तक मिलने लगे। इसी सिलसिले में वे हरिभाई जरीवाला (संजीव कुमार) के संपर्क में आए। कलकत्ता का यह पंछी उड़कर मुंबई आ गया।

मुम्बई आगमन

सन 1968 में राधेश्याम झुनझुनवाला के साथ रवीन्द्र जैन मुंबई आए तो पहली मुलाकात पार्श्वगायक मुकेश से हुई। रामरिख मनहर ने कुछ महफिलों में गाने के अवसर जुटाए। नासिक के पास देवलाली में फ़िल्म 'पारस' की शूटिंग चल रही थी। संजीव कुमार ने वहाँ बुलाकार निर्माता एन. एन. सिप्पी से मिलवाया। रवीन्द्र ने अपने खजाने से कई अनमोल गीत तथा धुनें एक के बाद एक सुनाईं। श्रोताओं में शत्रुघ्न सिन्हा, फ़रीदा जलाल और नारी सिप्पी भी थे। उनका पहला फ़िल्मी गीत 14 जनवरी, 1972 को मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में रिकॉर्ड हुआ।[1]

सफलता प्राप्ति

रामरिख मनहर के जरिये 'राजश्री प्रोडक्शन' के ताराचंद बड़जात्या से मुलाकात रवीन्द्र जैन के फ़िल्म करियर को सँवार गई। अमिताभ बच्चन, नूतन अभिनीत 'सौदागर' में गानों की गुंजाइश नहीं थी। उसके बावजूद रवीन्द्र ने गुड़ बेचने वाले सौदागर के लिए मीठी धुनें बनाईं, जो यादगार हो गईं। यहीं से रवीन्द्र और राजश्री का सरगम का कारवाँ आगे बढ़ता गया। 'तपस्या', 'चितचोर', 'सलाखें', 'फ़कीरा' के गाने लोकप्रिय हुए और मुंबइया संगीतकारों में रवीन्द्र जैन का नाम स्थापित हो गया। 'दीवानगी' के समय सचिन देव बर्मन बीमार हो गए तो यह फ़िल्म उन्होंने रवीन्द्र जैन को सौंप दी। एक महफिल में रवीन्द्र जैन-हेमलता गा रहे थे। श्रोताओं में राज कपूर भी थे। 'एक राधा एक मीरा दोनों ने श्याम को चाहा' गीत सुनकर राज कपूर झूम उठे, बोले- "यह गीत किसी को दिया तो नहीं?" पलटकर रवीन्द्र जैन ने कहा, "राज कपूर को दे दिया है।" बस, यहीं से उनकी एंट्री राज कपूर के शिविर में हो गई। आगे चलकर 'राम तेरी गंगा मैली' का संगीत रवीन्द्र जैन ने ही दिया और फ़िल्म तथा संगीत बेहद लोकप्रिय हुए।

लोकप्रिय गीत

रवीन्द्र जैन के लोकप्रिय गीत
क्र.सं. गीत फ़िल्म वर्ष
1. गीत गाता चल, ओ साथी गुनगुनाता चल गीत गाता चल 1975
2. जब दीप जले आना चितचोर 1976
3. ले जाएंगे, ले जाएंगे, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे चोर मचाए शोर 1973
4. ले तो आए हो हमें सपनों के गांव में दुल्हन वही जो पिया मन भाए 1977
5. ठंडे-ठंडे पानी से नहाना चाहिए पति, पत्नी और वो 1978
6. एक राधा एक मीरा राम तेरी गंगा मैली 1985
7. अंखियों के झरोखों से, मैंने जो देखा सांवरे अंखियों के झरोखों से 1978
8. सजना है मुझे सजना के लिए सौदागर 1973
9. हर हसीं चीज का मैं तलबगार हूं सौदागर 1973
10. श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम गीत गाता चल 1975
11. कौन दिशा में लेके नदियां के पार -
12. सुन सायबा सुन, प्यार की धुन राम तेरी गंगा मैली 1985
13. मुझे हक है विवाह -

निधन

रवीन्द्र जैन का निधन 9 अक्टूबर, 2015 को मुम्बई, महाराष्ट्र में हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 रवींद्र जैन- गीत गाता चल ओ साथी (हिन्दी) वेबदुनिया। अभिगमन तिथि: 10 अक्टूबर, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

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